चमत्कार और रहस्य का सम्बन्ध उस देश के लिए कोई नयी बात नहीं जहाँ महा-भारत और रामायण जैसे महा ग्रन्थ लिखे गए हों. दोनों ही महा-ग्रंथों में एक से बढ़कर एक अद्भूत पात्रो के बारे में बताया गया है. कोई बहुत वीर हुआ तो कोई अतिधर्मी..कोई अति मेधावी हुआ कोई अति ज्ञानी. महापुरुषों की विशेषताओं से भरे पड़े हैं ये दोनों ग्रन्थ.
फिर भी कुछ लोग उन महापुरुषों को काल्पनिक मानते हैं . ऐसा इसलिए क्यूंकि हमने उन्हें कभी देखा नहीं. शायद इसलिए भगवान् को कलियुग में भी इस धरती पर एक ऐसे महापुरुष को पैदा करना पड़ा जो एक धर्मज्ञानी के साथ-साथ एक बौद्धिक स्तर का महामानव भी था और उन महापुरुष का उनका नाम था - स्वामी विवेकानंद .
स्वामी विवेकानंद के बारे में
स्वामी विवेकानंद , एक ऐसी दिव्य बुद्धि और विवेक के स्वामी थे जिन्होंने सन 1893 में अमेरिका के
शिकागो में हुए धर्म सम्मलेन में अपने देश
भारत का प्रतिनिधित्व करके, अपने
विचारोंसे से सबको चौका दिया. वे पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने विश्वमंच पर सनातन धर्म के
ऊपर इतने अद्भूत व्याख्यान दिए थे. उन्ही के भाषण ने दुनियाँ का ध्यान पहली बार हिन्दू
सनातन धर्म की ओर आकृष्ट किया.
शिकागो में दिए गए स्वामी
विवेकान्द के भाषण के अंश
“मेरे प्रिय बहनों और भाइयों..आपके इस स्नेहपूर्ण स्वागत और ज़ोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है. मैं आप सभी को दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से शुक्रिया करता हूँ .मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूँ .मेरा धन्यवाद उन लोगों को भी है जिन्होंने इस मंच का उपयोग करते हुए कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार भारत से फैला है .मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने दुनियाभर के लोगों को सहनशीलता और स्वीकृति का पाठ पढ़ाया. मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा कि हमने अपने ह्रदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृतिओं को संजोकर रखा है, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर में तब्दील कर दिए थे .इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली . भारत ने पारसियों को भी शरण दी और आज भी उनका ख्याल रखता है . भारत ने सभी धर्मों के लोगों को शरण दी .मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं एक हिन्दू हूँ .”
जीवन परिचय
ऐसे महापुरुष का जन्म 12 जनवरी 1863 को पक्षिम बंगाल के कलकत्ता शहर में हुआ था. उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था . वे बचपन से ही बहुत तेज़ थे मगर घर परिवार की जिम्मेदारियों के कारण स्वयं को उन्ही कामो अधिक व्यस्त रखते थे . फिर एक दिन उनकी मुलाक़ात रामकृष्ण परमहंस से हुई ,जिन्होंने उनके जीवन को बदल कर रख दिया. लेकिन इससे पहले नरेन्द्र को भगवान पर तनिक भी विश्वास नहीं था. वो हमेशा उन्हें चुनौती देते रहते थे .
मगर जिस दिन रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें माँ काली के दर्शन करवाए ,नरेन्द्र ने
उन्हें अपना गुरु बना लिया .इसके बाद गुरु ने ही उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया
.जो लोग स्वामी जी से साक्षत मिले, उन्होंने अपने-अपने अनुभव साझा किये
.उनके मुताबिक़ वो बुद्धि और विवेक के उस आयाम में पहुँच गए थे जहाँ कोई विरले ही
पहुँच सकता है. वे एक ही बार में सैकड़ों किताबों को पढ़ लेते और उन्हें सब कुछ याद
भी रहता कि उन्होंने कौन से पेज पर क्या पढ़ा है .स्वामी विवेकानंद ने लोगों से जो अपने अनुभव साझा किये वही उनके महान विचार
कहलाये . मगर हम उन विचारों का लाभ कैसे ले सकते हैं? वो भी मैं आपको बताऊंगा . पहले
आप स्वामी विवेकानंद जी के कुछ विचारों को देखिये .
अनमोल विचार.
