वन से गुजरते वक़्त राम लक्षण को जब विशामित्र ने
सुनाई असुरों की कहानी.
Ramayan story in Hindi. Vishwamitra ke saath Ram aur Lakshman
राम और लक्ष्मण को साथ लेकर विश्वामित्र अयोध्या से
निकले. सरयू नदी के किनारे-किनारे लगभग बीस किलोमीटर तक चलने के बाद विश्वामित्र रुक
गये और बोले, "प्रिय राम, थोड़ा-सा जल ग्रहण करके शुद्धिकरण
के लिए आचमन करें। अब मैं आपको बल और अतिबल नामक मंत्रों की दीक्षा दूँगा। उन
मंत्रों का ज्ञान प्राप्त कर लेने पर, आप थकान और वृद्धावस्था के प्रभाव से मुक्त हो जायेंगे और आपको अतुलनीय ज्ञान
और शक्ति प्राप्त होगी। मुझे पता है कि आप में ये गुण पहले से ही विद्यमान हैं, परंतु फिर भी आपके कल्याण के लिए
आपको ये मंत्र प्रदान करने की मेरी कामना है।"
बल और अतिबल नामक मंत्रों की दीक्षा प्राप्त करने के बाद, भगवान् राम का तेज एक हजार सूर्यों
के तेज के समान हो गया। राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र ने वह रात्रि नदी के किनारे अत्यन्त सुखपूर्वक व्यतीत
की और अगले दिन वे सरयू और गंगा के संगम पर पहुँच गये।
राम ने वहाँ पर ऋषियों का एक आश्रम देखा, तो उन्होंने इसका इतिहास जानना चाहा। विश्वामित्र बोले, "यही वह स्थान है जहाँ कामदेव
द्वारा भगवान् शिव की तपस्या में विघ्न डाले जाने के कारण शिवजी ने उन्हें जलाकर
राख कर दिया था।"
ऋषियों द्वारा स्वागत किए जाने पर, इन तीनों यात्रियों ने उनके आश्रम में ही रात बिताई। अगली सुबह उन्होंने गंगा नदी पार की। बीच नदी में पहुँचने पर, राम ने स्पष्ट रूप से गड़गड़ाहट के साथ बहते पानी की आवाज सुनी, परंतु कहीं भी उसका कोई चिह्न नहीं दिखा।
राम द्वारा इस बारे में पूछे जाने पर, विश्वामित्र बोले, "एक बार ब्रह्माजी ने अपने मन में जल का एक सरोवर निर्मित किया, इसीलिए इसे मानस-सरोवर कहा जाता है। सरयू नदी के जल का स्रोत यही मानस-सरोवर है। जल के बहकर आने की जो ध्वनि आपको सुनाई दे रही है वह मानस-सरोवर से आकर गंगा में मिल रहा है। हे राम, आपको इस पवित्र स्थान की वंदना करनी चाहिए और इसे प्रणाम करना चाहिए।"
गंगा के दक्षिणी तट पर पहुँचने के बाद, राम ने एक सघन, निर्जन वन प्रांत देखा। वह बोले, "इस निर्जन वन को देखकर किसी भी व्यक्ति के हृदय में भय का संचार हो सकता है। कृपा करके मुझे बताएँ कि इसका क्या कारण है।"
विश्वामित्र बोले, "इंद्र ने जब वृत्रासुर का वध कर दिया तो उसके बाद यह पापों से व्याकुल हो उठे और इस कारण से उनका तेज नष्ट हो गया। इंद्र को सामान्य स्थिति में लौटाने के लिए, देवगणों ने वैदिक मंत्रों से अभिमंत्रित किए हुए गंगाजल से उन्हें स्नान कराया। फिर इंद्र की समस्त अशुद्धियों वाले इस जल को उन्होंने इस स्थान पर फेंक दिया। इसलिए इस स्थान ने इंद्र के समस्त पापों को स्वीकार कर लिया, परंतु बदले में स्वर्गाधिपति इंद्र ने इस स्थान को अत्यन्त समृद्धशाली होने का वरदान दिया। इसके परिणामस्वरूप, यहाँ मालदा और करुशा नामक दो समृद्धशाली राज्यों की स्थापना हुईं।
