पुराण भारतीय सनातन संस्कृतिकी अमूल्य निधि हैं। ये अनन्त ज्ञानराशिके भण्डार हैं। पुराणों में वेदोंके अर्थोंका उपबृंहण-विस्तार हुआ है, अतः इनकी वेदवत् प्रतिष्ठा है, वेदवत् प्रामाण्य है। पुराणोंको पंचम वेद कहा गया है—'इतिहासपुराणं च पञ्चमो वेद उच्यते' (श्रीमद्भागवत १ । ४ । २० ) । पुराणोंकी महिमामें कहा गया है कि जो बातें वेदोंमें प्राप्त नहीं होतीं, वे पुराणोंके द्वारा ज्ञात होती हैं। इसीलिये पुराणोंके श्रवण एवं पठनका विशेष माहात्म्य है। पुराणोंके श्रवणसे सारे पापोंका क्षय होता है, धर्मकी अभिवृद्धि होती है और मनुष्य ज्ञानी हो जाता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता ।
वेद प्रभुसम्मित वचन हैं, किंतु पुराण सुहृत्सम्मित हैं, पुराण आज्ञा नहीं देते, अपितु सच्चे मित्रकी भाँति कल्याणकारी बातोंका सत्परामर्श प्रदान करते हैं। पुराणोंका यह अपूर्व वैशिष्ट्य है कि इसमें वेदोंके गूढ़तम अर्थोको आख्यान-शैलीमें कथानकके माध्यमसे प्रस्तुत किया गया है। अतः रोचक होनेसे ये अधिक सुगम एवं सहज ग्राह्य हैं, यथा-वेदोंमें 'सत्यं वद'- सत्य बोलोका उपदेश है। पुराणमें इसी उपदेशको महाराज हरिश्चन्द्रके आख्यानके माध्यमसे समझाया गया है, इसी कारण पुराणोंको विशेष लोकप्रियता प्राप्त हुई है। पुराणोंमें न केवल मानवमात्रके कल्याणकी बातें आयी हैं, अपितु जीवमात्रके कल्याणकी बातें हैं। वास्तवमें पुराण सच्चे अर्थोंमें पारमार्थिक कल्याणके सर्वोत्कृष्ट साधन हैं।
पुराण संख्यामें अठारह हैं, जो श्रीमद्भागवत, श्रीदेवीभागवत, विष्णुपुराण, पद्मपुराण, ब्रह्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि नामोंसे प्रसिद्ध हैं। इन्हीं अठारह महापुराणोंमें श्रीलिङ्गमहापुराणका भी परिगणन है। अन्य महापुराणोंके समान ही सर्गादि पंचलक्षणोंका निरूपण, भक्ति, ज्ञान, सदाचारकी महिमा तथा जीवका श्रेयः-सम्पादन और उसे भगवन्मार्गमें प्रतिष्ठित करा देना लिङ्गमहापुराणका तात्पर्य- विषयीभूत अर्थ है। श्रीहरिके पुराणमय विग्रहमें लिङ्गपुराणको भगवान्का गुल्फदेश माना गया है- 'लैङ्गं तु गुल्फकम्।' ( पद्मपुराण)
इस पुराणका यह नाम इसलिये दिया गया है कि इसमें परमात्मा परमशिवको लिङ्गी - निर्गुण-
निराकार अर्थात् अलिङ्ग कहा गया है। यह परमात्मा अव्यक्त प्रकृतिका मूल है, लिङ्गका अर्थ है
अव्यक्त अर्थात् प्रकृति—'अलिङ्गं लिङ्गमूलं तु अव्यक्तं लिङ्गमुच्यते।' (लिङ्गपुराण पू० १ । ३ । १ )
'लिङ्ग' शब्दका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है-सबको अपनेमें लीन रखनेवाला या विश्वके सभी प्राणि-
पदार्थोंका उद्भावक, परिचायक चिह्न अथवा सम्पूर्ण विश्वमय परमात्मा - 'लयन्नाल्लिङ्गमुच्यते।'
(लिङ्गपुराण पू० १ । १९ । १६ ) प्रकृति-पुरुषात्मक समग्र विश्वरूपी वेदी या वेर तो महादेवी पार्वती
हैं और लिङ्ग साक्षात् भगवान् शिवका स्वरूप है–'लिङ्गवेदी महादेवी लिङ्गं साक्षान्महेश्वरः ।' लिङ्गसे
लिङ्गीका ख्यापन ही लिङ्गमहापुराणका विषय है। इसी विषय वस्तुका प्रतिपादन लिङ्गपुराणम
विस्तारसे विविधरूपोंमें हुआ है।
लिङ्गपुराण दो भागोंमें विभक्त है - पूर्वभागमें एक सौ आठ अध्याय हैं और उत्तरभागमें पचप अध्याय हैं। इसके पूर्वभागमें माहेश्वरयोगका प्रतिपादन, सदाशिवके ध्यानका स्वरूप, योगसाधन भगवान् शिवकी प्राप्तिके उपायोंका वर्णन, भक्तियोगका माहात्म्य, भगवान् शिवके सद्योजात वामदेव आदि अवतारोंकी कथा, ज्योतिल्लिङ्गके प्रादुर्भावका आख्यान, अट्ठाईस व्यासों तथ अट्ठाईस शिवावतारोंकी कथा, लिङ्गार्चन-विधि तथा लिङ्गाभिषेककी महिमा, भस्म एवं रुद्राक्ष
[४]
धारणकी महिमा, शिलादपुत्र नन्दीश्वरके आविर्भावका आख्यान, भुवनसन्निवेश, ज्योतिश्चक्रका स्वरूप, सूर्य-चन्द्रवंश-वर्णन, शिवभक्ततण्डीप्रोक्त शिवसहस्त्रनामस्तोत्र, शिवके निर्गुण एवं सगुण स्वरूपका निरूपण, शिवपूजाकी महिमा, पाशुपतव्रतका उपदेश, सदाचार, शौचाचार, द्रव्यशुद्धि एवं अशौच-निरूपण, अविमुक्तक्षेत्र वाराणसीका माहात्म्य, दक्षपुत्री सती एवं हिमाद्रिजा पार्वतीका आख्यान, भगवान् शिव एवं पार्वतीके विवाहकी मांगलिक कथा तथा शिवभक्त उपमन्युकी शिवनिष्ठा आदि विषयोंका वर्णन है।
