भगवती जागरण
क्यूँ होता है माँ भगवती का जागरण? जानिये माँ भगवती की पूजा विधि. ( Maa bhgwati ki jagaran aur pooja kaise karen jaaniye.
भगवती जागरण की प्रथा अत्यंत प्राचीन है, जब कभी भी देवताओं पर संकट आता था, दैत्यों से बचने के लिए शक्ति की उपासना की जाती थी । यदि श्रीमद देवी भागवत की ओर दृष्टि डालें तो हम इस बात को अच्छी तरह समझ जाएंगे। मां ने महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के स्वरूपों में आसुरी वृत्तियों को नष्ट किया है। यहां तक कि धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु जो अवतार धारण करते हैं, वो शक्ति के बिना अधूरे हैं। देवताओं ने शक्ति को प्रसन्न करने के लिए हवन-यज्ञ, मंत्र पाठ आदि रात्रि में अधिकतर किए हैं।
रात्रि शांत होती है और मन को स्थिर रखती है, जिससे भजन हो पाता है। जब देवता असुरों के भय से छिपते फिरते थे, हवन, पूजा-पाठ डर-डर के करते थे तो महाकाली ने कहा आप भय मुक्त हो जाओ और रात्रि को मेरी ज्योति को जगाकर उसके चारों ओर बैठकर भजन करो, मैं वहीं पर तुम्हारी रक्षा करूंगी। समय बदला और आदिवासी लोगों ने शक्ति उपासना प्रारंभ की, वो जब भी कोई शिकार करते काली ॐ ॐ को प्रसन्न करने के लिए अपने शरीर का बलिदान करने से भी नहीं चूकते। बाद में वो मदिरा पीकर रात्रि को झूम-झूमकर गाने लगे। उनका विश्वास बढ़ता ही गया कि मां काली प्रसन्न हो रही हैं। वो रात्रि जागरण पूजन ॐ) में विश्वास करने लगे।
इसी बीच कुछ ऐसे वीर पराक्रमी राजा हुए जिन्होंने शक्ति पूजन में विश्वास को बढ़ावा दिया, उनके महलों में नवरात्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी, एकादशी व पूर्णमाशी को देवी पूजा प्रारंभ हुई। मन ॐ ॐ को आनंदित करने के लिए सबसे पहले तालियां बजाई गईं, फिर डमरू, ढपली, मृदंग, शंख, घड़ियाल श्रद्धापूर्वक बजाए जाने लगे। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश के भक्तों ने डमरू, घंटी बजा-बजाकर मां ॐ) को रिझाया और जागरण की भेंटों को गा-गाकर प्रचलित किया।
पंजाब से जागरण की शुरुआत एक नए ढंग से हुई, वहां पर ढोलक, छैने से ही मां को रिझाया गया। जब ॐ) पाकिस्तान बना वहीं से पंजाब के रहने वाले भक्त भारतवर्ष के अलग-अलग शहरों में आकर बसने लगे। अपने साथ वो मां का नाम लेकर आए और लाहौर-अमृतसर में अधिक मंडलियां मां का प्रचार करने लगीं। ये जागरण रंग भारत की राजधानी दिल्ली में चढ़ गया। आज घर-घर में संगीत के माध्यम से भगवती जागरण हो रहे हैं। संत-महंत सभी इस प्रचार में लगे हैं। मां की ज्योति का प्रकाश सारे विश्व में फैल गया है, आज पार्श्व गायक भी मां की भेंटें गा रहे हैं, जागरणों ने एक उद्योग का रूप ले लिया है जिससे कितने ही परिवारों का कल्याण भी हो रहा है। भगवती जागरण में ऊंच-नीच का भेद मिटाने वाली एक कथा सुनाई जाती है। जिसको देवी
