॥ श्रीहरिः ॥ विषय-सूची
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- २२- पितृकल्प शुचिवाक पक्षीका स्वतन्त्र आदि तीन पक्षियोंको शाप देना, सुमना पक्षीका अनुग्रहपूर्वक उन्हें शापसे मुक्त करना
पृथक् वर्णन. मन्वन्तर, मनु, देवता और ऋषियोंका पृथक्- ८- चारों युगों मन्वन्तरों और ब्रह्माजीके दिन एवं पितरोंके प्रभावको देखनेके लिये मार्कण्डेयजीको दिव्य दृष्टिकी प्राप्तिः
श्रीहरिवंश पुराण की सम्पूर्ण कथा सूची. ( Harivansh Puran Hindi Stories) Hindi katha Harivansh Puran ki. all stories from Harivansh puran hindi stories
१- मङ्गलाचरण, शौनक-उग्रश्रवा-संवाद, वृष्णिवंशियोंका
विस्तृत चरित्र सुननेके लिये जनमेजयको प्रार्थना १९- पितृकल्प- भरद्वाजके पुत्रोंकी कथा, योगभ्रष्ट पुरुषोंकी गति, योगसिद्धिके अधिकारी पुरुषंकि लक्षण तथा मार्कण्डेय-सनत्कुमार-संवादकी समाप्ति
और आदिसृष्टिका वर्णन. २- स्वायम्भुव मनुके वंश और दक्ष प्रजापतिकी
१७
उत्पत्तिका वर्णन ३- दक्ष प्रजापतिद्वारा सृष्टि-विस्तार, नारदजीका दक्षके पुत्रोंको विरक्त कर देना, दक्षकी साठ कन्याओं और उनकी संततिका वर्णन.
२३
२० पितृकल्प - ब्रह्मदत्त और उग्रायुधके वंश तथा पूजनीया चिड़ियाद्वारा शुक्रनीतिका वर्णन ....... २८ २१- पितृकल्प- मार्कण्डेयजीद्वारा श्राद्धकी महिमाका वर्णन, श्राद्धके फलसे कौशिक-पुत्रोंको उत्तम जन्मकी प्राप्ति
४- पृथुका उपाख्यान– राज्यवितरण और दिक्- पालोंकी प्रतिष्ठा
३८
१०९
५ पृथुका उपाख्यान-वेनका अत्याचार करके नष्ट होना और पृथुका जन्म तथा चरित्र,
४१
६- पृथुका उपाख्यान पृथ्वीका पृथुकी पुत्री बनकर अनेक प्रकारके दूध देना तथा अनेक पात्रों एवं
११३
२३- हंसोंका काम्पिल्यनगरमें ब्रह्मदत्त आदिके रूपमें उत्पन्न होना और चार हंसोंका अपने पितासे आज्ञा लेकर मुक्त हो जाना.
दुहनेवालोंका वर्णन .
४६
५० २४ - विभ्राजका ब्रह्मदत्तका पुत्र बनकर उत्पन्न होना, रानी संगतिका ब्रह्मदत्तसे रूठना, एक ब्राह्मणके कहे हुए श्लोकोंसे ब्रह्मदत्त, पाञ्चाल्य और कण्डरीकको अपने पूर्वजन्मका ज्ञान होना तथा ६० ब्रह्मदत्त आदिका तप करके मुक्त हो जाना..... ११७ २५- चन्द्रमाकी उत्पत्ति और राजसूय यज्ञ, देवासुर-
५६
९- वैवस्वत मनु, यम, यमी (यमुना), अश्विनीकुमारों वर्षका मान
एवं शनैश्चरकी उत्पत्ति १०- वैवस्वत मनुके वंशजोंका वर्णन और पुरूरवाकी
उत्पत्ति..
६५ संग्राम तथा बुधकी उत्पत्ति, ६८ ७३
१२१
११- धुन्धुमारकी कथा.
२६- महाराज पुरुरवाके चरित्र और वंशका वर्णन, राजा पुरूरवाका त्रेताग्रिकी रचना करना और गन्धर्वोके लोकमें जाना
१२ धुन्धुमारके वंशका वर्णन और गालवकी उत्पत्ति.. १३- त्रिशङ्कुके चरित्रका वर्णन तथा उनके वंशमें
१२५
हरिचन्द्र आदिका उत्पन्न होना १४- सगरकी उत्पत्ति और चरित्र तथा सगर पुत्रोंके उद्योगसे समुद्रका 'सागर' होना. १५ वर्णन. -
७५ २७- पुरूरवाके द्वितीय पुत्र अमावसुके वंशका वर्णन, विश्वामित्र और परशुरामकी उत्पत्ति.. ......... १२८
२८- राजा रजि और उनके पुत्रोंका चरित्र, इन्द्रका अपने स्थानसे भ्रष्ट होकर पुनः उसपर प्रतिष्ठित होना
१६- श्राद्धकल्प- जनमेजयद्वारा पिताका श्राद्ध तथा पितृस्वरूपनिवन्धी प्रश्न, शन्तनुका अपने श्राद्धमें स्वयं हाथ बढ़ाकर भीष्मसे पिण्ड माँगना १७- पितृकल्प - भीष्म- मार्कण्डेय- संवाद और मार्कण्डेयजीके साथ सनत्कुमारजीको बातचीत .......८७
१३२
२९- अनेनाके वंशका वर्णन, धन्वन्तरिका काशिराज ८३ धन्यके यहाँ में अवतार दिवोदासके राज्यकालमें भगवान् शिवकी आज्ञासे गणेश्वर निकुम्भके द्वारा वाराणसीको जनशून्य बनाने का प्रयत्न, वहाँ शिव और पार्वतीका निवास, दिवोदासका वाराणसीपर अधिकार और अलर्ककी प्रशंसा.
१८- पितृकल्प- मार्कण्डेय-सनत्कुमार-संवादमें पितरोंके गण, लोक, शक्ति और कन्याओंका वर्णन तथा
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परिचय....... ३४ वृष्णिवंशका वर्णन-अक्रूर, वसुदेव, कुन्ती, सात्यकि, उद्धव, चारुदेष्ण, एकलव्य आदिका
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३०- नहुष एवं ययातिके वंशका वर्णन तथा ययातिका चरित्र
संग्राम और कालनेमिका रणमें आगमन २२३
४७- कालनेमिका युद्ध और प्रभाव..... ४८- कालनेमि और भगवान् विष्णुका संवाद, बोविष्णुद्वारा कालनेमिका वध तथा देवताओंको आश्वासन देकर ब्रह्मलोकको प्रस्थान.
३१- पूरुकी वंशपरम्पराका वर्णन, ३२- पूरुके वंशके अन्तर्गत युकी वंशपरम्परा- अजमीढवंश, पाञ्चाल एवं सोमकवंश, कौरववंश
२२८
२३४
तथा तुर्वसु, द्रुह्य और अनुकी संततिका वर्णन १५१ ३३- यदुवंशका वर्णन, कार्तवीर्यको उत्पत्ति एवं चरित्र तथा पाँचों ययाति पुत्रोंकि वंश-वर्णनके श्रवणकी महिमा.
४९ ब्रह्मलोकमें भगवान् विष्णुका सत्कार २४१ ५०- नारायणाश्रममें भगवान् विष्णुका शयन और उत्थान तथा पास आये हुए ब्रह्मा आदि देवताओंसे उनके
१५८
आगमनका प्रयोजन पूछना २४४ ५१- ब्रह्माजीका भगवान् विष्णुसे जगत्की वर्तमान अवस्थाका वर्णन करते हुए पृथ्वीका भार उतारने के १६३ लिये मन्त्रणा करनेका अनुरोध
२४९ ५२- भगवान् विष्णु तथा सब देवताओंका मेरुपर्वतको दिव्य सभाएँ उपस्थित होना और वहाँ पृथ्वीका १६६ भगवान से भार उतारनेके लिये प्रार्थना करना... २५२ ५३- ब्रह्माजीकी आज्ञासे देवताओंका अंशावतरण......२५७
३५ श्रीकृष्णका अवतार लेना, श्रीकृष्णके अन्य भाई- बहिनों और कुटुम्बियोंका वर्णन तथा काल- यवनकी उत्पत्ति
३६- क्रोष्टाके वंशका वर्णन, पुरोहितके गोत्र से क्षत्रियोंके गोत्रका बदल जाना ३७ बघुवंशका वर्णन
१६८ ५४ भगवान् विष्णुके प्रति देवर्षि नारदका वचन- भूलोकको वर्तमान अवस्थाका परिचय देकर भगवानको अवतार ग्रहण करनेके लिये प्रेरित करना......२६४ ५५- भगवान् विष्णुके द्वारा नारदजीके कथनका उत्तर तथा ब्रह्माजीका भगवानसे उनके अवतार लेनेयोग्य स्थान और पिता-माता आदिका परिचय देना.....२७१
१७१
३८ भजमानके वंशका वर्णन और स्यमन्तक- मणिकी कथा.
