निठारी हत्या काण्ड और केस रिजल्ट- Nithari case Result 2025

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 निठारी कांड : 19 साल बाद भी सवाल वही—बच्चों का कातिल कौन?


निठारी हत्या काण्ड और केस  रिजल्ट-  Nithari case Result  2025


नोएडा के निठारी इलाके की वह जगह, जो कभी एक शांत और आलीशान कोठी के लिए जानी जाती थी, आज खामोशियों में दबी दहशत का दूसरा नाम बन चुकी है। लगभग 19 साल पहले इसी डी-5 कोठी के पीछे बने नाले से इंसानी हड्डियां और कंकाल निकलना शुरू हुए थे। फॉरेंसिक जांच के बाद जिन 16 बच्चों की मौत दर्ज हुई, उनका न्याय आज भी अधर में ही है।

इन दो दशकों में केस ने अदालतों, जांच एजेंसियों और पूरी न्याय प्रणाली की परतें उधेड़ दीं—पर नतीजा यह कि आज उन बच्चों के कत्ल का कोई गुनहगार बचा ही नहीं।

18 साल 11 महीने जेल में रहने के बाद सुरेंद्र कोहली आज़ाद

13 अलग-अलग मामलों में फांसी की सजा पाने वाले घरेलू नौकर सुरेंद्र कोहली को नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम और 13वें मामले में भी बरी कर दिया।

यह वही मामला था—15 वर्षीय रिंपा हलदर की हत्या—जिसमें निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ने दो-दो बार उसकी फांसी बरकरार रखी थी।

यह कहानी इतनी विचलित करने वाली इसलिए भी है क्योंकि एक समय ऐसा भी था जब कोहली और फांसी के बीच सिर्फ कुछ घंटे की दूरी बची थी। फांसीघर तैयार था, जल्लाद मौजूद था, और फंदा उसके इंतजार में। लेकिन अंतिम क्षणों में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी रोक दी थी।

तो फिर 13वें केस में आखिर क्या बदला?

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने नवंबर 2025 में जो फैसला दिया, वह न केवल चौंकाने वाला था, बल्कि जांच एजेंसियों पर गंभीर सवाल भी खड़ा करता है।

कोर्ट ने साफ कहा—

  • जांच एजेंसियां एक भी विश्वसनीय सबूत पेश नहीं कर सकीं।

  • फॉरेंसिक और साक्ष्य जांच की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हैं।

  • आरोपी का बयान देर से दर्ज हुआ और वह भी स्वतंत्र इच्छा से नहीं था।

  • बरामदगी आरोपी की निशानदेही पर नहीं हुई, क्योंकि हड्डियां पहले से खुले में मौजूद थीं।

  • कोठी में खून के धब्बे या मानव अवशेष जैसे कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले।

  • जांच में कई पहलुओं—जैसे मानव अंगों की तस्करी—की पड़ताल ही नहीं हुई।

कोर्ट के शब्दों में, “यह जांच इतनी कमजोर और त्रुटियों से भरी थी कि सज़ा बरकरार रखना न्याय के खिलाफ होता।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने मामला पलट दिया था

अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 16 मामलों में से:

  • 12 में सुरेंद्र कोहली को बरी कर दिया,

  • 1 में मालिक मोनिंदर सिंह पांडे को भी रिहा कर दिया,

  • सिर्फ 1 मामला—रिंपा हलदर का—फांसी योग्य माना।

पर इसी एक मामले में ऐसी देरी हुई कि हाई कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदल दिया। बाद में कोहली ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और आखिरकार उसे अंतिम केस से भी बरी कर दिया गया।

19 साल बाद तस्वीर डरावनी है—कोई गुनहगार नहीं बचा

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद:

  • निचली अदालत के 13 फांसी के फैसले,

  • हाईकोर्ट की सजा,

  • सुप्रीम कोर्ट की दो बार की पुष्टि—

सब एक-एक कर ढह गए

आज हालत यह है कि निठारी के 16 बच्चों के कत्ल के लिए देश के पास कोई दोषी है ही नहीं।

क्या जांच एजेंसी ने खुद केस का ‘कत्ल’ कर दिया?

जिन मां-बाप ने अपने बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करवाई, जिन्होंने अनगिनत बार पुलिस से जांच की गुहार लगाई—उनका भरोसा बुरी तरह टूट चुका है।

न सिर्फ बच्चे गए,
न सिर्फ कंकाल बरामद हुए,
बल्कि 19 साल की उम्मीद भी दफन हो गई।

जिन 16 मासूमों की मौत पर पूरा देश सिहर उठा था—आज वही मामले न्याय की चौखट पर ऐसे खड़े हैं जैसे उन्हें किसी ने मारा ही नहीं।

सबसे बड़ा सवाल—बच्चों को मारा किसने?

यह वही सवाल है जो कभी जेसिका लाल केस में उठा था—
"Who killed Jessica?"

आज वही सवाल निठारी कांड के पीड़ित परिवार पूछ रहे हैं—

"निठारी के बच्चों को आखिर किसने मारा?"
"इन कंकालों के पीछे की सच्चाई क्या थी?"
"क्या यह सिर्फ कमजोर जांच थी या किसी बड़े सच को छिपाया गया?"

क्योंकि एक बात तो साफ है—
कानून की नज़र में इन बच्चों का कोई कातिल है ही नहीं।

निष्कर्ष

निठारी कांड सिर्फ एक अपराध नहीं था—यह भारतीय जांच प्रणाली, फॉरेंसिक क्षमता, और न्यायिक देरी का ऐसा आईना बन गया है जिसमें झांकने की हिम्मत कोई नहीं करता।

19 साल बाद भी सवाल वहीं के वहीं हैं।
और जवाब—अब भी लापता।


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