खजुराहो मंदिर ( Khajuraho temple) का सम्पूर्ण इतिहास शोध एवं रिसर्च .

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भारत में स्थित खजुराहो के मंदिर. (Khajuraho mandir or temple in India) इसके बारे में हर कोई जानना चाहता है. UPSC में खजुराहों सम्बन्धी प्रश्न भी आते हैं. मन में सवाल भी उमड़ता है, किसने करवाया खजुराहों के मंदिर का निर्माण? खजुराहो का इतिहास ( History of Khajuraho) क्या है? और खजुराहो को काम-कला का मंदिर  क्यूँ कहा जाता है?  और खजुराहो में 46 काम –कलायों के मंदिर कैसे हैं ? तो फिर आज पढ़िए खजुराहों के मंदिर का रहस्य. (Mistry of Khajuraho in hindi)   


खजुराहों ( Khajuraho temple)  का सम्पूर्ण इतिहास शोध एवं रिसर्च


खजुराहो या खजराहा मध्य- भारत के छतरपुर जिले में एक छोटा सा गाँव है, जो पन्ना –छतरपुर मार्ग से 7 मील दूर उत्तर की ओर स्थित हैं . एक हज़ार वर्ष पूर्व यह विस्तृत नगर था. इसका एक द्वार दो खजूर वृक्षों से अलंकृत होने के कारण यह खजुराहों के नाम से प्रसिद्द हुआ. इस नगरी में कुल मिलाकर 58 मंदिरों का निर्माण हुआ था, जिनमे  अब लगभग 25 मंदिर ही बचे हैं. 


आठ मील के क्षेत्र में फैले खजुराहो के मैदान मे, खेतो में, खलिहानों में, कुंवों, बावलियों एवं मकानों में अनगिनत मूर्तियाँ सुरक्षा के अभाव में यहाँ वहां बिखरी पड़ी है. खजुराहो के मंदिरों का निर्माण-काल दसवीं और ग्यारहवी सदी है. उस समय चंदेल-वंशों का वहां प्रभुत्व था. भारतीय इतिहास में यह उत्तर मध्यकाल कहा जाता है.  इसको हम मंदिर युग भी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. इसी युग में कोणार्क, भुनेश्वर, पूरी, आबू ,हालोविद , तंजोर , प्रभास पट्टनम, गिरनार, शत्रुजय, भेडाघाट, अमर कंटक, ग्वालियर, उदयपुर आदि स्थानों में भिन्न- भिन्न शैलियों के मंदिरों का बड़ी संख्या मेंनिर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ.


खजुराहो की मंदिर-निर्माण –शैली उत्कृष्ट और अनुपम है. ये मंदिर शिखर- शैली के अनूठे  और विशुद्ध नमूने हैं. यहाँ के मंदिर विशाल होने पर भी बहुत कलात्मक बने हैं.  इनकी शैली उत्तर भारतीय ढंग की है पर विकसित रूप में हैं. भवन निर्माण कला कि दृष्टि से ये अद्भूत है. प्रत्येक मंदिर काफी ऊंची कुर्सी पर स्थित है और उसका बाहरी भाग ऊपरी हुई नक्काशी से अलंकृत है. अकेले कंधियार मंदिर में ही 650 के लगभग चित्रकरियाँ हैं. हिन्दू, जैन और बौद्ध – तीनों धर्मों के मंदिरों का निर्माण खजुराहों में हुआ है. 


चंदेल –वंशी राजे शैव थे और उनकी कुल देवी मनिया थीं. स्वभाव: यहाँ शैव और शाक्त सम्प्रदायों की कृतियों की अधिकता और प्रमुखता थी. अर्ध मंडप, महा मंडप, अंतराल, विमान, गर्भगृह और शिखर– इन मंदिरों शैलीवैशिष्टय है: कंधारिया महादेव का मंदिर इन सब मंदिरों में मुख्य है. यह खजुराहों का सबसे विशाल और सबसे सुन्दर मंदिर है और पंचायत –शैली पर बना हुआ है. 


खजुराहों ( Khajuraho temple)  का सम्पूर्ण इतिहास शोध एवं रिसर्च


जमीन से 116 फूट ऊंचा उठकर जिस सुदृढ़ता में यह खड़ा है, देखते ही बनता है. कारीगरों ने इसकी विशाल विस्तृत कुर्सी के नीचे भारी भारी चबूतरे देकर इसकी शान और भी बढ़ा दी है. इसके क्रम से छोटे होते गए एक के ऊपर दुसरे शिखर-समूह बड़े ही भव्यमालूम पड़ते हैं. इस कला में कैलास – पर्वत की अभिव्यक्ति होती है. प्रदक्षिणा- पथ में सुन्दर- सुन्दर स्तम्भ हैं तथा चरों तरफ भव्य ऊंचे झरोखे बने हुए हैं. मंदिर का चप्पा , चप्पा आलंकारिक अभिप्रायों से परिपूरित मूर्तियों से ढका है. 


