श्री परशुराम अवतार रहस्य
कल्प और युग
भगवान् की सृष्टि | स्वयं में ही एक आश्चर्य है। फिर इसमें आश्चर्यों की गणना अथवा सीमा कैसे कहीं जा सकती है। मानव की सीमित बुद्धि उस असीमित सृष्टि का सम्यक् ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकती है? मानव बुद्धि वहाँ सर्वथा कुण्ठित हो जाती है। केवल शास्त्र और आर्ष वचनों के सहारे ही इसे समझा जाता है। सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्माजी की रचना है यह सभी जानते हैं। आरम्भ में सतोगुण की प्रधानता थी, फिर रजोगुण एवं तमोगुण की प्रधानता होने लगी। इन्हीं के अनुसार सृष्टि का स्वरूप-दृष्टि गोचर होता रहता है। यही परिवर्तन क्रम कहलाता है राक्षस प्रारम्भ काल में रक्षा किया करते थे इसी गुण के कारण राक्षस कहलाते थे। कालान्तर में वे इतने अत्याचारी, दुराचारी और पापात्मा बन गये कि उनसे पीड़ित होकर संसार त्राहि-त्राहि कर उठा।
इन तीनों गुणों में एक सीमा में सामंजस्य बनाये रखने के लिए भगवान- अवतारों की योजना करते हैं। पापी, आततायियों का संहार करने के लिए और सज्जन-धर्मात्मा जनों की रक्षा करने के लिए भगवान अवतार लेते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी हैं, जिन के लिए भगवान अवतार लेते हैं कहीं किसी शाप के कारण तो कहीं पृथ्वी के उद्धार के लिए भी भगवान अवतार धारण करते हैं अवतार का आविर्भाव भगवान् विष्णु के अंश से ही होता है परन्तु कार्य-कारण और पात्र के अनुसार यह अवतरण मानव योनि में अथवा अन्य मानवेतर योनियों में हुआ करता है। मानव योनि के अवतारों में भगवान राम, कृष्ण और परशुराम आदि हैं तथा मानवेतर योनियों के उदाहरण जैसे कहा है-
दो जलचर, दो वनचर, दो विप्र, दो शूर। दो करे जंगल में तपस्या, हृदय भजन भक्ति भरपूर ॥
अर्थात् मत्स्य और कूर्म जल में रहते हैं नरसिंह और शूकर वन में रहने वाले वनेचर के रूप में हुये तथा राम और कृष्ण शूरवीर योद्धा के रूप में तथा वामन और परशुराम विप्र विद्या भण्डार के रूप में हुये। यह सभी अवतार भक्तों के ऊपर कृपा करने के लिए अजन्मा अव्यय और ईश्वर होने पर भी माया का आश्रय लेकर परमात्मा अवतार लेते हैं। अवतरण का अर्थ यह नहीं है कि भगवान् को कहीं से उतरना या आना पड़ता है। वह परमात्मा सर्वव्यापक है, किसी विशेष अधिष्ठान अथवा व्यक्ति के द्वारा शक्ति प्रकट होने का नाम ही अवतार है। प्रत्येक कल्प में अखिल कोटी ब्रह्माण्ड नायक परात्पर परब्रह्म परमात्मा सर्वेश्वर सर्वनियन्ता भगवान् के अवतार अनेकों बार होते हैं।
परशुराम कथा :- कल्प और युग के बारे में जानकारी
parshuram katha kalp aur yug ke baare mei hindi mein jaankari
कल्प के बारे में हम कुछ इस तरह समझ सकते हैं- सत्रह लाख अठ्ठाईस हजार वर्ष का सतयुग, बारह लाख छियानवे हजार वर्षों का त्रेता, आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष का द्वापर और चार लाख बत्तीस हजार वर्ष का कलियुग होता है चारों युगों के एक बार होने को एक चौकड़ी कहते हैं और हजार चौकड़ी होने पर एक कल्प होता है। वर्तमान कल्प श्वेतावाराह कल्प है इसमें चौबीस अवतार प्रमुख माने जाते हैं, उनमें से दस महा अवतार कहे गये हैं। अब तक इस कल्प के नौ-अवतारों की लीला तो हो चुकी है दसवें अवतार कल्कि भगवान का आविर्भाव अभी होना है। अभी तो भगवान का आविर्भाव अभी होना है अभी तो भगवान श्री कृष्णावतार को हुए 5 हजार वर्ष हुए हैं अतः कल्कि अवतार होने में लाखों वर्ष का समय है इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कुछ धूर्त लोग कभी-कभी मिथ्या प्रचार कर डालते हैं एवं शास्त्र निरुद्ध हैं ये अवतार हो चुके हैं उनमें परशुराम जी का भी अवतार हो चुका है।
