बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित 10 गणराज्य कौन कौन से थे ? Baudh dharma aur 10 ganrajya

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बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित दस गणराज्य कौन कौन से थे ?  

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बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित 10 गणराज्य कौन कौन से थे ?  Baudh dharma aur 10 ganrajya


महाजनपर और गणराज्य-  बौद्ध  ग्रन्थ ' अंगुत्तर निकाय' के अनुसार ईसापूर्व की छठी में भारत में १९ महाजनपद थे। इनमें से कुछ महान में जनपदों भी गणतंत्रीय शासन व्यवस्था थी। परन्तु उनके अलावा भी अनेक छोटे जनपद ऐसे थे, जिनमें गणतंत्र शासन प्रणाली विद्यमान थी। बाद में मगध के शक्तिशाली सम्राटों ने इन जनपदों को अपने राज्य में मिला लिया था। बौद्ध ग्रन्थों में जिन दस गणराज्यों का उल्लेख हुआ है, वे निम्नलिखित हैं :


(१) कपिलवस्तु के शाक्य, (२) वैशाली के लिच्छिवि, (३) रामगाम के कोलिय, (४) पावा के मल्ल, (५) कुसीनारा के मल्ल, (६) पिप्पलिवन के मोरिय (७) मिथला के विदेह, (८) सुंसुमारगिरि के भग्ग, (६) अलकप्प के बुली और (१०) केसपुत्त के कलाम ।


शाक्य – कपिलवस्तु के शाक्य नेपाल की सीमा पर हिमालय की तलहटी में रहते थे। आजकल का तिलौराकोट संभवतः पुराना कपिलवस्तु था। शाक्यों का राज्य गोरखपुर और नेपाल के कुछ भाग में था । शाक्य स्वयं को इक्ष्वाकुवंशी कहते थे। बुद्ध का जन्म शाक्य गण में हुआ था, इसलिए यह बहुत प्रसिद्ध हुआ।


लिच्छिवि- वैशाली के लिच्छिवि आजकल के मुजफ्फरपुर जिले के बसाढ़ कस्बे के आसपास फैले थे। उस काल में इनका बड़ा प्रताप और प्रभाव था। इसीलिए बुद्ध की भस्म का कुछ भाग इन्हें भी मिला था। महावीर का जन्म वैशाली में ही हुआ था । लिच्छिवि लोग महावीर और बुद्ध दोनों से प्रभावित थे और दोनों का आदर करते थे।


कोलिय - रामगाम के कोलिय शाक्यों के पूर्वी पड़ोसी थे। कोलियों और शाक्यों में आपस में विवाद और विवाह होते रहते थे। विवाद रोहिणी नदी के पानी के लिए और विवाह कलह को समाप्त करने के उद्देश्य से । राजा शुद्धोदन ने दो कोलिय कुमारियों से विवाह किया था।


मल्ल - पावा और कुसीनारा दोनों ही मल्लों के गणराज्य थे। प्रो० कनिंघम के कथनानुमार गोरखपुर जिले का पडरौना ही पावा है। कुछ लोग फजिलपुर को पावा कहते हैं। कसिया कुसीनारा का वर्तमान रूप है। मल्ल लोग अपनी वीरता के लिए विख्यात थे।


मोरिय-पिप्पलिवन के मोरिय क्षत्रिय थे। संभवतः वे शाक्यों की ही एक शाखा थे। पिप्पलिवन ठीक किस जगह था, इस विषय में कुछ निश्चय नहीं किया जा सका। चन्द्रगुप्त मौर्य इस गण का कहा जाता है ।


विदेह - मिथिला नेपाल की सीमा पर स्थित आधुनिक जनकपुर है। यहां विदेह लोगों का गणराज्य था। किसी समय ब्रह्मज्ञान के लिए प्रसिद्ध रही मिथिला इस काल में व्यापार के लिए प्रसिद्ध थी।


भाग-संसुमारगिरि को डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल ने आज कल के मिर्जापुर जिले के आस पास का प्रदेश माना है। यहां के भग्ग वही भगं लोग थे, जिनका वर्णन ऐतरेय ब्राह्मण में है।


बुली और कलाम - अलकप्प के बुलियों और केसपुत्त के कलामों का केवल नामदेव भर प्राप्त होता है। अलकप्प संभवतः आजकल के शाहाबाद और मुजफ्फरपुर जिलों के बीच कहीं पर स्थित था। बुद्ध का शिक्षक आलार कलाम जाति का इन दोनों गणराज्यों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।


इन गणराज्यों की शासन व्यवस्था


डॉ० रमेशचन्द्र मजूमदार ने लिखा है कि "इन राज्यों के संविधान के सम्बन् ब्योरे निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। हम कुछ अनुमान ही कर सकते हैं। "


