Untold stories from Ramayan in Hindi : जब शिव और हनुमान के बीच पहली बार एक भयंकर युद्ध हुआ.

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Untold stories from Ramayan in Hindi  : जब शिव और हनुमान के बीच पहली बार एक भयंकर युद्ध हुआ.

Untold stories from Ramayan in Hindi . Story of Shiva & Hanuman

श्री राम जी का छोड़ा गया अश्वमेध यज्ञ का घोडा, कुछ समय तक इधर-उधर विचरण करने के बाद देवपुर की सीमा में प्रवेश किया। यह शहर इतना अधिक समृद्ध था कि यहाँ के सामान्य नागरिकों के घर भी चांदी से बने थे। यहाँ के राजा वीरमानी थे और उनके पुत्र का नाम रुक्मांगद था।

एक दिन रुक्मांगद अनेक सुंदर स्त्रियों के साथ वन में गया हुआ था। उस मनोहारी परिवेश में, कुछ स्त्रियों ने नृत्य करके, तो कुछ स्त्रियों ने गीत गाकर, व अन्य स्त्रियों ने अपने स्नेहपूर्ण आलिंगनों से राजकुमार को प्रसन्न किया। ठीक तभी, अश्वमेध का घोड़ा वहाँ पहुँच गया। उस अश्व को देखकर, स्त्रियों ने अनुरोध किया, "मेरे प्रिय राजकुमार, इस सुंदर अश्व को पकड़ लें। देखिए, इसके ललाट पर एक स्वर्ण-पत्र में सूचना भी लिखी है।"

रुक्मांगद ने एक ही हाथ से आसानी से अश्व को पकड़ लिया और फिर स्त्रियों को अश्व के ललाट पर लिखी सूचना पढ़कर सुनाई। इसके बाद, वह बोला, "यह राम कौन है? मेरे पिता सबसे शक्तिशाली राजा हैं और उन्हें भगवान् शिव का संरक्षण प्राप्त है। इस अश्व को हमारे अस्तबल ले चलो, ताकि मेरे पिता अश्वमेध यज्ञ कर सकें।"

इसके बाद, राजकुमार अपनी पत्नियों के साथ राज्य में वापस लौट आया और उसने अपने पिता को वह अश्व उपहार किया। सारी बात सुनने के बाद, अत्यन्त बुद्धिमान राजा वीरमानी ने अश्व लाने के इस कार्य को अपनी सहमति नहीं दी। वास्तव में, राजा ने सोचा कि उनके पुत्र ने एक चोर की भाँति कार्य किया है।

इस अश्व को लेकर, वीरमानी भगवान् शिव के पास परामर्श करने गये। महादेव ने राजा से कहा, "तुम्हारे पुत्र ने अच्छा काम किया है। आज एक भीषण युद्ध होगा जिससे मुझे अपने भगवान् राम को देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा। मैं सदैव उन्हीं का ध्यान करता हूँ। राम भले ही मेरे भगवान् हैं, परंतु तब भी मुझे विश्वास है कि तैंतीस कोटि देवगण मिलकर भी इस अश्व को तुम्हारे पास से नहीं ले जा सकेंगे क्योंकि मैं तुम्हारा संरक्षक हूँ।"

इस बीच, शत्रुघ्न को अश्वमेध का अश्व नहीं मिल पाया, तो उन्होंने अपने मंत्री सुमति से इस बारे में पूछा। इस पर सुमति ने उन्हें बताया कि इस राज्य के राजा का नाम वीरमानी है। उन्होंने शत्रुघ्न को सचेत किया कि यहाँ के राजा को स्वयं भगवान् शिव का संरक्षण प्राप्त है।

इधर सुमति जिस समय शत्रुघ्न को यह बता रहे थे, तब दूसरी तरफ राजा वीरमणि अपनी सेना को लामबंद करके, युद्ध की तैयारी कर रहे थे। शीघ्र ही, शत्रुघ्न ने एक विशाल सेना को युद्ध के लिए आगे बढ़ते देखा। सुमति ने शत्रुघ्न को सलाह दी कि पुष्कल को राजा के साथ युद्ध करने दें ताकि आप भगवान् शिव के साथ युद्ध कर सकें।

 

पहले, रुक्मांगद ने पुष्कल के साथ युद्ध किया। भीषण युद्ध के बाद, पुष्कल ने एक अस्त्र चलाया जिसने रुक्मांगद के रथ को जलाकर राख कर दिया और राजकुमार को अचेत करके रणभूमि में गिरा दिया। अपने पुत्र की पराजय देखकर, वीरमानी क्रोधित होकर बदला लेने की चाह से पुष्कल की ओर बढ़े। हनुमान शीघ्र ही वीरमानी की ओर दौड़ पड़े, परंतु पुष्कल ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि यह शत्रु इतना तुच्छ है कि आपको इसके बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, हनुमान रुक गये और वीरमानी का सामना करने के लिए पुष्कल आगे बढ़े। राजा बोला, "तुम अभी बच्चे हो। मेरे साथ युद्ध करने का प्रयास न करो, क्योंकि मैं बहुत क्रोधित हूँ और रणभूमि में कोई भी मुझे परास्त नहीं कर सकता है।"

