Balak Chankya ne sabit kiya maa ka prem sabse oopar. Chankya ki naitik shikh wali kahani.
Chankya ki seekh wali kahani. maata aur Chankya. Moral story of Chankya & his mother in Hindi.
Hindi seekh wali story. Chankya aur unki maa ka prem.
चाणक्य की नैतिक शिक्षा वाली कहानी. चाणक्य का उसकी माँ के लिए प्रेम.
आचार्य चाणक्य, पुरातन भारत के एक ऐसे व्यक्ति, जिसे हम यदि बुद्धि के देवता भी कहे, तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यूंकि चाणक्य की बुद्धि और वाणी को आज भी दुनियाँ लेखों और वीडियों के माध्यम से उनका अनुसरण कर रही है और आगे भी करती रहेगी.
चाणक्य को आचार्य चाणक्य, विष्णु गुप्त और कोटिल्य के नाम से भी जाना जाता है. आचार्य चाणक्य को हर उस विषय का ज्ञान था जिसके लिए आज स्कूलों में 15-20 शिक्षक रखे जाते हैं.
चाणक्य ने कोटिल्य शास्त्र की रचना की थी. उन्हें मोर्य वंश का संस्थापक भी कहा जाता है, जिन्होंने मगध के भोगी-विलासी और घमंडी राजा धनानंद को उनकी गद्दी से उतार फिकवाया और एक साधारण से दासी पुत्र चंदू को शिक्षित करउसे मोर्य वंश का महान शासक बना दिया.
मगर इतने महान व्यक्ति की एक प्यारी सी दिल को छूने वाली कहानी उनकी माँ के
साथ भी है. बालक चाणक्य ने जब साबित किया था कि माँ का प्रेम सबसे ऊपर है उनके लिए. कैसे जानिये.
चाणक्य और उनकी माँ की कहानी.
चाणक्य के पिता का नाम आचार्य चणक था इसलिए उस बच्चे का नाम चाणक्य पड़ा. वो बचपन में बहुत शरारती भी थे लेकिन जिज्ञासु भी.
चाणक्य को अपनी माता से बहुत प्रेम था. इतना कि उन्होंने इसे बचप्न में ही उस वक़्त साबित कर दिखाया जब एक साधू उनके घर आया.
उस वक़्त चाणक्य खेलने बाहर गए थे. माँ की जब बच्चे के भविष्य के विषय में जानने की जिज्ञासा हुई तो उन्होंने उस साधू से चाणक्य की कुंडली दिखाई.
साधू ने चाणक्य की कुंडली देखी और चाणक्य की माता को बताया कि आपका पुत्र तो इतना नाम कमाएगा कि एक दिन भारत का सबसे बड़ा राजा भी उसके पैर छुवेगा.
साधू ने कहा कि यदि विश्वास नहीं तो अपने पुत्र के आगे की दांत में देखना, एक शंख का निशान होगा. साधू यह बताकर चले.
चाणक्य के घर आते ही माँ ने सबसे पहले जब चाणक्य के दांत देखे तो सचमुच चाणक्य के एक दंत में शंख का चिन्ह अंकित था. माँ यह देखकर अब खुश होने के स्थान पर दुखी और चिंतित हो उठी.
जब चाणक्य ने इसका कारण जानना चाहा तो माँ ने उसे सारी बात बतायी. माँ ने कहा “पुत्र मैं दुखी और चिंतित इसलिए हूँ क्यूंकि फिर बड़ा होकर तू अपनी माँ को छोड़कर चला जायेगा. उस साधू ने सही भविष्यवाणी की थी तेरी. क्यूंकि तेरे एक दंत में शंख का निशान भी है."
बस इतना सुनते ही चाणक्य ने फ़ौरन एक पत्थर उठाकर अपने उस दांत को तोड़ डाला और कहा "जो दांत मुझे मेरी माँ से अलग कर दे वो दांत ही मुझे नहीं चाहिए.
बाद में उस साधू की बात सच
साबित हुई. चाणक्य को पूरी दुनियाँ जानने लगी. मगर यह भी याद रखिये कि हर महान
कार्य के पीछे एक महान संघर्ष भी छिपा होता है. रातों-रात कोई भी महान नहीं बन
जाता. कोई भी किसी भी परीक्षा को पास नहीं कर लेता. व्यक्ति कितना भी गुणी और
विद्वान् क्यूँ न हो, उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए दृढ इच्छा शक्ति रखनी पड़ती है. जैसे
चाणक्य ने धनानंद की राज सभा में अपमानित होने के बाद प्रण लिया था और उस प्रण को फिर पूरा भी किया..
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