राजा–राज्यों में कोई वंशक्रमानुगत राजा नहीं होता था। शाक्य गणराज्य राज्य के मुखिया को 'राजा' कहते थे। परन्तु कुछ अन्य गणराज्यों में, जैसे कि लिि गणराज्य में प्रत्येक कुल का मुखिया राजा कहलाता था। शाक्यों का राजा कुछ समय के लिए निर्वाचित होता था। पहले बुद्ध का पिता शुद्धोदन शाक्यों का राजा था, बाद में बुद्ध चचेरे भाई भद्दिय और महानाम एक के बाद एक राजा चुने गये। परन्तु लिच्छिवियों के विषय में 'ललितविस्तर' में लिखा है कि "वैशाली के निवासियों में उच्च, मध्यम, बुद्ध, ज्येष्ठ आदि के भेद का विचार नहीं किया जाता। वहां प्रत्येक मनुष्य यही समझता है। कि मैं राजा हूं। कोई स्वयं को किसी से छोटा नहीं मानता।"


परिषद् - शाक्य गणराज्य में शासन कार्य एक परिषद् चलाती थी। इस परिषद् की बैठकें सन्यागार ( सभा भवन) में होती थीं। इस परिषद् के पांच सौ सदस्य होते थे। इससे डॉ० सत्यकेतु विद्यालंकार ने अनुमान किया है कि प्रत्येक नागरिक परिषद् का सदस्य नहीं होता था। केवल ऊँचे घरानों के मुखिया ही शासन के कर्ता-धर्ता थे। अर्थात् शाक्यों का शासन लोकतंत्रीय न हो कर अभिजात तंत्री (aristocracy) था।


इस दृष्टि से लिच्छिवि गणराज्य शाक्य गणराज्य से भिन्न था। 'एकपल् जातक' के अनुसार वैशाली में राज्य करने वाले राजा ७७०७ थे। यदि यह संख्या कपोल- कल्पित नहीं है, तो वैशाली की राजसभा (शासन परिषद् में जनता का प्रतिनिधित्व अधिक विस्तृत था। परन्तु इतने सारे लोग मिल कर शासन को किस प्रकार चलाते होंगे. यह समझ पाना कठिन है। संभवतः शासन का कार्य चलाने के लिए एक व्यक्ति निर्वाचित किया जाता था, जिसे 'नायक' (वर्तमान अर्थ में राष्ट्रपति) कहा जाता था। राजसभा के निर्णयों को कार्यान्वित करने का काम उसी का था ।


डॉ० राइस डेविड्स का कहना है कि कपिलवस्तु के केन्द्रीय सन्यागार के बनाया शाक्य गणराज्य के अन्य नगरों में भी स्थानीय सन्यागार थे और वहां के निवासी उनमें एकत्रित हो कर अपना स्थानीय शासन चलाते थे ।


सागारों में होने वाली मंत्रणाएं - बौद्ध ग्रन्थों में सन्यागारों में होने वाली माओं का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। कारण यह है कि वौद्ध संघ के अधिवेशनों में भी वही कार्यविधि अपनाई जाती थी जो राज्यों के इन सत्यागारों की मंत्रणाओं सदस्यों के बैठने की व्यवस्था करने का काम एक विशिष्ट पदाधिकारी करता था, जिसे 'आसन प्रज्ञापक' कहा जाता था। इसका काम देखना था कि कोई अनधिकारी व्यक्ति सदस्य के रूप में परिषद में न आ बैठे। "परिषद की मंत्रणा शुरू करने के लिए गणपूर्ति (कोरम) आवश्यक थी। परिषद् के अध्यक्ष (विनयधर) को गणपूर्ति के लिए नहीं गिना जाता था। 


गणपूर्ति होने पर परिषद् में 'शान्ति' (प्रस्ताव प्रस्तुतीथी। उस पर बाद-विवाद होता था। अप्रासंगिक भाषण की अनुमति नहीं थी। प्रस्ताव पर सदस्यों में मतभेद होने पर उसे किसी समिति को सौप दिया जाता था. जो मतभेद को दूर करने का प्रयत्न करती थी। उसके बाद भी मतभेद रहने पर मतदान (बोट) द्वारा बहुमत से निर्णय किया जाता था। मतदान 'शलाकाओ' (लकड़ी की कोलिया) से होता था। मतों की गणना करने वाला पदाधिकारी लगाय था। अधिवेशन को कार्यवाही लिखित रूप में सुरक्षित रखी जाती थी।