उत्तरभागमें भगवद्गुणगानकी महिमा, विष्णुभक्तोंके लक्षण, लक्ष्मी एवं अलक्ष्मी ( दरिद्रा)-के प्रादुर्भावका रोचक वृत्तान्त, दरिद्राके निवासयोग्य स्थान, द्वादशाक्षर मन्त्रकी महिमा, पशुपाशविमोचन, भगवान् शिव एवं पार्वतीकी विभूतियोंका निदर्शन, शिवकी अष्टमूर्तियोंकी कथा, शिवाराधना, शिवदीक्षा-विधान, तुलापुरुष आदि षोडश महादानोंकी विधि, जीवच्छ्राद्धका माहात्म्य तथा मृत्युंजय- मन्त्र - विधान आदि विषय विवेचित हैं। अन्तमें लिङ्गमहापुराणके श्रवण-मनन एवं पाठकी फलश्रुति निरूपित है। स्वयम्भू भगवान् ब्रह्माजी इस पुराणकी महिमा बताते हुए कहते हैं-
'जो मनुष्य इस सम्पूर्ण लिङ्गपुराणको आदिसे अन्ततक पढ़ता है अथवा सुनता है अथवा द्विजोंको सुनाता है, वह परमगति प्राप्त करता है। उस महात्माकी श्रद्धा मुझ (ब्रह्मा) में, नारायणमें तथा भगवान् शिवमें हो जाती है।' 'लैङ्गमाद्यन्तमखिलं यः पठेच्छृणुयादपि ॥ द्विजेभ्यः श्रावयेद्वापि स याति परमां गतिम् । xxx मयि नारायणे देवे श्रद्धा चास्तु महात्मनः ॥' (लिङ्गपुराण, उत्तर०, अ० ५५ )
इस प्रकार सम्पूर्ण लिङ्गपुराण विशेष रूपसे शिवोपासनामें पर्यवसित है। इसमें भगवान् शिव एवं भगवान् विष्णुका अभेदत्व प्रतिपादित हुआ है। इसमें आयी स्तुतियाँ अत्यन्त गेय तथा कण्ठ करने योग्य हैं। इसके आख्यान बड़े ही रोचक और भगवद्भक्तिको स्थिर करनेवाले हैं। इस पुराणमें सदाचारधर्मकी बड़ी प्रतिष्ठा वर्णित है और नित्यकर्मोके सम्पादनकी बड़ी महिमा आयी है। इसमें आये सुभाषित बड़े ही ग्राह्य और कल्याणकारक हैं।
एक उपदेशमें बताया गया है कि सभी शास्त्रोंके बार-बार आलोडन तथा पुनः पुनः विचार करनेके बाद यही निश्चित होता है कि सदा नारायणका ध्यान करना चाहिये- 'आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः ॥ इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणः सदा।' (उत्तरभाग ७।१०-११ ) इस प्रकार लिङ्गपुराण बहुत ही उपयोगी है तथा इसके उपदेश अत्यन्त उपकारक हैं।
पं० लक्ष्मीधरविरचित 'कृत्यकल्पतरु' नामक एक अत्यन्त प्रसिद्ध धर्मशास्त्रीय निबन्ध-ग्रन्थ है, उसमें लिङ्गपुराणके नामसे सोलह अध्याय प्राप्त हैं, जो वर्तमानमें उपलब्ध लिङ्गपुराणसे अतिरिक्त हैं, इन सोलह अध्यायोंमें अविमुक्तक्षेत्र वाराणसीका माहात्म्य तथा यहाँके शिवायतनों एवं लिङ्गोंकी महिमा प्रतिपादित है। लिङ्गपुराण-परिशिष्टके नामसे उन्हें भी मूल तथा हिन्दी अनुवादके साथ इसमें दिया जा रहा है।
सम्पूर्ण श्रीलिङ्गमहापुराणका हिन्दी अनुवाद वर्ष २०१२ ई० के विशेषाङ्कके रूपमें प्रकाशित हुआ था। तभीसे सुधीजनोंकी यह भावना थी कि भाषा टीकासहित मूल लिङ्गमहापुराणका भी प्रकाशन किया जाय। इसी दृष्टिसे मूल संस्कृत तथा उसका हिन्दी अनुवादके साथ पुस्तकरूपमें इसका प्रकाशन किया जा रहा है। आशा है, प्रेमी पाठकोंको इससे प्रसन्नता होगी और वे लाभान्वित होंगे।
श्रीलिंग महा पुराण क्या है? जानिये कथाओं की सूची ( Shreeling Mahapuran Stories )
१- देवर्षि नारदजीका नैमिषारण्य- आगमन, श्रीसूत- शौनक-संवादमें लिङ्गमहापुराणका उपक्रम
२- लिङ्गपुराणका परिचय तथा इसमें प्रतिपादित विषयोंका वर्णन
३- अलिङ्ग एवं लिङ्गतत्त्वका स्वरूप, शिवतत्त्वकी व्यापकता, महदादि तत्त्वोंका विवेचन, जगत्की उत्पत्तिका क्रम तथा महेश्वर शिवकी महिमा. ४- ब्रह्माजीको आयुका परिमाण, कालका स्वरूप, कल्प, मन्वन्तर एवं युगादिका मान तथा ब्रह्माजीद्वारा विभिन्न लोकोंकी संरचना,
५- ब्रह्माजीद्वारा पंचपर्वा अविद्याकी सृष्टि, नौ प्रकारकी सृष्टि (नवविध सर्ग) की संरचना, मरीचि आदि ऋषियोंकी उत्पत्ति, मनु-शतरूपाका प्रादुर्भाव तथा दक्षप्रजापतिकी कन्याओंका वंशवर्णन.
