भगवान राम ( lord Rama's birth ) का जन्म किस समय हुआ था जानिये ?
रामचन्द्र के जन्म का समय वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार दिया गया है: चैत्र मास नवमी तिथि दिति दैवत्य, अर्थात् पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति के उदय होने पर जब पाँच तारा-प्रद बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति तथा शनि अपने-अपने उच्च स्थान में थे, ऐसे ही समय में राम का जन्म हुआ। पुनर्वसु नक्षत्र रेवती से गणना करने पर नयाँ नक्षत्र है, अतः बंत्र की नवमी को जब चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में होगा, तब सूर्य रेवती नक्षत्र में होंगे । रामायण के रचनाकाल तक वसन्त-साम्पातिक बिन्दु रेवती नक्षत्र के समीप चला आया थ। वैदिक तथा वेदांग-काल में पूर्णिमा तथा अमावस्या के साथ-साथ अष्टक से भी समय की गणना होती थी।" अष्टक वह समय है, जब सूर्य तथा चन्द्रमा में वृत्त के चतुर्याश, अर्थात् १०° का अन्तर हो । इस समय का ठीक-ठीक ज्ञान करना पूणिमा अथवा अमावस्या के काल-निर्धारण से कहीं अधिक सुगम है। संवत्सर की गणना सभी प्राचीन देशों में वसन्त-साम्पातिक बिन्दु से ही आरम्भ होती थी, जब सूर्य ठीक-ठीक विषुव स्थान पर होता है तथा दिन-रात समान होते हैं। सैद्धान्तिक युग-पद्धति में युगों का अथवा मन्वन्तर कल्प आदि का आरम्भ ग्रहों के उच्च स्थान से ही लिया गया है। सृष्टि का आरम्भ, अर्थात् ग्रहों की गति का आरम्भ भी वैसे हो समय से माना गया है। राम के जन्म के समय चन्द्रमा का उदय हो रहा था। यह समय सूर्य के रेवती नक्षत्र में होने का, अर्थात् मेष-संक्रान्ति का था । नवमी को चन्द्रमा का उदय दोपहर को होगा, जब मेष राशि शिरोबिन्दु के समीप तथा उससे तीन राशि हटकर कर्क राशि पूर्व क्षितिज पर होगी। कर्कराशि के उदय होने का समय कर्क लग्न का समय है। बृहस्पति ग्रह की गति से भी संवत्सरों की गणना अब- तक होती आई है। राम के जन्म का समय स्पष्टतः किसी ज्योतिषीय पद्धति के अनुसार काल गणना आरम्भ करने का समय जान पड़ता है.
विश्वामित्र ने श्रीराम को कौन कौन से अस्त्र दिए जानिये .
Vishwamitra ne Ram ko kaun kaun se astra diye janiye.
राक्षसों का वध करने के हेतु विश्वामित्र ने राम को जो अस्त्र दिये, उनके नाम ये हैं - दण्डचक्र, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णु चक्र, ऐन्द्रचक्र, वख, शैवशूल, ब्रह्मशिरस्, ऐषीक, मोदकोगदा, शिखरोगदा, धर्मपाश, कालपाश, वारुणपाश, वारुणास्त्र, शुष्क- अशनि, आद्र-अशनि, पैनाक, नारायणास्त्र, शिखर नामक आग्नेयास्त्र, प्रमथ नामक वायव्यास्त्र, हयशिरस्, क्रोंच, विष्णुशक्ति, रुद्रशक्ति, कंकाल, मुसल, कापाल, कंकण, असिरत्न, मानव, प्रस्वापन, प्रशमन, सौम्य, वर्षण, शोषण, सन्तापन, विलापन, मदन, मोहन, तामस. सोमन, संवत्तं, सोम्य, शिशिर, त्याष्ट, शितेपु आदि।' भिन्न-भिन्न प्रकार के चक्र समय अथवा संवत्सर के हो रूप हैं, जैसा चतुर्भुज विष्णु के आयुधों के वर्णन में कहा जा चुका है। वज्र, ब्रह्मास्त्र आदि तथा शुष्क एवं आद्र-अशनि तडित् के भिन्न-भिन्न रूप है। अन्य अस्त्र सूर्य अथवा भौतिक शक्तियों के विभिन्न गुणों के नाम हैं। राम के आयुध कल्याणकारी तथा विपत्तिनिवारक प्राकृतिक विभूतियो के हो भिन्न-भिन्न गुण हैं। राक्षसों पर राम की विजय प्रकृति के सौम्य तथा पोषक गुणों की ही जीत है। द्विपद तथा चतुष्पदों का विनाश करनेवाली प्राकृतिक आपदाएं हो राक्षस-राक्षसी हैं ।
रामायण में राम द्वारा रुद्र के धनुष का टूटना कदाचित् वैष्णव-धर्म की रौद्र- धर्म पर महत्ता दिखाने की चेष्टा है। इन्द्र के अथवा रुद्र के परशु को तोक्ष्ण करनेवाले अग्नि के प्रतिरूप परशुराम हैं। परशुराम भृगुवंशी थे। शुक्र तारा को भी मृगु अथवा भार्गव कहते हैं। शुक्र का ही ऋग्वैदिक नाम कवि उशना है तथा आंधी-पानी के देवता इन्द्र एवं कवि उशना के युद्ध का वर्णन ऋग्वेद में आया है।
आध्यात्म रामायण.
Hi ! you are most welcome for any coment