हिंदी पौराणिक कथा - कहानी एक श्रापित अमर खलनायक अश्वत्थामा की

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                                  कहानी एक अमर खलनायक की  

                

 

                                                अश्वत्थामा  


हमारी कहानी, आज से हजारों साल पहले घटी एक घटना की एक कड़ी है . वो सर्द मौसम की एक रात थी..जब लोग अपने -अपने घरों में सो रहे थे, उसी वक़्त अचानक आसमान से एक इंसानी आकृति वाली  बड़ी सी चीज़ जमीन पर गिरती है. उस चीज़ के ज़मीन पर गिरने से  से मानो वहां कुछ पलों के लिए भूकंप सा आ गया हो . घर के भीतर से ही कुछ लोग, इसे कोई कुदरती घटना समझ रहे थे .मगर इसकी वास्तिवकता कुछ और ही थी.  क्यूंकि धूल का गुबार छटते ही वहां जो दृश्य दिखाई दे रहा था वो एक विशालकाय मानव का था, जिसकी ऊँचाई  करीब सात  फीट की थी . 


उस विशाल मानव का चेहरा तो दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन उसके शरीर से टपकते हुए खून और मवाद, यह ज़रूर बया कर रहे थे कि घाव बहुत पुराने थे . और दर्द, उससे भी कहीं अधिक पुराना.  शायद वो उसका इलाज़ अब तक ढूंढ पाने में नाकाम था .तभी अचानक उसके मुह से एक शब्द निकलता है गुरुदेवऔर फिर उसी वक़्त, उस महा- मानव के  उसके सामने एक दिव्य रौशनी प्रकट होती है और वो रोशनी एक योगी में बदल जाता है . वो योगी महाभारत काल का कृपाचर्या है .


अश्वत्थामा :-    प्रणाम गुरुदेव कृपाचार्य .

कृपाचार्य:-   कहो अश्वत्थामा मुझे कैसे आयद किया    ?

अश्वत्थामा :-  गुरुदेव, इस धरा पर आपके अलावे और भी सात महा-योगी अजर-अमर हैं .किन्तु मुझे सहायता की आशा आपसे अधिक है. क्यूंकि  आप हमारे अपने हैं .और अपने ही हमेशा दुःख दर्द में काम आते हैं. आप तो  देख ही रहे हैं मेरी दुर्दशा ,  अब इस श्राप का बोझ , मुझसे और नहीं ढोया जाता गुरुदेव. इसलिए  आपको स्मरण किया है . 


कृपाचार्य :- मैं जानता हूँ,  तुम हजारों साल से अपनी उस मणि को ढूंढ रहे हो अश्वत्थामा  , जिसे कृष्ण ने तुम्हारे मस्तक से छीन ली थी. और एक बार यदि वो मणि तुम्हे मिल जाती है तो तुम उसी समय कलियुग को भी समाप्त  कर दोगे,  ताकि तुम उस श्राप से मुक्त हो सको. लेकिन अन्तः तुम्हे वो मणि मिली नहीं,  है ना ?


अश्वत्थामा  :-  हाँ , सत्य कहा आपने  , क्यूंकि मेरे पास जो ब्रह्माश्त्र है  वो केवल और केवल उसी मणि से नियंत्रित हो सकता है .और उसी मणि के माध्यम से, मैं कलिकाल को समाप्त कर इस पीड़ा से निकल  सकता हूँ. किन्तु पता नहीं उस कृष्ण ने मेरी वो मणि कहाँ कहाँ छिपाकर रखी है . मैं ब्रह्मांड के लगभग  हर लोक में जा चुका हूँ . मगर अभी तक केवल असफलता ही हाथ लगी है . इसलिए इस बार मैंने धरती का चयन किया है . और धरती पर आपका भी वास है.  इसलिए आपसे  सहायता की अपेक्षा रखता  हूँ गुरुदेव .

 

कृपाचर्या :  मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूँ वत्स  ..किन्तु यदि तुम श्राप से छुटकारा  चाहते हो, तो वो मेरे भी वश में नहीं .क्यूंकि श्राप और वरदानों की अपनी एक मर्यादा होती है . कोई भी योगी महा-योगी,  यहाँ तक की स्वयं ब्रह्मा भी, उस सीमा के बाहर जाकर दिए हुए श्राप को खंडित नहीं कर सकते . इसलिए मैं भी तुम्हे उस श्राप से मुक्ति नहीं दिला सकता.


अश्वत्थामा  :-  मुक्ति का रास्ता मैं स्वयं ही बना लूँगा गुरुदेव . बस  आप कुछ ऐसी व्यवस्था कर दें ताकि मैं धरती पर रहकर  अपनी उस मणि को ढूंढ सकूं .

कृपाचर्या किन्तु .


अश्वत्थामा   :-  आप मेरे  लिए इतना भी नहीं कर सकते गुरुदेव .?  क्या  आप उस सम्बन्ध को भूल गए जिसने हमे कभी कौरवों के हितैषी के रूप में  एक सूत्र में बांधे रखा था. आज यदि कौरवों में से कोई जीवित होता तो वो मेरी दुर्दशा देखकर अवश्य मेरा साथ देता . किन्तु आप ?  


