एक चींटी का जीवन कैसा होता है, क्या यह जीव कभी सोचती भी है ? Essay on Ant

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चींटी पर एक प्यारा सा निबंध.

Essay on Ant


बस एक नज़रियाँ ही तो है जिसे हम दोष समझते हैं . वास्तव में वह किसी का गुण भी हो सकता है.वो इतनी छोटी है कि कभी भी मर सकती है .मगर इतनी बड़ी बात एक छोटी सी चींटी के दिमाग में न आना एक बहुत बड़ी बात है.


एक चींटी का जीवन कैसा होता है, क्या यह जीव कभी सोचती  भी है ? Essay on Ant


एक Ant, चींटी को देखकर आपके मन में क्या ख्याल आता है  ? कुछ लोग कहेंगे कुछ भी तो नहीं .कुछ कहेंगे ऐसा बहुत ही कम मौक़ा आता है जब हमारी नज़र इस छोटी सी जीव पर जाती हो, जब-तक कि ये हमारी चीज़ों को नुकसान न पहुंचाए या हमे काटकर परेशान न करे .कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि ये एक फालतू की जीव है जिसका नाम चींटी नहीं बल्कि कुछ और होना चाहिए , कुछ ऐसा कि जो उसके अवगुणों को दर्शायें . 


ये जीव हर उस इंसान को फूटी आखं तक नहीं भाति जो उसका  नुकसान करती है. कुछ लोगों के मुताबिक़ नुकसान पहुँचाना चींटी के खून और कोशिकाओं में शामिल है . मुझे अचानक से एक कहानी याद आ गयी, मुझे वो आपको सुनानी पड़ेगी, तभी आप थोडा और अधिक समझेंगे. एक नदी में एक साधु और उनका शिष्य स्नान कर रहे थे .तभी अचानक से उस साधु को नदी की धारा के साथ एक बिच्छु भी बहता हुआ दिखा . वो बिच्छु  खुद को उस जल की वेग से बचाने की चेष्टा कर रहा था . अब साधु भी इस शुभ कार्य में लग गया. 


उसने फ़ौरन बिच्छु को जल से उठाकर अलग करना चाहा . लेकिन तभी उस बिच्छु ने उस साधू को जोर का डंक मारा . साधु दर्द से काँप गया और उसके हाथ से वो बिच्छु फिर से पानी में गिरा गया . साधु ने उस बिच्छु को फिर से उठाना चाहा . इस बार फिर उस बिच्छु ने साधु को डंक मारा और साधु के दर्द के कारण फिर से बिच्छु जल में जा गिरा . 


साधु ने जब तीसरी बार कोशिश की तो उसके शिष्य ने कहा कि "गुरुदेव मुझे माफ़ करें लेकिन अब मुझे आपसे यह कहना ही पड़ेगा कि आप सबको ज्ञान देते हैं लेकिन आपका यह कार्य और कोशिश देखकर मुझे आपकी शिक्षा पर संदेह होने लगा है .आप तो उसे ही बचाने में लगे हैं जो आपको नुकसान पहुचना चाहता है? तभी इस बीच वो साधु पांचवी बार बिच्छु को उठाने में सफल हो जाता है और उसे नदी के तट पर छोड़ देता है . 


अब बारी थी शिष्य के उस प्रश्न का जवाब देने की .साधु ने शिष्य से कहा कि भगवान ने इस धरती पर जितने भी प्राणी बनाए हैं सबको उनका एक ख़ास नेचर और गुण भी दिया है. जैसे की कुत्ता भौकता है . गाय रंभाती है . कोव्वा काव –काव और कोयल कुहू -कुहू करती है. उसी तरह बिच्छु का कार्य ही डंक मारना है .ये उसका दोष नहीं बल्कि गुण है. और यदि एक बिच्छु अपना गुण और धर्म नहीं छोड़ सकता तो भला एक साधु अपने गुण और धर्म को कैसे छोड़ सकता है? अब तक शिष्य को यह गहरी बात समझ में आ चुकी थी .