पूरे मंदिर की लम्बाई 103 फुट और चौड़ाई 67 है. लक्ष्मण वर्मन द्वारा निर्मित लक्ष्मण- मंदिर प्रमुख स्थान रखता है. यह विष्णु को समर्पित है. राजा लक्ष्मण सेन कन्नौज के राजा देवपाल से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त करके इसमें प्रतिष्ठित कराई थी. मातेंगेश्वर महादेव का मंदिर पवित्रम माना जाता है. इसका निर्माण 11वीं सदी में हुआ था. तब से लेकर आज तक ये उसी प्रकार पुण्य और पूजित है. आठ फुट ऊंचा और तीन फुट आठ इंच गोला शिवलिंग चमकीला और और ओपदार है. 


खजुराहों ( Khajuraho temple)  का सम्पूर्ण इतिहास शोध एवं रिसर्च



चित्रगुप्त और भरत जी का मंदिर मंदिर उतना ऊंचा और विशाल नहीं है. फिर भी वो शोभनीय है. भगवान सूर्य की पांच फुट ऊंची प्रतिमा इनमे प्रतिष्ठित हैं. भगवान सूर्य सात अश्व रथ पर सवार है और उनके पैरों में बड़े बड़े ऊंचे जूते हैं. इसी तरह अल्मोड़ा के पास कठारमल में भी भगवान सूर्य ऊंचे जूते पहने दिखाय गए हैं. विश्वनाथ मंदिर का नंदी मंडप अनुपम है. 31*31 वर्गफुट के विस्तृत मंडप में स्थित चमकीले ओपदार सजीव नंदी के दर्शन कर आखें वहीँ उलझी रह जाती है. ऐसा मालूम पड़ता है कि नंदी महाराज अपने स्वामी विश्वनाथ के चरणों में शांत और भाव – विभोर होकर बैठे हैं. 


इस प्रतिमा की ऊंचाई 6 फीट है. और लम्बाई सवा 7 फुट है. इसमें भी अधिक कौतुहल की वस्तु है वहां स्थित बारह –प्रतिमा. यह भी एक ही पत्थर के खंड से निर्मित है. इसकी माप 201/3’*16’ है. उन्नत ग्रीव वराह के शरीर भर में देवताओं की छोटी –छोटी प्रतिमाएँ हैं. हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का भक्षण कर लिया था और प्रथ्वी के उद्धार के लिए विष्णु भगवान ने वराह का रूप धारण कर हिरण्याक्ष का वध किया था. वही दृश्य यहाँ दर्शाया गया है.


छह फर्लांग दूर गाँव की दूसरी ओर जैन मंदिरों का समूह है. इनमे आदिनाथ, पार्श्वनाथ और शांतिनाथ के मंदिर मुख्य हैं. 15 फुट ऊंची शान्तिनाथ की मूर्ति की ध्यानस्थ अवस्था  बहुत शान्ति प्रदान करती है. आदिनाथ और पार्श्वनाथ के मंदिर हिन्दू –शैली से मिलते हलते हैं. इनके बाह्य भाग भी उभरी हुई नक्काशी और सुन्दर मूर्तियों से भरे हुए हैं. इन मूर्तियों में बलखाती भंगिमा इतनी अतिरंजित है कि वास्तविकता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता पर उसमे आसकत्ता छू तक नहीं गयी है.


जैन मंदिरों में अश्लील मूर्तियों का कोई स्थान नहीं है, जबकि हिन्दू-मंदिरों में उनकी भरमार है क्यूंकि तांत्रिकों का प्रभाव हिन्दू मंदिरों के निर्माण में पड़ा था. इन तांत्रिकों ने अपने कुत्सित कर्मों को धर्म की आड़ में प्रश्रय देकर शिव और शक्ति के सम्भोग से संसार कि उत्पत्ति के सिद्धांत का जिस बीभत्स रूप में प्रदर्शन किया, उसमे आध्यात्मिक विचारवाले पुरुषों की क्या स्थिति रही होगी? 


इस मंदिर को देखने और समझने का नज़रिया लोगों में अलग अलग हो सकते हैं. कुछ  लोग इसे मजाक और व्यंग्य की दृष्टि से भी देखते हैं कि ऐसा कौन सा राजा था जिसने ऐसे काम- वासना वाली मूर्तियों का निर्माण करवाया होगा. वो राजा बहुत कामुक और भ्रष्ट होगा. कुछ लोग इसे उस समय के मुक्त विचारधरा से जुडी चीज़ मानते हैं. जिन चीज़ों को समाज में सबसे छिपाकर गुप्त तरीके से सदियों तक रखा गया..कोई जिनपर बातचीत नहीं करता था, उन्हीं चीज़ों को सबके सामने एक आकर रूप में प्रस्तुत कर दिया जाना एक उस समय की एक नयी और क्रांतिकारी सोच हो सकती है.                 


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