परशुराम (Parshuram) से जुडा है केरल (Kerala) जहाँ मन्नार वंश को सांप नहीं काटते.

@Indian mythology
0

                                             केरल साँपों का संसार world of snakes 


परशुराम (Parshuram) से जुडा केरल कैसे बना? मन्नार वंश को सांप क्यूँ नहीं काटते ?


आर्यों की संस्कृति तथा उनके साहित्य में में यदि कोई राज्य सबसे अधिक प्रभावित हुआ, तो वो है केरल. फिर भी केरल (Kerala) वासियों को अपनी द्रविड़ परंपरा और तमिल भारतीय संस्कृत पर गर्व है. दक्षिण भारत और विशेषकर केरल में सर्प पूजा का का प्रमुख  स्थान है . 


केरल में सर्प पूजा (Worship of snakes) की परंपरा की मूल कथा दक्षिण भारत में आर्यों के प्रवास से जुडी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जमदग्नि पुत्र परशुराम (parshuram) क्षत्रियों पर विजयी प्राप्त करने के बाद दक्षिण चले गए. वहां उन्होंने  महासागर में से गोवा के दक्षिण में गोकर्णं से लेकर कन्याकुमारी तक फैली भूमि की एक नयी सृष्टी की. वही भूखंड केरल कहलाया.


तब परशुराम ने उसे चौंसठ नंबूदिरि ब्राह्मण परिवारों को दान कर दिया . किन्तु वहां बसने वालों को पीने योग्य जल का अभाव बना रहा. क्यूंकि वहां का पानी खारा था. इस पर परशुराम ने परमेश्वर का ध्यान किया और प्रार्थना की जल शुद्ध और पेय बना दिया जाए. तब भगवान ने परशुराम से सर्पराज वासुकि की अराधना करने के लिए कहा . 


परशुराम ने वासुकि को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया. इस पर वासुकि ने  प्रसन्न होकर केरल के जल को तो शुद्ध कर दिया, बदले में सर्पों  के लिए ऐसे –शरण स्थलों की मांग की, जहाँ वे सुरक्षित रह सके. वासुकि ने परशुराम से वचन ले लिया कि उसके भक्त और अनुचर उन स्थलों का कभी अतिक्रमण नहीं करेंगे और उनमे रहने वाले सर्पों को कभी और किसी भी तरह की हानि नहीं पहुंचाएंगे. 


तब परशुराम ने वचन दिया कि केरल (kerala) में सर्पों की पूजा और रक्षा की जायेगी. जिस स्थल में पर परशुराम ने तपस्या की थी, वहां उन्होंने सर्प विहार बनवाया और सर्पों के राजा और रानी- नागराज नाग लक्ष्मी का मंदिर स्थापित किया. एक समय भयंकर आग लगी. स्त्रियाँ सर्प – विहार को उस समय तक सींचती रहीं जब तक धरती शीतल नहीं हो गयी. सर्प अपने रक्षकों से विशेषकर स्त्रियों से बहुत प्रसन्न हुए. 


कोचीन जाने वाले राजमार्ग से कुछ दूर हटकर त्रिवेद्रम से लगभग 45 मील दूर, उत्तर एक छोटे से शांतिपूर्ण गाँव में सर्प – विहार ( मन्नार शाला ) अब तक है. आज भी नंबूदिरि –वंश का परिवार वहां रहता है और मन्नार शाला की देख रेख की परम्परा का पालन करता है. इन दिनों भी वहां प्रतिवर्ष “ अयाल्य्म- पूजा” की जाती है और श्रद्धालू यात्रियों का तांता बंध जाता है. परिवार की ज्येष्ठ कन्या , जिस पर पौरोहित्य का भार होता है, प्रतिदिन साँपों को अपने हाथ से हल्दी  मिश्रित चावल के आटे की खीर अर्पित करती है. 


साँपों को वहां खीर खाते तो किसी ने नहीं देखा लेकिन ये तो नित्य कर्म है कि निश्चित और सुरक्षित स्थान पर  रखे गए  खीर से भरे पीतल के पात्र दुसरे दिन सबेरे खाली मिलते हैं. यह सच है कि केरल और उसके निकटवर्ती प्रदेशों में सर्प बहुतायात संख्या में पाए जाए हैं. कहा जाता है कि आज अक मन्नारशाला के पुरोहित- वंश का कोई व्यक्ति सर्प दंश से नहीं मरा. असंख्य नर- नारी आज भी इस सर्प – विहार की यात्रा करते हैं. भेंट पूजा में चढ़ाई गयी चीज़ों को कोई भी हाथ नहीं लगाता. 


केरल में नंबूदिरि ब्राह्मणों का एक प्राचीन –परिवार संतान के लिए की जाने वाली विशेष पूजा का पौरोहित्य भी करता है. केरल में हर स्थान पर बहुत तरह के सर्प पाए जाते हैं. अजगर से लेकर साधारण चेरा सांप तक, जो घरों के अन्दर भी पाए जाते हैं. सांप के काटने का आयुर्वेदिक उपचारकरने वाले तीन सौ से अधिक विष- वैध्य केरल में है. गाँव के लोग पुराने संस्कारों के कारण विष- वैद्धों पर ही अधिक भरोसा करते हैं. 


इन विशेषज्ञों को राज्य सरकार के आयुर्वेद- विभाग की ओर से अनुदान भी मिलता है. विष को दूर करने वाले इस अति प्राचीन उपचार में बहुत प्रवीणता प्राप्त की जा चुकी है. यदि इसका वैज्ञनिक अध्ययन और शोध किया जाए और दुर्लभ जड़ी – बूटियों की औषधियों के रहस्य की खोज की जाए तो विष-बाधा नाशन क्षेत्र में एक क्रान्ति आ जायेगी   

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Hi ! you are most welcome for any coment

एक टिप्पणी भेजें (0)