१७३
३९- स्यमन्तकमणिके कारण प्रसेन, सत्राजित् और शतधन्वाका मारा जाना, बलदेवजीका दुर्योधनको गदा विद्या सिखाना, अक्रूरजीका श्रीकृष्णको मणि देना और श्रीकृष्णका पुनः अक्रूरको मणि लौटा देना.
(विष्णुपर्व) १- मङ्गलाचरण, नारदजीका मथुरामें आकर कंसको आनेवाले भयकी सूचना देना और कंसका अपने सेवकोंके सामने बढ़-चढ़कर बातें बनाना...... २७६
१७८
४० - जनमेजयका भगवान्के वराह, नृसिंह, परशुराम, श्रीकृष्ण आदि अवतारोंका रहस्य पूछना .....१८१
२- कंसद्वारा देवकीके गर्भके विनाशका प्रयत्न, भगवान् विष्णुका पाताललोकमें स्थित 'गर्भ' नामक दैत्योंके जोवोंका आकर्षण करके उन्हें निद्रा १८९ देवीके हाथमें देना और देवकीके गर्भमें क्रमश: स्थापित करनेका आदेश देकर अन्य कर्तव्य बताना तथा कार्यसाधनके अनन्तर बढ़नेवाली उस देवोको महिमाका उल्लेख.
४१- भगवान् विष्णुके वराह, नृसिंह, वामन, दत्तात्रेय,
परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, व्यास तथा कल्कि- अवतारोंकी संक्षिप्त कथा
४२- भगवान् विष्णुके ईश्वरत्वका वर्णन एवं आश्चर्य २०४ तारकामय संग्रामकी कथा.
२७९ २८४
४३- देवताओंके साथ युद्धके लिये उद्यत हुई दैत्यसेनाका वर्णन
२०७
३- आर्याकी स्तुति
४- कंसद्वारा देवकीके नवजात शिशुओंको हत्या, योगमायाद्वारा सातवें गर्भका संकर्षण, श्रीकृष्णका प्राकट्य और नन्दभवनमें प्रवेश, कंसद्वारा नन्दकन्याको मारनेका प्रयत्न और उसका दिव्य रूपमें दर्शन देना, कंसद्वारा क्षमा-प्रार्थना और देवकीद्वारा उसे क्षमा-दान. २८
४४- आश्चर्यतारकामय संग्राममें देव सेनाकी युद्धके लिये तैयारी..
२११
४५ - देवासुर संग्राम एवं और्व अग्रिकी उत्पत्ति... २१६
४६ - इन्द्रद्वारा चन्द्रमाकी स्तुति, चन्द्रदेव और वरुणदेवके द्वारा दैत्यसेनाका संहार, मयदानवद्वारा मायाका प्रयोग, पवन और अग्रिदेवका दैत्यसेनाके साथ
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५- वसुदेवजीका पदको व्रजमें लौटने की सम्मति देना और नन्दजीका गोव्रजकी शोभा निहारते हुए
वहाँ पधारना
२९३
६- शंकर-भञ्जन और पूतना वध ७ श्रीकृष्ण और बलरामका व्रजमें घुटनों के बल चलना तथा श्रीकृष्णका उलूखलमें बँधकर यमलार्जुन-
२९९
भङ्गकी लीला करना ८ श्रीकृष्ण-बलरामकी बालचर्या, श्रीकृष्णके द्वारा व्रजको अन्यत्र से जानेकी चेष्टा और अपने शरीरसे भेड़ियोंको उत्पन्न करके उनका समूचे व्रजको डराना
३०३
९- भेड़ियों के उत्पातसे व्रजवासियोंका उस स्थानको २५- अक्रूरका व्रजमें आकर भगवान् श्रीकृष्णको देखना छोड़कर श्रीवृन्दावनमें जाना..........
३०६
१० वर्षा ऋतुका वर्णन. ११ श्रीकृष्णकी अङ्गछटा, भाण्डीर वट, यमुना और कालियदहका वर्णन तथा श्रीकृष्णद्वारा कालियनागके निग्रहका विचार.........
१२ श्रीकृष्णद्वारा कालियनागका दमन, उसका समुद्रको प्रस्थान तथा गोपोंको श्रीकृष्णकी .......
महत्ताका अनुभव........ १३- बलरामद्वारा धेनुकासुरका वध और भयरहित तालवनमें गौओं तथा गोपोंका विचरण ........ ३२५
३१९
१४- बलरामद्वारा प्रलम्बासुरका वध, १५ इन्द्रोत्सवके विषयमें श्रीकृष्णकी जिज्ञासा तथा एक वृद्ध गोपके द्वारा उसकी आवश्यकताका प्रतिपादन....
१६- श्रीकृष्णके द्वारा गिरियज्ञ एवं गोपूजनका प्रस्ताव करते हुए शरद ऋतुका वर्णन. १७- गोपोंद्वारा श्रीकृष्णकी बातको स्वीकार करके गिरियज्ञका अनुष्ठान तथा भगवान्का दिव्य रूप धारण करके उनकी पूजा ग्रहण करनेके पश्चात् उन्हें वर देना
१८- इन्द्रका संवर्तक मेघोंद्वारा वर्षा कराकर गौओं और गोपोंको कष्टमें डालना, श्रीकृष्णद्वारा गोवर्धन- धारण तथा उसके नीचे गौओं और गोपोंसहित व्रजवासियोंका जाना
१९- देवराज इन्द्रका आगमन, श्रीकृष्णका गोविन्दपदपर अभिषेक तथा इन्द्रका श्रीकृष्णको भावी कार्य बताकर अर्जुनकी देखभालके लिये कहना और श्रीकृष्णका उसे स्वीकार करना.
३४१
३४६
२० श्रीकृष्णका अलौकिक चरित्र देखकर आशङ्कित हुए गोपोंका उनसे प्रश्न और श्रीकृष्णद्वारा उत्तर तथा उनकी रासलीलाका संक्षेपसे वर्णन ३५५ २१- अरिष्टासुरका वध...... ३५८
२२- कंसकी आशङ्का उसका रात्रिके समय यदुवंशियोंको बुलाकर भरी सभा में श्रीकृष्ण और विष्णुके प्रभावको बताना, वसुदेवपर कठोर आक्षेप करना तथा अक्रूरको श्रीकृष्ण आदिको बुला लानेके लिये व्रजमें जानेकी आज्ञा देना
३६१
२३- अन्धकका कंसको मुंहतोड़ उत्तर .... ३७० २४- केशीके अत्याचार और श्रीकृष्णद्वारा उसका वध ... ३७४
३०९
और उनके विषयमें अनेक प्रकारकी बातें सोचना... ३८० २६ अक्रूरका गोपोंके लिये कंसका आदेश सुनाना और वसुदेव-देवकीकी दयनीय दशा बताकर श्रीकृष्ण-बलरामको मथुरा चलनेके लिये प्रेरित करना, मार्ग में अक्रूरको यमुनाजीके जलमें आश्चर्यमय नागलोक एवं भगवान् अनन्त तथा उनकी गोदमें श्रीकृष्णका दर्शन ........ ३८४
३१३
२७- श्रीकृष्ण और बलरामका मथुरामें प्रवेश, उनके द्वारा रजकका वध, मालीको वरदान, कुब्जापर ३८९
३२३ कृपा और कंसके धनुषका भजन
२८- कंसकी चिन्ता, उसका रंगशालाको देखना और उसे सुसज्जित करनेका आदेश देना, चाणूर एवं मुष्टिकको तथा कुवलयापीडके महावतको श्रीकृष्ण- बलरामके वधके लिये आज्ञा देना, महावतसे दुमिलके द्वारा अपनी उत्पत्तिकी कथा कहना ३३३ उसकी माताका सुयामुन पर्वतपर दुमिलके साथ समागम तथा उन दोनोंका परस्पर वरदान एवं शाप... ३९५
३३१
२९- नागरिकोंसे भरी रङ्गशालामें मचों तथा प्रेक्षागृहों की शोभा, कंस तथा मल्लोंका आगमन, श्रीकृष्ण और ३३७ बलरामका रङ्गद्वारपर पदार्पण, कुवलयापीड, महावत तथा हाथीके पादरक्षकोंका वध और दोनों बन्धुओंका रङ्गस्थलमें प्रवेश
४०५
३०- रङ्गशालामें मल्लयुद्धके विषयमें श्रीकृष्णके विचार, श्रीकृष्ण और बलदेवके द्वारा चाणूर और मुष्टिक आदिका वध, कंसका संहार तथा पिता-माताके चरणोंमें प्रणाम करके दोनों भाइयोंका उनके घरमें जाना ४०९
३१- कंसकी स्त्रियों और माताका विलाप.
