बोधगया ( Bodh Gaya) शोध एवं रिसर्च क्या है महत्व सभी प्रतिमाओं का?

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बोधगया क्यूँ है ख़ास? बोधगया की सभी मूर्तियों का महत्व. बुद्ध की ज्ञान स्थली बोधगया का इतिहास. बौद्ध और बोधगया . बुद्ध का बोधगया . बोध गया का निर्माण कब कैसे हुआ ? बोधगया कैसे जाएँ? (Lord buddha's history in Hindi) इन सभी प्रश्नों  के उत्तर के लिए कृपया नीचे पढ़िए. 

 

बोधगया ( Bodh Gaya)  शोध एवं रिसर्च क्या है महत्व सभी प्रतिमाओं का?

1.बोधगया  (Bodh Gaya) बौद्धों का सबसे महान तीर्थ स्थल है. यहाँ पर गौतम बुद्ध ( सिद्धार्थ) ने बुद्धत्व प्राप्त किया था. बोधगया, गया से 10 किलो मीटर की दुरी पर पश्चिम में है.यहाँ का बुद्ध मंदिर अति प्राचीन है. इसमें भगवान बुद्ध (Lord Buddha) की एक भव्य मूर्ति है.विशाल काले पत्थर के एक -एक टुकड़े को तराश तराश कर भगवान बुद्ध के रूप में उसे परिणत कर दिया गया है.उस दिन जो पत्थर काल के अंतराल में छिपा पड़ा था, उसे भारतीय कारीगरों ने अपने कुशल हाथों से एक पवित्र मूर्ति के रूप में परिवर्तित कर दिया,जिसके श्रद्धापूर्ण दर्शन के लिए क्या दूर और क्या नजदीक, सभीजगहों से यात्री नित्य आया करते हैं.और उस स्थान का गौरव बढ़ा रहे हैं.किसी तीर्थ की महत्ता वहां पर बने मंदिर और उसमे स्थापित मूर्ति के कलात्मक स्पर्श से कई गुनी बढ़ जाती है.बोधगया का मंदिर तथा उसमे बुद्ध की मूर्तिभारतीय स्थापत्य-कला -का एक नमूना मात्र है,परन्तु उसमे बोधिसत्व की भावनाइतनी अधिककि वहां पर दर्शनार्थियों एवं पर्यटकों की नित्य भीड़ लगी रहती है. 


2.बोधगया-मंदिर की वेष्टन -वेदिकाओं ( रेलिंग ) पर उत्कीर्ण चित्र उल्लेख्य है.इस पवित्र और प्रसिद्द मंदिर में सूर्य का चित्र है,जो धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है.सूर्य का रथ चार घोड़ों द्वारा खींचा रहा है.रथ एक पहिये का है.रथ पर बैठे सूर्य के पीछे एक सक्त सी चीज़ उत्कीर्ण है.सूर्य के दोनों ओर एक -एक नारी -मूर्ति धनुष-बाण लिए हुए है.जो उषा और प्रत्युषा है.कुछ घायल इधर उधर पड़े हैं.सूर्य के द्वारा अन्धकार की शक्तियों के नाश का यह दृश्य है.घोड़ों की उठती टापोंतथा मुद्रा से अविराम गति,स्फूर्ति और शक्ति की अभिव्यक्ति होती है, तथा घायलों के द्वारा अन्धकार पर प्रकाश की विजय प्रतिपादित होती है.उत्तर -भारत के अधिकाँश सूर्य-मूर्तियों में पैर से ठेहुने तक फीतादार बूट और कमर पर अव्यंग पडा है.यही वराहमिहिर द्वारा उल्लेखित उद्धिच्य -वेश है.यह पहनावा निश्चित ही ईरानी है .शककुषाण लोगों ने इस पहनावे का प्रचार प्रसारभारत में किया.


3.भविष्य -पुराण में बभी यही पुष्टि होती है कि शक स्थान में विश्वकर्मा ने सूर्य की मूर्ति बनाई.दक्षिण भारत में सूर्य -मूर्ति  विज्ञान की एक अलग परंपरा है.बोधगया की मूर्ति भी उद्धिच्य वेश में नहीं है.इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि ईरानी पहनावे  में सज्जित सूर्य की मूर्ति बनाने के पहले ही भारत में अपनी एक ख़ास परंपरा थी.बोधगया की सूर्य-मूर्ति चार घोड़े चार युगों का संकेत करते हैं.चार घोड़ों का रथ शक और यूनानी परंपरा में है, पर इस सादृश्य के अतिरिक्त भारतीय और वेदेशी उदाहरणों में कोई मेल नहीं है.रथ का पहिया एक है. जिसमे एक वर्ष का बोध होता है. इस प्रकार मौर्य- कालीन पाटली पुत्र की सूर्य - मूर्ति और शुंग -कालीन बोधगया की वेष्टन वेदिका पर उत्कीर्ण सूर्य-मूर्ति उद्धिच्य -वेशधारी  सूर्य-मूर्ती की वेदेशी परंपरा से  भिन्न और प्राचीन है. जान पड़ता है कि प्राचीन कालीन सूर्य -मूर्तियाँ भारतीय परंपरा के अनुसार बनाई गयी हैऔर बाद में ईरानी परंपरा के अनुसार, जब उत्तर -भारतमें उसका बोलबाल हुआ . फिर भी दक्षिण भारत में वुशुद्ध भारतीय परंपरा ही जीवित रही. 