६- अग्नि तथा पितरोंके वंशका वर्णन, ब्रह्माजीसे रुद्रोंका प्रादुर्भाव, परमेष्ठी सदाशिवकी महिमा....... ७- माहेश्वरयोगका प्रतिपादन, अट्ठाईस व्यासों तथा चौदह मनुओंकी नामावली, विभिन्न युगोंमें हुए माहेश्वरयोगावतारोंका वर्णन.
८- शरीरमें स्थित योगस्थानों (चक्रों) का वर्णन, योगका स्वरूप, अष्टांगयोगका वर्णन, विषयभोगोंकी निस्सारता, प्राणायामकी महिमा, सदाशिव के ध्यानका स्वरूप....... १९- योगसाधनाके अन्तराय (विघ्न), योगसे प्राप्त होनेवाली विघ्नरूप विभिन्न सिद्धियाँ तथा ऐश्वर्य , गुणवैतृष्ण्य तथा वैराग्यसे पाशुपतयोगकी प्राप्ति..
१०- योगसिद्धिप्राप्त पुरुषोंके लक्षण, साधुधर्मका स्वरूप, भगवान् शिवके साक्षात्कारके उपायोंका वर्णन तथा भक्तिभावमें श्रद्धाकी महत्ता.
११- श्वेतलोहितकल्पमें शिवस्वरूप भगवान् सद्योजातका
प्रादुर्भाव तथा उनकी महिमा. १२- रक्तकल्पमें शिवस्वरूप भगवान् वामदेवका प्रादुर्भाव
तथा उनकी महिमा..
१३- पीतवासाकल्पमें शिवस्वरूप भगवान् तत्पुरुषका प्रादुर्भाव तथा उनका माहात्म्य.
१४- असितकल्पमें शिवस्वरूप भगवान् अघोरका प्राकट्य और उनका माहात्म्य
- सूची
विषय
पृष्ठ-संर
अध्याय
भाग
१५ अघोरेशमाहात्म्य तथा अघोरमन्त्र जपसे विविध पाठकों का विनाश
१६- विश्वरूप नामक कल्पमें शिवस्वरूप भगवान् ईशानका प्रादुर्भाव, ब्रह्माजीद्वारा ईशानको स्तुति,
१७- ब्रह्मा तथा विष्णु के समक्ष ज्योतिर्मय महालिङ्गका प्राकट्य, ब्रह्मा और विष्णुद्वारा हंस एवं वाराहरूप धारणकर लिङ्गके मूलस्थानका अन्वेषण, लिङ्गमध्यसे शब्दमय उमामहेश्वरका प्रादुर्भाव और ईशानादि पाँच शिवरूपों की उत्पत्ति,
१८- विष्णुद्वारा की गयी भगवान् महेश्वरकी स्तुति तथा उसका माहात्म्य,
१९- महादेवजीद्वारा ब्रह्मा एवं विष्णुको वर प्रदान करना। तथा उमामहेश्वर-पूजनके रूपमें लिङ्गपूजनकी परम्पराका प्रारम्भ..
२० शेषशय्यापर आसीन भगवान् विष्णुके नाभिकमलसे ब्रह्माजीका प्रादुर्भाव, भगवान् शिवकी मायासे दोनोंका विमोहित होना, विष्णुद्वारा ब्रह्माके प्रति शिव- माहात्म्यका कथन
२१- ब्रह्मा तथा विष्णुद्वारा की गयी भगवान् महेश्वरकी स्तुति एवं उसका माहात्म्य
२२- महादेवजीद्वारा विष्णु और ब्रह्माको वरदान, सृष्टिके लिये ब्रह्माजीद्वारा तप करना तथा सर्पों एवं रुद्रोंकी सृष्टि
२३- विभिन्न कल्पोंमें होनेवाले सद्योजातादि शिवावतारोंका वर्णन, विभिन्न लोकोंकी स्थिति तथा महारुद्रका विश्वरूपत्व.
श्वेतवाराहकल्पके अट्ठाईस द्वापरोंके अन्तमें प्रकट होनेवाले अट्ठाईस व्यासों, अट्ठाईस शिवावतारों तथा विविध शिवयोगियों का वर्णन..
२५- निविधि शरीर एवं मनकी शुद्ध लिये अन्तः एवं बाह्य स्नानकी प्रक्रिया और विविध मन्त्रोंसे आत्माभिषेचन
२६- भगवती गायत्रीका आवाहन तथा जप, सूर्यकी प्रार्थना, सूर्यसूका पाठ, देवऋषि पंचमहा यज्ञोंका अनुष्ठान, भस्मस्नान एवं मन्त्रस्नान
२७- लिङ्गार्चनविधिके अन्तर्गत महेश्वरस्वरूप होकर विविध उपचारांद्वारा लिङ्गपूजा विधान, लिङ्गा- भिषेककी महिमा तथा अभिषेकके मन्त्र
अध्याय
विषय
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२८- भगवान् महेश्वरके आभ्यन्तरपूजनका स्वरूप, सकल एवं निष्कल तत्त्वकी व्याख्या, छब्बीस तत्त्वोंका परिगणन एवं सम्पूर्ण चराचर जगत्की शिवरूपता.....
२९- देवदारुवनका वृत्तान्त, अतिथिमाहात्म्यमें सुदर्शन-
मुनिका आख्यान तथा संन्यासधर्मका वर्णन.....
