(loud speaker in Decibel)
लाउड स्पीकर डेसिबल में lound speaker in Decibel.
जिस यन्त्र के द्वारा हमारी मद्धम ध्वनि को तेज़ कर लोगों तक आसानी से पहुंचाई जाती है उसे हम लाउड स्पीकर कहते हैं. पहले जब लाउड स्पीकर का आविष्कर नहीं हुआ था तो शायद उस वक़्त उसकी ज्यादा ज़रुरत नहीं रही होगी.
मगर जब अलेक्जेंडर ग्रैहम वैल द्वारा 1876 में उसका आविष्कार हुआ तो उसकी सबसे अधिक ज़रूरत तो मंदिर मस्जिदों पड़ने लगे. इस अविष्कार के 99 वर्षों के बाद सिंगापुर का सुलतान मस्जिद विश्व का पहला मसजिद है जिनकी चार मीनारों पर लाउड स्पीकर का सिस्टम लगा था.
मगर जैसे-जैसे लोगों की जनसख्या बढ़ी और लोग अपनी दुनियां में व्यस्त हुए इस आवाज़ ने लोगों को तंग करना शुरू कर दिया. इसी के बाद भारत में नोइस पोलुजन रेगुलेशन कण्ट्रोल एक्ट 2000 के आधार पर सरकार ने लाउड स्पीकर की ध्वनि का मानक तय किया. हालांकि रात 10 बजे से लेकर सुबह के 6 बजे तक लाउड स्पीकर बजाने की मनाही है. मगर राज्य स्तरीय धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखते हुए सरकार ने ध्वनि के लिए कुछ मानक तय किये हैं.
इस मानक को आप ऐसे समझिये
कि एक कार का हॉर्न 100 डेसिबल का होता है. तो रात और दिन में लाउड स्पीकर के
ध्वनि को कितना डेसिबल (Decibel) रखा जा सकता हो वह
देखिये.
औधिगिक क्षेत्र के लिए दिन
में 75 डेसिबल और रात को 70. कमर्शियल एरिया के लिए मानक दिन में 65 डेसिबल और रात
में 55 .रेजिडेंस एरिया के लिए 55 डेसिबल दिन में और रात को 45 तक. वहीँ सायलेंस ज़ोन
में दिन में 50 डेसिबल और रात में 40 डेसिबल का मानक तक किया गया है
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