शाप और वरदानों की अद्भूत गाथा (शाप कथा सीरिज) curse & boon strange stories in Hindi mythology stories in Hindi.
शाप और वरदान (curse and boon) हमारे धार्मिक पुराणों में वर्णित दो ऐसी अद्भूत चीज़ें हैं जो उस दुनियाँ को काफी दिलचस्प और रहस्यमयी बनाती है जिस दुनियाँ को हम मानवों ने न कभी देखा ना जाना,सिर्फ उस संसार को कथा-कहानियों, पुराणों एवं धर्म धर्म ग्रथों के द्वारा पढ़कर महसूस किया. लेकिन शाप और वरदान के बिना देवी देवताओं की दुनियाँ अपूर्ण मानी जाती हैं. जिस प्रकार आज के समाज में दंड और पुरस्कार का चलन है उसी प्रकार पौराणिक देवी देवताओं के काल में भी शाप और वरदान का विधान रहा है. लेकिन उस समय कब किसे कौन सा वरदान मिलने वाला है या फिर शाप, किसी को कुछ पता नहीं होता था. लेकिन इतना तो पूरी तरफ से साफ़ था कि जिनके पास शाप और वरदान देने की शक्ति थी वो निष्पक्ष थे. त्रिदेवों में ब्रह्मा-विष्णु और महेश और त्रिदेवियों में लक्ष्मी, काली और सरस्वती किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं करते थे. चाहे वो कोई देव हो या दानव, असुर हो या मानव यदि वो वरदान का अधिकारी है तो उसका हर दशा में वरदान मिलना तय रहा. किन्तु यदि उसने कोई महा अधर्म और जघन्य अपराध किया है तो फिर उसे उस भीषण शाप से भी कोई नहीं बचा सकता था. किन्तु कभी-कभी कोई विषम परिस्थिति भी रही होगी जहाँ न चाहते हुए भी कुछ को अनावश्यक ही शाप मिल गए होंगे. हम आज केवल शाप की बात कर रहे हैं क्यूंकि वरदानों की कहानी मेरी अगली सीरिज है. ये “शाप” विषय जितना रोचक है उतना दारुण भी. क्यूंकि उस काल में कब कहाँ किससे क्या भूल हुई? क्या परिस्थिति रही होगी कि किसी को शाप मिला होगा पता नहीं. आज हम ऐसे ही कुछ अनोखी कहानियों के द्वारा उस काल और उस काल में जीने वाले पात्रों को समझने की कोशिश करेंगे जिन्हें न चाहते हुए भी कई प्रकार के भीषण शापों का सामना करना पड़ा.
“शाप और वरदानों की अद्भूत गाथा” शाप कथा सीरिज, कहानीकार एवं संकलनकर्ता श्रीकांत विश्वकर्मा एक लेखक और रिसर्चर हैं जो बीते 10 वर्षों से मुंबई फिल्म जगत से जुड़े हुए हैं. इस दौरान श्रीकांत ने कई पौराणिक माईथोलौजिकल टी.वी शोज भी लिखे और कई शोज पर अब भी काम कर रहे हैं, प्रस्तुत करने जा रहे हैं शाप और वरदानों की अद्भूत गाथा में पहली कड़ी शाप कथाओं की. आशा है पाठकों को पसंद आये.
शाप और वरदानों की अद्भूत गाथा ( Curse and Boon mythological stories )
दानव शंखचूड और देवी तुलसी की कथा ( mythology stories Shankhcur aur Tulsi devi)
Demon Shankhcur & Goddess Tulsi story in Indian mythology. Hindi bhgwan ki kahani.
बहुत समय पहले की बात है..गोलोक में तुलसी नाम की एक गोपी रहती थी जो बहुत ही धर्मनिष्ट और भगवान विष्णु को सच्चे ह्रदय से पूजने वाली एक भक्तन गोपी थी. तुलसी, हमेशा कृष्ण जी के आमने– सामने ही दिखाई पड़ती ताकि वो अपने भगवान को देख सके. तुलसी की ही भांति सुदामा भी कृष्ण के लिए मर मिटने वाला एक गोप था. तुलसी और सुदामा हमेशा कृष्ण के आमने- सामने रहते ताकि वो अपने भगवान को हमेशा देख सके उन्हें पूजा सके. लेकिन कृष्ण के प्रति इतना लगाव और प्रेम देखकर राधा जी ने गुस्से में आकर तुलसी और सुदामा दोनों को ही गोलोक से निष्काषित कर उन्हें श्राप दे दिया. राधा के श्राप के कारण ही तुलसी का जन्म भारतवर्ष के एक राजा धर्मध्वज की पुत्री के रूप में हुआ और सुदामा का जन्म एक दानव, शंखचूड के रूप में हुआ. शंखचूड एक महा पराकर्मी दानव था जिसने कई युद्ध जीते. उसके पास कई मायावी शक्तियां भी थी.
