सत्य नारायण की पूजा विधि
सत्य नारायण की पूजा सामग्री
Bhagwan Satya Narayan ki pooja
सत्य नारायण की पूजा विधि जानिये .
दरिद्रों के लिए धन दाता और अमीरों के घर में शान्ति एवं मंगल आशीर्वाद देने वाले भगवान श्री सत्य नारायण एक ऐसे देवता हैं जो हर घर में पूजे जाते हैं.
इनकी पूजा और व्रत प्राय: सभी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग करते हैं. श्री सत्य नारायण व्रत का अर्थ उनकी उन कहानियों से है जिनमे सत्य व्रत को दृढ़ता पूर्वक पालन करने पर जोर दिया गया है.
इस संसार के मोह माया और मिथ्या भ्रम से दूर
रखने के लिए ही साधक को प्रभु सत्य नारायण की कथा सुनाई जाती है. इस व्रत को प्राय:
पूर्णमासी के दिन किया जाता है जिसमे साधक सभी के घरों में जा जाकर लोगों को पूजा
में आने के लिए निमंत्रण देते हैं.
पूजन सामग्री 
1.चावल 
2.गेहूं 
3.जौ
4.काला तील
5.मौली 
6.अष्टगंध चन्दन 
7.लाल कुमकुम 
8.सफ़ेद कुमकुम 
9.अबीर गुलाल 
10.हल्दी पावडर 
11.चुडा
12.नारियल 
13.सुपारी 
14.लोंग इलायची 
15.ड्रायफ्रूट 
16.कपूर 
17.गुड 
18.अगरबत्ती एवं माचिस 
19.कापूस बाती
20.मिट्टी के 5 दीपक 
21.जनेऊ 
22.लाल कपडा
23.पीला कपडा 
24.गंगा जल 
25.भगवान के लिए टावल
26.दोना पत्तल 
27.केला का झाड 
28.फूल माला 
29.तुलसी दल 
30.बेलपत्ता 
31.तीन पट्टे वाला दूर्वा 
32.आम पल्लव 
33.पानपत्ता 
34.खुले फूल 
35.बेनी गाजर 
36.हवन सामग्री 
37.हवन कुण्ड
38.हवनपुड़ी
39.आम की लकडियाँ 
40.नवग्रह लकडियाँ 
41.समिधा लकड़ी 
42.सुखा नारियल 
43.पीला सरसों 
44.प्रसाद में पांच प्रकार
के मिठाई
45.दही, घी, शक्कर, शहद दूध
पंचामृत के लिए 
46.पाट या चौकी 
47.पूजा के वर्तन
48.लोटा ग्लास थाली 
49.चम्मच , 
50.कटोरा 
सत्य नारायण प्रभु की पूजा
विधि 
जो भी व्रती होता है वो पूजा वाले दिन पूजा किये जाने वाले स्थान को गोबर से पवित्र कर वहां अल्प बनाता है जिस पर पूजा की चौकी रखी जाती है. इसी चौकी के चारो ओर के पायों में केले का तना लगाया जाता है जिसके बाद सत्यनारायण प्रभु की फोटो रखी जाती है.
लेकिन जैसा कि ज्ञात हो सभी देवों में गणेश जी को महादेव के द्वारा प्रथम पूजे जाने का वर मिला था उसी के अनुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है.
उसके पश्चात देवराज इंद्र और फिर दशो दिक्पालो की पूजा होती है. तत्पश्चात राम एवं सीता लक्ष्मण और राधा कृष्ण की. उसके बाद आरम्भ होता है श्रीसत्य नारायण की पूजा.
पूजन के बाद सबसे
पहले चरनामृत वितरित किया जाता है और उसके पश्चात प्रसाद. पंडित जी को दान दक्षिणा
देने के बाद ही साधक भोजन ग्रहण करके व्रत को खोलते हैं.
   
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