कृपयचर्या उचित है  अश्वत्थामा . चुकि तुम  द्रोणाचार्य  के पुत्र हो, इसलिए इस नाते  सहायता के रूप में,  मैं तुम्हे रूप बदलने का एक वरदान दे सकता  हूँ . अब तुम किसी भी मनुष्य या पशु-पक्षी के रूप में  धरती पर रहकर अपनी उस मणि को ढूंढ सकते हो .


कृपाचर्या  अश्वत्थामा  को वरदान देकर चले जाते हैं . अश्वत्थामा  उसी वक़्त घने वन के भीतर जाकर गायब हो जाता है . इस घटना को हुए  सदियों बीत जाने के बाद, एक दिन अचानक वृदावन के मंदिर में एक पुजारी की लाश मिलती है . लाश की हालत देखकर कहा जा सकता था कि उस पुजारी पर किसी जानवर ने हमला किया था. वृन्दावन के लोग इस घटना को तब इतनी गंभीरता से नहीं लेते . लेकिन जब वहां एक के बाद एक,  लोग किसी जंगली खूंखार जानवर का शिकार होने लगते हैं,  तो लोगों में भय और आतंक  छा जाता है . और फिर कुछ ही दिनों में लोगों को पता चल जाता है कि वृन्दावन में एक भेडिया आता है जो लोगों को मारकर जाता है . डर के उस माहौल में लोग अपने अपने घरों में बंद हो जाते हैं .मगर जल्द ही यह खबर सरकार की नींद उदा देती है . जिसके बाद उस भेडिया को पकड़ने के लिए फारेस्ट ऑफिसर अर्जुन को बुलाया जाता है. फारेस्ट ऑफिसर अर्जुन एक शार्प शूटर के साथ साथ एक बेहतरीन हंटर भी था. उसे पता था कि किस जानवर को कब और कैसे पकड़ा जाता है . उसी भेडिये को पकड़ के मकसद से अर्जुन आ पहुँचता है हरि नगर वृन्दावन . मगर वृन्दावन में पैर रखते ही फारेस्ट ऑफिसर अर्जुन को महा-भारत काल के कुछ धुंधले- धुंधले से दृश्य दिखाई देने लगते हैं जिनका मतलब वो उस वक़्त नहीं समझ पाता.



इधर उसी वृन्दावन में कपड़ो का एक बहुत बड़ा व्यपारी रहता है- जुग्राल सेठ . जुग्राल सेठ एक धर्मात्मा किस्म का व्यक्ति है  जो लोगों के बीच अपने कमाए धन को प्रसाद की तरह बांटा करता था . इसलिए लोग  वृन्दावन में कृष्ण के बाद उसे ही पूजते थे . लेकिन यह किसी को पता नहीं था  कि वो धर्मात्मा के रूप में  कोई और नहीं बल्कि वही अश्वत्थामा  था जो रात को भेडिया बनकर कृष्ण भक्तों को अपना शिकार बनाया करता था . अश्वथामा को किसी तरह पता चल चुका था कि कृष्ण ने वो मणि अपने ही नगर वृन्दावन में कहीं छिपाकर रखी है . मगर कहाँ ? यह अश्वत्थामा  को यह पता नहीं था .


अश्वथमा चाहता था कि लोग उसके डर और दहशत से वृन्दावन छोड़ दे, इसलिए उसने एक भेडिये का रूप धारण किया था . मगर अब उसी भेडिये को रोकने आ पहुंचा था फारेस्ट  ऑफिसर अर्जुन. मगर अर्जुन को भी यह पता नहीं था कि वो वास्तव में ही महा- भारत काल का अर्जुन है जोकि अश्वत्थामा  के हाथों कलिकाल को ख़त्म होने से बचाने आया है .क्यूंकि कलिकाल  में ही कल्कि अवतार का जन्म होना है . उससे पहले यदि अश्वत्थामा  को वो मणि मिल गयी और उसने उसके प्रयोग से ब्रह्माश्त्र का प्रोग किया तो संसार नष्ट हो जाएगा .और यदि समय से पहले कलियुग ख़त्म हुआ तो फिर कृष्ण का आखरी अवतार कल्कि संसार में नही आ पायेगा .


इसलिए एक शक्ति के ज़रिये अर्जुन को उसी  अश्वत्थामा  को रोकने वृन्दावन भेजा जाता  है. अब देखना ये है कि क्या अर्जुन वक़्त रहते अश्वत्थामा को रोक पाता है ? या फिर अश्वथमा उस मणि के ज़रिये कलियुग को समाप्त कर खुद को श्राप मुक्त कर लेगा  ?  यह जानने के लिए पढ़ें हमारी कहानी का पूरा भाग   कलिकाल.. शीघ्र ही प्रकशित.  

 

 

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