Ketki flower cursed by Shiva
एक समय ब्रह्मा जी और भगवान नारायण स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगे जिस कारण दोनों के मध्य भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया. दोनों के बीच आरम्भ हो चुके इस युद्ध के कारण सृष्टी में कोलाहल मची थी . सारे लोक कम्पित ही उठे थे . अंतत: स्वयं को सर्वेश्वर सिद्ध करने के लिए एक ने पशुपतास्त्र तो दुसरे ने महेश्वरास्त्र का संधान कर लिया. तभी इसी बीच उनके मध्य एक आग्नेय लिंग का एक विशाल स्तम्भ उत्पन्न हो गया . उस आग्नेय लिंग से आवाज़ आई "आपकी समस्या का हल हो जाएगा , बस आप इस आग्नेय लिंग के आदि और अंत का पता लगा ले ."
जिसके बाद नारायण सुकर का रूप धारण कर नीचे की ओर गए औ व्रह्मा ने हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर उड़ान भरा . वर्षो बीत गए सुकर नारायण पाताल को भेदकर अनंत गहराई तक नीचे की ओर गए किन्तु उन्हें उस अग्नी लिंग के नीचे का छोर नहीं मिला . उसी प्रकार उधर ब्रह्मा जी भी वर्षो तक ऊपर की ओर उड़ान भरते रहे किन्तु उन्हें उस आग्नेय लिंग का ऊपरी छोर नहीं मिला . इसी बीच ब्रह्मा ने केतकी पुष्पों को ऊपर से नीचे की ओरे गिरे देखा .ब्रह्मा ने जब केतक से पुछा की हे पुष्पराज आप कहाँ से गिर रहे ? तो केतक ने बताया कि वह इस स्तंभ के उत्पन्न होने के साथ ही नीचे की ओर गिर रहे . ब्रह्मा को लगा कदाचित केतक को फिर पता होगा इस स्तम्भ का ऊपरी हिस्सा कहाँ है . किन्तु पुष्पश्रेष्ठ केतक बताता है कि उसे नहीं पता कि इस स्तम्भ का ऊपरी सिरा कहाँ हैं .
तभी ब्रह्मा जी को एक
युक्ति सूझती है और वो केतक पुष्प को उनके
पक्ष में झूठ बोलने के लिए मना लेते हैं ये कहते हुए कि नारायण को बता देना ब्रह्मा को ऊपरी स्तम्भ
का छोर मिल गया था. उधर जब नारायण को स्तम्भ का निचला छोर नहीं मिलता तो वे थक हारकर
लौट आते हैं . जिसके बाद जब ब्रह्मा वहां केतक पुष्प के साथ पहुँचते हैं तो
केतक पुष्प ब्रह्मा का पक्ष लेते हुए नारायण से झूठ बोल देता है कि ब्रह्मा जी को
स्तम्भ का ऊपर छोर मिल गया था . ब्रह्मा
के विजयी होने पर नारायण उनकी पूजा करने लगते हैं जिसके पश्चात महादेव उस स्तम्भ
से प्रकट हो जाते हैं और ब्रह्मा के इस झूठ पर उन्हें इतना क्रोध आता है कि उनकी भृकुटी से भैरव की उत्पत्ति हो जाती है जो पंचानन
यानि पांच शीश वाले ब्रह्मा के उस अभिमानी शीश को काट देते हैं जिसके बाद केतकी पुष्प
को श्राप देते हैं की वो आज के बाद पूजा योग्य नहीं रह जाएगा .
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