भारतीय फिल्म के पहले हीरो और दिग्गज निर्देशक कपूर ब्रदर्स ने जब सबकी बदल दी सोच .
अभिनय के महारथी पृथ्वीराज कपूर
भारत के फिल्म उद्द्योग को बसाने में कपूर खानदान की बहुत बड़ी भूमिका रही है. श्री मान पृथ्वीराज कपूर जो एक बहुत बड़े कलाकार थे, पकिस्तान के रहने वाले थे. उन्होंने न सिर्फ आज़ाद भारत में फिल्म उद्योग को बढ़ावा दिया बल्कि वे भारत के पहली बोलने वाली फिल्म आलम आरा के हीरो भी थे . इसके आलावे भी उन्होंने बहुत सारी फिल्मे की मगर फिल्म मुगल-अ- आजम में अकबर का किरदार उनकी सभी यादगार फिल्मों से ऊपर है . श्री मान कपूर ने ही पृथ्वीराज थियेटर के नाम से एक बहुत बड़े नाटक मंच की स्थापना मुंबई में १९४४ में की थी, जो आज भी मुंबई के जुहू इलाके में स्थित है. फिल्मों में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पदम् भूषण पुरस्कार से नवाज़ा था .
उनकी पीढ़ी का फ़िल्मी सफ़र
उन्ही पृथ्वीराज कपूर जी के तीन पुत्र हुए – राज कपूर , शम्मी कपूर और शशि कपूर . यह तीनो ही भारतीय फिल्म उद्योग के सफल कलाकार रहें हैं . उनकी फिल्मे हमेशा ही अच्छी और ज़्यादातर चली . पृथ्वी राजकपूर के पुत्र राजकपूर जी स्वयं एक बहुत बड़े निर्देशक और एक्टर थे . उन्हें काम करने का इतना जुनून था कि उस जुनून ने उनका स्वयं का स्टूडियो ही खुलवा दिया जिसका नाम था RK FILMS है जो आज भी मुंबई के चेम्बूर में स्थित है .लेकिन कुछ महीने पहले वहां भीषण आग लग गयी थी . मगर बहुत सारी पुरानी चीज़ों को जलने से बचा लिया गया . माना जाता है कि वह एक बहुत बड़ा स्टूडियो था जहाँ शूटिंग के लिए सारी चीज़ें मौजूद थी. मुंबई फिल्म उद्द्योग के सभी बड़े बड़े कलाकार होली में वहीँ जमा होकर होली खेला करते थे .भारतीय फिल्म उद्योग में कपूर खानदान का बोलबाला हमेशा ही रहा है . मुंबई का ऐसा कोई हीरो या हीरोइन नहीं जो राजकपूर के यहाँ जाकर होली न मनाई हो. पृथ्वीराज कपूर के ही पुत्र ने अपने समय में श्री चार सौ बीस , आवारा , आग , मेरा नाम जोकर , हीना जैसे यादगार फिल्मे बनाई . गुजरते वक़्त के साथ उनकी सोच ने भारतीय फिल्म उद्योग को ऐसी -ऐसी फ़िल्में दी जिन्हें आज कोई भी निर्देशक बना नहीं सकता .
राजकपूर साहब ने जब रचा इतिहास
भारतीय फिल्मों के पर्दों पर जब कपड़ों और प्रेम को दर्शाने के लिए एक सिमित नजरिया था, उस वक़्त श्री मान कपूर ने पहली
उच्च कोटि की रोमांटिक फिल्म बॉबी बनाकर सबका झटका दे दिया . लोग सोचते ही रह गए
मगर जिस तरह से वो फिल्म चली उसने राज कपूर की सोच को सही और नायाब नज़रिए वाला साबित कर दिया . इसके अलावे भी अपने अंतिम दौर
में हीना जैसी प्रेम कथा पर फिल्म बनाकर
राजकपूर ने नब्बे के दशक वाले सभी निर्देशकों को और भी झटका दिया था . उनकी राम तेरी
गंगा मैली एक ऐसी फिल्म थी जिसने अब ये साबित कर दिया था कि अब भारतीय फिल्म
उद्योग में विरले ही ऐसी सोच वाला
निर्देशक पैदा हगा . राज कपूर न सिर्फ एक
निर्देशक के रूप में सफल रहे बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया को अपने अभिनय का लोहा भी मनवा दिया . एक बार राज
कपूर जी जब रसिया गए तो वहां न सिर्फ राजकपूर को मान सम्मान दिया गया बल्कि वे उनके फिल्म “श्री चार सौ बीस” 420 के उस फिल्म
के गाने के दीवाने भी हो गए जिसके बोल थे “मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंगलिश्तानी
सर पे लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी” आज भी वहां के लोग इस गीत को
नहीं भूले हैं और न हम कभी अपने नायक और निर्देशक को कभी भूलाने देंगे . हमारा
फिल्म उद्योग हमेशा ही ऐसे महान कलाकार का ऋणी
रहेगा..
Nice dear...
जवाब देंहटाएंdhanywad ji
हटाएंDhanywaad .
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