टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) की History) टीपू सुल्तान (Tipu Sultan's Biography) टीपू सुल्तान का अंग्रेजों से लड़ाई (Tipu Sultan's war with British army)
The Sword of Tipu Sultan Life, story, History & battle with British army.
टीपू सुल्तान की तलवार, जीवनी, इतिहास, कहानी और अंग्रजों से युद्ध.
टीपू सुल्तान लोगों की धारणाओं में
टीपू सुल्तान, इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसा नाम है जिसे कुछ लोग मुस्लिम आक्रान्ता मानते हैं तो कुछ देश भक्त एवं शहीद, जिन्होंने अंग्रेजों के साथ SeringGapatam में युद्ध किया और वे उस युद्ध में शहीद हो गए.
कुछ इतिहासकार और प्रवक्ता उन्हें हिन्दुओं का कट्टर दुश्मन मानते हैं, जिन्होंने जबरन धर्मांतरण करवाए और हिन्दुओं के मस्जिदों के अलावे कई गिरजाघरों को भी तोडा.
माना जाता है कि टीपू सुल्तान की रत्न जडित बाघमुंडी वाली तलवार जिसका वजन 7 किलो 400 ग्राम था, उसकी मुठ पर लिखा भी था कि वो काफिरों के सर कलम करने के लिए है.
वहीँ कुछ लोग टीपू सुल्तान को मैसूर-ए- शेर का भी ख़िताब देते हैं क्यूंकि उन्होंने 15 साल की उम्र से ही अपने पिता हैदर अलि के साथ अंग्रेजों के खिलाफ जंग में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था.
टी.सी गौड़ा और इमरान कुरैशी जैसे इतिहासकार बताते हैं कि टीपू ने कृषि सुधार, सिंचाई व्यवस्था, सिंगेरीमठ में लाचारों की मदद और कई हिन्दू मंदिरों के निर्माण कार्य में सहयोग भी दिया था.
आइये हम इतिहास और इतिहास को लिखने वाले कुछ महत्वपूर्ण जानकारों के ज़रिये टीपू के जीवन चरित्र और उनके इतिहास को जानने की कोशिश करते हैं.
टीपू सुल्तान इतिहास में
जन्म और आरंभिक जीवन
टीपू सुल्तान हैदर अलि और फातिमा-फख-उन-निसा के पुत्र थे जिनका जन्म 10 नवम्बर 1750 में मैसूर रियासत में हुआ था. कर्नल मार्क विल्स बताते हैं कि हैदर अलि के छोटे बेटे टीपू का कद मंझले शरीर एवं श्याम वर्ण का था. वे दो बड़ी- बड़ी आखों, अच्छे शरीर और पतली कमर के मालिक थे जिन्हें घुडसवारी का बेहद शौक था.
हैदर अलि जिन्होंने अपने साहस, हिम्मत और युद्ध कौशल से मैसूर रियासत को हासिल किया था, खुद तो अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने टीपू को अच्छी तालीम दिलवाई थी.
उस वक़्त हैदरअलि की फ्रंससियों के साथ अच्छे सम्बन्ध थे इसलिए उन्होंने टीपू की युद्ध तरबियत भी ख़ास अधिकारयों की देख-रेख में करवाई थी.
टीपू को उर्दू ,फारसी, अरबी के अलावे हिंदी भी आती थी. घुड़सवारी और तलवारबाजी उनका सबसे पसंदिता शौक था. टीपू ने वर्ष 1766 में अपने पिता हैदरअलि के साथ अंग्रेजों के खिलाफ पहली लड़ाई लड़ी थी.
ब्रिटिश पुस्तकालय में उनकी रखी एक किताब An Amount of Tipu’s quote में टीपू सुल्तान के व्यक्तित्व की पूरी झलक मिलती है. टीपू के पास उनकी खुद की पुस्तकालय थी जिसमे करीब 2000 किताबें थीं.
उनके मरने के बाद वो किताबें टीपू के मुंशी ने अँगरेज इतिहासकारों को सौप दिए. लन्दन के विक्टोरिया अजायबघर में उनकी एक तस्वीर भी हैं जिनमे वो हरे रंग की पकड़ी और जामा पहने हुए हैं. शेर की धारियों वालों कमरबंद और कंधे से लटकती बेल्ट के लाल म्यान में एक तलवार भी है.
उस वक़्त भारत में ब्रिटिश हुकूमत ने अपने पैर जमा लिए थे. जिसके बाद उन्होंने हिंदुस्तान के राजाओं और सुल्तानों के राजपाट छिनकर उन्हें अंग्रेजों का पेंशनर बनाना शुरू कर दिया. कुछ मान गए और जो नहीं माने उनके लिए उन्होंने अपनी फ़ौज तैयार कर ली.
टीपू के खिलाफ ब्रिटिश फ़ौज
वर्ष 14 फरवरी 1799 का वो दिन जिन्हें कई इतिहासकार अपनी किताबों में लिखते हैं कि जेनरल जार्ज हेरिस के नेतृत्व में 21 हज़ार सैनिकों ने बैलोर से मैसूर की ओर प्रस्थान किया.
उसके बाद उनकी ही सेना में कर्ननल वैलिसली ने अपने 16 हज़ार सैनिक और जोड़ दिए. काफिला आगे बढ़ा तो कन्नोर के पास जनरल स्टुवर्ट की 6420 सैनिक और उनमे शामिल हो गए. और फिर इसके बाद अंग्रेजों की सम्मिलित सेना ने टीपू सुल्तान के सेरिंगपटम (SeringGapatam ) किले पर चढ़ाई कर दी.