३०- शिवाराधनाके माहात्म्यमें श्वेतमुनिका आख्यान ३१- देवदारुवननिवासी मुनिगणोंद्वारा शिवाराधना
३२- मुनियोंद्वारा की गयी शिवस्तुति ३३- मुनियोंको शिवभक्तिका उपदेश
३४- भगवान् शिवद्वारा भस्म, भस्मस्नान एवं शिवयोगियोंकी महिमाका प्रतिपादन
३५- महर्षि दधीच एवं राजा क्षुपकी कथा तथा महा- मृत्युंजयमन्त्रकी स्वरूपमीमांसा.
३६- राजा क्षुपद्वारा विष्णुकी आराधना, विष्णुद्वारा शिव- भक्तोंकी महिमाका कथन.
३७- नन्दीके जन्मका वृत्तान्त, ब्रह्मा तथा विष्णुका परस्पर संवाद और शिवद्वारा दोनोंपर अनुग्रह करना...........
३८- विष्णुद्वारा महेश्वरके माहात्म्यका कथन तथा नारायण- द्वारा सृष्टिका वर्णन ..
३९- सत्ययुग, त्रेतायुग तथा द्वापरयुगका वर्णन, द्वापर में वेदसंहिताके विभाजनका एवं कल्पभेदसे विविध पुराणोंके अनुक्रमका वर्णन
४०- कलियुगके धर्मोका वर्णन, कलियुगमें धर्म आदिका ह्रास तथा स्वल्प भी धर्माचरणका महत्फल एवं
कलियुगके अन्तमें पुनः सत्ययुगकी प्रवृत्ति.
४१- विभिन्न कल्पोंमें त्रिदेवोंका परस्पर प्राकट्य तथा
ब्रह्माद्वारा महेश्वरकी नामाष्टकस्तुतिका वर्णन ........ ४२- शिलादद्वारा तप करनेसे भगवान् महेश्वरका नन्दी नामसे उनके पुत्रके रूपमें प्रकट होना और शिलादद्वारा नन्दिकेश्वर शिवकी स्तुति .
४३- शिलादद्वारा पुत्र नन्दिकेश्वरको वेदादिकी शिक्षा प्रदान करना, ऋषियोंद्वारा नन्दिकेश्वरकी आयु अल्प बतानेपर शिलादका दुःखी होना तथा नन्दिकेश्वरद्वारा त्र्यम्बकमन्त्रका जप एवं महेश्वर- पार्वतीद्वारा उन्हें अपने पुत्ररूपमें अमर होनेका वरदान देना
४४- भगवान् शिवद्वारा नन्दिकेश्वरको गणोंके अधिपतिके रूपमें प्रतिष्ठित करना एवं सभी देवोंके द्वारा नन्दि- केश्वरका अभिषेक तथा शिवनाममन्त्रकी महिमा....
४५- भगवान् रुद्रके विराट् स्वरूप तथा सात पाताललोकोंका वर्णन
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विषय
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४६- भुवनसन्निवेशमें सात द्वीपों तथा सात समुद्रोंका वर्णन एवं सर्वत्र भगवान् शिवकी व्यापकता, स्वायम्भुव मन्वन्तरके प्रियव्रतादि राजवंशों का वर्णन, जम्बूद्वीप, कुशद्वीप तथा क्रौंचद्वीपके राजाओंका वर्णन ४७- जम्बूद्वीपके अधिपति प्रियव्रतके पुत्र महाराज आग्नोधका वंशवर्णन तथा आग्नीधके शिवभक्त नी पुत्रोंका अजनाभवर्ष (भारतवर्ष), किम्पुरुषवर्ष आदि नौ वर्षों (देश) का स्वामी बनना
४८- भूमध्य में स्थित मेरु (सुमेरु) पर्वत और इन्द्र आदि लोकपालोंकी पुरियोंका वर्णन
४९ जम्बूद्वीपका विस्तृत वर्णन, वहाँ कुलपर्वतों नदियों वनों तथा वहाँ रहनेवाले लोगों का वर्णन... ५० भुवनविन्यासमें विभिन्न कुलाचल पर्वतोंपर रहनेवाली देवयोनियाँ आदिका वर्णन
५१- दिव्यं भूतवनमें महादेवके निवासस्थानका वर्णन, कैलास तथा वहाँको पवित्र नदियोंका वर्णन ५२- विभिन्न द्वीपोंकी नदियोंका वर्णन, केतुमाल, कुरुवर्ष, भारतवर्ष, किम्पुरुष आदि वर्षोंमें रहनेवाले लोगों तथा उनको लोकवृत्तिका वर्णन
५३- भुवनकोशवर्णनमें प्लक्ष, शाल्मलि क्रौंचद्वीपोंके महापर्वतों, ऊर्ध्वलोकों तथा नरकका वर्णन, सर्वत्र सदाशिवको व्यापकता एवं यक्षरूप शिव और भगवती उमाका माहात्म्य
५४] ज्योतिः सन्निवेश वर्णनमें लोकपालों की पुरियोंका वर्णन, सूर्यकी स्थिति तथा उसकी गति से होनेवाले अपन एवं ऋतुओं की स्थिति, ध्रुवस्थान तथा मेघका स्वरूप और वृष्टिका प्रादुर्भाव
५५- शिवस्वरूप भगवान् सूर्यके रथ तथा चैत्रादि बारह मासोंमें रथके साथ भ्रमण करनेवाले देवता, मुनि, नाग, गन्धर्व आदिका वर्णन.
५६ सोम (चन्द्रमा) की स्थिति एवं गतिका निरूपण, चन्द्रकलाओंके ह्रास तथा वृद्धिका वर्णन
५७- बुध आदि ग्रहोंके रथोंका स्वरूप, ग्रह-नक्षत्रों एवं तारागणोंद्वारा ध्रुवका परिभ्रमण, ग्रहोंका स्वरूप- विस्तार तथा उनकी गतिका निरूपण..
