विक्रम बेताल से जुडी एक और कहानी उपन्यास के रूप में आपके सामने प्रस्तुत है जिसके लेखक हैं श्रीकांत विश्वकर्मा और यह नॉवेल आपको अमेज़न किनडल पर मिल जायेगी.
सदियों पहले बेताल ने विक्रम को अपनी अंतिम कहानी सुनाई थी..मगर उसके बाद क्या हु० आ किसी को कुछ पता नहीं था..ना ही इसके बारे में आगे कहीं कुछ लिखा ही पाया गया. मगर mythology researcher & story screenplay writer Shrikant Vishwakarma कहानी की उसी अंतिम कड़ी को जोड़ते हुए आगे की कहानी बयाँ करते हैं, जब सदा विक्रम के साथ रहने वाला बेताल कुछ वर्षों के बाद अचानक ही उज्जैनी से लापता हो गया...
बेताल की खोज में विक्रम ने अपनी पूरी जवानी निकाल दी..वो इसी के मारे बुढा भी हो गया मगर फिर भी विक्रम को दोबारा बेताल नहीं मिला..लेकिन आज भी विक्रम को लगता है बेताल फिर से उज्जैनी लौट आएगा...
विक्रम को खोज थी उज्जैनी से बाहर शत्रु राज्यों में स्थित कुछ ख़ास शिवलिंगों की जिनके पीछे लगे थे नर-पिशाचिनी और योगिराज भी...आखिर क्या था उन ख़ास शिवलिंगों के नीचे जिसके लिए बेताल अपनी अंतिम कहानी सुनाकर एक मकसद लेकर विक्रम के साथ उज्जैनी आया था और अब वह विक्रम को इस यात्रा पर लेकर निकल चुका था...
बेताल ने कहा — “अब समय है अठारहवें शिवलिंग की खोज में — वाणी परीक्षा की। यह परीक्षा साधारण नहीं, क्योंकि इसमें तुझे शब्दों से नहीं, मौन से संवाद करना होगा राजन।”
विक्रम ने पूछा — “वाणी की परीक्षा मौन से?”
बेताल बोला — “हाँ, क्योंकि वाणी का चरम विकास मौन में ही होता है। शिव स्वयं जब मौन हो जाते हैं, तब सृष्टि की ध्वनि उत्पन्न होती है।”
विक्रम और बेताल दोनों ‘शब्दविराम पर्वत’ पहुँचे — वहाँ एक प्राचीन ऋषि की समाधि थी, जो जीवनभर मौन रहा और मृत्यु के पश्चात भी उसकी आत्मा उसी मौन में जागती रहती थी..
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