पुष्कल बोले, "आप कहते हैं कि मैं बच्चा हूँ, परंतु मैं कहता हूँ कि आप एक वृद्ध पुरुष हैं। मैंने आपके पुत्र को परास्त कर दिया है और अब मैं अपने अस्त्रों से आपको भी आपके रथ से रणभूमि पर गिरा दूँगा।"

इसके बाद, भयानक युद्ध छिड़ गया जिसमें दोनों पक्षों के अगणित लोग मारे गये। पुष्कल और वीरमानी ने अपने अस्त्रों से एक-दूसरे को भीषण रूप से घायल कर दिया, परंतु आखिरकार राजा के सीने पर एक शक्तिशाली बाण से प्रहार हुआ जिसके कारण वह अचेत होकर अपने रथ से रणभूमि पर गिर पड़े। इस प्रकार, पुष्कल ने एक बार फिर विजय प्राप्त की।

अपने भक्तों को पराजित होते देखकर, भगवान् शिव ने वीरभद्र को पुष्कल से और नंदी को हनुमान से युद्ध करने भेजा। भयानक युद्ध के बाद, वीरभद्र द्वारा रथ तोड़ दिए जाने पर पुष्कल रथ से नीचे उतर पड़े। इसके बाद, ये दोनों पराक्रमी योद्धा मुष्ठि युद्ध करने लगे। वास्तव में, यह युद्ध अनेक दिन तक, दिन-रात लगातार चलता रहा।

पाँचवें दिन, वीरभद्र ने पुष्कल को जमीन पर पटक दिया और फिर अपने त्रिशूल से उनका सिर काट दिया. इस पर, भगवान् शिव ने शत्रुघ्न को युद्ध करने के लिए ललकारा और फिर उन दोनों के बीच घमासान रण छिड़ गया जो ग्यारह दिन तक चलता रहा। बारहवें दिन, शत्रुघ्न ने एक ब्रह्मास्त्र चलाया, परंतु इसकी प्रतिक्रिया में भगवान् शिव ने एक भयानक बाण चलाकर शत्रुघ्न का सीना वेध डाला। इसके कारण शत्रुघ्न अचेत हो गये और तब हनुमान क्रोध से भरकर भगवान् शिव से युद्ध करने पहुँचे।

हनुमान बोले, "हे रुद्र, आप धार्मिक सिद्धांतों के विरुद्ध आचरण कर रहे हैं। मैंने तो यह सुना था कि आप सदैव भगवान् राम के चरण कमलों का ध्यान किया करते हैं। परंतु, अब मैं देख रहा हूँ कि यह मात्र एक मिथ्या प्रचार था! इस धोखाधड़ी के लिए, मैं आपको आज ही रणभूमि में गिरा दूँगा।"

यह कहकर, हनुमान ने एक विशाल चट्टान से प्रहार करके भगवान् शिव के रथ को चकनाचूर कर दिया। तब नंदी भगवान् के पास आये और उनसे अपनी पीठ पर बैठ जाने का अनुरोध किया। तब भगवान् शिव ने हनुमान पर अपने त्रिशूल से प्रहार किया, परंतु हनुमान ने इसे पकड़कर चूर-चूर कर दिया। युद्ध आगे बढ़ने पर, दोनों ने एक-दूसरे पर ढेरों अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार किया। अंततः, हनुमान ने भगवान् शिव को अपनी पूंछ से लपेटकर बाँध दिया और उन पर चट्टानों, पर्वतों व वृक्षों की वर्षा करने लगे। यह देखकर, नंदी भयभीत हो गये और भगवान् शिव भी असमंजस में पड़ गये।

भगवान् शिव ने हनुमान से कहा, "तुमने अत्यन्त शौर्यपूर्ण कार्य किया है। मैं तुमसे अत्यन्त प्रसन्न हूँ, इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम मुझसे एक वरदान माँगो।" हनुमान ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "भगवान् राम की दया से, मेरे पास वह सब कुछ है जो मुझे चाहिए। तब भी मैं आपसे यह माँगता हूँ: पुष्कल की मृत्यु हो गई है और शत्रुघ्न अचेत हैं। कृपया उन सभी हताहत योद्धाओं की रक्षा करें ताकि कोई भूत-प्रेत, गिद्ध या जीव-जंतु उनकी देह को खाने के लिए वहाँ से न ले जा पाए। मैं प्राण लौटाने वाली जड़ी-बूटियों से भरपूर द्रोण पर्वत को लेने जा रहा हूँ।" भगवान् शिव ने सहमति दे दी। तब हनुमान शीघ्र ही क्षीर सागर की ओर चल पड़े और वहाँ पहुँचकर उन्होंने द्रोण पर्वत को उठाया और रणभूमि में लौट आये।

 

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