५८- ब्रह्माद्वारा शिवके आदेशसे ग्रहों, नक्षत्रों, जलों आदिके अधिपति के रूपमें सूर्य, चन्द्रमा, वरुण आदिकी प्रतिष्ठाका निरूपण.
१९- पार्थिव शुचि तथा वैद्युत नामसे अग्निके तीन रूपोंका वर्णन, बारह मासके बारह सूर्योका नामनिर्देश एवं सूर्यरश्मियोंका वर्णन
विषय
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अध्याय
६०- मंगल, बुध, बृहस्पति, शनि आदि ग्रहों एवं सूर्यके माहात्म्यका वर्णन.
६१- ज्योतिः सन्निवेशमें ग्रहोंके स्वरूप तथा नक्षत्रों और
ग्रहोंको पारस्परिक स्थितिका वर्णन
६२- उत्तानपादके पुत्र ध्रुवका आख्यान, ध्रुवको तपस्या तथा ध्रुवलोकसंस्थानका वर्णन.
६३- दक्षप्रजापतिद्वारा मैथुनी सृष्टिका प्रादुर्भाव,
दक्षकन्याओंकी वंश-परम्परा तथा ऋषिवंश-
वर्णन ६४- वसिष्ठपुत्र शक्तिका आख्यान तथा महर्षि पराशरकी
कथा ६५- सूर्यवंश तथा चन्द्रवंशका वर्णन एवं शिवभक्त तण्डोप्रोक्त
रुद्रसहखनाम ६६- इक्ष्वाकुवंशी राजाओंकी कथा तथा ययातिवंश- वर्णन
६७ राजर्षि ययातिका आख्यान तथा ययातिगाथा ६८- ययातिपुत्र यदुके वंशका वर्णन.
६९- चन्द्रवंश-वर्णनमें भगवान् श्रीकृष्णके अवतारकी कथा
तथा संक्षेपमें कृष्णचरितका वर्णन. ७०- महेश्वरसे होनेवाली आदिसृष्टिका स्वरूप, नवविध- सर्गवर्णन एवं प्राजापत्यसर्गनिरूपण तथा भगवती
सतीकी देहसे अनेक देवियोंका प्रादुर्भाव ७१ - तारकासुरके पुत्रों-विद्युन्माली, तारकाक्ष तथा कमलाक्षका वृत्तान्त एवं तपस्याद्वारा इन्हें कामचारी तीन पुरोंकी प्राप्ति, त्रिपुरासुर के विनाशके लिये देवताओंका उद्योग तथा भगवान् शंकरका उनपर अनुग्रह.
७२- त्रिपुरासुरके वधके लिये विश्वकर्माद्वारा एक दिव्य रथका निर्माण तथा भगवान् महेश्वरका उस रथपर आरूढ़ हो त्रिपुरासुरको दग्ध करना एवं ब्रह्माद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति
७३- लिङ्गार्चनकी विधि तथा उसकी महिमा.. ७४- ब्रह्माकी आज्ञासे विश्वकर्माद्वारा विभिन्न लिब्रोंका निर्माण करके देवताओंको प्रदान करना एवं देवताओं द्वारा उन-उन लिङ्गोंका पूजन, लिङ्गोंके विविध भेद तथा उनकी स्थापनाका माहात्म्य ........
७५- शिवके निर्गुण एवं सगुणस्वरूपका निरूपण ७६ - विविध शिवस्वरूपोंकी प्रतिष्ठा एवं उपासनाका
७७- शिवमन्दिरोंके निर्माणका फल, शिवक्षेत्रों तथा शिव-
तीर्थोंके सेवनकी महिमा, शिवमन्दिरके उपलेपन
आदिका माहात्म्य
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अध्याय
७- शिवाचारके परिपालनमें अहिंसाधर्मकी महिमा एवं शिवका माहात्म्य
७९ शिवपूजा सभीका कल्याण, शिवपूजाकी विधि
एवं शिवमन्दिर में दीपदानकी महिमा
८०-देवताओंका कैलारपुरी आकर यहाँ विराजमान उमासहित
भगवान् शिवके दर्शन करना तथा भगवान् शिवद्वारा देवताओंको पाशुपतव्रतका उपदेश प्रदान करना, ८१ विविध मासोंमें किये जानेवाले पशुपाशविमोचक लिङ्ग-
व्रतका विधान तथा उसका माहात्म्य ८२- सभी पापोंका उच्छेदक तथा शिवसायुज्य प्रदान करनेवाला व्यपोहनस्तव और उसके पाठका फल,
८३- विभिन्न मासोंमें किये जानेवाले शिवव्रतोंका विधान.. ८४- उमामहेश्वरवतका वर्णन तथा पूजाविधान .............
८५- पंचाक्षरीविद्या (पंचाक्षरमन्त्र), अपविधान तथा उसकी महिमा.....
८६- पाशुपतयोगज्ञानका स्वरूप तथा उसकी महिमा, ८७- सनकादि मुनीश्वरोंको शिवज्ञानका उपदेश,
८८- पाशुपतयोगसे प्राप्त होनेवाली अष्टसिद्धियों का वर्णन तथा प्राणाग्निहोमका स्वरूप. ८९- सदाचार तथा शौचाचारका निरूपण, द्रव्यशुद्धि,
अशौचप्रवृत्ति एवं स्त्रीधर्मविवेचन,
९० यतियोंके लिये प्रायश्चित्तनिरूपण. ९१- आसन्नमृत्युसूचक लक्षण एवं योगसाधनामें प्रणवका
माहात्म्य तथा शिवोपासनानिरूपण.
९२- अविमुक्तक्षेत्र वाराणसीका माहात्म्य तथा श्रीविश्वेश्वर- पूजाविधिवर्णन.......