उसकी सबसे ख़ास बात ये थी कि वो दिखने में एक दानव नहीं बल्कि एक सुन्दर राजकुमार योद्धा की तरह दिखता था. एक बार राजा धर्मध्वज की पुत्री तुलसी की नज़र शंखचूड पर पड़ी और उसे उस असुर से प्रेम हो गया. शंखचूड ने तुलसी को सारी सच्चाई बताई कि वो एक असुर है फिर भी तुलसी का प्रेम कम नहीं हुआ. तुलसी के पिता राजा धर्मध्वज इस विवाह के विरुद्ध थे लेकिन फिर भी दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया और तुलसी उस दानव के पास रहने आ आ गयी. इसी बीच पराक्रमी दैत्य शंखचूड ने ब्रह्माजी से महा प्रतापी अजेय योद्धा का वरदान पाकर सभी देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया. शंखचूड हर बार देवताओं से इसलिए युद्ध जीत जाता था क्यूंकि उसकी पत्नी तुलसी एक दानव की पत्नी होकर भी हमेशा पतिव्रत धर्म का पालन किया करती थी. तुलसी के पतिव्रत धर्म के तेज से उसके पति शंखचूड को कोई भी देवता पराजित नहीं कर पाता था.
देवताओं में अब खलबली मच चुकी थी. सभी परेशान होकर विष्णु जी के पास पहुँचते हैं. विष्णु सभी देवताओं को राधा द्वारा तुलसी और सुदामा को दिए जाने वाले श्राप के बारे में बताते हैं और साथ ही वो ये भी बताते हैं कि पिछले जन्म में शंखचूड उनका भक्त था इसलिए वो उसे नहीं मार सकते. लेकिन ये काम महादेव ज़रूर कर सकते हैं. देवताओं के प्रार्थना करने पर विष्णु , महादेव के पास जाते हैं और उन्हें एक त्रिशूल देकर दानव शंखचूड का वध करने को कहते हैं. मगर शिव जी भी इसमें असमर्थता जताते हुए कहते हैं कि तुलसी के पतिव्रत धर्म के कारण कोई भी उस दैत्य को नहीं मार सकता. तब विष्णु , महादेव को ये रहस्य बताते हैं कि यदि तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया जाए तो उसके दानव पति का अंत किया जा सकता है. जगत कल्याण के लिए ये ज़रूरी भी था. इसी कारण विष्णु ने छल का सहारा लिया और अपना रूप तुलसी के दानव पति शंखचूड के रूप में बदलकर तुलसी के पतिव्रत धर्म को भंग कर दिया.
इसी के बाद भगवान शंकर से युद्ध करने के दौरान शंखचूड मारा गया. जब तुलसी को इस बारे में पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पाषाण पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. तुलसी जब विलाप करके रोने लगी तो भगवान नारायण ने तुलसी को समझाया - “ये जगत के कल्याण के लिए बहुत ज़रूरी था मगर तुम अपने पति के लिए मत रोओ क्यूंकि उसका उद्धार हो चुका है. उसे मोक्ष की प्राप्ति हो चुकी है और तुम्हे भी तुम्हारी तप और पूजा के लिए वरदान मिलना चाहि.” इसके बाद विष्णु ने तुलसी को वरदान दिया कि उसका शरीर गण्डकी नदी के रूप में प्रसिद्द होगा. उसके केश तुलसी दल के पौधे बनेंगे जो देव पूजन के कार्य आयेंगे. विष्णु ने आगे कहा “मैं पाषाण शालग्रामशीला के रूप में उसी गण्डकी नदी के तट पर वास करूंगा. इस प्रकार तुम सभी काल में मेरे साथ रहोगी.” इसी के बाद तुलसी को दिया गया वरदान भी फलित हो गया..पुराणों के अनुसार तुलसी के इसी श्राप के कारण विष्णु को शालिग्राम के रूप में पूजा जाता है और भगवान शिव की पूजा अर्चना में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता वो सिर्फ विष्णु के लिए है.
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