लेखक : श्रीकांत विश्वकर्मा
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Baal Garuda & “Mahabali Baal Garuda Story, written by Shrikant Vishwakarma — available in both Hindi and English on Amazon.”
अध्याय प्रथम: अंधेरी रात
का भय.
हमारी कहानी पक्षीपुरम नामक गाँव से शुरू होती
है जिसे युगों पहले गरुड़ देव ने सभी पक्षियों के लिए बसाया था मगर सदियों बाद इस
नगर में मानव रहने लगे और वो सारे पक्षी कहीं अदृश्य हो गए. आज अमावश की रात थी. रात
का अंधेरा गाँव पर स्याही की तरह फैला हुआ था. आकाश में बादलों ने चाँद-तारों को
ढक लिया था, मानो प्रकृति
स्वयं कोई अनहोनी घटना को छिपाना चाहती हो. हवा में सनसनाहट थी, जो सिर्फ रात की शांति को
ही नहीं, बल्कि गाँव वालों
के दिलों में बसे डर को भी बयां कर रही थी.
गाँव के बीचों-बीच, पुराने बरगद के पेड़ के
नीचे, मशालों की लौ
टिमटिमा रही थी. उनकी रोशनी में गाँव के पचास-साठ लोग इकट्ठे थे. हाथों में
लाठियाँ, डंडे और कुछ के
पास तीखे फावड़े थे. उनके चेहरों पर गुस्सा था, लेकिन आँखों में वही पुराना डर साफ झलक रहा था.
"ये हद हो गई है, रामलाल काका!" एक युवक ने अपनी लाठी जमीन
पर पटकते हुए कहा, "कल फिर उस शैतान
ने श्यामू की दो बकरियों का काम तमाम कर दिया. अब तो वो दिनदहाड़े ही हमला करने से
नहीं हिचकता." रामलाल, जो गाँव के सबसे उम्रदराज
और अनुभवी व्यक्ति थे, ने गहरी सांस ली.
"सच कह रहे हो, बिरजू. लेकिन ये
कोई साधारण भेड़िया नहीं है. इसकी आँखों में जो चालाकी और
बर्बरता है, वो मैंने आज तक
किसी जानवर में नहीं देखी."
एक औरत, जिसका बेटा अब स्कूल नहीं जा रहा था, बोली, "सबसे बड़ी बात तो ये है
कि हमारे बच्चे डर के मारे स्कूल जाना ही छोड़ चुके हैं. पिछले महीने जब वो
भेड़िया स्कूल के पास दिखा था, तब से तो मास्टर जी भी बच्चों को अकेले नहीं आने देते."
बातें हो रही थीं, योजनाएं बन रही थीं, लेकिन हर किसी की नज़रें
अंधेरे में घूर रही थीं, मानो उसी क्षण वह
राक्षसी भेड़िया कहीं से निकल आएगा.
तभी अचानक...गाँव के बाहरी छोर से एक तेज आवाज़
आई. "आ गया! वो आ गया! झाड़ियों में है!" यह सुनते ही सारे लोगों में एक साथ हलचल मच गई। लाठी-डंडे तने, वे सब एक साथ उस दिशा में
दौड़ पड़े. मशालों की रोशनी में उनके लंबी-लंबी परछाइयाँ डरावना नज़ारा पेश कर रही
थीं.
दौड़ते-दौड़ते जब वे खेतों के किनारे पहुँचे, तो सामने की झाड़ियाँ
हिलीं और एक विशालकाय, काली छाया तेजी
से बाहर निकली. वह भेड़िया था. उसकी आँखें लाल-पीली चमक रही थीं, मानो अंगारे हों. उसने
भीड़ की तरफ एक घृणा भरी नज़र देखी और फिर तेजी से जंगल की ओर भागना शुरू कर दिया.
"पकड़ो उसे! आज इसका अंत कर दें!" किसी ने
चिल्लाकर कहा.
