अजंता गुफा कैसे मिला ? इतिहास शोध एवं रिसर्च ( Ajanta caves History & research)

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अजंता  गुफा कैसे मिला ? इतिहास शोध एवं रिसर्च  ( Ajanta caves History & research)



कलाकारी एक ईश्वरीय वरदान है और ये वरदान कब किसे और कहाँ मिलता है कुछ कहा नहीं जा सकता. आज के आधुनिक युग में हम जहाँ छोटे- छोटे कार्यों के लिए मशीनों पर निर्भर रहते हैं, वहीँ दूसरी शताब्दी में आरम्भ  हुई अजंता की ये गुफाएं हमे ये सोचने के लिए विवश करती है कि उस समय कैसे होंगे वो कारीगर, मजदूर और चित्रकार, जिन्होंने दुनियाँ को ये नायब तोहफा दिया. यदि आप एक बार यहाँ जायेंगे तो स्वयं को भूल कर उस दुनियाँ में खो जायेंगे.




अजंता की गुफाओं का पता.



महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में अजंता की गुफाएं (Ajanta Caves) स्थित हैं. मध्य रेलवे के दिल्ली –मुंबई पथ पर भुसावल से आगे पचोरा से जाने वाली छोटी लाइन पर पाहुर स्टेशन मिलता है, जिसके समीप ही फर्दापुर गाँव है. फर्दापुर से अजंता साधे तीन मील पर है. फर्दापुर में ही यात्रियों के लिए सुविधा संपन्न डाक बंगला है.



अजंता (Ajanta) में कुल मिलाकर तीस गुफाएं हैं, जो पहाड़ को चंद्रकार काटकरबनाई गयी है. गुफाओं के नीचे बहती हुई बघोरा नदी ने अजंता की प्राकृतिक शोभा में विशेष वृद्धि की है. यह एक बड़ा सा एकांत स्थल है. पुरातत्व विद्वानों का मत है कि दूसरी सदी ईस्वी पूर्व से गुफाएं काटे जाने लगी थीं. यह कार्य सातवी शताब्दी तक चलता रहा. बौद्धों की ये गुफाएं उसी सपने का साकार रूप है, जो बौद्ध-कला के प्रत्येक युग का प्रतिनिधित्व करती है.



पहुँचने के साधन मार्ग एवं व्यवस्था 




1. राज्य : महारष्ट्र 

2 जिला : औरंगाबाद 

3. निर्माण : दूसरी शताब्दी में 

4.स्थापना : सातवाहन वंश द्वारा 

5 .पहुँचने के साधन : हवाई अड्डा जलगाँव

6 . रेलवे द्वारा स्टेशन जलगाँव 

7. औरंगाबाद सिटी बस द्वारा 

8.रुकने के लिए : होटल , धर्मशाला, अतिथि भवन   




अजंता की गुफाओं में मौजूद चित्र 


1.बुद्ध

2.पशु-पक्षी

3.नारी-चित्रण .

4.केश-विन्यास

5.नगर-गाँव 

6.महल-चौबारे 

7.प्रकृति-रंग  



चीनी यात्री फाहियान और ह्यूनसांग ने अपने यात्रा विवरण मे इन कला –मंदिरों का उल्लेख किया है. लोरेन्स निन्यान के अनुसार अजंता की कला एशिया की कला के इतिहास में उतना ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है जितना यूरोप में यूरोपीय कला का है. इतनी महत्वपूर्ण कला –कृतियाँ लगभग एक हज़ार वर्षों तक कला जगत की अनभिज्ञता का शिकार रहकर अचानक सन 1819 ईस्वी में कैसे प्रकाश में आई, इसकी भी अजीब कहानी है. 



