ताजमहल (Tajmahal ) को दुनियाँ का आठ्वा अजूबा कहा जाता है जो भारत के आगरा शहर में यमुना नदी के किनारे स्थित है. इस ख़ूबसूरत नायब चीज़ को देखकर मन में सवाल आता है कि ताजमहल में कितने रुपयो के संगमरमर और रत्न लगे होंगे?
ताजमहल भले ही मुगलों द्वारा बनाया हुआ मुमताज महल का एक मकबरा हो मगर पूरी दुनियाँ उसे एक प्यार की निशानी के रूप में देखती है.
ताजमहल को देखने के लिए सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ से लोग आते हैं. जब मैंने भी पहली बार ताजमहल को देखा था तो उसे देखता ही रह गया और फिर उसे बार बार छूकर मुग़ल काल को याद करता रहा.
वो दृश्य मेरे जेहन में उभरते चले गए जब मैंने मुमताज और शाहजहाँ के बारे में पढ़ा था कि कैसे मुमताज ने एक बार अपने पति से कहा था कि उसने सपने में एक ऐसा महल और बाग़ देखा है जो शायद पूरी दुनियां में कहीं नहीं होगा.
मुमताज महल के मरने के बाद शाहजहाँ ने अपनी पत्नी की उसी ख्वाइश को पूरी करने के लिए वर्ष 1632 में ताजमहल का काम शुरू करवा दिया.
ताजमहल में लगे संगमरमर
ताजमहल को बनाने में जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है उन्हें संगमरमर पत्थर कहते हैं जिन्हें आगरा से 200 मील की दूरी पर स्थित मकराना से मंगवाया गया था.
मगर उस वक़्त भी उन पत्थरों को वहां से मंगवाना आसन काम नहीं था. कुछ संगमरमर के पत्थर इतने बड़े थे कि उन्हें लाने के लिए 20-40 बैलों को एक साथ जोड़कर एक गाडी बनायी गयी थी.
लेकिन उसके बाद भी उस वक़्त के दरबारी और इतिहासकार इनायत खान लिखते हैं कि उन पत्थरों को लाने में भी बैलों के पसीने छूट रहे थे. समझिये वो कितने भारी होंगे.
चबूतरे भी तो 970 फीट लबे और 364 फीट चौड़े बनाये थे ताजमहल के. फिर समझिये कितने पत्थर मंगवाने पड़े होंगे.
ताजमहल में लगे रत्न
“ताजमहल पैशन एंड जिन्यस अट द हार्ट ऑफ़ द मुग़ल मुग़ल अम्पायर” के लेखक के अनुसार ताजमहल के लिए कुल 40 प्रकार के बेशकीमती रत्न बाहर के देशों से मंगवाए गए थे .
हरे रंग के पत्थरों को चीन के सौदागरों से ख़रीदा गया था. लापिज लजूली को अफगानिस्तान के खदानों से मंगवाया गया था. फिरोजा को तिब्बत से और मूँगों को अरब और लाल सागर से मंगवाया गया.
वहीँ पीले अम्बर को ऊपरी वर्मा , माणिक को श्रीलंका और लहसुनियाँ पत्थरों को मिश्र की नील घाटी से मंगवाया गया था. उस वक़्त के एक दरबारी इतिहासकार ने पूरे ताजमहल पर लगने वाले धन की कीमत 50 लाख आंकी थी .
बाद में वास्तवकि दस्तावेजों से ताजमहल की असली कीमत का पता चला जो उस वक़्त 4 करोड़ थी . मगर फिर वर्ष 1803 के बाद अंग्रेजों ने इन्हें खोदना शुरू कर दिया और फिर कई बेशकीमती चीज़ अँगरेज़ चोर हमारे यहाँ से चुरा-चुराकर ले गए.
निष्कर्ष –
सच पूछिए तो मेरा पूरा ध्यान अब इस ताजमहल पर कम और इस बात पर अधिक है कि यदि उस वक़्त ताजमहल 4 करोड़ में बना और फिर भी मुग़ल भारत में राज करते रहे तो फिर उनके पास कितना धन रहा होगा.?
वैसे जानकारी के लिए बता दूं कि शाहजहाँ का तख्ते ताउस जिसे मयूर सिंहासन भी कहा जाता है और जिस पर कोहिनूर हीरा जड़ा था, वो ताजमहल से दोगुनी कीमत का था.
वैसे कुछ लोगों को लगता होगा इतना पैसा मुग़ल अपने साथ उज्बेगिस्तान से लेकर चले होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है यह हमारे भारत का धन था.
तभी तो भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. लेकिन यह अच्छी बात है की भारत का धन भारत में ही रहा. यदि ताजमहल भारत के बाहर होता तो वो उस देश की संपत्ति होती.
ताजमहल की कुल लागत कितनी थी जानिये
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