निर्धन गुरु सुकरात और अमीर शिष्य प्लेटो के शिक्षा पर विचार:- Plato & Socrates stories & ideology in Hindi

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प्लेटो  (Plato)  की दृष्टि में शिक्षा का महत्व.

दर्शिक प्लेटो और गुरु सुकरात की कहानी और विचार . Plato &  Socrates stories & ideology in Hindi


निर्धन गुरु सुकरात और अमीर शिष्य प्लेटो के  शिक्षा पर विचार:-  Plato &  Socrates stories & ideology in Hindi


आज से ढाई हज़ार साल पहले की बात है , यूनान  के प्रसिद्द शहर एथेंस में तीन  दशानिक पैदा हुए, जिन्होंने अपनी मौलिक चिंतनधारा एवं गहन विचारशील प्रवृत्तियों के आधार पर तत्कालीन समाज को ही नहीं,अपितु भावी युगों को भी पूर्णत: प्रभावित और प्रकम्पित करते रहें. आज भी  उनके विचारों की गहराई  को नापने , जानने अथवा समझने में समर्थ विरले ही मनीषी हैं.यूनान  ही नहीं, वरन विश्व के ये तीन प्रसिद्द विद्वान् थे -  महात्मा सुकरात ( ४६९ ईस्वी पूर्व- ३९९ ईस्वी पूर्व) , प्लेटो  ( ४२७ ईस्वी पूर्व- ३४८ ईस्वी पूर्व ) और अरस्तु ( ३८४ ईस्वी पूर्व - ३२२ ईस्वी पूर्व) सौभाग्यवश इन तीनो में गहरा सम्बन्ध था..महात्मा सुकरात के शिष्य थे प्लेटो और प्लेटो के शिष्य थे अरस्तु . प्लेटो के शिक्षा -दर्शन  के संबंधन में विचार हमारा अभीष्ट है.

सत्तर वर्ष के बड़े वुजुर्ग, विश्व के विद्वान् महान चिन्तक महत्मा सुकरात ने जब अपने भावी युग को सत्य और ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अविचलित और निर्विकार भाव- मुद्रा में अदालत की कठोर आज्ञा को अंगीकार करते हुए ज़हर का प्याला चूमा था और उसे गले के नीचे उतार मृत्यु को सहर्ष स्वागत किया था,उस समय जीवन - पर्यंत अविवाहित रहने वाला , बलवान पुष्ट शरीरधारी , एथेंस का श्रेष्ठ सैनिक , प्रमुख खिलाड़ी,  विलक्ष्ण बुद्धि का वह एक दार्शनिक विद्वान् जिसने कई मल्ल-प्रतियोगिता में शानदार विजय प्राप्त की थी, जोअपने बलिष्ठ कन्धों के कारण प्लेटो नाम से वहां ( एथेंस में ) विख्यात था तथा जिसे सुकरात का सर्व प्रमुख  शिष्य होने का गौरव प्राप्त हुआ है, केवल 28 वर्ष का एक युवक था.

अपने शिक्षक सुकरात की मत्यु से , शिष्य प्लेटो को बड़ी मानसिक वेदना हुई.प्लेटो सुकरात के सर्वाधिक प्रिय शिष्य थे. सुकरात के नौ या दस वर्षों के संपर्क में उनके जीवन पर बहुत बड़ी छाप डाली. यद्धपि इन दोनों में कई दृष्टियों में बड़ी विषमता थी. सुकरात कुरूप और निर्धन व्यक्ति  थे,प्लेटो सुन्दर और धनी थे.सुकरात एक साधारण प्रस्तर-शिल्पिक परिवार के सदस्य थे.परन्तु एथेंस की राज्य -व्यवस्था में अपूर्व योगदान देने वाले कोडरस और सोलन प्लेटो के पूर्वज थे. सुकरात के पिता  एक निर्धन व्यक्ति थे, परन्तु  प्लेटो के पिता अरिस्तन एक सम्मानित नागरिक थे.माहत्मा सोलन को तो प्राचीन एथेंस का महात्मा गांधी कहा जाता है.

सुकरात पुराने और साधारण वस्त्र पहने थे, कभी कभी तो उनके वस्त्र फटे भी रहते थे.परन्तु प्लेटो सुन्दर वस्त्र धारण करता था. तथापि इस सामाजिक विषमता और पारिवारिक अलगाव का कोई प्रभाव प्लेटो के युवक मस्तिष्क नहीं पड़ा.सुकरात और प्लेटो में आध्यात्मिक सबंध था, जो विश्व इतिहास का अमर और अनूठा उदहारण है.