भक्त ध्यानू ने छंदों में लिखा है- वैसे इस कथा का कोई शास्त्रीय प्रमाण भी नहीं मिलता केवल आपसी सदभाव पैदा करने के लिए तथा देवी के भक्तों को संगठित करने की इच्छा से सनातन धर्म के उत्थान हेतु दो बहनों का चरित्र बताया गया है
जिसे तारा-रुकमन की कथा कहकर सम्बोधित किया जाता है। बिना इस कथा को सुने कोई भी भगवती जागरण सम्पूर्ण नहीं माना जाता। यह कथा रात्रि को गाई जाती है और पंडितजी या महंतजी के द्वारा ही श्रवण करनी चाहिए और अमृत वेला में आरती की जानी चाहिए।
जागरण का विधान
मां का भवन पवित्र स्थान पर सजाना चाहिए। बीच में मां भगवती के स्वरूप के दर्शन मूर्ति लगाकर करने चाहिए। बाईं ओर श्री गणेश, श्री हनुमान जी, महालक्ष्मी की मूर्तियां लगानी चाहिए, फिर दाईं | ओर महासरस्वती, श्री भैरव व शंकर जी की मूर्तियां विराजमान करनी चाहिए। सामने बीच में एक चौकी पर | लाल साटन पर परात में फलों के बीच मां की ज्योति जगानी आवश्यक है। यह ज्योत कीकर की दातुन पर मौली लपेटकर बनाई जाती है और बड़े गिलास में होती है जो देसी घी से जगाई जाती है। यहीं पर मां काली की मूर्ति किसी भी रूप में रखें। बाईं ओर गणेश जी के सामने कलश को रखते हैं। जिसके नीचे चावल व ऊपर सात सुपारी, सात लौंग, सात इलायची, एक पान का पत्ता तथा कुछ दक्षिणा नारियल को लाल कपड़े में लिपेटकर मौली # से बांधकर रखते हैं। माता को जो चुनरी उढ़ाई जाती है उसमें भी पीले चावल व कुछ दक्षिणा बांधकर रखते ॐ हैं। एक लोटे में चावल भरकर उसमें चांदी का सिक्का रखा जाता है जो कलश का दान कहलाता है। श्री गणेश व नवग्रह पूजन परिवार सहित पंडित जी या महंत जी से करवाते हैं। तारा रानी की कथा सुनने से पहले शुद्ध होकर ॐ ॐ) नारियल की भेंट चढ़ाई जाती है। जागरण सम्पन्न होने के बाद वस्त्रों की अरदास श्रद्धापूर्वक की जाती है जो * केवल मंडली के महंत को अर्पण करते हैं। भगवती जागरण प्रेमपूर्वक श्रद्धानुसार ही कराना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम पीले चावल में अरदास रखकर एक परने (अंगोछा ) में डल (निमंत्रण) महंत जी को पहुंचाने चाहिए।
दो पैकेट अगरबत्ती
19. दो पैकेट मुश्क कपूर
) 20. चार गुच्छे मौली अट्टा (कलावा)
21. आधा किलो मिसरी
22. पचास ग्राम रोली
23. बीस ग्राम छोटी इलायची
27. पांच नारियल पानी वाले 28. ग्यारह सादे पान डंडी वाले
29. ग्यारह बड़े हार तथा गुलाब के फूल 30. सौ हार गैंदे वाले (मंडली के लिए)
31. एक डिब्बा बरफी का
32. रंगीन चूड़ियां व श्रृंगार का सामान 33. कन्या पूजन के लिए नौ चुनरी
34. कन्याओं को उपहार भी दे सकते हैं
24. बीस ग्राम लौंग
25. इक्कीस साबुत सुपारी 26. इक्कीस चांदी के वर्क
भगवती जागरण सामग्री
1. एक लाल रंग की चुनरी या साड़ी
