जब चाणक्य को दिया एक भिखारी औरत ने ज्ञान - नैतिक शिक्षा

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Chankya ko mili ek aurat se shiksha. 

Ek Aurat ne diya Chankya ko gyan. 

Naitik katha Chankya ki.

Chankya wali shiksha. 

Chankya ko mila ek bhikhari aurat se anmol gyan.



जब चाणक्य को दिया एक भिखारी औरत ने ज्ञान - नैतिक शिक्षा



चाणक्य और भिखारी औरत की कहानी

Chankya aur Bhikhari aurat ki kahani 

 


कहानी उन दिनों की है जब आचार्य चाणक्य को इस बात का आभास हो गया कि भारत पर विदेसी आक्रान्ताओं की नज़र पड़ सकती है और वे कभी भी खंड- खंड में बंटे भारत पर आक्रमण कर सकते हैं.

 

इसके बाद ही आचार्य चाणक्य ने भारत को अखंडता के सूत्र में बाँधने का प्रण लिया और फिर मन में अखंड भारत का सपना संजोये उस समय के बड़े -बड़े राजाओं से मिलना शुरू कर दिया.


मगर आचार्य चाणक्य की बातों को बहुत से राजाओं को समझ नहीं आ रही थी. और जिन्हें समझ आ रही थी वे स्वयं को इसके लिए योग्य नहीं समझ रहे थे. 


उस समय मगध एक बहुत बड़ा साम्रज्य था जिसमे उडिया, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य सम्मिलित थे और उस साम्राज्य का स्वामी था धनानंद, जो नंद वंश सबसे बड़ा राजा था. 


आचार्य चाणक्य किसी तरह धनानंद के पास पहुंचे. मगर धनानंद न सिर्फ एक भोगी और विलासी राजा था बल्कि घमंडी और महामूढ़ भी था. उन्होंने चाणक्य को इस बात के लिए बहुत लताड़ा और फटकारा कि वो ऐसा कैसे सोच सकता है कि कोई भारत में उसके रहते हमला भी कर सकता है.??? 


चाणक्य ने जब धनानंद को फिर से समझना चाहा तो राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने चाणक्य को धक्के मरवाकर दरबार से बाहर फिकवा दिया, जिससे चाणक्य की शिखा खुल गयी और फिर चाणक्य ने वहां क्रोधित होकर प्रण लिया कि वो भी धनानंद को उसकी गद्दी से इसी तरह उतार फिकवायेंगे.



जिसके पश्चात कई वर्षो बाद चाणक्य को एक चंदू नाम का बालक मिला जिसे चाणक्य ने भावी राजा के रूप में शिक्षित करना शुरू किया. 


चंदू जब कुछ और बड़ा हुआ तो चाणक्य ने उससे एक गूढ़ बात कही शत्रु की दुर्बलता जानने तक उससे मित्रता रखो और फिर चाणक्य के कहने पर चंदू गुप्त रूप से धनानंद की सेना में शामिल हो गया जहाँ वो सारा गुप्त भेद लाकर अपने आचार्य को देता. 


कई वर्षों बाद चंदू और चाणक्य ने मिलकर एक छोटी सी सेना तैयार कर ली और फिर एक दिन उस सेना ने मगध पर चढ़ाई कर दी. मगर परिणाम यह हुआ की मगध की विशाल सेना के सामने चाणक्य की सेना हार गयी और फिर चाणक्य और चंदू इधर- उधर छिपकर जान बचाने लगे.


एक दिन चाणक्य भागते हुए जब एक झोपडी में छिपने गए तो वहां उन्होंने एक दृश्य देखा. चाणक्य ने देखा कि एक गरीब औरत सोयी हुई है और उसका गरीब बच्चा माँ की पकाई हुई खिचड़ी को खुद ही परोसकर थाली में लेता है और जैसे ही वो गरम खिचड़ी खाने के लिए उसमे हाथ डालता है कि उस बच्चे का हाथ जल जाता है.


तभी उस बच्चे की माँ फ़ौरन उठकर बच्चे को संभालती है और उसे डांटते हुए कहती है चाणक्य की तरह मुर्ख वाला काम करोगे तो हाथ तो जलेगा ही गरम खिचड़ी को भी भला कोई बीच से खाता है.??? खिचड़ी हमेशा किनारे किनारे से ही खाई जाती है. 


उस औरत की गूढ़ बातों से चाणक्य को अब समझ आ चुका था कि वो युद्ध क्यूँ हारे? चाणक्य ने फ़ौरन आकर उस औरत के पाँव छू लिए और उन्हें इस सीख के लिए धन्यवाद दिया . 


इसके बाद चाणक्य ने मगध के राजा धनानंद को हराने के लिए मगध के किनारे –किनारे से उस पर छोटे – छोटे आक्रमण करने शुरू कर दिए जिसके परिणाम स्वरुप एक दिन चाणक्य ने अपने उसी शिष्य के द्वारा राजा धनानंद को उसकी गद्दी से उतार फिकवाया और फिर चंदू , चन्द्रगुप्त मोर्य बनकर भारत का चक्रवर्ती सम्राट बना.  



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