"बाद में ताड़का नामक एक दुष्ट राक्षसी यहाँ आई और यहाँ के नागरिकों को आतंकित करने लगी। राक्षस सुंड की पत्नी ही ताड़का है और उनका पुत्र मारीच है जिसका वध करने के लिए ही मैं आपको यहाँ लाया हूँ। ताडका के भयानक प्रकोप से यहाँ के सभी लोग धीरे-धीरे यहाँ से चले गये और यह क्षेत्र पूर्णतः निर्जन हो गया।
"मेरे प्रिय राम, मैं चाहता हूँ कि आप आज इस राक्षसी का संहार कर दें और इस प्रकार इस स्थान को उसके आतंक और अत्याचार से मुक्त कर दें। जब तक यह राक्षसी जीवित है तब तक कोई भी इस वन में प्रवेश करने का साहस नहीं करेगा। हे राम, ताड़का अत्यन्त दुष्ट है इसलिए उसके स्त्री होने के कारण उसका संहार करने में किसी भी प्रकार की हिचक नहीं करें।" प्रका
राम ने कहा, "आप मेरे गुरु हैं इसलिए आपकी आज्ञा का पालन करना मेरा कर्तव्य है," और यह कहकर उन्होंने अपने पराक्रमी धनुष की डोर पीछे खींचकर टंकार-ध्वनि पैदा की। राम ने जब धनुष की डोर को कंपित करके चारों दिशाओं में भयानक टंकार-ध्वनि गूंजने दी, तो सभी जीव धनुष की टंकार की भयानक ध्वनि से भयभीत हो उठे। यह ध्वनि ताड़का की गुफा में भी गई और इसे सुनकर वह राक्षसी क्रोध से कुपित हो उठी। ताड़का ने आग-बबूला होकर हवा में छलाँग लगाई और इस ध्वनि के आने की दिशा में तेजी से बढ़ चली और तभी राम ने उसे पास आते हुए देखा।
राम जोर से बोले,
"हे लक्ष्मण, जरा इस विशाल, भयानक और घृणित जीव को देखो तो !
परंतु कुछ भी हो, है तो यह स्त्री ही।
मैं इसका वध नहीं करूँगा,
बल्कि इसके हाथ-पैर काटकर पंगु कर दूँगा ताकि यह किसी को हानि न पहुँचा
सके।" ताड़का ने अपनी मायावी शक्तियों का इस्तेमाल करके धूल का एक बवंडर
उठा दिया जिससे कुछ समय के लिए राम और लक्ष्मण कुछ भी नहीं देख पाए। उसके बाद, उसने आसमान से पत्थरों की बौछार करनी शुरू कर दी। राम तत्काल ही सचेत हो गये और अपने बाणों से उन्होंने सभी पत्थरों को चूर-चूर कर कहाल और फिर ताड़का के हाथ काट दिए। राम के कहने पर लक्ष्मण ने ताड़का के कान और उसका नासिकाग्र काट दिया, परंतु अचानक ही वह अन्तर्ध्यान हो गई।
अब ताड़का ने अदृश्य होकर फिर से पत्थरों की बौछार करनी शुरू कर दी और ठीक तभी विश्वामित्र ने कठोर स्वर में आग्रह किया, "हे राम, सांझ हो रही है। अंधेरा होने पर राक्षसों की शक्ति अत्यधिक बढ़ जाती है। इसलिए अब अपना दया-भाव छोड़ें और ताड़का का तत्काल वध कर दें!"
