मनुष्य को सूर्य से अग्नि कैसे मिलती है?
आइए इसे सनातन धर्म की दृष्टि से समझें — कैसे हमें सूर्य से ऊर्जा और अग्नि प्राप्त होती है, जो मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सनातन धर्म में सूर्य की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। नौ ग्रहों (नवग्रहों) में सूर्य को सबसे शक्तिशाली और श्रेष्ठ देवता माना गया है; इसलिए हम उसकी पूजा करते हैं। लेकिन इस परंपरा के पीछे एक गहरा वैज्ञानिक कारण भी है।
जिस प्रकार पौधों और वृक्षों को खिलने और जीवित रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हम मनुष्यों के लिए भी सूर्य का प्रकाश अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना हमारा जीवन समाप्त हो जाएगा। इसी कारण प्राचीन हिंदू संस्कृति में सुबह-सुबह सूर्य को जल अर्पित करने की परंपरा रही है — जिसे सूर्य अर्घ्य कहते हैं।
परंपरागत रूप से सूर्य को अर्पित किया जाने वाला जल तांबे या पीतल के पात्र से डाला जाता है। आपने देखा होगा कि जब प्रकाश को मेडिफाइंग ग्लास (magnifying glass) के माध्यम से एक बिंदु पर केंद्रित किया जाता है, तो वह अग्नि तक जला सकता है। यही वैज्ञानिक तथ्य हमारे ऋषियों और मुनियों को ज्ञात था।
फिर भी, उस समय — और आज भी — बहुत से लोग इस विधि के पीछे का कारण और महत्व नहीं जानते। जब हम जल को धीरे-धीरे और सतत रूप से सूर्य को अर्पित करते हैं, तो सूर्य की किरणें जल की गिरती धारा से होकर गुजरती हैं। जल और सूर्य की किरणें एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं, और उससे निकलने वाली प्रकाश किरण कुछ समय के लिए सीधे हमारे कपाल (माथे) पर पड़ती है।
वही प्रकाश हमारे लिए एक अग्नि का कार्य करता है — यह हमारे भीतर की ऊर्जा को जाग्रत करता है, मन को शुद्ध करता है और हमें जीवन स्रोत सूर्य से जोड़ता है।

Hi ! you are most welcome for any coment