Ram & Hanuman's untold stories in Hindi- Story Number -1
ये कथा उस समय की है जब भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद सब अपने अपने राज्य चले गए...कोई युवराज बने कोई राजा तो कोई आश्रम में जा बसे..लेकिन हनुमान जी अय्योध्या छोड़कर नहीं गए...
राम जी देख रहे थे हनुमान जी तो अयोध्या छोड़कर जा ही नहीं रहे हैं ..जब भगवान राम स्वयं ही हनुमान जी से कुछ बोल नहीं पाए तो उन्होंने माता सीता का सहारा लिया और माता सीता से रात्रि प्रहर में कहा कि हनुमान ने बहुत काम किये हैं बहुत सेवा की है मेरी तो क्यूँ ना हनुमान को भी कोई राज्य अथवा पद दे दिया जाए तो ठीक रहेगा..तुम कल हनुमान से बात करो ताकि हनुमान भी मेरी सेवा से निवृत होकर यहाँ से जाये..
यह सुनकर सीता जी ने तपाक से कहा आर्य मुझे आप ये कार्य मत ही दीजिये..और मैं ऐसा करना भी नहीं चाहूंगी..मैं तो कभी नहीं कहूँगी कि हनुमान अयोध्या छोड़ के जाए.. यहाँ सीता जी ने हास-परिहास में राम जी से एक बहुत ही गहरी बात कह देती हैं - अपने पुत्रों को बिना अपराध के वन भेज देने की परंपरा आपके वंश में होगी नाथ, मेरी वंश में तो नहीं है..इसलिए मैं नहीं कहूँगी..राम जी ताना सुनकर सो गए..
सुबह उठे तो भरत जी मिले...उस समय अयोध्या के मंत्री वही थे जो सारा काम देखते थे...राम जी ने हनुमान की बात भरत से कही कि जल्दी से हनुमान के लिए कोई पद निकालो और उसे देकर सम्मान से हनुमान को भी विदा करो...भारत ने हाथ जोड़कर कहा भैया हमने तो इस बात के लिए अपनी चिता सजा ली थी कि आप नहीं आयेंगे..वो तो भानुमान जी ही थे जिन्होंने मुझे आस जगाया कि आप आयेंगे..हनुमान ने मुझ मृत को विश्वास की संजीविनी से पुनर्जीवित किया है..ऐसे में तो मैं कभी हनुमान से नहीं कहूंगा कि वो यहाँ से जाए...
भाई का वियोग, वो भी चौदह वर्षों तक क्या होता है वो मैंने जाना है...अब मैं हनुमान के वियोग में नहीं जी सकता...इसलिए मैं नहीं कहूँगा...तब जाकर राम ने लक्ष्मण जी से कहा कि जाकर तुम हनुमान से कहो.. लक्ष्मण ने कहा कि आपसे और माता सीता के बाद मेरा सबसे अपना कोई है तो वो हैं हनुमान..मैं जब मूर्क्षित हो गया था और आपके पास कोई विकल्प नहीं था तो उस समय हनुमान जी ने ही मेरे प्राण बचाए थे..अगर हनुमान नहीं होते तो मैं भी ना होता..इसलिए मैं अपने जीवन दाता भाई समान हनुमान को वापस जाने की नहीं बोल सकता..
इसके बाद राम जी ने शत्रुघ्न जी से कहा..शत्रुघ्न ने कहा भैया हनुमान जी इस समय हमारे परिवार के सदस्य के सामान है..कोई अतिथि नही..ऐसे में कोई अपने ही घर के सदस्य से कैसे जाने को कह सकता है..यह मेरे वश की बात नहीं है..अंत में राम जी ने हनुमान के सम्मान में एक राजसभा लगाई और हनुमान की खूब तारीफ़ करते हुए कहा कि मेरे लिए जिसने जो भी किया उसे मैं कुछ ना कुछ उपहार दिया..लेकिन तुमने कुछ नहीं माँगा..और मैं ये निर्णय भी नहीं ले पा रहा था कि तुम्हे क्या दिया जाए..क्यूंकि जितना उपकार सुग्रीव का मुझ पर है उससे दो गुणा उपकार तुम्हारा मुझ पर है..इसलिए आज तुम भी कोई एक पद मांग लो..तब ज्ञान और बुद्धि के सागर हनुमान ने कहा प्रभु आपने अभी-अभी कहा कि मैंने सुग्रीव से दोगुना काम किया है तो पद भी तो दो ही मिलना चाहिए ना मुझे..इसलिए मुझे एक पद नहीं दो पद चाहिए...दरबार में बैठे सभी ये सुन अवाक हो गए हनुमान तो लालची हो गए एक की जगह दो पद मांग रहे हैं..
तब राम जी ने सोचा एक की जगह दो पद लेके जाने को राज़ी है तो क्या बुरा है..राम जी ने कहा ठीक है चलो दो पद ले लो..भगवान राम का इतना ही कहना था की हनुमान जी ने फ़ौरन श्रीराम के दोनों पद पकड़ते हुए कहा तो ठीक है प्रभु आज से आपके ये दोनों पद मेरे हुए...और इस पद से मुझे कोई नहीं हटा सकता..आप भी नहीं, क्यूंकि आप तो मुझे अपना पद दे चुके हैं...यह सुनकर राम जी हनुमान को गले से लगा लेते हैं तुम सच में ज्ञान बुद्धि और बल के महा सागर हो हनुमान..तुम्हारी सदा जय होगी..तुम्हे आज से यही पद मिलेगा..

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