जटायु के भाई सम्पाती की अनसुनी कथा.
जटायु के भाई सम्पाती की अनसुनी कथा. ( Jatayu Sampati untold story)
जटायु के बारे में तो सभी जानते हैं जिन्होंने सीता को रावण से बचाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए. लेकिन क्या आपको पता है कि जटायु के प्राणों की रक्षा उन्ही के भाई सम्पाती ने की थी और जिस कारण जटायु जीवित भी बच पाया. लेकिन अपने भाई जटायु को बचाने के क्रम में उनके भाई सम्पाती सदा के लिए पंखविहीन और बलहीन होकर रह गए. ये कथा सीता हरण से पहले की है. जटायु और सम्पाती दो भाई थे. दोनों ही भाई अपने- अपने पंखों से बहुत ही पराक्रमी और बलशाली थे. ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ वो उड़कर नहीं जा पाते थे. दोनों भाई अपने जीवन में बहुत खुश थे. सम्पाती अपने भाई से बहुत ही अधिक प्रेम करता था इतना कि उसके लिए अपने प्राण तक दे सकता था. एक दिन दोनों भाइयों ने बातों ही बातों में सूर्य तक पहुँचने की शर्त लगाई और फिर उड़ चले सूर्य की ओर...दोनों ने एक लम्बी उड़ान भरी और सूर्य तक पहुँचाने लगे. अनंत आकाश में कई योजन की दुरी तय करने के बाद सम्पाती और जटायु सूर्य के निकट पहुँच भी गए किन्तु तभी अचानक सूर्य की प्रचंड तेज़ और अग्नि के कारण सम्पाती का शरीर झुलसने लगा. उसी क्षण जटायु ने अपने भाई को बचाने के लिए उसे अपने दोनों पखों से ढक लिया.. लेकिन इससे सम्पाती के पंख बुरी तरह से झुलसने लगे. दोनों भाई तेज़ी से धरती पर अलग अलग स्थानों पर गिरे.
जटायु दंडकारन्य वन में गिरा तो सम्पाती
विन्ध्याचल पर्वत पर. जटायु अपने भाई को ढूंढता रहा लेकिन वो उसे नहीं मिला. इधर
पंख विहीन सम्पाती भी अपने भाई के पास नहीं जा सकता था क्यूंकि वो पूरी तरह से
निर्बल हो चुका था. पंखहीन सम्पाती के पास अब प्राण त्यागने के अलावे कोई रास्ता
नहीं बचा था. सम्पाती यही सोचकर अपने प्राण त्यागने जाता है कि ऋषि निशाकर उसे रोक
लेते हैं और उसे आश्वासन देते हैं कि उनके पंख फिर से तब आयेंगे जब वो राम कार्य में उनकी सहायता
करेंगे. तब सम्पाती उसी विन्द्याचल पर्वत पर रहकर उस घडी की प्रतीक्षा करने लगे.
बहुत समय के बाद जब रावण के द्वारा सीता का हरण हुआ तो सुग्रीव ने सीता को ढूँढने
के लिए अपने वानर सैनिक भेजे जिनमे अंगद, जाम्बवंत और हनुमान भी थे. तीनो ने सम्पाती
को जटायु के बलिदान की बात बताई. उसके बाद सम्पाती ने अपने भाई का तर्पण किया और
फिर जैसे ही राम काज के लिए सक्रिय हुए कि सम्पाती को फिर से उनके पंख मिल गए.
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