जैसा कि पूरे महाराष्ट्रा की जनता को इस बात का पता है कि महायुती सरकार ने कुछ दिनों पहले यानि की 16 अप्रैल को महाराष्ट्र में हिंदी इंग्लिश और मराठी त्रिभाषा के लिए GR-1 लागू कर घोषणा की थी जिसमे स्कूलों में हिंदी पढाये जाने की अनिवार्यता थी. इसका अर्थ था अब सभी स्कूलों में मराठी और इंग्लिश के साथ-साथ हिंदी भी पढ़ाया जाना ज़रुरी होगा.
लेकिन जब मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे द्वारा इसका भारी विरोध हुआ तो सरकार ने फिर जून 17 को GR-2 पारित कर अपने घोषणा पत्र में से अनिवार्यता शब्द को निकाल कर हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया. इस आधार पर अब कोई भी विद्यार्थी हिंदी को आप्शनल विषय के रूप में चुन सकता था. लेकिन यह तभी संभव हो पाता जब उस वर्ग में 20 बच्चे होते.
लेकिन सरकार के इस फैसले के बावजूद भी मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे नाखुश रहें. परिणाम स्वरुप उनके लोगों ने जगह-जगह जाकर इसका भारी विरोध किया. कुछ -कुछ जनता भी उनके साथ हो ली. वहीँ दूसरी ओर मुंबई में लोकल बॉडी चुनाव को ध्यान में रखते हुए उद्धव ठाकरे ने भी अपनी कमर कस ली और हिंदी के विरोध में खड़े हो गए.
दोनों भाइयों के आपसी संपर्क से राजनीति गलियारों में हलचल तेज़ हो गयी. इसी के बाद खबर आई की दोनों भाई अब एकजुट होकर इस मुद्दे पर लड़ेंगे. और फिर एक दिन दोनों भाई द्वारा 5 जुलाई को एक विशाल जन आन्दोलन द्वारा हिंदी की अनिवार्यता खत्म करने एवं इसके वहिष्कार का निर्णय लिया गया.
सरकार ने इसके प्रभाव में आकर फिर तुरंत ही फैसला लिया और हिंदी भाषा को त्रिभाषा सूत्र से बाहर निकालने के लिए सक्रिय हो गए. जिसके बाद यह तय हुआ कि अब महाराष्ट्र में केवल अंग्रेजी और मराठी ही भाषा पढ़ाई जायेगी हिंदी नहीं. लेकिन यह भी तभी होगा जब समिति की रिपोर्ट आएगी. प्राप्त जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री देवा भाऊ ने यह जानकारी दी है कि इस मुद्दे पर डॉक्टर नरेन्द्र जाधव के नेतृत्व में एक समिति बनायी जायेगी. उनकी रिपोर्ट आने के बाद ही आगे का निर्णय लिया जाएगा.
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