सपने, इंसानी मस्तिस्क के भीतर चलने वाली एक विचित्र दुनियाँ होती है जिसका सच्चाई की दुनियाँ से कोई लेना देना नहीं होता, ऐसा आज के लोग मानते हैं . किन्तु ज्योतिष विज्ञान और धर्म शास्त्र इसे पूरी तरह से सच मानते हैं. सपने अपने संकेतों से हमे भविष्य की चीज़ें दिखा सकती है और ऐसा बहुत बार हमारे आपके साथ भी होता है जब हम कोई सपना देखते हैं वो अचानक से घटित हो जाता है . विज्ञान भले ही इससे खुद से दरकिनार कर ले लेकिन हमारे पौराणिक धर्म ग्रथ इसे सच मानते हैं. कुछ सपने सुखद होते हैं तो कुछ बहुत ही डरवाने. हम यहाँ बात कर रहे हैं एक बहुत ही भयभीत कर देने वाले सपने के बारे में जो त्रेता काल से जुडी हुई है. कहानी उस समय की है जब शत्रुघ्न और भरत अपने मामा घर चले गए और इस बीच केकई के कारण राम को अपने पिताजी के वचन को पूरा करने के लिए वनवास जाना पड़ा. लेकिन उसी रात भरत ने एक बहुत ही डरावना और विचित्र स्वपन देखा. कहते हैं ये त्रेताकाल का एक सबसे विचित्र और डरावना सपना है "(Tretakal ka sabse vichitra aur darawana sapna)" (The strangest and frightening dream of the Treta era)."
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जिस रात संदेशवाहक भरत के पास पहुँचे, उस रात भरत को एक दुःस्वप्न आया जिसके कारण वह अत्यन्त उद्विग्न होकर जाग पड़े। शत्रुघ्न ने भरत के मुख पर छाई चिंता की लकीरों को देखकर इसका कारण पूछा, तो भरत बोले, "कल रात मैंने स्वप्न में अपने पिता को देखा। वह मैले-कुचैले और परित्यक्त दशा में एक पर्वत के शिखर से गाय के गोबर के एक कुंड में गिर पड़े। कीचड़ में तड़पते और छटपटाते हुए, महाराज ने अपनी अंजुलि में तेल भरकर पिया और किसी पागलकी भाँति उन्माद में हँसने लगे। इसके बाद, उनकी परी देह तेल से लथपथ हो गई और वे इसी तेल में पके हुए चावल खाने लगे।
इसके बाद दृश्य बदल गया और मैंने एक सूखा हुआ समुद्र देखा और देखा कि चंद्रमा पृथ्वी पर गिर गया है। फिर अंधकार से लिपटी हुई धरती पर राक्षर हे था। विचरण करते देखा जबकि धरती पर ज्वालामुखी फट रहे थे और उनसे आग और लावा बाहर निकल रहा था। इसके बाद यह दृश्य ओझल हो गया और मैंने देखा कि मेरे पिता के हाथियों के दाँत टूट गये हैं। काले वर्ण की युवा स्त्रियाँ पहरेराया को उत्पीड़ित कर रही हैं और लाल रंग के चंदन का लेप लगाए हुए महाराज ने भी काली पोशाक पहन रखी है और लाल फूलों की एक माला पहन रखी है और वह लोहे के सिंहासन पर बैठे हुए हैं। अंत में, मैंने देखा कि गधों द्वारा हाँका जा रहा एक रथ, मेरे पिता को दक्षिण दिशा में ले जा रहा है।
"यह भयानक सपना देखकर, मुझे निश्चित रूप से ऐसा लगा मानो मेरे पिता, मैं या फिर मेरा कोई भाई निश्चित ही मर जायेगा। यहाँ तक कि अब भी, बिना किसी स्पष्ट कारण के मेरे हृदय में निरंतर भय की एक अनुभूति हो रही है। मेरा सिर चकरा रहा है और मुझे लज्जा व घृणा का अनुभव हो रहा है, परंतु मेरे पास इन सबका कोई स्पष्ट कारण नहीं है। इस बारे में मैं जितना ज्यादा सोचता हूँ, उतने ही निश्चित रूप से मुझे विश्वास होने लगता है कि यह स्वप्न किसी घोर अनिष्ट का सूचक है।" भरत अभी बोल ही रहे थे कि तभी अयोध्या से आये संदेशवाहक उनके कक्ष में आ गये। महाराज अश्वपति और भरत को प्रणाम करने के बाद, उन्होंने संदेश सुनाया, "हे राजकुमार, मंत्रियों और वशिष्ठ मुनि ने आपको तत्काल अयोध्या बुलाया है क्योंकि किसी अति-आवश्यक कार्य के लिए वहाँ आपकी उपस्थिति अनिवार्य है।"
इस प्रकार हम देखते हैं कि सपनों की हकीकत का जिक्र बाल्मीकि रामायण में भी दर्ज है. अत: हम कह सकते हैं कि सपने कभी झूठ नहीं हो सकते. इसके ज़रिये आप भविष्य में होने वाली घटनों को जान सकते हैं.
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