प्लेटो ( Plato) ने अपनी युवावस्था  के आरम्भ में ही महात्मा  सुकरात का शिष्यत्व ग्रहण किया था. सुकरात से मिलने पर वे उनसे बहुर प्रभावित हुए और उनके भक्त बन गए. उनके जीवन में महान परिवर्तन आ गया. प्लेटो प्राय:  दस वर्षो तक सुकरात के संपर्क में  रहे थे. सुकरात के मृत्यु -दंड से प्लेटो को अध्यधिक क्लेश पहुंचा और उन्होंने एथेंस छोड़ दिया. 

मानसिक व्यथा की अवस्था एवं ज्ञान खोज में विभिन्न देशों में वर्षों तक भ्रमण करते रहे.प्रसिद्द सांस्कृतिक केन्दों में जाकर उन्होंने अपना ज्ञान भण्डार समृद्ध किया.उन्होंने मेगारा, मिस्त्र, सिसली, इटली ,सीरिया आदि देशों की यात्रा की.संभवत: भ्रमण करते करते वे प्लेटो भारत में आये थे और यहाँ उन्होंने उन्होंने हिन्दू दर्शन और एवं धर्म का अध्ययन भी किया था. 

सबसे पहले प्लेटो सुप्रसिद्ध गणितज्ञ यूक्लिड के निवास स्थान मेगारा गए.उसके बाद उन्होंने मिश्र देश का भ्रमण किया, जहाँ मानव -संस्कृति एवं मानव  उत्थान की विशेषताओं को देखा.वहां वे विद्वानों से मिलने और उनसे वार्तालाप के क्रम में उन्हें यह जानकारी हुई कि मिस्त्र के लोग एथेंस की  सभ्यता -संस्कृति से अनभिज्ञ हैं. देली-पोलिस, जो तात्कालीन मिस्र का धार्मिक केंद्र था, वहां वे अधिक दिनों तक ठहरे थे.उन्होंने मिस्त्र की शिक्षा -पद्धति का भी अध्ययन किया. 

सिसली में उन्होंने वहां की शासन - व्यवस्था की जानकारी प्राप्त की.इटली में उन्होंने अपना कुछ समय उस शिक्षालय में व्यतीत किया जिसका संस्थापक पाईथागोरस था.  यहाँ उन्होंने देखा कि कुछ लोग सादा जीवन व्यतीत करते हैं तथा सम्पूर्ण साधना  के साथ अध्ययन करते हैं.देश- विदेश की विभिन्न संस्कृतियों से परिचय ,साधना के साथ अध्ययन करते हैं. प्लेटो अपने समय के सबसे  अधिक जानकार व्यक्ति थे.दर्शन,विज्ञान,इतिहास,प्रशासन सभी कि महान पद्धतियों के प्रत्यक्ष अनुभवों से संपन्न होने के कारण , वे अपने युग के सबसे अधिक विषयों के ज्ञाता माने जाते थे -  

चालीस वर्ष की  आयु में  ज्ञान के भण्डार के साथ दार्शनिक प्लेटो  ( Philosopher Plato) का एथेंस में पुनरागमन हुआ,जहाँ अपने जीवन के शेष चालीस वर्ष उन्होंन शिक्षा के सुधार तथा उसके उन्नयन  में व्यतीत किये.  ठोस अनुभव एवं गंभीर चिंतन के पश्चात उनका  यह विश्वास दृढ हो चुका था कि किसी समाज और देश की उन्नति  तथी संभव है,जब वहां के नवयुवकों की उन्नति की जाय और यह कार्य  सुव्यवस्थित शिक्षा - प्रणाली एवं संगठित पाठ्यक्रम द्वारा ही संभव है. वस्तुत: प्लेटो के दर्शन का आधार शिक्षा है.  अपनी इस विचारधारा को क्रियात्मक रूप देने के लिए प्लेटो ने एथेंस के पुराने जिमनाजियम के निकट 386 ईस्वी पूर्व में एक शिक्षा - समिति स्थापित की,जो अकादमी  ( academy) के नाम से  प्रसिद्द हुई. इसी अकादमी में वे जीवन पर्यंत कार्य करते रहे जहाँ स्त्री- पुरुषों को सामान रुप से ज्ञान दिया जाता था.

शिक्षा क्या है??? 

प्लेटों के अनुसार शिक्षा वह विधि है, जिसके द्वारा व्यक्ति में नैतिक संस्कारों को उत्पन्न किया जाता है. प्लेटों के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को तीन भागो में विभक्त किया गया है.- शारीरिक उन्नयन, विद्यासंस्कार, और संगीत की शिक्षा. जिसका नीचे वर्णन किया गया है..   

प्लेटों  ( Plato) सभी कालों के विचारकों में एक श्रेष्ठ , मौलिक और वृहद् दृष्टिकोण  रखने वाले विचारक माने जाते हैं. उन्होंने शिक्षा सम्बन्धी विचार अपनी पुस्तक  'दि रिपब्लिक'  (The Republic) और  'दि लॉज ' (  The Laws) में जो कि वार्तालाप के रूप में है, अभिव्यक्त की है. 'दि रिपब्लिक' शिक्षा की  सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है- ऐसा विश्व में  प्रथम श्रेणी के शिक्षाशास्त्री रूसो का विचार है.