भगवान् के अवतार कई प्रकार के होते हैं जैसे मुख्यावतार, कलावतार, अंशावतार और गौणावतार मुख्य अवतार हैं- श्रीराम और श्रीकृष्ण। कलावतारों में मत्स्यावतार वामनावतार आदि हैं अंशावतारों में श्री लक्ष्मण तथा श्री बलराम जी आदि हैं गौणावतार के भी दो भेद हैं एक आवेशावतार और दूसरा प्रवेशातार, आवेशातार में पात्र विशेष भगवान का आवेश आता है और उसके द्वारा वांछित कार्य सम्पादित होते हैं इसके उदाहरण है। सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार और नारद आदि । प्रवेशावतार के विषय में ऐसा है कि किसी व्यक्ति में एक निश्चित अवधि तक अथवा किसी निश्चित कार्य विशेष की पूर्ति होने तक भगवान श्री हरि अपने अंश को सम्प्रेषित करते हैं। इसमें स्पष्ट है कि जितने काल तक भगवान को अपना अभिष्ट विशेष एवं आवश्यक कार्य सम्पन्न करना होता है, उतने समय तक वह विशिष्ट व्यक्ति भगवान का अवतार माना जाता है परन्तु जब सर्व समर्थ भगवान श्री हरि अपने स्वरूप एवं गुणों को उस व्यक्ति के शरीर से पृथक कर लेते है। तो वह व्यक्ति पुनः अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ जाता है। फिर कोई चमत्कार नहीं रहता इस प्रकार प्रवेशावतार में भगवान परशुराम जी एंव भगवान वेद व्यास जी आदि आते हैं।
कथा प्रसिद्ध है कि भगवान बादनारायण कृष्ण द्वैपायन जी में तीन वर्ष तक वेद-विभाग तथा पुराणादि का सम्पादन करने हेतु ईश्वर के अंश का प्रवेश हुआ था उसी प्रकार प्रमादी, मन्दान्ध एवं दुष्ट, दुर्दान्त नरेशों का संहार करने के लिए दीर्घकाल तक जामदगन्य परशुराम जी में विशिष्ट ईश्वरांश का प्रवेश रहा। श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण आदि में इन्हें भगवान विष्णु का सोलहवां अवतार कहा जाता है। स्कन्द पुराण के सहयादि खण्ड में भगवान परशुराम को पूर्णावतार बताया गया है इनकी माता को भी एक वीरा (काली माँ) का अवतार बताया गया है। महाभारत अन्तर्गत विष्णु सहस्त्रनाम का जो अंश पुस्तिका के रूप में प्रकाशित है। वह बहुत प्रसिद्ध है, प्रायः घर-घर में नित्य पाठ करने में इसका प्रयोग होता है।
दूसरा पद्म पुराण के छटे खण्ड में, अध्याय इकहतर में मिलता है। इन दोनों ही विष्णु सहस्रनामों में भगवान विष्णु के एक हजार नाम दिये गये हैं। परन्तु नाम में अन्तर है। पद्म पुराण में जो विष्णु सहस्रनाम है, उनमें भगवान विष्णु के नामों में भगवान परशुराम के 20 से भी अधिक नाम सम्मिलित हैं-
जमदग्नि कुलादित्य, रेणुकादभुत शक्ति कृत, मातृहत्यादि निर्लेप, स्कन्दजित विप्रराज्यप्रद, सर्वक्षत्रान्तकृत वीरदर्पहा, कार्त्तवीर्यजित्त सप्तद्वीपावतीदाता, शिवार्चकयशप्रद, भीम, परशुराम, शिवाचार्य विश्वभुक, शिवखिलज्ञान कोष, भीष्माचार्य अग्निदैवत, गुरु द्रोणाचार्य, विश्व जैत्रधन्वा, कृतान्तजित, अद्वितीय तपोमूर्ति, ब्रह्मचर्येक दक्षिण पहले कहा जा चुका है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के सोलहवें अवतार हैं। विष्णु सहस्रनाम के अन्तर्गत श्री परशुराम जी के जो नाम ऊपर उद्धृत किये गये। हैं उनसे तो उक्त कथन का पूर्णरूपेण प्रमाणीकरण हो जाता है।
यमदग्निकुलादिव्यो रेणुकाद्भुत शक्ति कृत मातृहव्यादिनिर्लेपः
स्कंदजिद्विप्रराज्यदः ।।104॥सर्वक्षत्रान्तकृद्विरदर्पहाकार्तवीर्याजित
सप्तद्वीपावतीदाता शिवाचर्कयशप्रदः ॥105॥
भीमः परशुरामश्च शिवाचार्यैक विश्व भुक शिवरत्न ज्ञान कोशो भीष्माचार्योग्निदैवतः॥106॥
द्रोणाचार्य गुरु विश्वजैत्र धन्वाकृतातजित् आद्वितीयतपो मूर्ति ब्रह्मचर्येकदक्षिण ॥ 1201
(श्री पद्मपुराण, 6/71)
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