४१७
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३२ श्रीकृष्णका कंसवधके लिये पश्चात्तापपूर्वक उसके औचित्यका समर्थन, उग्रसेनका श्रीकृष्णको सर्वस्व- समर्पणके पश्चात् कंसका अन्त्येष्टि-संस्कार करनेके लिये अनुरोध, श्रीकृष्णका उन्हें समझा बुझाकर राज्यपर अभिषिक्त करना और समस्त यादवोंके साथ जाकर कंस आदिका अन्त्येष्टि- संस्कार कराना ४२२
३३- बलराम और श्रीकृष्णका गुरु सान्दीपनिके यहाँ जाकर विद्या पढ़ना और गुरुदक्षिणाएँ उनके मरे हुए पुत्रको उन्हें देकर मथुरापुरीको लौट आना ३४- जरासंधका अपनी विशाल सेनाके द्वारा आकर ४२८
मथुरापुरीपर घेरा डालना ३५- जरासंधकी सेनाका वर्णन, उसकी चारों दिशाओंसे मथुरापुरीपर आक्रमणकी योजना, यादवोंके साथ जरासंधकी सेनाका युद्ध, श्रीकृष्ण और बलरामके पराक्रमसे उसको सेनाका पलायन, जरासंधद्वारा अपने सैनिकोंको प्रोत्साहन तथा उभय पक्षके वीरोंमें घमासान युद्ध.. ४३१
सभामें जरासंध और सुनीथका भाषण, ५०३ बलराम और जरासंधका गदायुद्ध तथा जरासंधका ४९ दन्तवक्त्र और शाल्वका भाषण सुनकर भीष्मकका श्रीकृष्णके प्रभावका वर्णन करते हुए उन्हें प्रसन्न करनेका ही निश्चय करना.
३६- वृष्णिवंशियों तथा जरासंधके सैनिकोंका युद्ध,
पराजित होकर पलायन करना.
३७- जरासंधके पुनः आक्रमणसे शङ्कित यादवोंकी
४४२
सभामें विकद्रुका भाषण - राजा हर्यश्वका चरित्र तथा उनसे यदु एवं यादवोंकी उत्पत्तिका वर्णन ...... ४४५ ३८- विकद्वद्वारा यदुकी संततिका वर्णन तथा मथुरापुरीको
जरासंधका आक्रमण सहनेके अयोग्य बताना...... ३९- बलराम और श्रीकृष्णका पुरी और पुरवासियोंकी रक्षा के लिये मथुरासे दक्षिण भारतकी ओर प्रस्थान, परशुरामजीसे उनकी भेंट तथा उन दोनोंको गोमन्त- पर्वतपर चलनेके लिये उनकी सलाह. ४५०
४५६
४०- श्रीकृष्ण, बलराम और परशुरामजीका गोमन्तपर्वतपर आरोहण गोमन्तकी शोभाका वर्णन तथा परशुरामजीका श्रीकृष्णको युद्धके लिये प्रोत्साहन देकर वहाँसे प्रस्थान.
४६३
४१- बलरामके पास वारुणी, कान्ति एवं श्री (शोभा) - इन दवाओंका आगमन, गरूड़के द्वारा श्रीकृष्णको वैष्णव मुकुटकी प्राप्ति, श्रीकृष्णका बलरामसे वार्तालाप तथा जरासंधकी सेनाका निरीक्षण करके अपने आपसे ही मानसिक उद्वार प्रकट करना... ४६७ ५६ श्रीकृष्णकी आज्ञासे यादवोंका द्वारकापुरीको प्रस्थान ५४८ -
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४२- जरासंधकी सेनाका वर्णन, उसका सेनाको पर्वतपर आक्रमण करनेकी आज्ञा देना, दमघोषकी सम्मतिसे गोमन्तपर्वतमें आग लगाया जाना, पर्वतका जलना तथा बलराम और श्रीकृष्णका पर्वतसे कूदकर राजाओंकी सेनामें आ पहुँचना,
४३- श्रीकृष्ण और बलरामका जरासंध और उसकी
सेनाओंके साथ युद्ध, राजा दरदकी मृत्यु जरासंधका पराजित होकर पलायन तथा चेदिराज दमघोषके साथ श्रीकृष्ण और बलरामका करवीरपुरमें जाना ४८०
४४- श्रीकृष्णद्वारा शृगालका वध तथा उसके पुत्रका करवीरपुरके राज्यपर अभिषेक- ४५ बलराम और श्रीकृष्णका मथुरामें प्रत्यागमन
और स्वागत ४६ बलरामजीकी व्रजयात्रा तथा उनके द्वारा यमुनाजीका आकर्षण ४९२
४९४
४७- श्रीकृष्णका यादवोंके साथ रुक्मिणी स्वयंवरके अवसरपर कुण्डिनपुरमें जाना तथा राजा कैशिकद्वारा उनका सत्कार. ४३३ ४८- श्रीकृष्णके आगमन से चिन्तित हुए राजाओंकी
५०७
५० क्रथ और कैशिकद्वारा भगवान् श्रीकृष्णको अपने राज्यका समर्पण, देवराज इन्द्रके आदेशसे सब नरेशोंद्वारा भगवान्का राजेन्द्र के पदपर अभिषेक तथा भगवान्का सबको आश्वासन देना ५१३
५१ श्रीकृष्ण और भीष्मकका संवाद, भीष्मकद्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति तथा श्रीकृष्णका मथुरागमन... ५२१ ५२ शाल्वके कथनानुसार जरासंध आदि नरेशोंका
शाल्वको ही कालयवनके पास दूत बनाकर भेजना .. ५२७ ५३- कालयवनकी विशेषता, राजा शाल्वका उसके यहाँ दूत बनकर आना और उसे जरासंधका संदेश सुनाना
५४ - कालयवनका राजाओंका अनुरोध स्वीकार करके श्रीकृष्णपर विजय पानेके लिये मथुराको प्रस्थान... ५३०
५३१
५५- गरुड़का श्रीकृष्णके निवासयोग्य भूमि देखनेके लिये जाना, मथुरामें राजेन्द्र श्रीकृष्णका स्वागत, श्रीकृष्णद्वारा राजा उग्रसेन तथा मथुरावासियोंका सत्कार एवं गरुड़का लौटकर कुशस्थलीके विषयमें बताना ... ५३८
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५७ कालयवनका वध ५८ द्वारकापुरीका विश्वकर्माद्वारा निर्माण, निधिपति शङ्ख और सुधर्मासभाका आनयन, श्रीकृष्णद्वारा मुव्यवस्थापूर्वक वहाँ यादवोंको बसाना तथा बलरामजीका रेवतीके साथ विवाह. .......... 44€
५५१
५९- भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा रुक्मिणीका हरण तथा यादववीरोंका जरासंध एवं शिशुपाल आदिके साथ घोर युद्ध...
६०- श्रीकृष्णद्वारा रुक्मीकी पराजय तथा रुक्मिणी आदिके साथ श्रीकृष्णका विवाह एवं उनसे उत्पन्न हुई संतानोंका संक्षिप्त परिचय
६१- रुक्मीकी पुत्री शुभाङ्गीद्वारा स्वयंवरमें प्रद्युम्नका वरण, प्रद्युम्रपुत्र अनिरुद्धका रुक्मीकी पौत्रीरुक्मवतीके साथ विवाह तथा बलरामद्वारा रुक्मीका वध. ५७३ (६२- बलदेवजीका माहात्म्य, उनके द्वारा हस्तिनापुरको
गङ्गामें गिरानेका अद्भुत प्रयत्न. ६३- नरकासुरका परिचय, द्वारकामें इन्द्रका आगमन और श्रीकृष्णसे नरकवधके लिये अनुरोध, सत्यभामासहित श्रीकृष्णका प्राग्ज्योतिषपुरमें गमन तथा उनके द्वारा मुरु, निसुन्द, हयग्रीव, विरूपाक्ष, पञ्चनाद, अन्यान्य असुर तथा नरकासुरका वध.. ५७९
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(६४- श्रीकृष्णका नरकासुरके भवनमें प्रवेश करके वहाँके धन-वैभव तथा सोलह हजार कुमारियोंको द्वारका भेजना और स्वयं देवलोकमें जा अदितिको कुण्डल दे वहाँसे पारिजात लेकर लौटना. ५१०
६५- रैवतक पर्वतपर रुक्मिणी के व्रतोद्यापनका उत्सव, उसमें पारिजात-पुष्प देकर श्रीकृष्णद्वारा रुक्मिणीका सम्मान, नारदजीद्वारा रुक्मिणीके सर्वाधिक सौभाग्यकी प्रशंसा तथा सत्यभामाका कोपभवनमें प्रवेश... ५९५
१६६ - श्रीकृष्णका सत्यभामाको मनाना और सत्यभामाका मानसिक खेद प्रकट करके उनसे तपस्याके लिये अनुमति माँगना
६७- - श्रीकृष्णके पूछनेपर सत्यभामाका उन्हें अपने रोष एवं खेदका कारण बताना, श्रीकृष्णका उनके लिये पारिजात वृक्ष लानेका विश्वास दिलाकर उन्हें संतुष्ट करना, सत्यभामा और श्रीकृष्णद्वारा नारदजी का सत्कार तथा नारदजीके द्वारा पारिजातकी उत्पत्ति और महिमाका वर्णन.
