भारत के चौथे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री का इस बार टूटा रिकॉर्ड

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कुछ बड़ा करने के लिए जेब से बड़ा होने की ज़रुरत नहीं है, बस आपका विश्वास और आपका संकल्प बड़ा होना चाहिए .  


picture by- Sankalp Thakur 

हम जिस दुनिया में रहते हैं, उस दुनिया में ज़्यादातर लोग सिर्फ  अपने लिए जीते हैं और एक दिन तमाम तरह के ऐशो–आराम को भोगकर इस दुनिया को अलविदा कहकर चले जाते हैं .लेकिन इसी दुनिया में ऐसे भी लोग हुए और आज भी मौजूद हैं जो कभी अपने लिए नहीं जीते. उनका एक – एक पल और पैसा समाज कल्याण और मानव के हित के लिए समर्पित रहता है . 


ऐसे लोगों को कभी अपनी चिंता नहीं होती . चिंता होती है तो बस दूसरों की भलाई करने की. मगर यह भी एक कडवी सच्चाई है अपना सब कुछ खोकर भी अगर ऐसे नि:स्वार्थी लोग गरीब है तो फिर इस दुनिया में किसी का भी ध्यान उनकी ओर नहीं जाएगा और न ही कोई उनकी चर्चा  ही  करेंगे . क्यूंकि चर्चा करवाने, मान – सम्मान और पुरस्कार पाने का पूरा अधिकार आज से पहले नेताओं,अभिनेताओं और खिलाडिओं ने अपने नाम करवा रखा था. 


मगर आज ये रिकॉर्ड उस वक़्त तोड़ दिया गया जब राष्ट्रपति भवन में बुलाकर कुछ ऐसे लोगों को भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्मश्री दिया गया जिन्हें आज से पहले लोग जानते तो थे मगर उन्हें वो मान- सम्मान नहीं मिल पाया था जिसके वो हकदार थे .भारत के वे साधारण इंसान जिनके नाम भले ही छोटे हों मगर काम बड़े थे , राष्टपति के हाथों पद्मश्री से नवाज़ा गए .

 

1.तुलसी गौड़ा

2.हरकेला हजब्बा

3 .मो. शरीफ

4.राही बाई पोपेरे

 

तुलसी  गौडा -  


प्रकृति रक्षक और पर्यावरण हितैषी तुलसी गौड़ा, कर्नाटक की रहने वाली  77 साल की एक ऐसी पर्यावरण प्रेमी महिला हैं जिन्होंने एक दो नहीं बल्कि पूरे 30,000 ( तीस हज़ार ) पेड़ लगाए हैं . और सिर्फ पेड़ लगाकर छोड़ देना ही इनका काम नहीं था बल्कि उन्होंने हर पेड़ – पौधों की सेवा एक बच्चे की तरह की . भले ही इन्ही किताबी ज्ञान नहीं मगर इतना ज्ञान ज़रूर है कि पेड़ पौधों  से ही हम इंसान का और इस धरती का जीवन जुडा है और इतना जानना बहुत बड़ी बात है .तुलसी गौड़ा जी की इस अद्भूत सोच और कार्य के लिए वे भारत के राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री पुरस्कार से नवाजी गयीं .

 


हरकेला हज़ब्बा -  


दृढ  निश्चय और संकल्प से भरे हुए हरकेला हज़ब्बा की उम्र 68 वर्ष है . इन्हें गरीबी के कारण शिक्षा से वंचित होना पड़ा . मगर इहोने इस बात के लिए न तो अपनी गिरीबी को कोसा न दूसरों को बल्कि उन्होंने तो एक मिसाल ही कायम कर दी . 


हरकेला हज़ब्बा ने जब देखा कि उनके जैसे बहुत से लोग शिक्षा से वंचित हो रहे हैं तो इन्होने संतरे बेचने शुरू किये और एक समय के बाद उन्ही पैसों से दक्षिण कन्नड़ जिले में बच्चों के लिए एक स्कूल खोला .इन्हें भी पद्मश्री पुरस्कार से भारत सरकार ने नवाज़ा और इनके कार्यों की सरहाना की.



राही बाई पोपरे 


इन्हें सीड मदर कहा जाता है . यानि बीजों की माता .राही बाई पोपोरे महाराष्ट्र के अहमद नगर की रहने वाली है जो दस सालों से फल –सब्जियों और अनाजों के बीज जमा कर रही हैं . इनके बारे में कहा जाता है कि ये 50 एकर ज़मीन पर 17 प्रकार की खेती करती हैं . इन्होने जैविक खेती को एक नयी ऊंचाई दी है जिनसे कई किसान जुड़ते चले गए. इनके इस अद्भूत कार्य के लिए इन्हें भी पद्मश्री सम्मान से सुभोषित किया गया .



मो. शरीफ चाचा


इनके बारे में बहुत पहले से ही लिखा और पढ़ा जा रहा था कि हमारे देश में एक ऐसे भी चाचा है जिन्हें लावारिश लाशों का मसीहा कहा जाता है . शरीफ चाचा हर उस लावारिश लाश का अंतिम संस्कार करवाते हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं होता . यह काम शरीफ चाचा उसी दिन से कर रहे हैं जब उन्होंने अपने 28 साल के  बेटे को खो दिया. देर से ही सही मगर जब भारत सरकार को इनके बारे में जानकारी हुई तो इन्हें भी पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया .

 

निष्कर्ष 


आज से पहले भारत का चौथा बड़ा सर्वोच्च नागरिक सम्मान सिर्फ बड़े लोगों को दिया गया .ऐसा पहली बार हुआ जब सरकार से उन लोगों को यह इनाम दिया है जो ज़ेब से तो गरीब हैं मगर अपनी सोच से अमीरों से कहीं ज्यादा अमीर है. ऐसे लोगों को सम्मान दिया जाना कृष्ण द्वारा गीता में कही उस पंक्ति को सच साबित करता है “ कर्म करो और फल की चिंता भगवान पर छोड़ दो”

 

 

 

 

 

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