जेम्स मील लिखते हैं- ये वहीँ टीपू थे जिनके आधे साम्राज्य पर 6 महीने पहले अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया था. उनके पास जो ज़मीन बची थी उन्हें सालाना एक करोड़ का राजस्व दिया जा रहा था.
उस समय माना जाता था कि अंग्रेजों का कुल राजस्व 90 लाख पाउंड स्टर्लिंन यानि 9 करोड़ का था. अंग्रेजों ने सेरिंगपटम (SeringGapatam) को घेरकर 3 मई के दिन तोप के गोले दागकर उसकी प्राचीर में एक सुराख कर दिया.
इस बात को SR लसिंग्टनन लाइफ़ of हेरिस में लिखते हैं कि इन महीनो के दरमियान रसद खत्म हो चुका था. सेना भूख की कगार पर थी. वे कितने कमज़ोर हो चुके थे कि उन्हें धक्का देने पर वे गिर जाते.
कोई विकल्प न बचता देख हेरिस ने सैनिकों को भीतर भेजने का फैसला लिया और फिर 3 मई की रात को 3 हज़ार सैनिक खाइयों में जाकर छिप गए ताकि टीपू के सैनिकों को उनकी गतिविधियों के बारे में पता न चल सके.
लेकिन टीपू के सैनिकों में कुछ गद्दारों को पहले से सब पता था. दगाबाज़ मीर सादिक ने टीपू के सैनिकों को वेतन देने के बहाने बुला लिया. इतिहासकार मीर हुसैन अलि खान किरमानी अपनी किताब हिस्ट्री आफ़ टीपू सुल्तान में कर्नल मार्क विल्स के हवाले से लिखते हैं – टीपू के कमांडर ने मौका देखते ही वेतन का मुद्दा उठा दिया और अंग्रेजों के हमला बोलते ही वे पीछे चले गए.
मगर उसी दौरान टीपू का दूसरा वफादार कमांडर सईद गफार अंग्रेजों के तोप के गोले से मारा गया. किरमानी लिखते हैं जैसे ही गफ्फार मारा गया टीपू के सैनिकों ने सफ़ेद रुमाल हिलाने शुरू कर दिए. यह सब कुछ पहले से तय था कि अँगरेज़ इस दिन कीले पर हमला बोलेंगे.
अंग्रेजों को जैसे ही संकेत मिला वे नदी के किनारे की ओर बढे. उस वक़्त यही टीपू के सैनिक चाहते तो अंग्रेजों को आसानी से कीले के तोपों से उड़ा सकते थे. मगर गद्दारों ने ऐसा नहीं किया. इसके बाद ही खाइयों में छिपे सैनिकों ने फ़ौरन कीले में धावा बोल दिया और कीले में ब्रटिश इंडिया का झंडा लहरा दिया.
इसके बाद अँगरेज़ सैनिक दो गुटों में बंट गए .बायीं तरफ से बढ़ते सैनकों का सामना जब टीपू के सैनिकों से हुआ तो टीपू के सैनिकों ने इसका जबरजस्त विरोध किया. इस झड़प में कर्नल डल्लप की कलाई में बड़े घाव लग गए.
6 मई की सुबह घोड़े पर सवार टीपू ने किले प्रचारी का निरिक्षण किया. उसकी मरम्मत के आदेश दिए और फिर शाम को उन्होंने गरीबों और ब्रह्मणों को दान दिए.
टीपू ज्योतिष को मानते थे. इसलिए उन्होंने पंडित और ज्योतिषों
के कहे अनुसार अपनी सुरक्षा और बुरे ग्रह को टालने के मकसद से हाथी, काले बैल, काली
बकरी, एक बोरा तील और लोहे के कटोरे में
अपनी शक्ल देखने के बाद उस तेल को दान में दिए थे.
टीपू सुल्तान का संघर्ष अंग्रेजों के साथ
उस समय टीपू के कमांडर मीर नदीम जो कीले की छत पर थे, टीपू पर ध्यान देना टाल दिया. टीपू आगे बढे ही थे कि तभी एक अँगरेज़ की गोली उनके सीने में जा धसी. कुछ लोगों ने टीपू को वहां से बचाकर ले जाने की कोशिश की मगर वे नाकाम रहे.
अँगरेज़ सैनिक भीतर घुसे. टीपू ज़ख़्मी हालत में बेहोशी की कगार पर थे. उसी दरमियान अँगरेज़ सैनिकों ने टीपू से उनकी रत्न जडित तलवार छिन्नी चाही मगर
टीपू ने उन पर वार कर दिया. मगर तभी टीपू को एक गोली कान से होकर गाल से निकल गयी.
अगले दिन टीपू का जनाज़ा निकला. उनको मानने और चाहने वालों ने उन्हें रो-रोकर विदाई दी. टीपू को उनके माता पिता की कब्र के समीप ही दफनाया गया.टीपू की कई बेशकीमती चीज़ों को अंग्रेजों ने लूट लिया जिनमे चाँदी का हौदा, रत्न जडित तलवारे, कालीन, रत्न आभूषण से भरे 20 बक्से भी शामिल थे.
टीपू की कुछ तलवारों को अँगरेज़ अफसरों ने आपस में बाँट लिए. उस वक़्त के एक अँगरेज़ पत्रकार लिखते हैं – टीपू की हार के बाद पूर्व का पूरा साम्राज्य हमारे पैरों पर आ गिरा था.
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