Four veda Hindi books in pdf चार वेदों की हिंदी पीडीऍफ़ बुक प्राप्त करें

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ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद अथर्ववेद हिंदी पीडीऍफ़ बुक

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यस्ते गन्धः पृथिवी संबभूव वं विभत्योषधयोः यमापः । व गन्धर्वा अप्सरश्च भेजिरे तेन मा सुरभि कृष्णु मानो द्विक्षत कश्चन।


पृथ्वी पर स्थित सुगंधित औषधियों और वनस्पतियों के रूप में जो गंध उत्पन्न होती है और जिसे गंधर्व और अप्सराएं धारण करती हैं। हे पृथ्वी! तू उस गध से हमें युक्त करे। हमसे ईर्ष्या न करने वाला कोई न हो। सभी हमारे प्रति मित्रभाव रखें।


माहिंसिष्टं कुमार्य स्थूणे देवकृते पथि शालाया देव्या द्वारे स्योनं कृष्मो वधूपथम् ॥


हे देवताओं! इस वधू को ले जाने वाले रथ को हानि न पहुंचाओ। हम गृहरूप देवता के द्वार पर इस वधू के मार्ग को मंगलकारी बनाते हैं। तपसा ये अनाधृष्यास्तपसा ये स्वर्ययुः । तपो ये चक्रिरे महस्तांश्चिदेवापि गच्छातात् । ताप के प्रभाव से, यज्ञादि साधनों द्वारा जो स्वर्ग को प्राप्त हुए हैं और जिन्होंने दुष्कर तप साधना की है, हे प्रेतात्मन्! तू उन्हों के निकट गमन करे।


भूमिका


चारों वेदों में अथर्ववेद चौथा है। अथर्ववेद दो अक्षरों से मिलकर बना है। अथर्व वेद - अथर्ववेद अथर्व में 'पर्व' धातु का अर्थ 'चलना, ' अर्थात् 'गति' है। इसमें 'अ' उपसर्ग लग जाने से' अथर्व' बनता है। तब इसका अर्थ हो जाता है---निश्चात् अर्थात् स्थिर, परन्तु इसका अर्थ गतिहीनता नहीं है। इसका अर्थ है- वेद का वह अर्थ या ज्ञान, जो स्थिर है। यह 'स्थिर ज्ञान' एकरस, सर्वव्यापक परब्रह्म परमेश्वर का ज्ञान है। यह ज्ञान अचंचल है।


रचना-प्रक्रिया


अथर्ववेद की अनेक नामों से पुकारा जाता है। वैदिक साहित्य में अथर्ववेद के 'ब्रह्मवेदभैषज्य वेद' और 'अथर्वाङ्गिर' नाम भी हैं।


अथर्ववेद को मन्त्र साधना साधक को 'स्थितप्रज्ञ' बनाती है। यह आत्मानुशासन की साधना है। ऐसी साधना और चिन्तन करने वाले ऋषियों को 'अथर्वा' अथवा 'आथर्वण' कहा जाता था। ये लोग 'अग्नि' के उपासक थे।


'अथर्वा' और 'अंगिरस' नाम के दो भिन्न ऋषि थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम


अग्नि को प्रकट किया था। अग्नि की उपासना 'यज्ञ' द्वारा की जाती थी।


अथर्वा ऋषि द्वारा जो ऋचाएं प्रस्तुत की गयीं, वे अध्यात्मपरक, सुखकारक, आत्मा का उत्थान करने वाली तथा जीवन में मंगलकारक स्थितियां प्रदान करने वाली हैं। ये 'सृजनात्मक ऋचाएं' हैं।


अंगिरस ऋषि द्वारा जो ऋचाएं प्रस्तुत की गयी हैं, वे अभिचारकर्म को प्रकट करने वाली, शत्रुनाशक, जादू-टोना, मारण, वशीकरण आदि को प्रदान करने वाली हैं। ये 'संहारात्मक' ऋचाएं हैं। ऐसा ऊपर से देखने पर लगता है। क्योंकि सृजन के लिए उन परिस्थितियों का परिहार भी आवश्यक है, जो सृजन के बीच बाधा रूप


अथर्ववेद संहिता बीस काण्डों में विभक्त है। इसमें 726 सूक्त और 5,977 मन्त्र हैं। बीसवें काण्ड में अधिकांश मन्त्र 'ऋग्वेद' के हैं। अथर्ववेद के इन मन्त्रों में साधना, उपासना तथा तन्त्र-विधान से अध्यात्म, ब्रह्मविद्या व आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। दोषों-दुर्भाग्य, दैन्य, दुःख, दारिद्र्य, पाप, शाप, ताप, अनिष्ट, आपत्तियां, संकट, संघर्ष, कष्ट, प्रेतबाधाओं-आदि से जीवन की रक्षा होती है।


हुआ है-सौद, अथर्ववेद की नौ शाखाओं का उल्लेख 'महाभाष्य' में पैप्पलाद, मौद, शौनक, जाजल, ब्रह्मवद, देवदर्श और चारणवैद्य। इनमें से 'शौनक' और 'पैप्पलाद' ही उपलब्ध हैं। प्रचलन 'शौनक' शाखा का है। इसमें 'कर्मकाण्ड' का वृहद् जाल बिछा हुआ है।



                                                          

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