६८- श्रीकृष्णका पारिजात वृक्ष माँगनेके लिये नारदजीके द्वारा इन्द्रके पास संदेश भेजना और न देनेपर
६२०
उन्हें गदा मारने की धमकी देना ६१० ६९ स्वर्गमें महादेवजीकी परिचयके लिये नृत्य-गीत आदि उत्सव, नारदजीका इन्द्रको श्रीकृष्णका पारिजात के लिये प्रार्थनाविषयक संदेश सुनाना और इन्द्रका अनेक कारण बताकर पारिजातको न देनेका विचार प्रकट करना,
७०- श्रीकृष्णके द्वारा गदाप्रहारकी धमकी सुनकर कुपित हुए इन्द्रका नारदजीसे उनके बर्तावकी कटु आलोचना करना और युद्ध किये बिना पारिजात- वृक्षको न देनेका ही निश्चय करना..........
५६३.
५६९
७१ नारदजीके द्वारा श्रीकृष्णकी महत्ताका प्रतिपादन सुनकर भी इन्द्रका उन्हें पारिजात देनेको उद्यत न होना
६२५
६३०
७२- श्रीकृष्णका नारदजीको अमरावतीपर आक्रमण करनेका निश्चय बताकर इन्द्रके पास संदेश भेजना, इन्द्र और बृहस्पतिको बातचीत, बृहस्पतिका कश्यपजीको यह समाचार बताना और कश्यपजीका युद्धकी शान्तिके लिये भगवान् शङ्करकी स्तुति करना....
७३- इन्द्र और श्रीकृष्ण, जयन्त और प्रद्युम्न, प्रवर और सात्यकि तथा ऐरावत और गरुड़का युद्ध.
६३९
७४- रात्रिमें युद्ध स्थगित करके श्रीकृष्णका पारियात्र- पर्वतको वरदान देना, गङ्गाका स्मरण करना, बिल्व और गङ्गाजलपर महादेवजीका आवाहन करके उन विल्वोदकेश्वरकी पूजा और स्तुति करना, महादेवजीका उन्हें अभीष्ट वर देकर दैत्योंको मारनेका आदेश देना तथा पारियात्र- पर्वत पर भगवान्का निवास एवं उनकी प्रतिमाके पूजनकी महिमा
६४६
७५ इन्द्र और उपेन्द्रका पुनर्युद्ध, उत्पातोंका प्राकट्य ब्रह्माजीकी आज्ञासे कश्यप और अदितिका बीचमें ६०० आकर दोनोंका युद्ध बंद कराना, फिर सबका स्वर्गमें गमन, अदितिकी आज्ञासे शचीद्वारा उपहार पाकर पारिजातसहित द्वारकागमन, पारिजातसे द्वारकावासियोंकी प्रसन्नता सत्यभामाके पुण्यक व्रतमें प्रतिग्राहके लिये श्रीकृष्णद्वारा नारदजीका स्मरण
................. ६०५ ७६ - सत्यभामाद्वारा पुण्यक व्रतमें श्रीकृष्णका नारदजीको दान, नारदजीका निष्क्रय लेकर श्रीकृष्णको छोड़ना और उनसे वर पाना, श्रीकृष्णका सगे-सम्बन्धियोंको
६५१
अध्याय
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(१०)
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अध्याय
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उसका पतन, प्रद्युप्रका भानुमतीको लेकर द्वारका पहुँचाना, फिर तीनोंका निकुम्भके साथ युद्ध, उसको अद्भुत मायाका वर्णन और श्रीकृष्णद्वारा
निकुम्भका वध (९१- वज्रनाभकी तपस्या और वरप्राप्ति, उसका त्रिभुवन- विजयके लिये उद्योग, इन्द्रकी श्रीकृष्णसे वार्ता, भद्रनामा नटको मुनियोंका वरदान, इन्द्रका हंसोंको ७२३
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पारिजात दिखाकर पुनः उसे स्वर्ग में पहुंचाना ६५६ ७७ पुण्यकविधिके वर्णनका उपक्रम ७८ उमाद्वारा सती स्त्रीके महत्त्वका वर्णन करते हुए ६५८
पुण्यक व्रतकी विधिका उपदेश .............. ७९- पुण्यक व्रतसम्बन्धी नियम एवं दानका वर्णन तथा पुत्र आदिके निमित्त किये जानेवाले दूसरे व्रत एवं दानका प्रतिपादन. ... ६६४ ६६१
८० नाना प्रकारके व्रतोंका विधान. ८१ उमाके द्वारा व्रतकथनका उपसंहार, श्रीनारदजीका देवियोंद्वारा किये गये व्रतोंका वर्णन करना तथा श्रीकृष्ण पत्नियोंद्वारा व्रतका अनुष्ठान एवं दान... ६७५ ८२- षट्पुरवासी असुरोंका संक्षिप्त परिचय, उन्हें ब्रह्मा ६७०
और भगवान् शिवका वरदान.. ८३- ब्रह्मदत्त यज्ञमें वसुदेव-देवकीका आगमन, दैत्योंद्वारा ब्रह्मदत्तकी कन्याओंका अपहरण और प्रद्युम्रद्वारा उनकी रक्षा, नारदजीके कहनेसे दैत्योंका क्षत्रिय- नरेशोंको अपने पक्षमें मिलाना तथा श्रीकृष्णका षट्पुरमें आगमन ६८१
१८४ श्रीकृष्णद्वारा यादव सेनाकी युद्धके लिये नियुक्ति, दानवोंका निष्क्रमण, निकुम्भद्वारा कुछ यादववीरोंका गुफामें बंदी होना, श्रीकृष्णके द्वारा दानव- सैनिकोंका संहार, प्रद्युम्रद्वारा राजसैनिकोंका गुफामें अवरोध तथा ब्रह्मदत्तको सान्त्वना ६८६
८५- निकुम्भका जयन्तसे पराजित होकर भगवान् श्रीकृष्णके साथ युद्ध करना, श्रीकृष्णका अर्जुनको निकुम्भका चरित्र बताना, आकाशवाणीकी प्रेरणासे सुदर्शन चक्रद्वारा निकुम्भका वध करना और ब्रह्मदत्तको
षट्पुरनगर देकर द्वारकाको प्रस्थान करना. ८६- अन्धकासुरकी उत्पत्ति और अनाचार, उसके वधके लिये ऋषियोंका विचार, नारदजीका मन्दारपुष्पों की माला धारण करके अन्धकके यहाँ जाना और उससे मन्दावनके महत्त्व बताना .... ६९७
८७- मन्दराचलपर गये हुए अन्धकासुरका महादेवजी- द्वारा वध
८८ पिण्डारकतीर्थके अन्तर्गत समुद्रमें श्रीकृष्ण तथा अन्य यादवोंका जलविहार ७०५
८९- बलराम और श्रीकृष्ण आदि यादवोंकी जलक्रीड़ा एवं गान आदिका वर्णन.
९० निकुम्भद्वारा भानुमतीका अपहरण, श्रीकृष्ण, - अर्जुन और प्रद्युम्नके साथ उसका युद्ध, गोकर्णतीर्थ में
७११
आवश्यक कर्तव्य बताकर वज्रनाभपुरमें भेजना ७२९ ९२- हंसोंका वज्रपुर निवास, हंसीका प्रभावतीको प्रद्युम्रके प्रति अनुरक्त कराना, प्रभावतीका हंसीसे प्रद्युम्रको प्राप्ति करानेका अनुरोध, हंसी और वज्रनाभका संवाद, हंसोंके मुँहसे सब समाचार ६७८ सुनकर श्रीकृष्णका नटवेषमें प्रद्युम्र आदि यादवोंको वज्रपुरमें भेजना.
९३- नटवेशधारी यादवोंका सुपुर और वज्रपुरमें सफल ७३३ अभिनय करके दानवोंको रिझाकर उनसे उपहार ७३८ पाना तथा प्रद्युम्रका प्रभावतीके घरमें प्रवेश .... ९४- प्रद्युम्र और प्रभावतीका गान्धर्व विवाह एवं समागम: फिर गद और चन्द्रवतीका तथा साम्ब
और गुणवतीका गान्धर्वविवाह ७४३ ९५- प्रद्युम्नका प्रभावतीसे वर्षाका वर्णन करते हुए उसे अपने कुलका परिचय देना........
