एलिफेंटा कन्दरा या गुफा भारत के पश्चिम में बसे महानगर मुंबई (Mumbai) के समुद्र तट से लगभग 4 मील की दुरी पर बसा एक सुन्दर सा स्थान है जिसे धारापुरी द्वीप अथवा मराठी में घारापुरीची लेणी के नाम से भी जाना जाता है. यदि आप मुंबई घुमने आते हैं और इस स्थान को नहीं देखते हैं तो आपकी यात्रा समझिये अधूरी है. यह क्षेत्र मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित है. वैसे महाराष्ट्र के मुंबई नगर में और भी कई प्रसिद्द गुफाएं (caves) हैं और आप उन्हें भी देख सकते हैं. मगर एलिफेंटा जिसे गुफा की नगरी यानि कि city of caves Elephanta भी कहा जाता है, कुछ ख़ास गई.
यहाँ स्टीमर घाट से लगभग एक मील पर पहाड़ को काटकर गुफा में प्रतिमा, स्तम्भ मंदिर आदि बनाए गए हैं जो अद्भूत हैं. यहाँ की प्रतिमाएँ शिव को मानने वाले शैव संप्रदाय से जुडी है. इसे यदि भारतीय कला का एक उत्तम नमूना कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्यूंकि भीतर की कला आपका मन मोह लेने में सक्षम है. माना जाता है कि ये पुरातात्विक अवशेष दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस पास की है. यहाँ कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं जो बताते हैं कि किसी समय यहाँ मानव बसे हुए थे और ये अद्भूत कलाकारी उन्ही मानवों की दीन है. ये पाषण शिल्प कला लगभग 6 हज़ार वर्ग फीट की क्षेत्र तक फैला है.
कई स्थानों पर पुर्तगालियों के भी अवशेष मिले हैं जिनसे पता चलता है कि यहाँ पुर्तगालियों का भी बसेरा रहा होगा. पुरातात्विक अनुसंधान की माने तो यहाँ कुछ 5वीं और 6वीं शताब्दी के आस पास गुफा का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ था. सबसे महत्वपूर्ण गुफा 1 है जो मुख्य द्वार से 39 मीटर की दुरी पर स्थित है. देखा जाए तो इस एलिफेंटा गुफा (Elephanta caves) का आकार -प्रकार एलोरा के डूमरलीना गुफा से काफी मेल खाती है.
यहाँ 6 स्तंभों की अलग अलग पंक्तियाँ हैं. किन्तु देखा जाए तो हर स्थान का अपना एक ख़ास महत्व होता है, अत: इस स्थान का भी है. यहाँ बसने वाले लोग अद्भूत कलाकार भी थे इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन वे शैव धर्म को मानने वाले थे ये बहुत अहम् बात है क्यूंकि आप देखेंगे कि इस पूरे गुफा का आधार ही सर्व शक्तिमान भगवान शिव को ध्यान में रखकर बनाई गयी है. शिव पार्वती के विवाह का यहाँ अद्भूत और मनोरम चित्रण किया गया है.
आप देखेंगे कि यहाँ शिव की कुछ मूर्तियाँ है जो अद्भूत है. पहली शिव की मूर्ती पञ्चमुखी परमेश्वर के रुप में है जिसमे शान्ति का वास है. एक कमरे में 14 फुट ऊंची अर्ध नारीश्वर शिव-पार्वती की मूर्ती भी है. इसके दाहिने ब्रह्मा जी तथा बाएं गरुड़ पर विराजमान विष्णु जी हैं. भारतीय कला के प्रतीकात्मक रूप की शायद सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति शिव-महेश्वर की विख्यात आध्यात्मिक त्रिमूर्ति में हुई है. इस प्रतिमा के बीच का मुख स्वयं प्रभावित, निरपेक्ष और पारलौकिक तत्पुरुष सदाशिव का है. दायाँ मुख अग्रभृकुटी ताने हुए तथा वैराग्य एवं विनाश की भावना से उद्धत अघोर भैरव का है. बायाँ मुख शिव की संगिनी, परम सौंदर्यमयी आभषण युक्त उमा का है.
कैसे पड़ा पार्वती का नाम उमा जानिये.
एलिफेंटा गुफा एक महाशक्ति को दर्शाता है.
भारतीय संस्कृति में उमा अथवा शक्ति , जिनके हाथ में सदैव कमल रहता है, अर्थ और काम अर्थात, संपत्ति , सौंदर्य और जीवन -सौख्य की देवी है. अपनी अंगुलियों में सांप लपेटे अघोर भैरवधर्म और मोक्ष के प्रतीक है. आत्मलीन पुरुष के लिए सृजन और संहार, क्रिया और शान्ति का सतत गतिशील चक्र केवल क्षणिक माया है, जो जन्मति, बढती और अन्य सभी माया की आकृतियों की भांति तत्पुरुष में ही विलीन हो जाती है . इस आध्यत्मिक त्रिमूर्ति के कुछ दुसरे रूपों में प्रशांत योगी की भांति सदाशिव मध्य में ही हैं, किन्तु दाईं ओर खप्पड से रक्तपान करते हुए महाकाल तथा बायीं ओर एक दर्पण में प्रतिबिम्ब ब्रह्मांड के रूप में अपने सौंदर्य का अवलोकन करती हुई महामाया है.
क्या कारण है कि अधिकतर स्थानों में हमे शिव पार्वती के चित्र अथवा मूर्ती ही दिखाई पड़ते हैं.
भारत की सनातन संस्कृति अति प्राचीनतम है. कहते हैं पुराणों से पहले वेद थे और और हर वेद में हन्दू-देवी देवताओं का जिक्र है. प्रकृति की हर चीज़ के लिए एक देवी- देवता नामित हैं जैसे कि वर्षा के लिए इंद्र, जल के लिए वरुण, हवा के लिए वायुदेव, आग के लिए अग्निदेव, धरती के लिए माता भूदेवी , प्रक्रति देवी, सूर्य देव, चन्द्र देव इत्यादि. और इन सभी देवताओं के आदि देव हैं महादेव अर्थात शिव और शिव की शक्ति हैं उमा अर्थात पार्वती. किन्तु शिव भी स्वयं दो देवों को साथ लेकर चलते हैं एक ब्रह्मा और दुसरे नारायण और इस प्रकार ये तीनो मिलकर त्रिदेव कहलाते हैं.
एक का कार्य जन्म देने का, एक का पालन- पोषण का और तीसरे का कार्य संहार करने का है. अत: ये सभी देवी -देवता जनमानस के मन में शुरू से बसे हुए हैं. जिन राजाओं के पास अपार धन था. पर्याप्त समय था उन्होंने अपने धन का व्यय ऐसी ही कला कृतियों को बनवाने में किया और एक तरह से ये बहुत अच्छा हुआ. आज उनकी इन्ही निशानियों के द्वारा हम उस वक़्त के इतिहास को अच्छी तरह से समझ सकते हैं.
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