न्याय प्रणाली अन्य गणराज्यों की न्याय प्रणाली के विषय में  विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है, परन्तु लिच्छिवियों की न्यायव्यवस्था का वर्णन प्राप्त होता है। किसी भी अभियुक्त को सबसे पहले 'विनिश्चय महामाव' के सामने पेश किया जाता था । वह उस पर लगाये गये आरोपों की जाँच करता था। यदि वह अभियुक्त को निर्दोष पाता, तो वह उसे छोड़ देता था। परन्तु यदि वह उसे दोषी पाये तो वह अभियुक्त को स्वयं दंड नहीं दे सकता था, अपितु वह उसे 'व्यावहारिक' के सम्मुख देश करता था। वहाँ भी दोषी पाये जाने पर अभियुक्त को क्रमशः रु सेनापति, उपराजा और अन्त में राजा के सम्मुख उपस्थित किया जाता था। अभियुक्त को निर्दोष मानने की दशा में इनमें से कोई भी पदाधिकारी उसे छोड़ तो सहता था, परन्तु दोषी पाने पर उसे दंड नहीं दे सकता था। दंड केवल राजा हो दे सकता था और वह भी 'पवेनि पुस्तक' अर्थात् पूर्वोदाह्रणों के आधार पर। इस प्रकार, अभियुक्त को दंड केवल तभी मिल सकता था, जब इन पदाधिकारियों में से प्रत्येक उसे दोषी माने अन्यथा किसी भी एक पदाधिकारी द्वारा निर्दोष पाये जाने पर वह मुक्त हो सकता था। संक्षेप में, बुद्धकालीन गणराज्यों की शासन प्रणाली यही थी।



याद रखने के लिए संक्षिप्त स्मरण संकेत 


बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित दस गणराज्य


महाजनपद और गणराज्य - सोलह महाजनपदों में से कुछ में गणतंत्रीय शासनव्यवस् थी । बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित १० गणराज्य: कपिलवस्तु के शाक्य वैशाली के लिच्छिवि रामान के को लिय; पावा के मल्ल, कुसीनारा के मल्ल, पिप्पलिवत के मोरिय मिथिला के विदेह सुंसुमारगिरि के भग्ग; अलकप्प के बुली; केसपुत्त के कलाम । शाक्य - राजधानी कपिलवस्तु । स्वयं को इक्ष्वाकुवंशी मानते थे। बुद्ध का जन्म इन्हों में हुआ ।


लिच्छिवि-राजधानी वैशाली। प्रभावशाली | महावीर का जन्म वैशाली में। कोलिय- शाक्यों के पूर्वी पड़ोसी । शाक्यों से विवाद और विवाह सम्बन्ध शुद्धोदनका  विवाह कोलिय कन्याओं से 

मल्ल दो गणराज्य : (१) पावा (२) कुसोनारा वोरता के लिए प्रसिद्ध । मोरिय-पिप्पलिवन का वर्तमान स्थान पता नहीं । शाक्यों को ही एक शाखा । चन्द्रगुप्त मौर्य से सम्बन्ध

 विदेह - राजधानी मिथिला (आधुनिक जनकपुर)। नगर व्यापार और विद्या के लिए प्रसिद्ध ।


 भग्ग सुमारगिरि मिर्जापुर के पास का प्रदेश । ऐतरेय ब्राह्मण के भगं ।

 यलो और फलाम – केवल नाम मिलता है। बुद्ध का गुरु आलार कलाम जाति का था। इन गणराज्यों की व्यवस्था - विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं । इनमें आनुवंशि राजा नहीं होता था। राज्य का मुखिया भी राजा और प्रत्येक कुल का मुखिया भी राजा । राश

 कुछ समय के लिए निर्वाचित होता था। वैशाली में छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था। प्रत्येक मनुष्य राजा ।

 परिषद् - शाक्यों का शासन चलाती थी बैठकें संथागार में सब नागरिक सदस्य नहीं

 अभिजाततंत्रीय शासन ।

 लिच्छिवि राज्य लोकतंत्रीय ७७०७ राजा। जनता का प्रतिनिधित्व विस्तृत शासन कार्य एक निर्वाचित 'नायक' करता था ।

 राजधानी के अलावा अन्य नगरों में भी संथागार सत्यागारों को मंत्रणा पद्धति सदस्यों को बिठाने का काम 'बासन प्रज्ञापक' करता था।

 अधिकारी व्यक्ति का प्रवेश नहीं।

 गणपूर्ति आवश्यक विनयपर को गिनती गणपूर्ति के लिए नहीं।

माप्ति (प्रस्ताव ) पर वाद-विवाद असंगत भाषण मना। समिति के सुपुर्द मतदान काओं द्वाराका प्रज्ञापक मतों की गणना करता था ।

न्याय प्रणालीविष्ठियों की न्यायव्यवस्था बढ़िया अभियुक्त को निचले अधिकारी भी छोड़ सकते थे, पर दंड के राजा था। वह भो 'पवेति पुस्तक' के आधार पर ।


 

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