७४८ ९६- कश्यपके मना करनेपर भी वज्रनाभका त्रिलोक- विजयके लिये प्रस्थान, श्रीकृष्ण और इन्द्रका प्रद्युम्नको संदेश देना और उनकी संततिके प्रभावका उल्लेख करना, दैत्योंका प्रद्युम्न आदिके पुत्रोंको बंदी बनाना, प्रभावती आदिका पतियोंको तलवार देकर ६९१ युद्धके लिये भेजना, इन्द्रके द्वारा उनकी सहायता तथा प्रद्युम्नका अद्भुत पराक्रम. ७५३
९७- प्रद्युम्नद्वारा वज्रनाभका वध तथा प्रद्युम्न आदिके पुत्रोंका राज्याभिषेक. ७५८
१८- इन्द्रकी आज्ञा विश्वकर्माद्वारा पुनः परिष्कृत की गयी द्वारकापुरीका वर्णन ७६२
७०२
९९ श्रीकृष्णका द्वारका तथा अन्तःपुरमें प्रवेश और मणिपर्वत एवं पारिजातको यथोचित स्थानमें स्थापित करना.. ७६८
१०० श्रीकृष्णका समस्त यादवोंसे मिलकर उन्हें सम्मानित करनेके लिये सभामें बुलाना.. १०१ श्रीकृष्णद्वारा यादवोंका सत्कार तथा नारदजीका यादवोंकी सभा में श्रीकृष्ण के प्रभावका ७७०
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वर्णन करना १०२ - नारदजीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णके अद्भुत कमका वर्णन ७७२
७७८
१०३ श्रीकृष्णकी संततिका वर्णन तथा वृष्णिवंशका उपसंहार ........
१०४ का जन्म शम्बरासुरद्वारा प्रद्युतका सूतिकागृह से
७८१
अपहरण, प्रथुम-मायावती-संवाद और प्रद्युम्नका ११९- चित्रलेखा और नारदजीका संवाद, चित्रलेखाका शम्बरासुर के सौ पुत्रोंके साथ युद्ध १०५ प्रद्युखद्वारा शम्बरासुरकी सेना और मन्त्रियोंका ७८४
.८४३
संहार १०६- शम्बरासुर और प्रद्युम्नका मायामय युद्ध, शम्बरको चिन्ता, देवराज इन्द्रकी आज्ञासे नारदजीका प्रद्युम्रको उनके पूर्वस्वरूपका स्मरण दिलाना और आवश्यक कर्तव्य सुझाना ७८९
७९५
१०७ प्रयुनके द्वारा शम्बरासुरका वध १०८-मायावतीसहित प्रद्युम्रका द्वारकामें आगमन ८००
और रुक्मिणीके भवनमें प्रवेश ....... ८०२ १०९ बलदेवजीके द्वारा प्रद्युम्रको आह्निकस्तोत्रका
उपदेश. ११० साम्बकी उत्पत्ति और अस्त्रशिक्षा तथा द्वारकामें पधारे हुए राजाओंके बीच नारदजीके द्वारा भगवान्
८०६
श्रीकृष्णकी परम धन्यताका प्रतिपादन ८१३ १११- श्रीकृष्णकी महिमा अर्जुनका श्रीकृष्णसे आज्ञा लेकर ब्राह्मण-बालककी रक्षाके लिये जाना... ८२०
११२- ब्राह्मण बालककी रक्षा न होनेपर ब्राह्मणद्वारा अर्जुनका तिरस्कार और श्रीकृष्णके साथ उनका उत्तर दिशाको गमन
११३- श्रीकृष्णद्वारा ब्राह्मणपुत्रोंका आनयन ..........
११४- भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनको अपने यथार्थ स्वरूपका परिचय देना
- ११५- भगवान् श्रीकृष्णके पराक्रमोंका संक्षेपसे वर्णन... ८२९
११६ - भगवान् शङ्करका बाणासुरको अपने और देवी पार्वतीके पुत्रके रूपमें स्वीकार करना, बाणासुरका उनसे युद्धके लिये वर माँगना और पाना तथा इससे बाणमन्त्री कुम्भाण्डका चिन्तित होना.... ८३१
११७- शिव-पार्वतीका क्रीडाविहार, पार्वतीका उषाको पतिसमागमके लिये वर देना तथा उषाकी विरह व्यथाका वर्णन
२१८ - उषाका स्वप्रमें प्रियतमके साथ समागम,
८३८
इससे उषाकी चिन्ता, सखियोंका उसे समझाना, कुम्भाण्डकुमारीके कहनेसे उपाका चित्रलेखाको बुलाकर उसे अपना कष्ट बताना, चित्र- लेखाके बनाये हुए चित्रोंसे उषाका अनिरुद्धको पहचानना और उन्हें लानेके लिये चित्रलेखाका द्वारकाको जाना..
नारदजीसे तामसी विद्या ग्रहणकर अनिरुद्धको शोणितपुर ले जाना, उषा और अनिरुद्धका गान्धर्व विवाह, अनिरुद्धका बाणासुरके सैनिकों तथा बाणासुरके साथ युद्ध, उनका नागपाशमें बँधकर बंदी होना तथा नारदजीका ८५२
द्वारका जाना १२० अनिरुद्ध के द्वारा आयदेवीकी स्तुति और देवीका प्रसन्न होकर उन्हें बन्धनके कष्टसे मुक्त करना
८६७
१२१ अनिरुद्ध के अपहरणसे रनिवासमें शोक, श्रीकृष्ण और यादवोंकी चिन्ता, गुप्तचरोंको नियुक्ति और उनकी विफलता, नारदजीका आगमन और अनिरुद्धका समाचार-निवेदन, श्रीकृष्णके द्वारा गरुड़का आवाहन और स्तवन, गरुड्द्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति और श्रीकृष्णका शोणितपुरको प्रस्थान. ८७२
१२२- श्रीकृष्ण, बलभद्र और प्रद्युम्रका शोणितपुरके लिये प्रस्थान, गरुड़का आहवनीय अग्रिको शान्त करना, श्रीकृष्णद्वारा अग्रिगणोंको पराजय, ८२२ बाणासुरके सैनिकोंके साथ श्रीकृष्ण आदिका युद्ध, त्रिशिरा ज्वरका आक्रमण और श्रीकृष्णके साथ उसका युद्ध ८८४
८२४
८२७
१२३ - श्रीकृष्णसे पराजित हुए ज्वरका उनको शरण में जाना, उनसे वर पाना और उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर रणभूमिसे हट जाना
८९२
१२४- बाणासुरकी सेनाका पलायन, भगवान् शङ्करका अपने गणोंके साथ युद्धके लिये आगमन, भगवान् श्रीकृष्ण और रुद्रका युद्ध तथा बाणासुरका युद्धभूमिमें पदार्पण
८९५ १२५ - श्रीकृष्णके जृम्भास्त्रसे भगवान् शङ्करका जंभाईके वशीभूत होना, ब्रह्माजीके द्वारा शिवजीको विष्णुके साथ उनकी एकताका स्मरण दिलाना तथा ब्रह्माजीके पूछने पर मार्कण्डेयजीका हरिहरकी
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९५५ ९५७
१०० १२६ - स्वामी कार्तिकेय और श्रीकृष्णके युद्ध में स्वामी कार्तिकेयकी पराजय कोटवीदेवीका कार्तिकेयकी रक्षा करना, बाणासुर और श्रीकृष्णका युद्ध, श्रीकृष्णका बाणासुरकी ११- परमात्मा द्वारा भूतोंकी सृष्टि तथा ब्रह्माजीको हजार भुजाओंको काटना, महादेवजीका बाणासुरको महाकाल होनेका वरदान देना. ९०६
नारायणका शयन
943
१०-
कल्पना पद्मका प्रादुर्भाव ........ ९६७. १२- नारायणके नाभिकमलके दलोंमें समस्त लोकोंकी ९७०
4565
29
भ
29 भा
९७४ भगवान् विष्णुके द्वारा वध १४- ब्रह्माजीके तीन पुत्रोंको परम पदकी प्राप्ति, फिर उनके द्वारा मैथुनी सृष्टिका विस्तार, दक्ष- कन्याओंकी संततिका वर्णन,
एकता स्थापित करते हुए माहात्म्यसहित हरिहरात्मक स्तोत्रका वर्णन करना
महिमाका प्रतिपादन
८- सत्ययुग आदिके परिमाणका वर्णन .... २९- प्रलयके पश्चात् एकार्णवके जलमें भगवान्
९६० एकार्णवमें भगवान् और मार्कण्डेयजीका संवाद... १६२
प्रकट करनेके लिये उनकी नाभिसे एक महान्
१२७ अनिरुद्धका नागपाशसे छुटकारा और उनके द्वारा श्रीकृष्ण आदिकी बन्दना, नारदजीके कहनेसे उनका वीर्य विवाह, उपाकी विदाई, १३- मधु और कैटभका ब्रह्माजी के साथ संवाद तथा सबका द्वारकाको प्रस्थान, मार्गमें श्रीकृष्णद्वारा वरुण देवतापर विजय, वरुणद्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति और पूजा, श्रीकृष्णके आगमनसे द्वारकावासियोंका हर्ष भगवान् के आदेशसे श्रीकृष्णकी प्रशंसा और सब देवताओं तथा ऋषियों आदिका अपने-अपने स्थानको जाना. ९१९
पुरवासियोंद्वारा देवताओंको वन्दना, इन्द्रद्वारा १५- जनमेजयके द्वारा महाभारत वर्णित चरित्रको प्रशंसा ९७९ १६- सृष्टिविषयक वर्णनके प्रसङ्गमें ज्ञान और योगका विचार
१९८१
१२८ द्वारकामें उत्सव, उपाका अन्तःपुरमें प्रवेश और सत्कार, श्रीकृष्ण और विष्णुपर्वकी महिमा तथा पर्वका उपसंहार
१७- मैनाककी स्थिति, मेरुपृष्ठपर परमात्मासे ब्रह्माजीका प्राकट्य, मेरुकी विशालता, ब्रह्माजीके द्वारा सृष्टि, ब्रह्म और ब्रह्माके स्वरूपका वर्णन, गङ्गाका प्रादुर्भाव, सोमकी उत्पत्ति, धर्मके पाद, योग- साधना, ऐश्वर्यसे हानि, वेदोंका प्राकट्य, यज्ञपुरुषका वर्णन, योगवेत्ताकी महिमा, चित्तकी उपलब्धिमें कारण, मोक्ष-सम्बन्धी कर्म करनेका विधान और कर्मफलके त्यागसे मुक्ति..