1 .उठो
जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए.
2.खुद को कमज़ोर समझना
सबसे बड़ा पाप है
3.सत्य को हज़ार तरीकों से
बताया जाए फिर भी वो सत्य ही रहेगा.
4.तुम्हे कोई पढ़ा नहीं
सकता .तुम्हे कोई कुछ बता भी नहीं सकता .सब
कुछ तुम्हारे भीतर है .आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं.
5.बाहरी स्वभाव अंदरूनी
स्वभाव का बड़ा रूप है.
6.विश्व एक व्यामशाला है
जहाँ हम खुद को मज़बूत बनाने आते हैं
7.दिल और दिमाग के टकराव
के बीच दिल की सुनो
8.शक्ति जीवन है. निर्बलता मृत्यु. विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु .प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु.
9.जिस दिन आपके पास कोई
समस्या न हो उस दिन समझिये आप किसी गलत राह पर हैं
10.एक समय पर एक ही काम
करो और उस काम में अपनी आत्मा डाल दो और बाकी सब भूल जाओ.
11.चिंतन करों , चिंता
नहीं . नए विचारों को जन्म दो .
12.तुम फूटबाल के जरिये
स्वर्ग के ज्यादा निकट होवोगे बजाये गीता के अध्ययन के .
13.जब आप किसी पर उपकार
करते हैं, यह दुनिया खामोश रहती है जैसे ही आप उपकार करना बंद करते हैं यही दुनिया
आपके खिलाफ हो जाती है .
14.एक विचार लो और उसे
अपना जीवन बना लो .बस उसी के सपने देखो और उसी के साथ जियो. अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों ,नसों और शरीर के हर हिस्से को उसी विचार में डूब जाने दो . यही सफल
होने का मंत्र है .
विचारों को कैसे संजोये
और आत्मसात करें ?
कुछ लोग पढ़ते सिर्फ इसलिए हैं क्यूंकि उन्हें लोगों के बीच में बताना होता है. ऐसे अज्ञानी जीव अकसर किसी पार्टी या समारोह में जाने से पहले कुछ ऐसी चीज़ों का रट्टा मार लेंगे जिन्हें लोग कम ही जानते हैं .मगर उनसे दो दिन बाद पूछिए तो उन्हें खुद याद नहीं रहता कि उन्होंने क्या पढ़ा था .?
वास्तव में हमारे साथ यही होता है. हम फ़ौरन जोश में आकर फ़ौरन पढ़ भी लेते हैं और फ़ौरन भूल भी जाते हैं . ऐसी पढ़ाई और ज्ञान किसी काम के नहीं .एक बात और है , बड़े- बड़े लोगों की जीवनी और विचारों को पढना एक चलन और फैशन सा बन चुका है . पढ़ना अच्छी आदत है . मगर ज़्यादातर हम उन चीज़ों को खुद में आत्मसात नहीं कर पाते क्यूंकि वो चीज़ हमे याद ही नहीं रहती .अगर आपको याद रहती तो सचमुच आपका जीवन बदल जाता .
मगर अब सवाल है आप उसे कैसे याद रख सकते हैं ? अगर आपकी दिनचर्या कुछ इस प्रकार है कि आप हर समय कामों से घिरे रहते हैं तो आपको पढने में नहीं फिर सुनने में ज्यादा ध्यान लगाना चाहिए .किसी भी चीज़ को पढ़कर याद रखने से कहीं अधिक आसान और सरल है उसे सुनकर याद रखना .
आपने गौर किया होगा एक बच्चा सबसे पहले थोडा -थोड़ा बोलना सीखता है फिर बाद में चलना . क्यूंकि उसके सुनने की क्रिया माँ के पेट से ही चल रही होती है. अभिमन्यु का नाम आपने सुना ही होगा ,उन्होंने अपनी माँ की पेट के भीतर से ही अपने पिता अर्जुन की वो बातें सुन ली थी जिसमे चक्रव्यूह भेदने का रहस्य था . विज्ञान भी ऐसे कई उदहारण पेश कर चुका है जब आप किसी चीज़ को लिखने के वजाए सुनकर तेज़ी से सीखते हैं.
इसलिए मेरा मानना है यदि आपको पढ़कर कुछ याद
रखना है तो आप उसे सुनना शुरू कर दे .ऐसा कुछ दिन करके देखिये आपकी समस्या ख़त्म
हो जाएगी .
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