शाप और वरदान कथाएं : Shaap aur vardan stories in Hindi

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 जब गौतम ऋषि ने शाप दिया ब्राह्मणों को.

शाप और वरदान कथाएं ( curse & boon story in Hindi)

Shaap aur vardan ki stories 

शाप और वरदान कथाएं :  Shaap aur vardan stories in Hindi

स्वर्गलोक के अधिपति इंद्र को देवताओं का राजा माना जाता है. सभी देव उनके अधीनस्थ कार्य करते थे. जल, बिजली और मेघ, देवराज इंद्र के नियंत्रण में होते है. पौराणिक कथाओं में कई जगह जिक्र आता है जब देवराज ने किसी बात पर नाराज़ होकर उस क्षेत्र में बरसात नहीं की. या कभी की तो इतनी ज्यादा बरसात कर दी कि उन्होंने उस क्षेत्र को जल मग्न ही कर दिया. इंद्र से जुडी ऐसी ही एक और कथा है. 

एक बार देवताओं के राजा इंद्र ने पंद्रह वर्षों तक धरतीलोक में बरसात नहीं की तो धरतीलोक में अकाल पड़ गया. अकाल इतना भीषण था कि अब मनुष्य ही एक दुसरे मनुष्य को मारकर खाने लगे. इस बात से ब्राह्मणों को चिंता होने लगी और सभी ने मिलकर गौतम ऋषि के पास जाने का निश्चय किया. जब सभी ब्राह्मण गौतम ऋषि के आश्रम की ओर चल पड़े तो उनके देखा-देखी सभी गाँव के लोग भी उनके साथ हो लिए. ब्राह्मण भी अपने साथ आने के लिए किसी को रोक नहीं पाए. इसलिए वे जिधर से निकलते, गाँव के लोग उनके साथ जुड़ते चलते गए. इस प्रकार देखते ही देखते कई गाँव के लोग ब्राह्मणों के साथ गौतम ऋषि के आश्रम पहुँच गए. गौतम ऋषि एक सिद्धि प्राप्त ऋषि थे जिनके पास कई तरह के तपोबल थे. गौतम ऋषि, वर्मान में चल रही अकाल की समस्या से अनजान नहीं थे, इसलिए उन्होंने ब्राह्मणों के कहने प  देवी भगवती गायत्री की पूजा अराधना शुरू कर दी. कई दिनों तक गौतम ऋषि ने निराहार रहकर देवी की अराधना की. उस समय कई गाँव के लोग जो आश्रम आ चुके थे वहीँ जमे रहें. जल्द ही देवी गायत्री गौतम ऋषि की पूजा से प्रसन्न हो गयी और देवी ने वरदान में गौतम ऋषि को एक ऐसा जादुई अक्षयपात्र दिया जो किसी का भी पेट भर सकता था. बस उस पात्र को सामने रखकर गौतम ऋषि को मंत्र बोलने की देर थी. अक्षय पात्र मिलने के बाद गौतम ऋषि ने उसी से गाँव वालों को भोजन की समस्या दूर करनी शुरू कर दी. इस तरह देखते देखते और बारह वर्ष बीत गए. लेकिन अब अकाल का कोई भी फर्क इसलिए नहीं पड़ रहा था क्यूंकि गौतम ऋषि के पास अक्षयपात्र था जो गौतम ऋषि की इच्छा पर अपने आप वो पात्र भोजन से भर जाता था. अब हर जगह गौतम ऋषि का नाम होने लगा. सभी देवी देवता गौतम ऋषि की प्रशंसा करने लगे.धरतीलोक के मानव भी अब ऋषि गौतम को भगवान की तरह पूजने लगे. लेकिन वहां रह रहे ब्राह्मणों के मन में अब धीरे-धीरे गौतम ऋषि के प्रति इर्ष्या होने लगी. वो नहीं चाहते थे कि लोग सिर्फ गौतम ऋषि को ही माने. जबकि अब लोग ब्राह्मणों को भाव ही नहीं दे रहे थे उनके लिए तो गौतम ऋषि ही सब कुछ थे. ऐसे में ब्राह्मणों ने अपनी माया से एक मरियल गाय का सृजन किया जो किसी भी समय मर सकती थी.. जब ऋषि गौतम ध्यान में बैठे थे तो वो मायावी गाय उनके पास आई और दो बार रंभाने के बाद मर गयी. ब्राह्माणों ने अवसर देखकर सबको बता दिया कि गौतम ऋषि के कारण वो गाय मर गयी. अगर वो ध्यान देते तो नहीं मरती. अब चुकी गौतम ऋषि पर गौ ह्त्या का पाप लग चुका है तो उन्हें ये आश्रम छोड़कर पाप का प्रायश्चित करने जाना होगा. लेकिन ऋषि गौतम वहां से जाते-जाते ब्राह्मणों का भेद खो देते हैं और क्रोधित होकर ब्राह्मणों को शाप देते हैं कि अब उन्हें मरने के बाद कुम्भीपाक का नर्क भोगना होगा. उसके बाद जब भी अगला जन्म होगा तो उनका जीवन सदा मांग- मांग कर खाने में ही गुजरेगा..उनका मन कभी नहीं भरेगा. सदा और दो और दो के लालच से मन भरा होगा. ब्राह्मणों को कभी भी किसी बात से संतुष्टि नहीं मिलेगी..बाद में उन कुटिल ब्राह्मणों को इस बात का बहुत पछतावा हुआ लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी. क्यूंकि गौतम ऋषि ने सभी ब्राह्मणों को शाप दे दिया था.     

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