९३१
(भविष्यपर्व )
१- जनमेजयकी संतति एवं पौरव तथा पाण्डववंशकी प्रतिष्ठाका वर्णन
९३५
२- राजा जनमेजयका अश्वमेधयज्ञ करनेका विचार, व्यासजीका आगमन और राजाद्वारा उनका सत्कार, आपने पाण्डवोंको राजसूय यज्ञ करनेसे क्यों नहीं रोका यह जनमेजयका प्रश्न और उसके उत्तरमें व्यासजीद्वारा कालकी प्रबलताका प्रतिपादन..
९८५ १८- योगके उपसर्ग (विन), योगीकी विष्णुरूपसे स्थिति, कर्मलयसे मुक्ति, सकाम कर्मियोंकी धूममार्गसे गति और पुनरावृत्ति, ज्ञानी एवं योगीको
९३७ ९४१
तत्त्वका साक्षात्कार तथा ब्रह्मयुगका वर्णन... ९९३ १९- योगीकी स्थिति तथा उसके समक्ष आनेवाले
३- व्यासजीद्वारा कलियुगकी स्थितिका वर्णन.. ४- कलियुगका वर्णन
९४५
विनरूप ऐश्वर्योका वर्णन २०- ब्रह्माजीके द्वारा योगधारणपूर्वक की गयी मानसिक सृष्टिका वर्णन .......
१५- व्यासजी आदिका गमन, जनमेजयके अश्वमेध यज्ञमें इन्द्रका विघ्न डालना, जनमेजयद्वारा इन्द्रको शाप, ब्राह्मणोंका निर्वासन तथा अपनी पत्नीकी भर्त्सना, विश्वावसुका जनमेजयको समझाना ९५०
१००२
२१- क्षत्रयुगके प्रसंगमें ज्ञानसिद्ध ब्राह्मणोंका वर्णन, प्रजापति दक्षद्वारा प्राणियों एवं चारों वर्णोंकी सृष्टि तथा उनका अपने पुत्रोंको धात्रीका अन्त जाननेके लिये आदेश. १००४
६- जनमेजयका संतुष्ट होकर राज्य शासन करना तथा इस ग्रन्थके पाठ और श्रवणकी महिमा. ९५३ ७- पुष्कर प्रादुर्भावके विषयमें जनमेजयका प्रश्न और वैशम्पायनजीका उत्तर- भगवान् नारायणकी
२२- दक्षका अपने आधे असे स्त्रीरूप होकर बहुत- सी कन्याओंको उत्पन्न करना और उनका धर्म,
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.... १०८६ १०१७ ४६ दैत्योंके विनाशकी सूचना देनेवाले महान् उत्पात, हिरण्यकशिपुका गदा लेकर धावा करना तथा उसके पैरोंकी धमकसे पृथ्वी, पर्वत, नदी एवं देशोंका कम्पित होना १०८९
कश्यप एवं सोमको दान कर देना, कश्यप और दक्षकन्याओंकी संतानोंका वर्णन तथा देवलोकमें उत्पन्न होनेवालोंकी योग्यता २३- ब्रह्माजीके महायज्ञका वर्णन
पंखा छेदन २०७३ ४१ हिरण्यकशिपुकी उपस्या, वरप्राप्ति, अत्याचार, देवताओंको ब्रह्माजीका आश्वासन, भगवान् विष्णुका नरसिंहरूप धारण करके हिरण्यकशिपुकी सभाएँ जाना तथा उस सभाका वर्णन....
१००६ १००५
२४- चारों आश्रमोंमें स्थित हुए ब्राह्मणोंकी ब्रह्माजी के यज्ञस्थलके पुण्य प्रदेशमें निवासकी इच्छा १०१४ ४२- भगवान् नरसिंहका देवता, गन्धर्व, अप्सराओं २५- नारद आदिके द्वारा ब्राह्मणों तथा ब्रह्माजीका सत्कार, ब्रह्माजीके द्वारा कश्यपको यज्ञका आदेश, देवता- ४३ प्रादको नरसिंह-विग्रहमें समस्त त्रिलोकीकादर्शन २०८२
तथा दैत्योंसे सेवित हिरण्यकशिपुको देखना, १०८१
दानव युद्ध तथा विष्णुके द्वारा मधुकी पराजय १०.१६ ४४- दैत्यों तथा हिरण्यकशिपुद्वारा नृसिंहपर विभिन्न अस्त्रोंका प्रहार.
२६- मधु और विष्णुका घोर युद्ध, देवताओं और ऋषियोंद्वारा श्रीविष्णुकी स्तुति, हयग्रीवरूपधारी ४५ दैत्योंद्वारा किये गये प्रहारों और रची गयी विष्णुद्वारा मधुकाव और पृथ्वीको मेदिनी नामकी प्राप्ति
मायाओंकी निष्फलता
२७- मधुके पतनसे समस्त प्राणियोंको हर्ष, वहाँ एकत्र
हुए पर्वतों और वसन्त ऋतुका वर्णन, मधुवाहिनी
नदीका प्राकट्य और गौरीसिद्धाका माहात्म्य - १०२३ २८- पुष्करमें श्रीविष्णु आदिकी तपस्या और उसके प्रभावका वर्णन
४७- देवताओंके अनुरोधसे भगवान् नरसिंहद्वारा १०२८ हिरण्यकशिपुका वध तथा देवताओं और ब्रह्माजीद्वारा उनकी स्तुति १०९४ ४८ वामनावतारका उपक्रम, बलिका अभिषेक तथा
२९- तपस्याके प्रभावसे देवताओंका उत्कर्ष...... १०३७ ३०- पृथुका राज्याभिषेक तथा दैत्यों और देवताओं द्वारा मन्दराचलके मन्धनदण्डद्वारा समुद्रका मन्थन, समुद्रसे अन्य रत्नोंके साथ अमृतका प्राकट्य और राहुके
दैत्योंका उनसे त्रैलोक्य-विजयके लिये अनुरोध.. १०९७.
४९- देवताओंके साथ युद्धके लिये दैत्योंकी तैयारी.. ११०० १०३९ ५० पुलोमा, हयग्रीव, प्राद और शम्बरासुरका युद्धके लिये उद्योग.... १००४
सिरका छेदन ३१- बलिके यज्ञमें वामनद्वारा त्रिलोकीके राज्यका अपहरण तथा कालान्तरमें देवताओंद्वारा बलिका राज्याभिषेक.
५१ अनुहाद, विरोचन, कुजम्भ, असिलोमा, वृत्र, १०४२ एकचक्र, वृत्रभ्राता, राहु विप्रचित्ति, केशी, वृषपर्वा तथा बलिका युद्धके लिये तैयार होकर आगे बढ़ना ........
३२- दक्षयज्ञ विध्वंस
१०४३
३३- वाराहावतारका उपक्रम.
१०४९
१००७ ५२ इन्द्र आदि देवताओं और लोकपालोंका युद्धके लिये उद्योग और प्रस्थान.
