Maharana pratap's incredible horse Chetak. Story of a horse Chetak .Chetak Horse in Haldighati battle.
महाराणा प्रताप का घोडा चेतक क्यूँ इतना प्रसिद्द था?
हल्दीघाटी के युद्ध में पढ़िए चेतक घोड़े की वीरता की कहानी.
उदय सिंह राणा के पुत्र महाराणा प्रताप,बचपन से ही एक वीर बालक थे.उन्हें साहसिक काम बहुत अच्छे लगते थे.उनका ज़्यादातर बचपन जंगल और पहाड़ों पर रहने वाले भीलों के साथ बीता था.
जब वे कुछ युवा हुए तो काठियावाड़ का एक व्यपारी तीन घोड़ों को लेकर मेवाड़ आया.वे तीनो घोड़े ईरानी नश्ल के थे जिनके नाम क्रमश: अटक,त्राटक और चेतक था. नीले रंग का चेतक देखने में इतना सुन्दर था कि उसे फ़ौरन राणा ने खुद के लिए पसंद कर लिया.
अटक नाम वाले घोड़े को परिक्षण के काम के लिए तो वहीँ त्राटक घोड़े को राणा के छोटे भाई शक्ति सिंह ने अपने पास रख लिया. राणा अपने घोड़े चेतक से इतना प्यार करते थे कि वे उस पर कभी चाबुक या कोड़े का प्रयोग नहीं करते थे.
चेतक और राणा के बीच अटूट प्रेम
धीरे –धीरे चेतक अपने नए मालिक राणा के अटूट प्रेम को समझ गया और उस दिन के बाद से चेतक ने फिर अपनी पीठ पर फिर किसी दुसरे को सवार नहीं होने दिया. राणा प्रताप और चेतक की यारी तो पूरे मेवाड़ में प्रसिद्द हो रही थी मगर जब हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक ने अपने मालिक राणा को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी तो फिर उस दिन के बाद से चेतक पूरी दुनियाँ में प्रसिद्द हो गया कि क्या वाकई ऐसा भी कोई घोडा इस संसार में है जो अपने मालिक के लिए अपनी जानों की बाजी तक लगा सकता है .
हल्दी घाटी के युद्ध इतिहास और उसकी काहनी को देखे तो हमे चेतक की बहदुरी के कई उदहारण देखने को मिलते
हैं
हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक की बहादुरी.
वर्ष 1567 में जब मुगलों की सेना और राणा प्रताप युद्ध के लिए हल्दीघाटी पहुंचे तो उस समय मुगलों के पास 5000 खुश्वाहा राजपूत , 5000 मुग़ल सैनिक और 100 हाथी थे .
वहीँ राणा के पास 3000 राजपूत सैनिक ,500 अफगान,100 हाथी और 1000 की संख्या में भील थे. मुग़ल संख्या में अधिक थे फिर भी राणा उन पर टूट पड़े. लेकिन जब वे युद्ध में घायल हो गए तो राणा के घोड़े चेतक ने फ़ौरन स्थिति को समझ लिया और वो बिना देरी किये फ़ौरन राणा को लेकर वहां से दौड़ पड़ा.
मुग़ल सैनिक चेतक के पीछे भागे .लेकिन चेतक के बारे में यह प्रसिद्द था कि आखों की पुतली गिरने से पहले वो हवा की गति से मुड जाता था. वो हवा से बातें करता राणा को युद्ध भूमि से दूर निकाल ले गया . मुग़ल अब भी उसके पीछे थे.
तभी अचानक बीच में एक बड़ी खाई आ गयी. मगर
राणा के चेतक ने उसे पूरी ताकत लगाकर फांद लिया. मुग़ल सैनिक पीछे रह गए. मगर फिर राणा
को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के बाद चेतक को दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसा. चेतक
की याद में आज भी राजसमंद के हल्दीघाटी के गाँव में उसकी समाधी बनी हुई है.
चेतक जैसे घोड़े की कहानी
सिर्फ एक मनोरंजन की कहानी नहीं हो सकती. बल्कि चेतक जैसे बेजुबान जानवर से हमे यह
सीख लेनी चाहिए कि आज के इस स्वार्थी समाज में जब इन्सान अपने भाई - भतीजों का दुश्मन बना हुआ है और अपने स्वार्थ की
सिद्धी की लिए किसी भी हद तक जा सकता है वहीँ एक बेजुबान जानवर अपने मालिक के प्रेम में आकर अपनी जान की बाजी तक लगाने के लिए भी तैयार
रहता है .
चेतक के अलावे भी कई ऐसे कुत्ते या अन्य तरह के पशुओं की
वफादारी के किस्से भी हमे यदा-कदा देखने -सुनने को
मिलते रहते हैं. इनके कारनामों को
देखकर मन में यही सवाल आता है कि क्या कोई पशु मनुष्य के स्वाभाव के विपरीत जाकर
उससे भी श्रेठ हो सकता हैं? अगर है तो फिर हमे पशुओं को और
अच्छी तरह से समझने की ज़रुरत है.
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