अब हम वापस चींटी पर आते हैं .अब आपको पता चल चुका होगा कि पूरा खेल नज़रिए का है .जिसे हम दोष समझते हैं वो तो किसी भी प्राणी का गुण भी हो सकता है . हम बेकार में ही उसे कोसे जा रहे थे. यह तो हुआ उस जीव में गुण वाली बात जिसे हमने आज तक दोष ही समझा . अब सोचिये की यह छोटी से जीव चींटी हमारे किस काम की . ? 


वैसे भी इसे लोग इसे इतनी तुच्छ और छोटी समझता है कि अकसर आपने लोगों के मुंह से सुना भी होगा “अपनी औकात में रहो वरना चींटी की तरह मसल कर रख दूंगा” . “अच्छा, तो चींटी चढ़ी  पहाड़”  अब बताइए कहाँ हम और कहाँ वो बेचारी नन्ही सी चींटी. हम -आप उस जीव का भला तो कर नहीं सकते बेकार में उसके छोटेपन का और मजाक उड़ाते रहते हैं . 


मगर मुझे लगता है एक दिन चींटी ने यह बात ज़रूर ही हम इंसानों के मुंह से सुन ली होगी और अपनी इज्ज़त बचाने के लिए जोश में आकर किसी बड़े काम को अंजाम देने निकल गयी होगी . जब उसे कोई बड़ा काम नहीं मिला होगा तो ज़रूर उस वक़्त उसके सामने बड़े काम के रूप में कोई हाथी खड़ा होगा और वो भी उसे चिढाता होगा . चींटी को इस बात पर फिर गुस्सा आया होगा और वो बिना देर किये उस हाथी की सूंड में घुस गयी होगी .तभी तो आज भी यह बात चींटियों के सीने को गर्व से फूला देती होगी की कोई उनका भी पूर्वज किसी हाथी की सूंड में घुसा था . पता नहीं कोई चींटी यह बात सोचती भी होगी . लेकिन क्या करें हम लेखक कभी भी कहीं भी पहुँच जाते हैं . 


खैर हम बात कर रहे थे कि एक चींटी से हम क्या सीख सकते हैं ? वैसे सच कहूं तो अगर कोई इंसान किसी से प्रेरणा ले सकता है तो चींटी से अच्छा कोई उदहारण उसके लिए हो ही नहीं सकता . ज़रा इसे गौर से देखिये . सोचिये की यह जीव कैसे इतना परिश्रम कर लेती है ? कैसे अपने बच्चों के लिए भोजन पानी की  व्यवस्था करती होगी ? और सबसे बड़ी बात की यह इतनी छोटी है कि क्या ज़रुरत है उसे इतनी मेहनत करने की.? वो इतनी छोटी है कि कभी भी मर सकती है .मगर इतनी बड़ी बात एक छोटी सी चींटी के दिमाग में न आना एक बहुत अच्छी बात है. 



हमे चींटी के आकार को नहीं बल्कि उसके साकार को देखना चाहिए यानि उस पूरे हुए काम को  जिसे वो बहुत ही मस्ती से पूरा कर लेती है .मुझे लगता है एक चींटी कभी अपने जीवन के अगले पड़ाव के बारे में नहीं सोचती होगी बस उसे सिर्फ काम करते रहना अच्छा लगता होगा .जैसे कि मुझे लिखना .इसे मैंने आज अपना विषय बनाकर एक सुकून वाला काम किया है . इस छोटी सी जीव के लिए मैं कुछ कर नहीं सकता .वैसे भी यह नन्ही सी शहजादी जब इतने बड़े- बड़े कार्य खुद ही कर लेती है तो उसे हमारी और आपकी ज़रुरत ही क्या है ?  बस हमे यह ध्यान रखना चाहिए कि इस संसार में हर प्राणी की अपनी एक पहचान है . हमे उसकी पहचान को मिटाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए . 

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