चन्द्रमास ( Chandramas) किसे कहते हैं ?

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चन्द्रमास ( Chandramas) किसे कहते हैं ?

आधुनिक युग के वैज्ञानिकों ने यह खोज की है कि सूर्य में उत्पन्न हो वाली चुम्बकीय धारायें 5 वर्ष तक बढ़ती हैं, एक वर्ष सामान्य रहती हैं, कि 5 वर्ष घटती हैं और एक वर्ष घटी हुई अवस्था में सामान्य रहती हैं। कितने विस्मय की बात है कि हमारे प्राचीन ऋषियों ने 25000 वर्ष पूर्व ही यह कहा था कि एक सौर महायुग 12 वर्ष का होता है और युग 5 वर्ष का। उनके अनुसार कुछ महत्वपूर्ण गणितीय विवरण निम्न है- जानिये चंद्रमास ( Chandramas kya hai) या चंद्रमास  chandramas किसे कहते हैं.? 

पक्ष

चन्द्रमा की एक कला को ज्योतिष में तिथि कहा गया है। इसका सूर्व और चन्द्रमा के अंतरांशों पर से मान निकाला जाता है। चन्द्रमा जब सूर्य में 12 अंश आगे पहुंचता है, तब एक 'तिथि' पूरी होती है। 180 अंश आगे पहुंचने पर एक पखवाड़ा तथा 360 अंश आगे पहुंचने पर 30 तिथियां पूरी होती हैं, जिसे 'चन्द्रमास' ( Chandramas) कहते हैं।


पक्ष - एक चन्द्रमास में दो पखवाड़े (पक्ष) होते हैं-


1. शुक्ल पक्ष,


2. कृष्ण पक्ष ।


1. शुक्ल पक्ष - जब चन्द्रमा प्रतिदिन सूर्य से 12 अंश आगे बढ़ता हुआ 180 अंश को पार कर जाता है, तो 15 तिथियां पूर्ण होती हैं। तिथियों के इस क्रम को, जो 15 दिनों में पूर्णिमा तक समाप्त होता है, 'शुक्ल पक्ष' कहते हैं। इन पन्द्रह दिनों में चन्द्रमा प्रतिदिन आकाश में थोडा-थोड़ा बढ़ना प्रारंभ कर देता है और अन्तिम दिन अर्थात् 15वें दिन पूर्ण रूप में आ जाता है। जिस दिन चन्द्रमा बढ़ते-बढ़ते पूर्ण रूप को धारण करता है उसे 'पूर्णिमा' कहते हैं।


2. कृष्ण पक्ष-जब चन्द्रमा सूर्य से 180 अंश को पार करता हुआ 360 अंश आगे बढ़ जाता है, तो इस क्रम को 'कृष्ण पक्ष' कहते हैं। इन पन्द्रह दिनों में चन्द्रमा प्रतिदिन आकाश में थोड़ा-थोड़ा करके घटने लगता है तथा पन्द्रहवें दिन बिल्कुल दिखाई नहीं देता, जिस दिन चन्द्रमा बिल्कुल दिखाई नहीं देता उसे 'अमावस्या' कहते हैं।


अमावस्या के तीन भेद होते हैं। प्रातः काल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या को 'सिनीवाली अमावस्या' कहा जाता है, चतुर्दशी से बिद्ध अमावस्या को 'दर्श अमावस्या' कहा जाता है तथा प्रतिपदा से युक्त अमावस्या को 'कुहू अमावस्या' कहते हैं।


तिथियाँ


दोनों पक्षों की चौदह तिथियों का नाम एक ही होता है, जो निम्नलिखित हैं-


1. प्रतिपदा, 2. द्वितीया, 3. तृतीया, 4. चतुर्थी, 5. पंचमी, 6. षष्ठी, 7. सप्तमी, 8. अष्टमी, 9. नवमी, 10. दशमी, 11. एकादशी, 12. द्वादशी, 13. त्रयोदशी, 14. चतुर्दशी।


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