पूरा का पूरा समूह उसके पीछे दौड़ पड़ा. चीखें, लाठियों की खनखनाहट और
भेड़िये के पैरों की तेज आवाज़ से पूरा जंगल गूंज उठा. भेड़िया बेहद चालाक था. वह सीधा न भागकर टेढ़े-मेढ़े रास्तों से भाग रहा था, झाड़ियों में छिप-छिपकर, मानो वह जानबूझकर उन्हें
किसी खास दिशा में ले जा रहा हो.
करीब पंद्रह मिनट के पीछा करने के बाद, वह एक पहाड़ी की तलहटी
में स्थित एक बड़ी, अंधेरी गुफा के
सामने जा पहुँचा। उसने एक बार पलटकर भीड़ की तरफ देखा, और उसकी आँखों में एक
अजीब सी चमक थी, मानो वह मनुष्यों
को चुनौती दे रहा हो। फिर वह झट से उस गुफा के अंधेरे में समा गया।
गाँव वाले वहाँ रुक गए. गुफा के मुहाने पर खड़े
होकर वे अंदर झाँकने की कोशिश करने लगे, लेकिन अंदर सिर्फ घना अंधेरा था।
"अंदर चलते हैं!" बिरजू ने जोश में कहा।
"नहीं!" रामलाल काका ने उसका हाथ पकड़ लिया, "ये गुफा बहुत पुरानी और
खतरनाक है. दिन में भी इसके अंदर जाना मुश्किल है, रात में तो आत्महत्या करने जैसा होगा. वो भी उस
हत्यारे के साथ।" "तो क्या हम खाली हाथ लौट
जाएँ?" कोई दूसरा बोला. "आज के लिए हाँ," रामलाल ने निराश स्वर में
कहा, "लेकिन कल सुबह हम
फिर से आएंगे। अब ये लड़ाई और लंबी नहीं खिंचेगी।"
थके-हारे, निराश और क्रोध से भरे गाँव वाले वापस मुड़े. उनके कदम भारी
थे। हर कोई जानता था कि यह सिर्फ एक लड़ाई की शुरुआत थी। असली युद्ध अभी बाकी था. पीछे, गुफा के अंधेरे में, दो लाल-पीली आँखें उन्हें जाते हुए देख रही थीं और तभी, एक विशालकाय हाथ उन आँखों
के ऊपर फिरा. भेड़िया सिर झुकाकर खड़ा हो गया. उसके सामने, गुफा की गहराई से एक गहरी, दैवीय आवाज़ गूंजी...
"अब डरने की ज़रूरत तुम्हें नहीं... उन्हें
है।"
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अध्याय दो: गुफा का अमर
रहस्य
गाँव वालों के जाने के बाद गुफा में सन्नाटा छा
गया. बाहर का हल्का उजाला गुफा के मुहाने तक ही सीमित था, अंदर तो घना अंधेरा राज
कर रहा था. भेड़िया अब भी सिर झुकाए खड़ा था, मानो किसी का इंतज़ार कर रहा हो.
तभी गुफा की गहराई से एक आवाज़ आई, "आ गया ना तू? डर गया था उन मनुष्यों से?" आवाज़ में व्यंग्य और स्नेह का अद्भुत मिश्रण था. भेड़िया दुम हिलाने लगा, मानो जवाब दे रहा हो.
अचानक गुफा के एक कोने से एक ज्वाला प्रज्वलित
हुई. उस रोशनी में एक विशालकाय आकृति उभरी. वह एक महाकाय व्यक्ति था - लंबा, शक्तिशाली शरीर, चेहरे पर हज़ारों सालों
का दर्द और अनुभव झलक रहा था. उसके माथे पर एक बड़ा सा घाव था जो कभी नहीं भरा था, और वहाँ से हल्की सी चमक
निकल रही थी. यह था अश्वत्थामा - महाभारत काल का अमर योद्धा.
अश्वत्थामा ने भेड़िये के सिर पर हाथ फेरा, "मूर्ख, तुझे कितनी बार कहा है कि
गाँव के इतने करीब मत जाया कर. अब तक उन मनुष्यों ने तुझे मार दिया होता अगर मैंने
तुझे रक्षा कवच न दिया होता।"
भेड़िया उसके पैरों से सट गया. अश्वत्थामा की
आँखों में हज़ारों सालों का दर्द था. वह बुदबुदाया, "कृष्ण... तुमने मुझे जो शाप दिया था, वह आज भी भोग रहा हूँ.