९३- हिरण्याक्षपुत्र अन्धकासुरका आख्यान तथा शिवानुग्रहसे
उसे गाणपत्यपदकी प्राप्ति.. ९४- भगवान् के वाराहावतारकी कथा, हिरण्याक्षका वध तथा देवताओं द्वारा भगवान् वाराहकी स्तुति
९५ - नृसिंहावतारके सन्दर्भमें भक्त प्रह्लादकी कथा, हिरण्य- कशिपुका वध, भगवान् नृसिंहके उग्ररूपको देखकर देवताओंका भयभीत होकर भगवान महेश्वरको स्तुति करना, महेश्वरके शरभावतारका प्राकट्य ......
९६- भगवान् महेश्वरद्वारा वीरभद्रका आवाहन और नृसिंहके तेजको शमन करनेके लिये भेजना, वीरभद्र तथा नृसिंहका संवाद, भगवान् शिवका शरभावतार धारणकर नृसिंहतेजको शान्त करना एवं नृसिंहद्वारा शिवस्तुति.
९७- जलन्धर- वधकी कथा
९८- भगवान् विष्णुद्वारा एक सहस्त्र नामोंसे भगवान् शिवकी स्तुति करना तथा प्रसन्न होकर महेश्वरद्वारा उन्हें सुदर्शनचक्र प्रदान करना..
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विषय
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१९- भगवान् शिव वामभागसे शिवाका प्रादुर्भाव तथा शिवाका दशपुत्री सतीके रूपमें पुनः सेनाको कन्या पार्वतीके रूपमें प्राक
१०० वीरभद्रद्वारा दक्षयज्ञभंग तथा भगवान् महेश्वरका दक्षप्रजापतिपर अनु
१०१ सीका हिमवान्की पुत्री पार्वती पक शिवको प्राप्तिके लिये उनका कारद्वारा देवताओंको पराजित करना, शिवद्वारा कामदेवका दहन तथा पुनः जीवित करना
१०२- पार्वतीको तपस्यासे प्रसन्न हो भगवान् शिवका ब्राह्मणवेषमें आकर उन्हें वरदान देना, हिमालयद्वारा पार्वतीस्वयंवरको घोषणा स्वयंवर में भगवान शिवका बालरूपमें उपस्थित होकर सभीको मोहित करना पुनः ब्रह्माकी स्तुति से प्रसन्न हो महेश्वरका मनोहर वररूप धारणकर सबको आनन्दित करना,
१ भगवद्गुणगान की महिमा कौशिक की कथा
२- भगवद्गुणगानका माहात्म्य ३- भगवान् श्रीकृष्णको कृपासे श्रीनारदजीको गानबन्धु
जाम्बवती आदि गानविद्याको प्राप्ति, ४- वासुदेवपरायण विष्णुभक्तोंके लक्षण तथा उनकी महिमा..
५- विष्णुभक्त राजर्षि अम्बरीषका आख्यान, विष्णुमायाद्वारा नारद एवं पर्वत मुनिका वानरमुख होना तथा इसीका रामावतारमें हेतु बनना
६ भगवान् विष्णुसे अलक्ष्मी (ज्येष्ठा-दरिद्रा) तथा लक्ष्मीका प्रादुर्भाव एवं लक्ष्मी तथा दरिद्राके
निवासयोग्य स्थानोंका वर्णन, ७- भगवान् विष्णुके अष्टाक्षर तथा द्वादशाक्षर मन्त्रजपकी महिमामें ऐतरेय ब्राह्मणको कथा.
८- शिवमहामन्त्र जपसे ब्राह्मणपुत्र दुराचारी धुन्धुमूकका शिवको कृपासे शिवगणको प्राप्त करना
९ पशु, पाश एवं पशुपतिको व्याख्या पाशुपतयोगका माहात्म्य तथा पशुविवरण
१०- उमापति शिवके माहात्म्यका वर्णन तथा शिवके आदेश से ही सृष्टि- पालन आदि सभी कार्योंका संचालन.
११- भगवान् शिव तथा देवी पार्वतीकी विभूतियोंका वर्णन एवं लिङ्गपूजनका माहात्म्य
अध्याय
विषय
पृष्ठ-से १०३- भगवान् शिव एवं पार्वतीके विवाहकी मांगलिक कथा तथा विवाह के अनन्तर भगवान् शिवका काशी- आगमन और पार्वतीको मुक्तिक्षेत्र काशीको
महिमा बताना
१०४- गजाननका प्राकट्य करानेके लिये देवताओंद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति
१०५ विघ्ननाशक श्रीगणेशजी प्राकट्यको कथा १०६ दारुकासुरके विनाश के लिये भगवान् शिवद्वारा अपने
शरीरसे कालो तथा अष्टभैरवोंको प्रकट करना एवं शिवताण्डवनृत्यकी कथा १०७- शिवभक्त उपमन्युकी कथा तथा उमामहेश्वरद्वारा
उसपर अनुग्रह करना १०८- भगवान् श्रीकृष्णका गुरु उपमन्युके आश्रम में जाना और उनसे पाशुपतज्ञान प्राप्त करना तथा पाशुपतव्रतका माहात्म्य
ग
२२- भगवान् शिवको अष्टमूर्तियोंका स्वरूप तथा उनकी विश्वरूपता
२३- भगवान् सदाशिवके शर्व, भव आदि आठ स्वरूपों
तथा उनकी शक्तियों एवं पुत्रोंका वर्णन २४- भगवान् महेश्वरके पंचब्रह्मात्मक ईशान, तत्पुरुष
आदि स्वरूपों का वर्णन २५- शिवमाहात्म्यका वर्णन
२६- विविध नाम-रूपोंमें शिवको आराधनाकी महिमा....
२७- भगवान् शिवद्वारा देवताओंसे अपने यथार्थ स्वरूपका कथन
२८- देवताओंद्वारा भगवान् महेश्वरकी स्तुति २९- देवताओं तथा मुनियोंको सूर्यमण्डलमें उमासहित नीललोहित पंचमुख सदाशिव के विराट्स्वरूपका
दर्शन होना और उनकी पूजा एवं स्तुति करना...... २०- पाशुपतयोग एवं शैवी दीक्षाका वर्णन तथा शिवयोगकी महिमा,
२१- शिवदोक्षाविधि-वर्णन एवं शिवार्चनका माहात्म्य .....