रूसो ने लिखा है -  "the finest  treatise on education that was ever written."  दि  रिपब्लिक  में शिक्षा, धर्म, दर्शन, समाज,राजनीती - जैसे विषयों की चर्चा की गयी है. उसी प्रकार 'दि लॉज' ( The Laws) प्लेटो की परिपक्व अवस्था में लिखित उनकी वृहद् और व्यवहारिक कृति है, जिसमे शिक्षा और नीतिशास्त्र -सम्बन्धी विचार व्यक्त हैं.
 प्लेटो के शिक्षा -विधान में तर्कशास्त्र सर्व प्रमुख है. प्लेटो के ' डायलेक्टिक' में दर्शन , नितिशास्त्र  मनोविज्ञान, प्रशासन, कानून शिक्षा आदि विषय सम्मलित है. दैनिक जीवन में कुशलता के लिए उन्होंने कृषि एवं व्यपार को आवश्यक बतलाया. 

एथेंस में उस समय  कृषि और व्यपार-प्रधान रोजगार था. शरीर को सुन्दर सुगठित , बलवान और स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की शिक्षा का विधान किया गया. मनुष्य में सौंदर्यबोध उत्पन्न हो तथा उसमे नैतिकता का विकास हो,इसके लिए प्लेटो ने संगीत , नृत्य, काव्य और साहित्य आदि विषयों को निर्धारित किया.
यूनानियों के विचार में संगीत का वही महत्व था, जो यहूदियों के लिए पुराने टेस्टामेंट तथा ईसाईयों के लिए बाइबिल का है.

प्लेटो ( Plato) के दृष्टि में गणित का महत्व

प्लेटो के अनुसार गणित बौद्धिक क्षेत्र में तीन कार्य करता है. 

1.यह मनुष्य के समक्ष वास्तविक सत्य को प्रस्तुत करता है. यह सत्य ऐसा है,जो सबके लिए समान है.
2.यह आत्मा के नीचे गिरानेके बदले ऊपर की ओर उठाता है. यह इन्द्रिय तथा भौतिकता के क्षेत्र से  मस्तिष्क को शाश्वत की ओर प्रवृत्त करता है.
3.गणित  आत्मा को सूक्ष्म संख्याओं के विषय में तर्क करने को बाध्य करता है.

प्लेटों के अनुसार शिक्षा वह विधि है, जिसके द्वारा व्यक्ति में नैतिक संस्कारों को उत्पन्न किया जाता है. प्लेटों के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को तीन भागो में विभक्त किया गया है.- शारीरिक उन्नयन, विद्यासंस्कार, और संगीत की शिक्षा. जिसका ऊपर वर्णन किया गया है..

शिक्षा के प्रकार : - 

प्लेटो का विचार था कि शाररिक उन्नति के बिना  व्यक्ति की मानसिक उन्नति भी अच्छी  तरह से नहीं हो सकती. इसलिए उन्होंने व्यायाम  के महत्व को बतलाया. संगीत दिमाग  को चिंताओं से  दूर रखता है. इससे हमारे मस्तिष्क का विकास होता है. प्लेटो की शिक्षा का अंतिम उद्धेश्य था  व्यक्ति को  पूर्ण रूप से  योग्य बना देना.  
प्लेटो ने दो प्रकार की शिक्षा  का वर्णन किया है.

1. दैनिक कार्यों में  कुशलता  प्राप्त करने वाली शिक्षा. 
2.राज्य की सेवा करने के योग्य बनाने वाली शिक्षा .

दार्शनिक प्लेटो ( Philosopher Plato) इसमें प्रथम प्रकार की शिक्षा को हेय दृष्टि से देखते हैं. उसे वो निम्न कोटि की शिक्षा मानते हैं. उनका ये विचार  आधुनिक अमेरिका के विचार से भिन्न है. उनका यह विचार है कि दैनिक कार्यों में कुशलता प्राप्त करवाने वाली शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान और विवेक से दूर रखती है. ज्ञान और विवेक से दूर रहने पर व्यक्ति में आदर्शवाद की भावना नहीं आ पाती और प्लेटो व्यक्ति को आदर्श नागरिक बनाना चाहते हैं . जो शिक्षा व्यक्ति को आदर्श  नागरिक नहीं बना सके, वह शिक्षा निम्न्कोटी की है .

दुसरे प्रकार की शिक्षा को प्लेटो उच्च कोटि की शिक्षा मानते हैं. इस प्रकार की शिक्षा व्यक्ति में  विवेक और ज्ञान उत्पन्न कराती है. यह शिक्षा आदर्श  नागरिकों का निर्माण करती है.
   


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