रामायण की एक चर्चित कथा.
A very famous story from Ramayan in Hindi
नैतिक ज्ञान -रामायण कथा - हिंदी कहानी : - अष्टावक्र को जब राजा जनक ने बनाया अपना गुरु ( Hindi Story of Ashtvakra and king Janka)
Ramayan की Hindi story में त्रेताकाल में कोहड़ नामक एक वेदपाठी ब्राह्मण विद्वान् हुए जिनका एक पुत्र था अष्टावक्र (Ashtavakra) जब ये बच्चा अष्टावक्र अपनी माँ की पेट में था तो वो उसी समय से अपने पिता द्वारा पढ़े अशुद्ध श्लोक और पाठ की गलतियों को पकड़ लेता था और अपनी माँ के मुख से अपने पिता को बता देता. पिता कोहड़ को इस बात से बहुत बुरा लगता था और वो क्रोध में आकर अपने बच्चे को कोसता भी था कि अभी तू पैदा भी नहीं हुआ और मेरी गलतियां बता रहा.
एक दिन कोहड़ को इतना गुस्सा आया कि उसने अपनी पत्नी की कोख में लात मार दी जिससे उस बच्चे के कोमल अंग जगह जगह से टेढ़े –मेढ़े हो गए. जब ये शिशु पैदा हुआ तो लोग उसे देखकर हैरान थे क्यूंकि वो बच्चा हर तरह से टेढा-मेढ़ा था. वो आठ जगह से टेढ़ा –मेढा था इसलिए उसका नाम अष्टावक्र रखा.
लेकिन वो जन्म से पहले ही बड़ा भारी विवान था. उसे समस्त वेदों का ज्ञान था. इसलिए वो बड़ा होकर बहुत ही बड़ा विद्वान् बना. लेकिन वो बचपन से ही अपने मामा उद्धालक को अपना पिता समझता था क्यूंकि अष्टावक्र ( Ashtavakra) की माँ बहुत समय से अपने पिता के यहीं पर रह रही था इसके पीछे एक मात्र कारण ये था कि अष्टावक्र के विद्वान् पिता को राजा जनक ( king Janak ) ने बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था.
अष्टावक्र जब बड़ा हुआ तो काफी समय बाद जाकर उसे उसके पिता के बारे में पता चला. अपने मामा से अष्टावक्र को पता चला कि राजा जनक ( king janak) विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करते हैं और जो भी उनके प्रश्नों का सही उत्तर नहीं दे पाता या राजा जनक उस विद्वान् से संतुष्ट नहीं होते तो वो उन्हें कारागार में डाल देते है.
अपने पिता को छुडवाने के लिए अष्टावक्र राजा जनक से शास्त्रार्थ करने निकल पड़ते हैं .लेकिन वे महल में आते हैं तो महल के द्वारपाल उस युवक को बच्चा समझकर रोक लेते हैं. महल का द्वारपाल बच्चे से कहता है . बालक भीतर नहीं जा सकते. इस पर अष्टावक्र पूछता है शारीरिक रूप से जो बालक है वो नहीं जा सकता या जो ज्ञान से बालक हैं वो नहीं जा सकता. ? इस प्रकार के तर्क वितर्क करने पर द्वारपाल को समझ में आ जाता है कि ये कोई साधारण बच्चा नहीं हो सकता .
इसलिए वो उसे भीतर जाने दे देता है. अष्टावक्र भीतर आकर जनक से मिलता है. वहां और भी विद्वान् होते हैं जो अष्टावक्र को टेढा-मेढ़ा देख हंस पड़ते हैं. राजा जनक भी हंसने लगते हैं...तभी अष्टावक्र भी जोर जोर से हंसाने लगता है. तभी राजा उस युवक से सवाल करता है. तुम्हारा शरीर पूरी तरह से टेढ़ा-मेढ़ा है जो किसी को भी हंसा सकता है वही देखकर हम भी हँसे. लेकिन तुम्हारे हंसने का क्या कारण है? इस पर अष्टावक्र कहता है क्यूंकि यहाँ मुझे कोई विद्वान् नहीं सभी चमार ही दिख रहे हैं जो चर्म और हड्डियों का परिक्षण करने बैठे हैं आप भी इसलिए मैं हंसा. राजा को गुस्सा आया पुछा यहाँ कोई आये हो ? अष्टावक्र ने कहा आपसे शास्त्रार्थ जो करनी है. जनक सोचते हैं यदि इसे द्वारपाल ने भीतर आने दिया है तो इसका अर्थ है इसे कुछ न तो आता ही होगा. राजा जनक उस युवक को पहले ही अपना शर्त बता देते हैं कि “ हम एक घोड़े पर सवार हो रहे हों और एक पाँव घोड़े के पावडे पर रखें और दूसरा पाँव उसके बाद दुसरे लोहे के पावडे पर रखें इससे पहले तुम्हे मुझे ज्ञान दे देना होगा. यदि मैं तुम्हारे ज्ञान से असंतुष्ट रहा तो तुम्हे कारागार में डलवा दिया जाएगा...अष्टावक्र कहता है इतनी देर में तो तीन आदमियों को ज्ञान दिया जा सकता है.
इसके बाद एक घोडा मंगवाया
जाता है. राजा जैसे ही अपना पहला पैर पावडे में रखता है अष्टावक्र कहता है – राजा मन
को मुट्ठी में पकड़ो. राजा पूछता है कैसे पकडे ? अष्टावक्र कहता है मन तुम्हारी मिट्ठी में है. राजा कहता है किन्तु मन को
मुट्ठी में कैसे पकडे ? इस पर अष्टावक्र कहता है जिसका मन अपनी मुट्ठी में ना हो
उसे प्रश्न भी नहीं करना चाहिए. क्यूंकि
आप तभी ज्ञान प्राप्त करने के पात्र है जब आपका मन आपके वश में हो..आपने अहेंकर
में आकर सभी विद्वानों को बंदी बना रखा है. उसके बाद राजा जनक अष्टावक्र अपना गुरु बना लेता है. रामायण की ये Hindi story आपको कैसे लगी बताइयेगा .
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