बोधगया ( Bodh Gaya)  शोध एवं रिसर्च क्या है महत्व सभी प्रतिमाओं का?

4.बोधगया -मंदिर में की वेष्टन -वेदिका के स्तंभों पर वृत्ताकार पदक -सदृश्य कमलों पर राशियों की मूर्तिमान आकृतियाँ उत्कीर्ण है. इनमे मेष, वृष,मिथुन ,कर्क ,वृश्च्क , धनु ,मकर ,कुम्भ और मीन सहज ही पहचाने जा सकते हैं.प्राचीन पाषाण रेलिंग पर तुला ,सिंह ,कन्या, वृष, और मकर स्पष्ट है.कन्या के लिए फूलों की माला पहने, पुष्प-मुकुट -युक्त कुमारी बाला का चित्र अत्यंत आकर्षक है.एक मसनद के सहारे बैठे व्यपारी से तुलाराशि का ज्ञान होता है.मृग -शरीर वाले धनुर्धर से धनु -राशि की भावना व्यक्त की गयी है.प्रकृति और मानवता को एक ही सौहार्दपूर्ण भावना से देखना भारतीय कला की आध्यत्मिकता का ज्वलंत उदहारण है. बोधगया की वेष्टन-वेदिका पर उत्कीर्ण चित्रों से भी इन्ही विशिष्ट गुणों की पुष्टि होती है.मिथुन राशि को बोध सिंह और सिंहनी के प्रेमालाप के चित्र किया गया है. सत्ताईस नक्षत्रों का भी चित्रण हुआ है. प्राचीन पाषण वेष्टन-वेदिका पर अश्व और मृग के चित्र उत्कीर्ण हैं. इसी पर बौद्ध -देवी श्रीमाँ का भी चित्र उत्कीर्ण है . श्रीमाँ देवता के पैर एक दुसरे से सटे हैं.घुटने ज़मीन के कुछ ऊपर हैं. उसके बाएं हाथ में कमल की खिलती काली है. इसी प्रकार हाथियों से अभिषिक्त देवी की मूर्तियाँ भी खुदी हुई हैं, जो गज-लक्ष्मी के प्रतिरूप -सी है .हिन्दू -लक्ष्मी की  मूर्ती की कल्पना बौद्धों की श्रीमाँ देवता से हुई थी.  


5.बोधगया का महत्व ना केवल बौद्धों के लिए वरन ये सभी धर्मों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. बुद्ध को मानने वालों की सख्या बहुतायात हैं क्यूंकि वो अहिंसा के देव माने जाते हैं और सभी धर्म में हिंसा वर्जित है. बुद्ध ने जहाँ ज्ञान अर्जित किया उस वृक्ष को बोधि वृक्ष कहा जाता है. लेकिन ज्ञात हो कि इसका पूर्व में नाम उरुवेला था और सभी इस वृक्ष को इसी नाम से जानते थे और यह लीलाजन नदी के किनारे खड़ा है . जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि बुद्ध का जन्म जिनका नाम पहले सिद्धार्थ था, 563 ईसा पूर्व, बैशाख पूर्णिमा के  शुभ दिन एवं अवसर में हुआ था. माना जाता है कि इन्होने 29 वर्ष की आयु में अपने परिवार का त्यागकर सत्य की खोज में चले गए.. बुद्ध ने गया के उसी वृक्ष के नीचे छह साल तक घोर साधना के रूप में आत्म -मृत्यु का अभ्यास किया किन्तु इससे उन्हें मुक्ति नहीं मिली. जिसके बाद उन्होंने नोबल अष्टांगिक मार्ग की खोज की. और इसी के बारंबार अभ्यास से उन्होंने बुद्धत्व को प्राप्त किया. आत्म ज्ञान क्या है ? आत्मज्ञान हर तरह के विकारों जैसे कि घृणा , भ्रम , अहेंकार , लोभ, वासना, आसक्ति आदि से मुक्त होने की स्थिति है. इसी आत्मज्ञान के सहारे ही  निर्वाण की प्राप्ति होती है. किन्तु इससे पूर्व माना जाता है कि बुद्ध के पांच शिष्यों या अनुचरों ने बुद्ध के कृत्यों को बेकार और बकवास बताकर उनका साथ छोड़ दिया था बोधगया को मोक्ष एवं  ज्ञान प्राप्ति का स्थान भी माना जाता है.  माना जाता है कि गौतम के कुछ शिष्यों ने पूर्णिमा मॉस के समय इस  स्थान का पता लगाया था इसलिए बुद्ध पूर्णिमा का अति महत्व है. 