यह सुनकर, राम ने बाणों की बारिश कर दी। परंतु तभी, अचानक ताड़का दिखने लगी और वह राम की तरफ अत्यन्त क्रोध से दौड़कर आने लगी। परंतु राम ने विचलित हुए बिना अपने तरकश से एक विशेष शक्ति वाला बाण निकाला और अपनी तरफ आती राक्षसी की ओर इसे चला दिया। जगमगाते हुए इस वाण ने ताड़का के हृदय को आर-पार वेध दिया और दर्द से बिलबिलाती हुई राक्षसी भयानक गर्जना के साथ धरती पर गिरी और उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।
इसी समय, इंद्र की अगुआई में देवतागण एक एकांत स्थान पर विश्वामित्र से भेंट करने आये। वे बोले, "श्रीराम को हमारी ओर से एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य करना है, इसलिए आप बिना समय गंवाए दिव्य अस्त्रों का अपना समस्त ज्ञान उन्हें प्रदान करें।"
यह कहकर देवगण तत्काल ही दृष्टि से ओझल हो गये। विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण ने वह रात वहीं पर शान्ति के साथ बिताई। अगली सुबह, विश्वामित्र ने राम को दिव्य अस्त्रों से संबंधित अपना समस्त ज्ञान दे दिया। राम ने जब दिव्य अस्त्रों को जागृत करने वाले मंत्रों की दीक्षा प्राप्त कर ली, तो ये दिव्य अस्त्र मानव रूप में उनके सामने प्रकट हो गये। वे बोले, "भगवान् राम, कृपा करके हमें आदेश दें कि हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ?"
भगवान् राम बोले, "मेरा अनुरोध है कि जिस समय मैं आपको आह्वान करूँ, उस समय आप मेरे सामने प्रकट हो जायें।"
दिव्य अस्त्रों के जाने के बाद, विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण ने अपनी यात्रा जारी रखी। काफी दिन चढ़ जाने पर, वे विश्वामित्र के आश्रम पहुँचे जिसे सिद्धा तथा राम जाता था। विश्वामित्र के शिष्यगण बाहर आये और उन्होंने अपने गुरु का तथा राम व लक्ष्मण का स्वागत किया।
विश्वामित्र बोले, "प्रिय राम, यह स्थान इससे पहले भगवान् विष्णु का निवास स्थान था, जहाँ वह अपने वामनदेव अवतार के समय रहते थे। आप भी सभी जीज के वही भगवान् हैं, जो मानव रूप में अवतरित हुए हैं। इस पवित्र स्थान में इत शक्ति है कि यह किसी भी व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर है। आप इसे अपनी ही जगह समझें।"
इसके बाद विश्वामित्र ने अपने यज्ञ को जारी रखने की तैयारियाँ शुरू कर जबकि राम और लक्ष्मण अपने-अपने धनुष लिए हुए यज्ञ-क्षेत्र की निगरानी के काम में जुट गये। इस तरह छह दिन और छह रात बिना किसी दुर्घटना के बीत गये और कोई भी नहीं सोया। फिर, छठी रात को, जब सोम-रस निकाला जाना था और यह बहुत महत्वपूर्ण रात थी, तभी आहुति की अग्नि अचानक बहुत चमक के साथ जल उठी, जो राक्षसों के शीघ्र ही आने का संकेत थी।
कुछ ही पल में, आकाश-क्षेत्र से भयानक गर्जना की ध्वनि सुनाई देने लगी क्योंकि मारीच और सुबाहु बिना किसी चेतावनी के अपने संगी राक्षसों के साथ जमीन की ओर झपट पड़े। अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग करके, इन राक्षसों ने आहुति की वेदी पर रक्त, पस, मल, मूत्र, मांस और अन्य प्रदूषित वस्तुओं की बौछार करनी शुरू कर दी।
भगनान् राम बोले, "प्रिय लक्ष्मण, मैं अपने अस्त्र-शस्त्रों से इन दुष्ट राक्षसों को यहाँ से भगा दूँगा, परंतु मैं उनका वध नहीं करूँगा क्योंकि अभी इनके भाग्य में कुछ और वर्ष तक जीवित रहना लिखा है।"
यह कहकर, राम ने एक शक्तिशाली
बाण चला दिया जो मारीच के सीने में जा लगा और इसके प्रहार से वह मरे बिना समुद्र
के बीच में जा गिरा। इसके बाद एक अन्य बाण से भगवान् राम ने सुबाहु का सीना वेध
दिया और वह मृत होकर जमीन पर गिर पड़ा। तीसरे दिव्य बाण को जागृत करके, भगवान् राम ने बचे हुए सभी
राक्षसों को तितर-बितर करके भगा दिया और यज्ञ-क्षेत्र में एक बार फिर से शान्ति
स्थापित हो गई। सिद्धाश्रम में रहने वाले सभी ऋषि-मुनि बाहर आये और उन्होंने
भगवान् राम को राक्षसों का मर्दन करने के लिए बधाई दी और उसी संध्या को यज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया।
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