३४- भगवान् यज्ञवराहके द्वारा पृथ्वीका उद्धार.. • १०५३ ३५- भगवान् वाराहके द्वारा विभिन्न दिशाओंमें पर्वतों और नदियोंका निर्माण ३६ जगत्की सृष्टिका वर्णन
१०५७
५३- देवताओं और असुरोंका द्वन्द्वयुद्ध, भीषण उत्पात, ब्रह्माजी तथा सनकादि योगेश्वरोंका युद्ध देखनेके लिये आगमन ११२५
१०६१
३७ - ब्रह्माजीद्वारा विभिन्न वर्गके अधिपतियोंकी नियुक्ति १०६५ ३८- देवासुर संग्राम तथा हिरण्याक्षद्वारा देवराज
५४- देवताओं और असुरोंके युद्धका यज्ञके रूपमें वर्णन, दोनों सेनाओंका तुमुलयुद्ध तथा सावित्र और ध्रुवकी पराजय. ११२९
इन्द्रका स्तम्भन ३९- भगवान् वाराहद्वारा हिरण्याक्षका वध,
१०६८
१०७१
४० देवताओंको अपने प्रभुत्वकी प्राप्ति, देवराज इन्द्रकी सम्पूर्ण लोकोंके आधिपत्यपर प्रतिष्ठा, सत्-असत् पुरुषोंकी यथोचित गतिके लिये आदेश देकर भगवान्का अन्तर्धान होना तथा देवेन्द्रद्वारा पर्वतोंके -
५५ नमुचिद्वारा घर नामक वसुकी, मयासुरद्वारा की वायुदेवद्वारा पुलोमाकी, हयग्रीवद्वारा पूषा देवताकी, शम्बरासुरद्वारा भगकी तथा चन्द्रदेवद्वारा समूची दैत्यसेनाकी पराजय . ११३०
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५६. देवताओं और दानवोंका घोर संग्राम-विरोचनका विष्वक्सेनके साथ और कुम्भका अंश देवताके साथ
युद्ध करते समय घोर पराक्रम प्रकट करना. १९४८ ५७ देवासुर संग्राम में कुजम्भ, असिलोमा और वृत्रासुरके उत्कर्षका वर्णन तथा हरि एवं अश्विनी-
कुमारकी पराजय ५८ रणाजि और एकचक्रके, मृगव्याध और बलासुरके, अजैकपाद और राहुके तथा सुधूपाक्ष एवं केशी दैत्यके युद्धका वर्णन. ११५३
५९ वृषपर्वा और निष्कुम्भ नामक विश्वेदेवके तथा प्रहाद और कालके घोर युद्धका वर्णन १९६६ ६०- कुबेर और अनुहादका भयंकर युद्ध ११७४ ७४ भगवान् श्रीकृष्णका यादवसभामें अपनी कैलासयात्राका
६१- वरुणका विप्रचितिके साथ युद्ध और पराजय १९७९ विचार प्रकट करते हुए नगरकी रक्षा के लिये ६२ अग्रिद्वारा दैत्योंको पराजय तथा बृहस्पतिके द्वारा
अग्निदेवका स्तवन ६३- राजा बलिके प्रति प्रह्लादका वचन तथा बलिका ११८३
देवसेनापर आक्रमण ६४ बलि और इन्द्रका युद्ध तथा इन्द्रका रण- १९८६
भूमिसे पलायन ६५ विजयी बलिके पास राजलक्ष्मी आदिका शुभागमन ११९० ६६- अदिति और कश्यपजीके साथ देवताओंका
१९८८
ब्रह्मलोक जाना. ११९२ ६७ ब्रह्माजीकी आज्ञासे कश्यप और अदितिसहित ७८- भगवान् श्रीकृष्णको समाधि, महान कोलाहल और देवताओंका क्षीरसागरके उत्तरतटपर जाकर तपस्या में संलग्न होना..
६८- कश्यपद्वारा परमपुरुष परमात्माका स्तवन ....... . ११९८ ६९ कश्यप-अदिति और देवताओंको भगवान् विष्णुका वरदान देना और अदितिक गर्भसे प्रकट होना...... १२०१
७०- ऋषियों और विविध देवताओंका वामनजीको नमस्कार करना, गन्धर्वो तथा अप्सराओंका नाचना- गाना, भगवान्के वैशिष्टयका वर्णन, भगवान्का देवताओंसे उनका मनोरथ पूछकर बृहस्पतिजीके साथ बलिके यज्ञमें जाना, वहाँ अपनी वाक्पटुतासे सबको चकित कर देना और राजा बलिका उनसे
साक्षात्कार.
• १२४०
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७२ विरारूपधारी वामनपर आक्रमण करनेवाले दैत्योंक नाम, रूप और आयुधौका परिचय, भगवान्का तीनों लोकोंको नापकर राज्यका विभाजन करना, बलिको पातालका राज्य दे मर्यादा बाँधकर उन्हें वहाँ भेजना, जीविकाको व्यवस्था करना, नारदजीका बलिको मोक्षविंशक स्तोत्रका उपदेश देना, उसके प्रभावसे बलिका बन्धन-मुक्त होना और उस स्तोत्रकी महिमा
१२१३ - ११५९ ७३ रुक्मिणी देवीको भगवान् श्रीकृष्णसे पुत्रके लिये प्रार्थना और भगवान्का उन्हें आश्वासन देते हुए कैलास जानेका विचार प्रकट करना, १२२१
यादवोंको सावधान रहनेका आदेश देना. १२२५ ७५- भगवान् श्रीकृष्णकी सात्यकि और उद्धवसे नगरकी रक्षा विषयमें बातचीत तथा बलराम आदि यादवको भी रक्षाका भार सौंपकर उनका कैलासयात्रा के लिये उद्यत होना......... १२२७
७६- गरुड़पर आरूढ़ होकर श्रीकृष्णका बदरिकाश्रममें जाना, मार्गमें देवताओं-मुनियोंद्वारा उनको स्तुति १२३० ७७ देवताओं सहित श्रीकृष्णका बदरिकाश्रममें ऋषियोंद्वारा आतिथ्य सत्कार १२३३
उनके पास भागते हुए मृग आदिका आगमन १२३५) ११९६ ७९ भगवान् श्रीकृष्णके समक्ष दो पिशाचोंका आगमन १२३७ ८० घण्टाकर्ण और भगवान् श्रीकृष्णका एक-दूसरेको अपना परिचय देना तथा घण्टाकर्णद्वारा भगवान् विष्णुका स्तवन एवं समाधि-लाभ . १२४० ८१- पिशाचको समाधि अवस्थामें भगवान् विष्णुका
८२ घण्टाकर्णद्वारा भगवान् विष्णुकी स्तुति. - १२४९ ८३ घण्टाकर्णद्वारा भगवान् श्रीकृष्णको उपहार-समर्पण, भगवान्का उसे वर देना और एक मरे हुए
ब्राह्मणको जीवित करना - श्रीकृष्णका कैलासपर पहुँचकर वहाँ बारह ८४- १२५४
वर्षोंके लिये कठोर तपस्यायें संलग्न होना... १२५७- ८५- भगवान् श्रीकृष्णके समीप इन्द्र आदि देवताओं तथा उमासहित भगवान् शिवका आगमन १२५९
भगवान् शङ्करका श्रीकृष्णके समीप गमन....
१२६१
१०५
परिचय तथा आगमनका प्रयोजन पूछना. १२०३ ७१- वामनद्वारा बलिके यज्ञकी प्रशंसा, बलिसे माँगनेके लिये प्रेरित होनेपर वामनका उनसे तीन पग भूमि माँगना, शुक्राचार्य और प्रह्लादका बलिको दान देनेसे रोकना, बलिद्वारा दानका समर्थन तथा दान ८६- पिशाचों, मुनियों और अप्सराओक साथ उमासहित पाते हो वामनका अपने विराट्रूपको प्रकट करना. १२०८
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१३०५ जनार्दनसहित उन दोनोंका विवाह तथा तीनों १२६६ कुमारोंकी धर्मनिष्ठा..
८७- भगवान् श्रीकृष्णद्वारा महादेवजीकी स्तुति १२६३
८८- भगवान् शिवद्वारा श्रीविष्णुको स्तुति. ८९- भगवान् शङ्करका ऋषियोंको श्रीकृष्णतत्त्वका २०६ हंस और डिम्भककी मृगया..