२२- शिवदीक्षा प्रकरणमें सौरस्नानविधि तथा भास्कराचाका वर्णन
२३- हृदयदेशमें भगवान् शिवकी मानसपूजा एवं न्यासयोगका वर्णन
२४- न्यास एवं तत्त्वशुद्धिपूर्वक विविध उपचारोंसे भगवान् सदाशिवका पूजन और शिवार्चाका माहात्म्य....
विषय
पृष्ठ-सं.
अध्याय
२५- शिवहोमाचक लिये कुण्ड-मेखला निर्माण, अरणि- मन्थन पात्रासादन, आम्यसंस्कार, अग्निसंस्कार तथा हवन-विधानका वर्णन
२६ शिवलिङ्गमें अघोरार्चनकी विधि और उसका माहात्म्य... २७- राजाओंको विजयप्राप्ति करानेवाले विजयमण्डलके निर्माण तथा पूजनकी विधि एवं जयाभिषेकका वर्णन स्वायम्भुव मनु और विभिन्न देवताओंके जयाभिषेकका विवरण
२८- स्वायम्भुव मनुके प्रति सनत्कुमारप्रोक्त पोडश महादानोंमें तुलापुरुषदानकी विधिका वर्णन, (२९- षोडशमहादानान्तर्गत हिरण्यगर्भदानकी विधि -
३०- तिलपर्वतदानविधि,
३१- सूक्ष्म तिलपर्वतदानकी विधि..
३२- सुवर्णपृथ्वीमहादानविधि
३३- कल्पपादपदानविधि,
३४- गणेशेशदानविधि.
३५- सुवर्णधनुदानविधि
३६- ऐश्वर्यप्रद महालक्ष्मीदानविधि,
३७- तिलधेनुदानविधिनिरूपण...
३८- महादानोंमें परिगणित गोसहस्रदानकी विधि
३९- हिरण्याश्वदानविधि, - कन्यादानविधि
४१ हिरण्यवृपमहादानविधि
४०-
श्रीलि
१- महिमा और यहाँ स्थानक
वर्णन
२. माण्ड और आकाशलिङ्गका वर्णन
३- सगरेश्वर, भद्रेश्वर, शूलेश्वर, नारदेश्वर, वरणेश्वर तथा कोटीश्वर आदि लिङ्गोका वर्णन.
४- कपालमोचन, ऋणमोचन एवं कपिलेश्वर आदि तीर्थोंका माहात्म्य.
५- कपिलेश्वरमें सिद्धि प्राप्त करनेवाले मुनियोंका वर्णन...
६- श्रीकण्ठ, ओंकारेश्वर और बृहस्पतीश्वर आदि लिङ्गोंकी महिमाका वर्णन
७- कामेश्वर, भीष्मेश्वर, वालखिल्येश्वर, सनकेश्वर,
मार्कण्डेयेश्वर, दधीचेश्वर तथा कालेश्वर आदि लिङ्गोका वर्णन. ८- कृत्तिवासेश्वर तथा उसके समीपस्थ लिङ्गोंका व
विषय
पृष्ठ-संस्
अध्याय
४२- सुवर्णगजदानविधि, ४३- लोकपालाष्टकमहादानविधि,
४४- त्रिमूर्तिदानविधि
४५ जीवितावस्थामें किये जानेवाले जीवच्छाका विधान ४६ लिङ्गमें सभी देवताओंको स्थितिका वर्णन और
लिङ्गाचैनसे सभीके पूजनका फलनिरूपण ४७- लिङ्गमूर्तिकी प्रतिष्ठाकी विधि, ४८- देवताओंकी प्रतिमाओंकी संक्षेपमें प्रतिष्ठा-विधि
तथा विविध देवताओंके गायत्रीमन्त्र ४९- अघोरेश्वररूप भगवान् शिवके निमित्त किये गये
जप, हवन एवं पूजनका फल.......... ५० विभिन्न कामनाओंके लिये अघोरमन्त्रसिद्धिका
विधान ५१- भगवान् शिवकी संहारिका शक्ति वज्रेश्वरीविद्याके माहात्म्यमें वृत्रासुरकी उत्पत्तिकी कथा
५२ वज्रेश्वरीविद्याकी सिद्धिका विधान
५३- मृत्युंजयहवन विधान
५४ - मृत्युहर त्रियम्बकमन्त्रका माहात्म्य तथा मन्त्रका व्याख्यान
५५ योगमार्गके द्वारा भगवान् महेश्वरके ध्यानकी विधि, पाँच प्रकारके योग, शिवपाशुपतयोगकी महिमा, श्रीलिङ्गमहापुराणका परिचय तथा श्रीलिङ्ग महापुराण के श्रवण एवं पठनका माहात्म्य.
प्राण-परिशिष्ट
९- व्याघ्रेश्वर, दण्डीश्वर, जैगीषव्येश्वर तथा शातातपेश्वर आदि लिङ्गोंका वर्णन.
१०- गभस्तीश्वर तथा उसके समीपस्थ लिङ्गका माहात्म्य एवं कलशेश्वरलिङ्गको उत्पत्ति - कथा..... ११- कलशेश्वरके समीपस्थ लिङ्गोंके माहात्म्यका वर्णन
१२- अविमुक्त तथा उसके समीपस्थ लिङ्गोंका माहात्म्य- वर्णन
१३- भगवान् श्रीराम, दत्तात्रेय, हरिकेश, प्रियव्रत तथा ब्रह्माजीद्वारा स्थापित लिङ्गोका वर्णन
१४लेश्वर, अम्बरीशंकर कपर्दीश्वर, अंगारेश्वर तथा छागलेश्वर आदि लिङ्गोंकी महिमाका वर्णन.