अजंता गुफा कैसे मिला? इतिहास शोध एवं रिसर्च (Ajanta caves History & research)



अजंता  गुफा कैसे मिला ? इतिहास शोध एवं रिसर्च  ( Ajanta caves History & research)



मद्रास फ़ौज के एक अवकाश प्राप्त ऑफिसर ने चीते के शिकार में गुफा- द्वार पर पहुंचकर घनी हरीतिमा के अंतराल में बैगनी पत्थरों के खम्भों के बीच सुनहरे लाल रंग में कुछ ऐसी चीज़ देखी, जिसने कप्तान को जिज्ञासापूर्ण उत्साह से भर दिया. वे यह सोचकर गौरवान्वित हुए कि वे संसार को एक ऐसी चीज़ का पता देने जा रहे हैं जो वास्तुकला की दृष्टि से  निश्चय ही महत्वपूर्ण है. तब से परिवर्ती कुछ वर्षों में दर्शकों द्वारा अजंता के चित्रों का जितना नाश हुआ, उतना संभवत: विगत बारह – चौदह सौ वर्षों में भी नहीं हुआ होगा. 



जहाँ तक मनुष्य के हाथ पहुँच सकते थे, वहां तक के अधिकांश चित्र मिट चुके हैं. कुछ कालों के बाद अजंता के समुचित संरक्षण का भार निजाम – सरकार ने अपने हाथों में ले लिया था और वहां रुकने की, अध्ययन करने की एवं उसे प्रकाशित करने की समुचित योजनायें बनीं. सम्प्रति अजंता को राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन अवशेष ( नेशल मोन्यूमेंट) मान लिया गया और हैदराबाद देशी राज्य के भारत में विलीन होने के बाद उसके संरक्षण तथा प्रबंध का भार भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर वहां किया जा रहा है.



अजंता जाने का मार्ग .



अजंता महाराष्ट्र के औरंगाबाद नगर से लगभग बहत्तरमील दूर है. इसे यहाँ आर्जिठा के उच्चारण से जाना जाता है. इसी के नाम से एक गाँव भी यहाँ बसा हुआ है. वहां दर्शनार्थियों के लिए एक सुन्दर सा विश्राम गृह का प्रबंध भी है जहाँ से यात्री बस द्वारा दो मील की यात्रा करके अजंता की गुफाओं तक पहुँच सकता है. सत्तर –बहत्तर  मील का ये रास्ता प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है. ऊंचे ऊंचे श्याम वर्ण पहाड़, बीच बीच में मैदानों को घेरे हुए हैं. साल सागवान और विशेष रूप से पारिजात अपनी सुरभि का प्रतिपादन किया करते हैं.


अजंता कि ये कला –मंदिर इसलिए अधिक महत्व रखते हैं इनमे एक साथ वास्तु, मूर्ति और चित्रकलाओं के नमूने देखने को मिल जाते हैं. किन्तु मुख्यत: अजंता की विश्वव्यापी प्रसिद्धि उसकी चित्रकला के कारण है. यह विशेष उल्लेखनीय है कि जो युग संस्कृति-साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है वही अजंता के चित्रों के निर्माण का युग है.


विभिन्न विद्वानों ने अजंता की कला का अध्ययन कर उसे विश्व की कला कृतियों के सन्दर्भ में देखा है और और अनेक निष्कर्ष निकाले. चित्रों का विषय बुद्ध का वास्तविक जीवन तथा उनके पुनर्जन्म की कथाओं का चित्रण है. अजंता की कला अपने आप में बिल्कुल मौलिक है. अजंता के चित्रों में कथाएं कही गयी है, जिनमे विषय से सम्बंधित पुरुषों और उनके विषयों को सही रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है. आश्चर्य होता है ये देखकर कि दीवालों पर ऊपर –नीचे  ब्रश के सहारे खिंची गयी लंबी शख्त मोड़ खाने वाली रेखाओं को कलाकारों ने खींची कैसे होगी. 



चित्र और चित्रकार.



अजंता चित्रकार और चित्रकारी



अजंता के चित्र तत्कालीन चित्रकला के विविध रूपों और रंगों को ही नहीं, वरन समाज के रहन सहन आदि के द्योतक हैं. अजंता का चित्रकार जहाँ कुछ दृष्टियों में आदर्शवादी या रहस्यमय सा प्रतीत होता है, वहीँ समाज के रहन सहन के चित्रण में वह पूर्णतया यथार्वादी है. इतिहासकार कहते हैं – अजंता के कलाकार रेखाओं के धनी थे. उन्हें एक एक रेखा की स्थिति का ज्ञान था. अजंता में हाथों का चित्रण उनके इसी ज्ञान का परिणाम है, जहाँ हाथों- हाथ में सारी बात स्पष्ट कर्ण देने की क्षमता है . मन:स्थितियों और भावों के अनुसार बदलती त्वचा के एक एक रेशे से परिवर्तन को इन कलाकारों ने रेखाओं में बांधने का प्रयास किया है. 


