शाप कथा : राजा परीक्षित कौन थे और उनकी मृत्यु कैसे हुई ( Story of King Parikshit)

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राजा परीक्षित की कहानी ( Story of raja Parikshit)  में हम जानेंगे परीक्षित कौन थे और किसके पुत्र थे ? और राजा परीक्षित की मृत्यु कैसे हुई थी .(How Raja Parishit was killed in Hindi)


शाप कथा : राजा परीक्षित कौन थे और उनकी मृत्यु कैसे हुई ( Story of King Parikshit)

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद धृतराष्ट्र ने युधिस्ठिर से ऋण लेकर अपने सौ पुत्रों का अंतिम संस्कार और पिंड दान करवाया और गांधारी, कुंती और विदुर के साथ वन चले गए. पांडवों ने भी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु एवं पौत्र परीक्षित को हस्तिनापुर के सिंघासन पर बिठाया और वो स्वर्गारोहण कर गए.

माना जाता है कि इसीके बाद परीक्षित ने लगभग साथ वर्षों तक राज किया मगर इसी बीच कलियुग के आने का समय हो गया. कलियुग, राजा परीक्षित को उस समय मिला जब राजा शिकार पर निकले थे. राजा परीक्षित किसी भी प्रकार से कलियुग को आश्रय नहीं देना चाहते थे किन्तु ये कलियुग का समय था और उसे लौटाया नहीं जा सकता था इसलिए राजा परीक्षित ने कलियुग को अपने स्वर्ण के मुक्त में स्थान दे दिया जिसके बाद धीरे-धीरे कलियुग ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया और राजा परीक्षित की बुद्धि ख़राब होती चली गयी. 

एक बार जब राजा परीक्षित आखेट के लिए निकलने तो उन्होंने कलि के प्रभाव में आकर उन्होंने एक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया जिससे उस ऋषि ने परीक्षित पर क्रोधित होकर सर्प से दासकर उसकी मृत्यु होने का शाप दे दिया. 

राजा परीक्षित ने स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए हर उपाय अपनाने शुरू कर दिए. उन्होंने ऐसे महल का निर्माण करवाया कि वहां राजा की आज्ञा के बिना हवा भी प्रवेश नहीं कर सकती थी. लेकिन जैसा कि भगवान और ऋषि मुनियों का शाप कभी खाली नहीं जाता. मृत्यु किसी तरह अपना रास्ता ढूंढकर सर्प के रूप में राजा परीक्षित के पास पहुँच जाती है और सर्प दंश से राजा परीक्षित की मृत्यु हो जाती है. 

परीक्षित के बाद उनके पुत्र जन्मेजय राजा बना. उनके राज्य में प्रजा सुखी से अपना जीवन बीता रही थी. उसी दौरान उनके राज्य में उत्तंकमुनि का आगमन हुआ जिसने राजा जन्मेजय को बता दिया कि उसके पिता की मृत्यु तक्षक नाग के काटने पर हुई थी और तक्षक ने ये जानबूझकर किया था. ऋषि जन्मेजय को आगे बताते हैं कि ऋषि कश्यप तो राजा परीक्षित को जीवित भी करने के लिए आ रहे थे मगर तक्षक ने उन्हें आने नहीं दिया. इसलिए उसके पिता की मृत्यु का दोषी सारा नाग वंश है और इसका प्रतिशोध लेना चाहिए. 

उत्तंकमुनि की बात मानकर राजा जन्मेजय ने सर्प -सत्र यज्ञ आरम्भ करना शुरू कर दिया. इस यज्ञ के प्रनिमान स्वरुप ही संसार के सारे सर्प जहाँ भी थे वो आकर उस अग्निकुंड में गिरकर भस्म होने लगे. धीरे धीरे सर्पों की जातियां धरती से नष्ट होने लगी. तभी इसी बीच देवी मनसा के पुत्र आस्तिक ने आकर राजा जन्मेजय को समझाया कि उसके पिता की मृत्यु में तक्षक या नाग वंशों का कोई दोष नहीं, सब विधि का विधान है. आस्तिक मुनि के समझाने के बाद ही राजा जन्मेजय अपना सर्प- सत्र यज्ञ बंद करता है और शेष बचे नागों का जीवन बच जाता है.

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