१५ चतुर्दशायतन, अष्टायतन तथा पंचायतनयात्राका वर्णन ..
१६ कालिङ्गनको महिमा
१- देवर्षि नार
२- ॐ कार साविक शिव. ३- ब्रह्माजी के एक भाग से मनु तथा दूसरे भागसे
सतरूपाका प्राकटप
४- प्रायामको विधि
५- ब्रह्मद्वारा इंसान भगवान् शिवकी स्तुति.
६- ज्योतिर्मय लिङ्गका प्राकटप.
७- देवताओं सहित भगवान् विष्णुद्वारा शिवजीको स्तुति. ८- शेषशायी विष्णु के नाभिकमलसे ब्रह्माजीका प्राकट्य ९- भगवान् शंकरका विष्णु एवं ब्रह्माजी के सामने प्रकट
होना.
१० सूर्यार्घ्यदान ११- हाथोंमें तीर्थ
१२- पंचमहायज्ञ
१३- भगवान् विष्णुको शाप देते महर्षि भृगु,
१४- मुनियाँका भगवान् ब्रह्मासे निवेदन १५- भगवान् शिवजीका ब्रह्माजीके समक्ष स्त्री-पुरुषरूपमें, प्रकट होना,
१६- भगवान् वृषध्वजद्वारा नन्दिकेश्वरको शतदलकमलको माला पहनाना १७- शिवरूप यक्षके समीप देवताओंका अनिश्चयकी
स्थितिमें शक्तिहीन होना १८- देवर्षि नारदजीद्वारा दक्षपुत्रोंको उपदेश देना..
१९- भगवान् विष्णुद्वारा ब्रह्मर्षि वसिष्ठको आश्वासन २०- कुवलाश्वद्वारा महाबली धुन्धुका वध.
२१- महर्षि विश्वामित्रद्वारा त्रिशंकुको सशरीर स्वर्ग
भेजना
२२- राजा अय्यारुणद्वारा अपने पुत्रका त्याग.
२३- भगवान् परशुरामद्वारा सहस्रार्जुनका वध २४- माता देवकीके गर्भ से भगवान् श्रीकृष्णका अवतार...
२५- अष्टभुजारूप कन्याका कंसके हाथसे छूटकर
अन्तरिक्षमें स्थित होना २६- भगवान् श्रीकृष्णद्वारा बाणासुरकी भुजाओंका छेदन.
२७- शतरूपाकी तपस्या.
२८- भगवान् शिवजीद्वारा ब्रह्माके समक्ष अपने ही समान
हजारों पुत्रोंको मानस-सृष्टि करना. २९- प्रजापति दक्षद्वारा देवीकी आराधना.
३०- ब्रह्माजीद्वारा तारकपुत्रोंको वरप्रदान.
३१- भगवान् शिवजोद्वारा एक ही बाणसे त्रिपुरको ध्वस्त करना
३२- नेत्ररूपी कमलदानसे प्रसन्न शिवजीद्वारा विष्णुको
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-सूची
(-चित्र)
सुदर्शनचक्र प्रदान करना, ३३- सूतजीद्वारा ऋषियोंको कथा सुनाना. ३४- भलद्वारा शिवलिङ्गका पूजन करना.
३५- माता पार्वतीको भगवान् शिवजीद्वारा पंचाक्षरीविद्याका उपदेश ३६- योगीद्वारा ओंकारकी साधना.
३७- देवी पार्वतीको भगवान् शंकरद्वारा अविमुक्तेश्वरलिङ्गका दर्शन कराना
३८- शिव-पार्वती-संवाद.. ३९ का स्थापन
४०- ब्रह्माजीद्वारा वाराहरूप भगवान्की स्तुति. ४१ दैत्योद्वारा भक्त प्रह्लादके वधका प्रयास
४२- भगवान् शिवका दक्षयज्ञविध्वंसहेतु वीरभद्रको भेजना
४३- प्रजापति दक्षद्वारा भगवान् शंकरकी स्तुति. ४४- इन्द्रादि देवताओंको लेकर देवगुरु बृहस्पतिका
ब्रह्माजीके पास जाना. ४५ द्विजवेषधारी भगवान् शंकरको देवी पार्वतीका नमन
४६- शिशुरूप शिवद्वारा वज्रसहित इन्द्रका स्तम्भन ........
४७- भगवान् शंकरके चरणोंमें देवी पार्वतीद्वारा मालाका
अर्पण.. ४९- देवताओंद्वारा भगवान् गणेशजीको प्रणाम करना.
४९– इन्द्रका रूप धारणकर भगवान् शंकरका उपमन्युके आश्रम में आगमन
५०- उपमन्युद्वारा भगवान् शंकर-पार्वतीको साष्टांग प्रणाम .. ५४ - ऋषि उपमन्युको भगवान् श्रीकृष्णद्वारा नमन........
५५- महामुनि मार्कण्डेय एवं राजा अम्बरीषका संवाद.
५६ - यमराजका ब्रह्माजीसे अपनी चिन्ता प्रकट करना ५७- तपस्यारत देवर्षि नारदजी..
५८- गरुडपर आसीन भगवान् नारायण एवं देवर्षि नारद ....
५९- देवर्षि नारदको राजा अम्बरीषद्वारा पुत्रीका परिचय देना
६०- भगवान् नारायणको प्रणाम करते हुए देवर्षि नारद..
६१ - भगवती महालक्ष्मीका प्रादुर्भाव
६२ घरमें कलहसे अलक्ष्मीका निवास ६३- ऐतरेय एवं उनकी माताका संवाद
६४- ६५- सूतजीसे मुनियोंद्वारा प्रश्न करना.
शिवलिङ्गकी स्थापना करते भगवान् श्रीराम......
६६- गुरुका शिवभावसे पूजन.
३७- रावणद्वारा पूजित भगवान् रावणेश्वर
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