अनुपम खेर जी की मशहूर कविता A famous poem from Mr.Anupamkher
Anupam kher sahab ki Hindi Poem.
ख्वाइश नहीं मुझे मशहूर होने की
आप मुझे पहचानते हैं, बस इतना ही काफी है
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे
जिसकी जितनी ज़रुरत थी, उसने उतना ही पहचाना मुझे
ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अजीब है
शामें कटती नहीं और साल गुजरते चले जा रहे हैं
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छुट जाते हैं
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं
मैंने समंदर से सीखा है जीने का तरीका,
चुपचाप से रहना और अपनी मौज़ में रहना
ऐसा नहीं कि मुझमे कोई ऐब नहीं है,
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब भी नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन,
एक मुद्दत से ना तो मैंने मोहब्बत बदली
और ना ही दोस्त बदले हैं
एक घडी खरीदकर हाथ में क्या बाँध ली,
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे
सोचा था घर बनाकर बैठूँगा सुकून से
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफिर बना डाला मुझे
सुकून की बात मत कर अब बचपन वाला इतवार नहीं आता है
जीवन की भाग -दौड़ के साथ क्यूँ रंगत खो जाती है
हंसती - खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है
एक सवेरा था जब हंसकर उठते थे हम,
और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है
कितनी दूर हो गए रिश्तों को निभाते -निभाते,
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते- पाते
लोग कहते हैं हम बहुत मुस्कुराते हैं
और हम हैं कि थक गए दर्द को छुपाते -छुपाते
खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ
लापरवाह हूँ खुद के लिए
लेकिन सबकी परवाह करता हूँ.
मालूम है कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी
कुछ अनमोल लोगों से रिश्ते रखता हूँ...
अनुपम खेर
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