इसके कुछ प्रमुख वजह हैं.
जब से मनोरन की दुनियाँ में Netflix, amazon, Hotstar, voot और sony liv जैसी बड़ी- बड़ी OTTS platforms ने अपना जाल बुना है तब से भारतीय फिल्म बाज़ार की सिनेमा बिन पानी की मछली की भांति तड़पने लगी है, खासकर के हिंदी फ़िल्मी उद्योग.
हिंदी सिनेमा के पास अब प्रयोग करने के लिए ज्यादा सामग्री नहीं बची है. सब होम -हवन में ख़त्म हो चुकी है, इसलिए अब वो लोगों की biopic बनाते हैं. वेलोग कुछ बड़ा और नया करने से डरते हैं..उनकी पुरानी सोच और ये आत्मविशस कि वो दर्शकों जो दिखायेंगे वही चलेगा, इस सोच ने उन्हें south film industries से भी नीचे लाकर खड़ा कर दिया है.
एक समय दक्षिण फिल्मों (south indian movies) का मजाक उड़ाया जाता था लेकिन आज हिंदी फिल्म उद्योग (Hindi film industry) के पतन का मजाक बनाया जा रहा. हिंदी फिल्म उद्योग के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण है इनकी पुरानी सोच है जबकि यहाँ के लोग खुद को बहुत काबिल और पढ़े लिखे मानते हैं. एक बड़े कलाकार ने ये भी कहा कि “आप साल भर हिंदी बोलकर, पढ़कर और खुद को उस हिंदी वाले पात्र में ढालकर फिल्म की तैयारी करते हैं लेकिन जब आप सेट्स पर आते हैं तो आपसे सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में बात की जाती है..
ये निर्माता निर्देशक ना तो पूरी तरह से हिंदी भाषी होते है आ ही विदेशी, जिन्हें बहुत अच्छी अंग्रेजी आती हो. वास्तव में ये बीच वाले होते हैं इसलिए आज इनकी ये दशा है. डरना और कायरता इनके नशों में भरी है. इन्हें फिल्मों में कम पैसे लगाकर मोटी कमाई वाली मलाई खाने की आदत पीढ़ियों से लगी है. इसलिए ये कुछ नया करने की नहीं सोच पाते .
कुछ फिल्म मेकर को छोड़ दें तो बाकी सभी एक जैस हैं. जब आपके पास कोई विकल्प नहीं होता तो आप कुछ भी देख लेते हैं और आपको मज़ा आता है. जब भारत में पहली बार टेलीविजन आई थी तो लोग समाचार और कृषि दर्शन वाले कार्यक्रम भी देखते थे. फिर बाद में जब दूरदर्शन में ही और भी नए नए tv shows आने लगे तो दर्शक स्लेक्टिवे हो गए. क्यूंकि अब उन्हें वही कार्यक्रम देखने थे जो उन्हें पसंद आते.
फिर बाद में Zee tv का दौर आया. Zee tv के आने के बाद दूरदर्शन के अधिक नहीं लेकिन कुछ दर्शक ज़रूर कम हो गए. उसके बाद फिर नए- नए tv चैनल्स की भरमार लग गयी तो लोगों को चुनने का मौका मिल गया. आज वक़्त बदल गया और सैकड़ों OTTS आ गए जिनमे नए और बेहतरीन कंटेंट दिखाए जा रहे हैं...आज लोगों को बड़े बड़े नायक और नायिकाओं से कोई मतलब नहीं, उहे सिर्फ कंटेंट और कहानी से मतलब है जिसकी कमी अब हिंदी फिल्म जगत में साफ़ दिखाई दे रही है.
हिंदी फिल्म
दुनियाँ (Hindi Film Industry) ने बदलाव के दौर को खुद अपनी आखों से देखा मगर उसे कभी स्वीकार नहीं किया
इसलिए आज इनका पतन होता जा रहा है.
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