पौराणिक हिंदी शिव कथा -महादेव के क्यों है पांच मुख . कैसे हुआ ओंकार यानि ॐ की उत्पत्ति और क्या हैं पंचाक्षर मंत्र जानिये .
सृष्टी , स्थिति ,संहार , तिरोभाव और अनुग्रह ये पांच शिव के संसार सम्बन्धी कार्य है . सर्ग - संसार की आरंभिक रचना है . शिव के द्वारा सृष्टी का पालित होकर सुस्थिर रूप से रहना ही स्थिति है . सृष्टी का विनाश ही संहार है . प्राणों का उत्क्रमण ही तिरोभाव है और उनसे छुटकारा मिलना ही अनुग्रह है . इस तरह सृष्टी के प्रति महादेव के पांच कृत्य है . और शिव के इन पाँचों कर्तव्यों को पंचत्व वहन करते हैं . अर्थात पञ्च तत्व में शिव के पांच कृत्य है .
जैसे कि सृष्टी भूतल में , स्थिति जल में ,संहार अग्नि में , तिरोभाव वायु में और अनुग्रह आकाश में स्थित है . इन पांच कृत्यों को वहन करने के लिए महादेव के पांच मुख है . चार दिशाओं में चार मुख और इनके बीच में पांचवा . महादेव के उत्तरवर्ती मुख से अकार , पक्षिम मुख से उकार , दक्षिण मुख से मकार ,पूर्ववर्ती मुख से बिन्दु और मध्यवर्ती मुख से नाद उत्पन्न हुआ . इस तरह पांच अवयवो से युक्त होकर ओंकार का विस्तार हुए है और इनसे ॐ निकलकर बाहर आया .
यह शिव और शक्ति दोनों का बोधक है . इसी
प्रणव से तो पंचाक्षर की उत्पत्ति हुई है – ॐ नम: शिवाय . उसी से गायत्री की उत्पत्ति हुई और
गायत्री से वेदों की और वेदों से कोटि कोटि मन्त्रों की उत्पत्ति हुई . उन मन्त्रों से भिन्न
भिन्न कार्य सिद्ध होते हैं .ॐ का निरंतर जाप हजारों अश्वमेध और वाजपेय यज्ञ से भी अधिक
फल देने वाला है . इसी ॐ जाप से हर तरह का काल बदल जाता है . मृत्यु मार्ग से हट जाती है अगर
वो अकाल है तो. क्यूंकि काल भी उन्ही महाकाल के भीतर समाहित है .
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