१३०८. १२७१ १०७ सेनासहित हंस और डिम्भकका पुष्कर-तटपर विश्राम, महर्षि कश्यपके वैष्णवसत्रका दर्शन तथा दुर्वासा आदि यतियोंके समुदायमें जाकर उनके प्रति अपनी अश्रद्धाका प्रदर्शन .......... १३०९
उपदेश देना
९० भगवान् शङ्करद्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति और श्रीकृष्णका कैलाससे बदरिकाश्रममें लौटना... १२७३
९१- पौण्ड्रकका राजाओं की सभाओंमें अपनेको शङ्ख, चक्र आदिसे युक्त वासुदेव घोषित करना और श्रीकृष्णको पराजित करनेका मनसूबा बांधना १२७६ ९२- पौण्ड्रकके यहाँ नारदजीका आगमन और उसके
१०८ हंस और डिम्भकद्वारा संन्यासकी निन्दा तथा जनार्दनद्वारा संन्यास आश्रमका मण्डन १३१२
१०९ दुर्वासाका रोष, हंसद्वारा उनका तिरस्कार, १२७८ दुर्वासाद्वारा उन दोनोंके लिये शाप और जनार्दनके लिये वरदान. १३१४ .... १२८० ११० दुर्वासा आदि मुनियोंका द्वारकागमन १३१६
साथ उनकी बातचीत. ९३- नारदजीका श्रीकृष्णके पास जाना और पौण्ड्रकका द्वारकापर आक्रमण
९४ यादववीरोंद्वारा पौण्ड्रककी सेनाका और
१११- श्रीकृष्णकी गोलक्रीडा, सुधर्मा सभाएँ दुर्वासा आदि मुनियोंका आगमन तथा यादवों और श्रीकृष्णद्वारा उनका सत्कार, श्रीकृष्णका उनसे वहाँ आनेका कारण पूछना, दुर्वासाका भगवान्की स्तुति एवं उपालम्भपूर्वक उनके प्रश्नका प्रतिवाद करके अपनी दुर्दशाका वृत्तान्त सुनाना.. १३१७
एकलव्यद्वारा यादव सेनाका संहार........... १२८२ ९५- पौण्ड्रकद्वारा पूर्वद्वारके परकोटोंको तोड़ने का प्रयत्न, सात्यकि आदि यादववीरोंका रक्षाके लिये पहुँचना, सात्यकिका वायव्यास्वद्वारा पौण्ड्रकसैनिकोंको भगाकर पौण्ड्रकको युद्धके लिये ललकारना और पौण्ड्रककी गर्वोक्ति
१२८४
९६- पौण्ड्रक और सात्यकिका युद्ध १२८७ ११२- भगवान् श्रीकृष्णकी हंस और डिम्भकके ९७- सात्यकि और पौण्ड्रकका युद्ध.
१२९०
वधके लिये प्रतिज्ञा तथा क्षमा प्रार्थनापूर्वक उनका यतियोंको भोजन कराना १३२३ १२९२ ११३ जनार्दनका हंसको समझाना किंतु हंसका उनकी बात न मानकर उन्हें दूत बनाकर १२९४ द्वारकाको भेजना १३२६
१९८- बलभद्र और एकलव्यका युद्ध तथा बलभद्रद्वारा
निषादोंका संहार.
९९- बलभद्र और एकलव्यका तथा पौण्ड्रक और सात्यकिका युद्ध
१०० - श्रीकृष्णका द्वारकामें आगमन और पौण्ड्रकसे उनकी बातचीत..
११४ - जनार्दनकी भगवद्दर्शनविषयक उत्कण्ठा ...... १३२८ १२९५ ११५ जनार्दनका सुधर्मा सभामें जाकर भगवान् श्रीकृष्णके दर्शनसे संतुष्ट हो उनकी आज्ञासे १२९९ भगवत्स्तवनपूर्वक हंस और डिम्भकका संदेश सुनाना और उसे सुनकर यादवोंका उपहास करना. १३३२
१०१ - पौण्ड्रक और श्रीकृष्णका युद्ध तथा
पौण्ड्रकका वध
१०२ एकलव्यका द्वीपान्तर गमन, भगवान् श्रीकृष्णका यादवोंको अपनी यात्राका संक्षिप्त वृत्तान्त बताना तथा अन्तः पुरमें रुक्मिणी और सत्यभामासे मिलकर उन्हें संतोष देना.
११६ - श्रीकृष्णका जनार्दनको संदेश देकर लौटाना.. १३३५ १३०१ ||११७- सात्यकिसहित जनार्दनका शाल्वनगरमें जाना, हंससे मिलना तथा हंसका जनार्दनसे कार्यसिद्धिके विषयमें पूछना १३३६
१०३ - हंस और डिम्भकके विषयमें जनमेजयका प्रश्न १३०३ १०४- राजा ब्रह्मदत्तको भगवान् शङ्करकी आराधनासे
हंस और डिम्भक नामक पुत्रोंकी प्राप्ति तथा राजसखा विप्रवर मित्रसहको भगवान् विष्णुकी उपासनासे जनार्दन नामक पुत्रका लाभ... १३०४
११८ जनार्दनका हंसको श्रीकृष्णदर्शनजनित अपना उल्लास बताना, द्वारकामें हंसके संदेशकी प्रतिक्रियाका वर्णन करके उसे राजसूय न करनेकी सलाह देना, हंसका उसे रोषपूर्वक
१०५ हंस और डिम्भककी तपस्या, वरप्राप्ति,
(१६)
अध्याय
विषय
पृष्ठ संख्या
अध्याय
विषय
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१३८३ १३८५ १३४- हरिवंशमें वर्णित वृत्तान्तोंका संग्रह १३५-हरिवंश- श्रवणकी दक्षिणा, फल एवं माहात्म्यका वर्णन श्रीहरिवंशमाहात्म्य
१३८७ १- हरिवंश श्रवणका माहात्म्य, नारोके पाँच दोष और हरिवंश - श्रवणसे उनकी निवृत्ति, पाठके उत्तम, मध्यम आदि भेद तथा गोव्रतकी विधि
१३४८ तीर्थमें प्रवेश. १३४६ १२२ उभयपक्षकी सेनाओंका घमासान युद्ध.
तिरस्कृत करके चले जानेके लिये कहना, फिर सात्यकिका हंसको संदेश
सुनाते हुए फटकारना १३३८ ११९ हंस और डिम्भकके सात्यकिके प्रति रोषपूर्ण
वचन तथा सात्यकिका उन्हें वैसा ही उत्तर
देकर द्वारकाको प्रस्थान १३४२ १२०- भगवान् श्रीकृष्ण तथा यादवसेनाका पुष्करतीर्थमें
जाकर हंस और डिम्भककी प्रतीक्षा करना... १३४४
१२१ हंस और डिम्भककी सेनाओंका पुष्कर-
१२३- श्रीकृष्ण और विचक्रका घोर युद्ध तथा
विचक्रका वध
१३५०
१२४ हंस और बलभद्रका युद्ध. १३५२
१२५ सात्यकि और डिम्भकका युद्ध. १२६- हिडिम्बके साथ वसुदेव और उग्रसेनका युद्ध
१३५४
तथा बलभद्रके द्वारा हिडिम्बका वध.. १३५६ १२७- गोवर्धन पर्वतके समीप हंस और डिम्भकके साथ यादवका युद्ध, श्रीकृष्णद्वारा भूतेकी पराजय तथा श्रीकृष्ण और हंसका घोर युद्ध. १३६०
१२८ - श्रीकृष्णद्वारा हंसका वध १२९ डिम्भककी आत्महत्या
१३६५ १३०- गोप-गोपियोंसहित यशोदा और नन्दका गोवर्धन पर्वतपर आकर श्रीकृष्ण और बलभद्रसे मिलना...
१३६६
१३१- द्वारका जाते हुए श्रीकृष्णका पुष्करमें ऋषियोंसे
मिलना तथा ऋषियोंद्वारा उनका स्तवन ....... १३६८ १३२ - महाभारत और हरिवंशके श्रवणकी विधि
और फल, वाचकके गुण, प्रत्येक पर्वपर दान देने योग्य वस्तु एकसे लेकर दस पारणाओंकी महत्ता
तथा महाभारत एवं हरिवंशका माहात्म्य.... १३६९
१३३ - त्रिपुर- वधकी कथा..
१३७६
२ (१) हरिवंशश्रवणकी विधि और फल... १३९० ३- (२) हरिवंशश्रवणकी विधि और फल..
१३९४ ४- नवाहव्रती श्रोताओंके पालन करने योग्य नियम, उनके द्वारा त्याज्य वस्तुओंका उल्लेख, न्यायविरुद्ध कथाश्रवण करनेवालोंकी दुर्गति, कथामें विघ्न डालनेके कारण एक नारीको नरकयातना एवं राक्षसयोनिकी प्राप्ति तथा श्रोताओंके चौदह भेद १३९६
हरिवंशके नवाह पारायणका उद्यापन, उसमें
किये जानेवाले दान, पुस्तक-पूजा और वाचकपूजन आदिका विधान एवं माहात्म्य. १४०१ ६- हरिवंश आरम्भ करनेके लिये उत्तम मास, तिथि, नक्षत्र नक्षत्र आदिका निर्देश, देवपूजन, व्यासपूजन तथा कथा समाप्तिपर दी जानेवाली दक्षिणा एवं दान आदिका उल्लेख तथा १४०४
१३६३
श्रवणका माहात्म्य..
(संतानगोपाल मन्त्रविधि)
१- संतानगोपालमन्त्रविधिः (१).
१४०८
२- संतानगोपालमन्त्र (२) १४०९
३- सनत्कुमारो संतानगोपालमन्त्र (३)
४- संतानगोपालस्तोत्रम्... १४१२
५ श्रीविष्णुशतनामस्तोत्रम्
१४१९ ६- वन्ध्यानां पुत्रोत्पत्त्यर्थं संतानगोपालमन्त्रविधिः হাस
१४०१
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