पापों से मुक्ति कैसे मिलती हैं ? Papon se mukti kaise milti hai? पाप कैसे कटते हैं ?

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पापों से मुक्ति कैसे मिलती हैं ?  Papon se mukti kaise milti hai? पाप कैसे कटते हैं ?




पापों से मुक्ति कैसे मिलती है ? या पाप कैसे कट सकते हैं ? अथवा पाप कैसे कटे ? ये प्रश्न हमेशा से ही हमारे मन में आता है क्यूंकि इस धरती में ऐसा कोई भी मानव नहीं जिनसे कभी पाप ना हुआ हो. भूल से ही सही कभी न कभी हमारे हाथों कोई ना कोई पाप अवश्य ही हुआ होता है और हमारा मन करता है कि हम उस पाप से मुक्ति पा लें. इस पाप से मुक्ति के लिए हम तरह -तरह की विधि पूजा अर्चना आदि करते हैं. किन्तु ये  जानना आवश्यक है कि किस देव की कैसी पूजा अराधना  की जाए ताकि वो हमारे पापों को क्षमा कर सके.



शिवपुराण ( Shiv Puran ) सुनना और उनके नाम का सुमिरन करना, यह दोनों ही फलदायी कल्पवृक्ष के समान है . इस वर्तमान समय में हम कभी जानबूझकर तो कभी अनजाने में कई पाप कर जाते हैं जिनके बारे में हमे पता  भी नहीं चलता .उन भूलवश हुए सभी पापों का काट है  शिवपुराण .


शिवपुराण चोबीस हज़ार श्लोकों से  परिपूर्ण है . इसमें सात संहिताएँ हैं . इसे समझने , जानने और इसका फल पाने के लिए मनुष्य को भक्ति , और वैराग्य से परिपूर्ण होना पड़ता है . वैराग्य का मतलब यहाँ घर संसार छोड़कर साधु बनना नहीं है बल्कि अपनी  इच्छाओं का त्याग करने से है जो हर रोज़ बढती जाती है. इस पुराण की पहली संहिता का नाम विधेश्वरसंहिता है . दूसरी रूद्रसंहिता, तीसरी शतरूद्रसंहिता चौथी कोटिरूद्रसंहिता ,पांचवी उमासंहिता , छठी कैलाससंहिता और सातवी वायवीयसंहिता है . 


हजारों अश्वमेध यज्ञ और वाजपेय यज्ञ के बराबर है इसका एक बार श्रवण करना . यह सभी को धर्म अर्थ , काम और मोक्ष प्रदान  करता है .शिवपुराण का श्रवण कैसे किसी भी पाप से मुक्ति दिलाता है  जानिये इस कथा में  ?


कथा :


किरात नगर में एक व्यक्ति  सोमहर्ष , गली मोहल्ले में घूमकर रस बेचा करता था . उस रस को बनाने में उसकी पत्नी और  माता -पिता भी मेहनत किया करते थे . एक दिन सोमहर्ष  को एक वेश्या भा जाती है जिसके बाद वह अब सारा दिन उसी वैश्या की गली में दिन बिताने लगता है . इससे सोमहर्ष का मन तो भर जाता मगर उसकी जेब नहीं भरती. लेकिन इसके बाद भी सोमहर्ष उस वैश्या का पीछा नहीं छोड़ता . एक दिन  सोमहर्ष उस वैश्या के लिए अपने माता पिता और पत्नी तक को छोड़ देता है  और उस वैश्या के साथ विवाह कर लेता है. 


विवाह के बाद  सोमहर्ष जो दुसरे गाँव जाकर बस गया था , उसे  एक पुत्र की प्राप्ति होती है  मगर उस पुत्र के  शरीर में कांटे उगे होते हैं . शिशु के शरीर में कांटे उगे होने के कारण  सोमहर्ष और उसकी नयी पत्नी कभी उस बच्चे को अपने सीने से नहीं लगा पाते . सोमहर्ष  उस बच्चे का बहुत ईलाज करवाता है मगर वो बचा ठीक नहीं होता . 


दूसरी बार  सोमहर्ष को एक बच्ची की प्राप्ति होती है . लेकिन वो बच्ची इतनी नाजुक और कोमल होती है कि उसे छूते ही चोट  लग जाती है ,इसलिए दोंनो पति- पत्नी संतान का सुख नहीं भोग पाते. एक दिन सोमहर्ष  की नयी पत्नी का देहांत हो जाता है जिसके बाद सोमहर्ष दुःख चिंता में बीमार पड़ जाता है. लेकिन उसी बीमारी में  सोमहर्ष को रस बेचने भी जाना पड़ता है . लेकिन एक शाम सोमहर्ष इतना बीमार पड़ जाता है कि वो आते वक़्त एक  स्थान देखकर लेट जात है . 


मगर वो स्थान एक मंदिर था जहाँ रोज़ एक पंडित शिवपुराण का पाठ करते थे . सोमहर्ष को न चाहते हुए  भी शिव पुराण का श्रवण करना पड़ता है . लेकिन अगले दिन अधिक ज्वर से सोमहर्ष की मृत्यु हो जाती है .यमदूत आकर जब सोमहर्ष को नरक ले जाते हैं तो वहां शिव के पार्षद आकर सोमहर्ष को छुड़ाने की कोशिश करते हैं जिससे यमदूत और शिवगणों के बीच एक भयंकर लड़ाई होती है. 


किन्तु अंतत: शिवगण सोमहर्ष को अपने साथ शिवलोक ले जाते हैं . यमराज को अपनी शक्ति से पता चल जाता है कि सोमहर्ष ने जाने -अनजाने शिवपुराण का श्रवण कर लिया था जिस कारण उसके सभी पाप कट गए . उधर सोमहर्ष के बच्चे भी ठीक हो जाते हैं जिन्हें सोमहर्ष की पुरानी पत्नी गोद ले लेती है .

 

 

 

 

 


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