बोधगया ( Bodh Gaya)  शोध एवं रिसर्च क्या है महत्व सभी प्रतिमाओं का?

6.बोधगया के बारे  बहुत से इतिहासकारों ने लिखा है. कई शिला लेखों में भी अंकित है.  लेकिन चीनी तीर्थ यात्री फाहियान ने पांचवी शताब्दी में और सातवी शताब्दी में ह्वेन त्सांग ने  जो बताया है वो अद्भूत है. यह तीर्थ स्थल तीन और अन्य तीर्थ स्थलों जैसे कि कुशीनगर , लुबिनी और सारनाथ से भी अधिक महत्व रखता है. यह स्थान बहुत समय पूर्व से ही बौद्ध  सभ्यता और संकृति का केंद्र रहा है जबतकि कि इस स्थान को 13 वीं सदी में तुर्क सेनाओं ने जीत ना लिया. माना जाता है कि ये बोधगया  18 वीं सदी तक उपयोग में नहीं था. ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इसे  पहले उरुवेला सम्बोधि के नाम से जाना जाता था.


7.बोधगया, भारत देश के  पटना राज्य में  वहां से  ११० किलो मीटर  की पर दुरी स्थित है. इसका निर्माण गुप्त सामराज्य के समय में हुआ था. जानकारी के लिए बताते चलें कि महाबोधि मंदिर के चारो ओर एक बड़े से क्षेत्रे में बहुत से देशों द्वारा मंदिर और मठों का निर्माण करवाया गया है.यहाँ उपस्थित इमारतें अपने अपने देश की स्थापत्य कला को दर्शाती है. चीनी मंदिर में तो जो मूर्ति है वो लगभग 200 साल पुरानी  है. इसे चीन से लाया गया था. जापान की बात करें तो इसका निप्पान मंदिर का आकार -प्रकार एक शिवालय की भाँती है . उसी प्रकार थाई मंदिर को देखें तो स्वर्ण  टाइल्स से ढकी एक ख़ास घुमावदार छत है. सुजाता स्तूप के बारे में मान्यता है कि उन्होंने भगवान बुद्ध को उस समय दूध और चावल खिलाये थे जब वो ज्ञान प्राप्ति कर रहे थे. इस स्तूप को दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व बनवाया गया था जिसकी  पुष्ठी  कुछ सिक्कों से हुई है.

8.बोधगया में महान बुद्ध की प्रतिमा का जो 80 फीट की है  उसका अनावरण  18 नवम्बर 1989 वर्षों में किया गया था. इसमें दलाई लामा ने भी भाग लिया था. ये भारत के इतिहास में अब तक का पहल महान बड़ा बुद्ध प्रतिमा है. इसे 120000 कारीगरों ने मिलकर बनाया था.


9.आप देखेंगे तो पायेंगे कि बोधि वृक्ष के चारो ओर बोधगया में अशोक द्वारा निर्मित मंदिर का चित्रण भी है. साँची में सातवहान काल की मूर्तिकला पहली शताब्दी की है. किन्तु ज्ञात हो कि वर्ष 2013 जुलाई 7 को भारतीय समयानुसार 05.15 बजे यहाँ 2500 साल पुराने महाबोधि मंदिर के परिसर में कुछ विष्फोट भी हुए थे किन्तु वो कम तीव्रता वाले  विष्फोट थे. किन्तु इससे कुछ बौध भिक्षु अवश्य घायल हो गए थे. इन धमाका को इन्डियन मुजाहिद्दीन नाम के कट्टर इस्लामिक संगठन ने अंजाम दिया था दो अन्य घटक विषफोट को  निष्किय कर दिया गया. किन्तु इस पर जांच हुई तो अदालत ने पांच संदिघ्दों को आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई.


10.आप यहाँ तक ऐसे पहुँच सकते हैं पटना द्वारा राजगीर तक एक विशेष वस सेवा चलाई जाती है. बात करें बिहार पर्यटन विभाग की तो इस विभाग ने बोधगया से ही बवंडर आँन व्हील नामक एक विशेष कारवाँ की शुरूवात की है. गया  हवाई अड्डा बोधगया से 7 किलो मीट यानि कि चार मील की दुरी पर है और गया रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर की दुरी पर. छोटे छोटे वहां वहां इसलिए प्रतिबंधित हैं ताकि वहां शान्ति व्यवस्था बनी रहे.         

  


         

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