कलियुग के अंत तक भटकता रहूँ... यह जीवन मृत्यु से भी बदतर है।"
वह गुफा की दीवार पर उकेरी गई कुछ प्राचीन
आकृतियों को देखने लगा. वहाँ महाभारत के युद्ध के दृश्य थे - भीष्म, द्रोण, और खुद अश्वत्थामा के.
उसने आँखें मूंद लीं. सब कुछ फिर से ताजा हो गया - वह रात, जब उसने पांडवों के शिविर
में घुसकर पांडव पुत्रों का वध किया था और फिर कृष्ण का क्रोध... उसका शाप...
"लेकिन अब डरने का समय नहीं है," अश्वत्थामा ने भेड़िये से
कहा, "अब हमें वह मणि
चाहिए जो मुझे इस शाप से मुक्ति दिला सकती है। और वह यहीं कहीं है... इसी
पक्षीपुरम में" भेड़िया सिर उठाकर अपने मालिक को देखने लगा, मानो पूछ रहा हो - कैसे?
"हाँ, मुझे पता है कि तू क्या सोच रहा है," अश्वत्थामा मुस्कुराया, "लेकिन धैर्य रख.
कृपाचार्य ने संकेत दिया है कि जल्द ही सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा।"
तभी अचानक भेड़िया सतर्क हो गया। उसने गर्दन
उठाई और गुफा के बाहर की ओर देखने लगा। "क्या हुआ?" अश्वत्थामा ने पूछा।
भेड़िया दौड़कर गुफा के मुहाने पर गया और एक
तरफ देखने लगा. दूर आकाश में एक छोटा सा बिंदु दिखाई दिया जो तेजी से बड़ा हो रहा
था।
"हेलिकॉप्टर?" अश्वत्थामा की भौहें तन गईं, "इस सुनसान इलाके में? यह कोई साधारण बात नहीं
है।"
वह गुफा के मुहाने पर छिपकर खड़ा हो गया. उसकी
पैनी नज़रें हेलिकॉप्टर का रास्ता देखने लगीं. हेलिकॉप्टर सीधे उनकी तरफ नहीं, बल्कि पहाड़ की चोटी की
ओर बढ़ रहा था.
"कुछ तो हो रहा है," अश्वत्थामा बुदबुदाया, "कुछ बड़ा... कुछ ऐसा जो
हज़ारों सालों में नहीं हुआ।" भेड़िया ने एक
अजीब सी आवाज़ निकाली.
"हाँ, तू सही कह रहा है," अश्वत्थामा ने कहा, "शायद यही वह संकेत है
जिसका हमें इंतज़ार था." वह गुफा के अंदर
लौट आया और एक पत्थर के बिस्तर पर बैठ गया. उसकी आँखों में एक नई चमक थी. "कल से हमें और
सतर्क रहना होगा," उसने भेड़िये से
कहा, "गाँव वाले तो
वैसे ही तुझे ढूंढ रहे हैं,
और अब यह नया
खतरा...लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं. हम हज़ारों साल से जी रहे हैं, और आखिरी युद्ध तक जीते
रहेंगे."
भेड़िया उसके पास
आकर लेट गया. अश्वत्थामा ने उसके सिर पर हाथ रखा और आँखें बंद कर लीं. उसके मन में
हज़ारों साल पुराने सवाल फिर से उठ रहे थे - क्या सच में उसे मुक्ति मिल पाएगी? क्या वह मणि मिल पाएगी? और सबसे महत्वपूर्ण -
क्या वह तैयार था उस कीमत के लिए जो मुक्ति के लिए चुकानी पड़ सकती थी? बाहर, हवा में एक अजीब
सी खामोशी छा गई थी, मानो प्रकृति
स्वयं जानती हो कि कुछ बड़ा होने वाला है.
“Mahabali Baal Garuda Story, written by Shrikant Vishwakarma — available in both Hindi and English on Amazon.”
Shrikant vishwakarma, a fantasy & mythology writer for TV & movie
9930921181
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