माँ दुर्गा के 108 नाम जानिये. Mata durga ke 108 naam

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अथ सप्तश्लोकी दुर्गा शिव उवाच- देवि त्वं भक्तसुलभे कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं सर्वकार्यविधायिनी । कलौ हि ब्रूहि यत्नतः ॥ देव्युवाच- शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् । प्रकाश्यते ॥ 


माँ दुर्गा के 108 नाम जानिये.  Mata durga ke 108 naam


मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः । ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा । 


बलादाकृष्य मोहाय हरसि भीतिमशेषजन्तोः महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥ दुर्गे स्मृता स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । का दारिद्र्यदुखभयहारिणि त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥


शिवजी बोले- हे देवि! तुम भक्तोंके लिये सुलभ हो और समस्त कर्मोंका विधान करनेवाली हो । कलियुगमें कामनाओंकी सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणीद्वारा सम्यक् रूपसे व्यक्त करो । 


देवीने कहा-  हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है । कलियुगमें समस्त कामनाओंको सिद्ध करनेवाला जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनो! उसका नाम है' अम्बास्तुति' । ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्रके नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गाकी प्रसन्नताके लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठमें इसका विनियोग किया जाता है । वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियोंके भी चित्तको बलपूर्वक खींचकर मोहमें डाल देती हैं ॥ १ ॥ माँ दुर्गे! आप स्मरण करनेपर सब प्राणियोंका भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषोंद्वारा चिन्तन करनेपर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं । दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करनेके लिये सदा ही दयार्द्र रहता हो ॥ २ ॥ 


( ८) सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥ शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ४ ॥ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ ५ ॥ रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि । एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥ न प्रयान्ति ॥ ६ ॥ ॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ॥ नारायणी! 


तुम सब प्रकारका मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो । कल्याणदायिनी शिवा हो । सब पुरुषार्थोंको सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो । तुम्हें नमस्कार है ॥ ३ ॥ शरणमें आये हुए दीनों एवं पीड़ितोंकी रक्षामें संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर करनेवाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है ॥ ४ ॥ 


सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकारकी शक्तियोंसे सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयोंसे हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है ॥ ५ ॥ देवि! तुम प्रसन्न होनेपर सब रोगोंको नष्ट कर देती हो और कुपित होनेपर मनोवांछित सभी कामनाओंका नाश कर देती हो । जो लोग तुम्हारी शरणमें जा चुके हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं । तुम्हारी शरणमें गये हुए मनुष्य दूसरोंको शरण देनेवाले हो जाते हैं ॥ ६ ॥ 


सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकोंकी समस्त बाधाओंको शान्त करो और हमारे शत्रुओंका नाश करती रहो ॥ ७ ॥ ॥ श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण ॥ 0239,08/02/2023) Shrikant Vishwakarma ॥ श्रीदुर्गायै नमः ॥ श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ईश्वर उवाच शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ १ ॥ 


ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी । आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ २ ॥ पिनाकधारिणी चित्रा महातपाः । मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ ३ ॥ सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ ४ ॥ चण्डघण्टा शंकरजी पार्वतीजीसे कहते हैं — कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनामका वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद( पाठ या श्रवण)- मात्रसे परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं ॥ १ ॥ 


माँ दुर्गा के 108 नाम जानिये.  Mata durga ke 108 naam



१- ॐ सती, २- साध्वी, ३- भवप्रीता( भगवान् शिवपर प्रीति रखनेवाली), ४- भवानी, ५- भवमोचनी( संसारबन्धनसे मुक्त करनेवाली), ६- आर्या, ७- दुर्गा, ८- जया, ९- आद्या, १०- त्रिनेत्रा, ११ ( श्रीदुर्गासप्तशत्याम् • १० च च शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा । सर्वविद्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ ५ ॥ दक्षकन्या अपर्णानेकवर्णा पाटला पाटलावती । पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥ ६ ॥ अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी । वनदुर्गा मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ ७ ॥ ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ ८ ॥ 


विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना । ९ । निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी । मधुकैटभहन्त्री चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ १० ॥ सर्वासुरविनाशा सर्वशास्त्रमयी सर्वदानवघातिनी । सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ ११ ॥ च च ३१ शाम्भवी( शिवप्रिया), ३२- देवमाता, ३३- चिन्ता, ३४- रत्नप्रिया, ३५- सर्वविद्या, ३६- दक्षकन श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् • ११ मुक्तकेशी कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ १२ ॥ अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा । महोदरी घोररूपा महाबला ॥ १३ ॥ अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी । कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ १५ ॥ नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ १६ ॥ धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च । चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ १७ ॥ य अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी । नारायणी भद्रकाली व

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