पशु पक्षियों के चित्रण में कलाकारों ने असाधारण प्रतिभा दिखाई है. चुकी जातक कथाओं के अनुसार पूर्व जन्मों में बुद्ध हिरण, हाथी. हंस आदि रह चुके हैं ; इसलिए कौन कह सकता  है कि इन पशु- पक्षी में इन कलाकारों को यह महान आत्मा निवास करती नहीं दिखाई पड़ी.?.

 

अजंता के चित्रों में बुद्ध-चरित्र से सम्बंधित चित्रों की बहुलता है. वे वस्तुतः अद्व्वित्य हैं. अजंता के चित्रों में जातक कथाएं अनुपम हैं ढंग से चित्रित कि गयी है. इनमे बुद्ध का एक चित्र है जो ऐसे विचित्र रूप से निर्मित किया गया है कि उसे हम किधर से भी देखें, वह भी हमे देख रहा- ऐसा नज़र आता है. मानों बुद्ध संसार को समदृष्टि से देख रहे हों. उनमे आकर्षण है. रंग से इतनी बारीकी से काम किया हुआ है कि देखते ही बनता है. बुद्ध से सम्बंधित विषयों के अतिरिक्त नारी –चित्रण अजंता की परम उपलब्धि है. 



नारी एवं केश विन्यास चित्रण .



केश विन्यास भी अजंता की कला में अपना प्रमुख स्थान रखता है. अनेक प्रकार के वेणी-विन्दु और उन्हें पुष्पसज्जित करने की विधियां भारतीय महिला समाज को अभी युगों तक नयी- नयी उपलब्धियों की शिक्षा दे सकती है. अजंता की चित्रकारी में हाथों के माध्यम से भाव –व्यंजना में अत्यधिक सहायता ली गयी है. हाथ की अंगुलियों के बनाने में चित्रकार ने कमाल कर दिया है. प्रत्येक अंगुली का अपना एक पृथक कार्य प्रतीत होता है. हालांकि नाक, कान, आखं बनाने की प्रविधि एक है, तब भी भाव – व्यंजना के कारण उनमे इतनी विविधता आ गई है कि वे एक से नहीं लगते. 


अजनाते के कलाकारों ने विश्व की निहागों में में पनपते हर भरे – वसंत उत्सव मनाते, पेड़ पौधों, चिड़ियों, बंदरों, हिरणों, हाथियों,खेती, पहाड़ी नगरों राजमहलों के पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों का विभिन्न मन: स्थितयों में जो चित्रण किया है, उनमे वे अपनी अभिव्यक्ति की संजिवितायें छलकाती दीख पड़ते हैं.


चित्रकला मानवीय कल्पना की नितांत रोमांचकारी सचित्र साहस- गाथा है.किन्तु कला के मूल्यांकन और रसास्वादन सम्बन्धी धारणाओं में समय समय पर परिवर्तन भी होता रहता है, जैसे कि स्वयं चित्रांकन की रीतियों और शैलियों में भी परिवर्तन हुआ करता है. प्रत्येक युग में अपने अपने मन पसंद बिम्ब होते हैं, अपनी भावनाएं होती हैं. परिवर्तन की इस प्रक्रिया में मानव का सौंदर्य- विवेक परिमार्जित और विकसित होता है. काल की तुला पर तौलने पर कई बार अतीत के माने हुए दिग्गज कलाकारों  के चित्र आज की कला –रूचि को तृप्त करने में असफल सिद्ध हो सकते हैं. किन्तु कुछ चित्रों में ऐसी कई खूबी होती है कि कोई बड़े से बड़े आलोचक भी उनमे मीन-मेह नहीं निकाल सकता और उनकी महानता अक्षुण्ण बनी रहती है. अजंता के बोधिसत्व पद्मपाणी और भिक्षापात्र धारी बुद्ध ऐसे ही महान चित्र है..   


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