2. एक मीटर लाल रंग का साटन 3. एक मीटर लाल रंग का कंद (हलवान
4. एक लाल रंग की पगड़ी (पांच मीटर )
5. एक लाल रंग का अंगोछा (परना )
6. एक कुरते का कपड़ा रंगीन (तीन मीटर
7. एक मर्दानी सफेद धोती
8. एक छत्र चांदी का
9. एक सिक्का चांदी का
10. एक लोटा
11. एक मटका ढक्कन सहित
12. एक शीशी केवड़ा
13. एक शीशी इत्र
14. एक कटोरी गंगाजल
15. एक किलो चावल
16. दो किलो देसी घी
17. दो पैकेट धूपबत्ती
निम्नलिखित सामान जागरण वाले दिन ही मगाएं-
1. पांच प्रकार की सूखी मेवा जिसमें फुल्ल मखाने, छिला हुआ सूखा गोला, गिरी बादाम, किशमिश तथा छुआरे तोड़कर रखें ( यह सामान साफ करके एक टोकरी में मिलाकर रखें लगभग तीन किलो )
2. पांच प्रकार के फल मौसम के अनुसार लें जैसे केला, संतरा, अमरूद, मौसमी नाशपाती, आम, चीकू, आलू बुखारा आदि ये फल आने वाली संगत के अनुसार मंगाएं।
3. हलवे चने का प्रसाद व दौने ।
4. चाय, मीठा व नमकीन आने वाली संगत के अनुसार ।
5. आजकल कई प्रकार के माता के भवन भी उपलब्ध हैं जो कि स्थान के अनुसार लगाए जा सकते हैं। परंतु एक बात ध्यान रहे जहां भगवती जागरण हो, दरबार का मंच शुद्ध होना चाहिए। जिसके लिए गंगा जल से उस स्थान की शुद्धि करनी आवश्यक है।
आवश्यक साफ-सुथरे बर्तन-
• एक बड़ी परात • एक कड़छी एक लोटा • एक बड़ा गिलास • दो थाल • दो कटोरियां • एक पतीला • एक चौकी भोग लगाने के लिए साफ कपड़ा।
यदि आप विशाल भगवती जागरण कर रहे हैं तो सामग्री की संख्या महंत जी से पूछकर बढ़ाई जा सकती
है।
जागरण के आवश्यक मंत्र
बाटे के प्रसाद का भोग करो निवास । झोली में मां दीजिए, पंच मेवा का भोग । रुकमन तारा को दिया, ऐसा ही संयोग ।। ॐ हलवे चने का भोग
* ज्योति प्रज्वलित करने के लिए काली, लक्ष्मी, सरस्वती, ज्योति में अंधकार सब दूर हो, जग में रहे प्रकाश ।।
ॐ
भक्तों की, भेंट करो स्वीकार । कन्या पूजन हम करें, लौकड़ा एक जिमाएं। जागरण है सम्पूर्ण मां, जय जयकार बुलाएं।। वस्त्रों की 483 48
ॐ पहली अरदास
संतों और
ॐ सुख-समृद्धि दीजिए, जग की पालन हार।
अरदास अन्नपूर्णा भगवती, भोग करो स्वीकार । दी है मुझे यजमान ने, वस्त्र संग अरदास । सुखी रहे परिवार ये, कभी ना होयें उदास ।।
दूध, नमकीन, मिष्ठान का भोग
काया रहे निरोगी ये, शुद्ध मिले आहार।।
ज्योति विसर्जन मंत्र
नारियल की भेंट फिर चरणों में आ गए, किया शुद्ध स्नान ।
ध्वजा, नारियल, भेंट ले आए हैं यजमान ।।
जल का छींटा दे रहे, अम्बे करो विश्राम। सभी देवता जाएं अब, अपने अपने धाम ।। झूलेगी ध्वजा, बाजेगा नगाड़ा, महारानी को संत-संतनी प्यारा, जो इक मन से बोलेगा जयकारा, सोई माई का प्यारा, बोल सांचे दरबार की जय।
कलश का दान
कलश में चावल दक्षिणा, गुप्त रूप से दान ।
ॐ भंडारे
भरपूर हों,
जग
में रहे
सम्मान।।
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