श्री लक्षचंडी यज्ञ कुरुक्षेत्र हरियाणा # Shri Laksh Chandi Yagya Kurukshetra Hariyana
श्रीगुमटी वाले माता जी का मंदिर, जो हरियाणा के कुरुक्षेत्र, गुमटी ग्राम में स्थित है, उसकी स्थापना सन 1950 में, श्री श्री 1008, माता प्रकाश देवी जी के कर कमलों द्वारा सपन्न हुआ था. श्री माता प्रकाश देवी जी को गुमटी वाली माता जी, व बड़े माता जी के नाम से जाना जाता रहा है. इस पंथ की शुरुवात सन 1925 में शेखपुरा, जो की अभी वर्तमान पकिस्तान में आता है, वहीँ पर श्री माता सुगाहवंती देवी जी ने आरम्भ की थी....कुछ वर्षों की सेवा के बाद ही माता सुगाहवंती जी, सन 1947 में विभाजन के समय ही, ब्रह्मलीन हो गयीं. और फिर एक निश्चित समय के पश्चात, 18 जनवरी सन 1964 की एक पावन बेला पर, श्री श्री गुमटी वाले माता जी का जन्म हुआ.
बड़े माता जी की तरह ही माता उषा देवी जी भी, स्वयं कई दैवीय शक्तियों से ओतप्रोत थीं. बाल्यवस्था से ही किये गए कई चमत्कारी कारणों के चलते ही, जब माता जी की ख्याति फ़ैलने लगी तो फिर सन 1967 में बड़े मां जी ने, शत चंडी यज्ञ का आयोजन कर, माँ जी को अपनी उत्तराधिकारी घोषित किया. माँ जगदम्बा के साक्षात दर्शन की उत्कृष्ट अभिलाषा मन में लिए, सन 1973 में, अपने गृहस्थ का परित्याग करके, वे बड़े माता जी के सानिध्य में, गुमटी मंदिर आ गयीं. तत्पश्चात , बड़े माता जी, उनके गुरु माता एवं शिक्षक बनी रहीं.
सन 2016 में माँ भगवती की कृपा से ही, श्री श्री जागृति देवी जी का अवतरण हुआ तो दैवीय प्रेरणा से, माँ जी ने, श्री श्री जागृति देवी जी, जिन्हें प्रेम से जागो जी भी कहते हैं, उनको अपना उत्तराधिकारी घोषित किया.
एक बार हम सभी भक्तों को पुन: स्मरण दिलवा दें कि भारत वर्ष के ब्रह्मरंध्र कहे जाने वाले धर्मक्षेत्र, अर्थात कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर स्थित, श्री गुमटी मंदिर, जो शाहबाद मारकंडा में आता है, यहाँ इक्कीस सौ संध्या वंदन निष्ट ब्राह्मणों द्वारा, 109 दिव्य कुंडों में लक्ष चंडी यज्ञ का आयोजन किया गया है. इस यज्ञ का आयोजन श्री श्री 1008 गुमटी वाले माता जी के संकल्प अनुसार, माघ कृष्ण द्वितीया मंगलवार, विक्रम संवत 2079 से, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी रविवार विक्रम संवत 2079 में, 7 फरवरी से 26 फरवरी, अंग्रेजी वर्ष 2023 तक आयोजित किया जाता रहेगा.
यजुर्वेद प्रथम अध्याय के अनुसार, यज्ञ ही श्रेष्ठतम कर्म है. यज्ञ से धर्म , अर्थ काम, मोक्ष चारो पुरुषार्थों की प्राप्ति हो जाती है. कहते हैं हम जो ईश्वर को अर्पण करते हैं, ईश्वर हमें वो सूद समेत वापस कर देते हैं....पुराणों में लिखा है, यज्ञ में पड़ने वाली हविष्य, जो देवताओं को अर्पण की जाती है, उनसे देवताओं की शक्ति बढती है..और फिर वही देवता हमें उसके प्रतिफल स्वरुप अन्न, जल, हवा एवं अग्नि प्रदान करते हैं...हवन यज्ञ, पूजा पाठ ना केवल एक धार्मिक कार्य है, अपितु ये हमारे आस – पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है...
पुरानातन काल से ही इसीलिए हवन- यज्ञ की इतनी महत्ता बताई गयी है...और रावण जैसे महा पंडित असुरों को भी ये भलि-भाँती ज्ञात था...तभी तो वो उन साधु जनों का संहार किया करता था जो देवताओं के लिए हवन और यज्ञ करते थे...
भगवद्गीता के अनुसार, परमात्मा के निमित्त, अर्थात परमात्मा के लिए किया कोई भी कार्य यज्ञ कहा जाता है...श्रीमद भागवत पुराण और भगवदगीता के चौथे अध्याय में, भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देते हुए विस्तार पूर्वक विभिन्न प्रकार के यज्ञों के बारे में बताया गया है.. श्री भगवन कहते हैं कि अर्पण ही ब्रह्म है, हवि ब्रह्म है, अग्नि ब्रह्म है, आहुति ब्रह्म है, कर्म रूपी समाधि भी ब्रह्म है और जिसे प्राप्त किया जाना है वह भी ब्रह्म ही है....
यज्ञ को परब्रह्म स्वरूप माना गया है..इस सृष्टि से हमें जो भी प्राप्त है, जिसे अर्पण किया जा रहा है, जिसके द्वारा अर्पण हो रहा है, वह सब ब्रह्म स्वरूप है, अर्थात सृष्टि का कण कण, प्रत्येक क्रिया में जो ब्रह्म भाव रखता है, वह ब्रह्म को ही पाता है...अर्थात वो ब्रह्म स्वरूप हो जाता है... कर्म योगी, देव यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं, तथा अन्य ज्ञान योगी, ब्रह्म अग्नि में, यज्ञ द्वारा यज्ञ का हवन करते हैं...
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