Confucius कनफ्यूशियस
चीन के महान दार्शनिक कनफ्यूशियस ( Philosopher Confucius Biography in hindi)
जीवन-परिचय :
चीनदेश के सुप्रसिद्ध दार्शनिक कनफ्यूशियस (Confucius) एक महान् धर्मप्रवर्त्तक तो थे ही, ये बहुत बड़े कवि और शिक्षाशास्त्री भी थे। उनका वास्तविक नाम कुंग फू जे था। इनका जन्म यू राज्य के गुफ नामक स्थान पर 551 ई० पू० हुआ था। ये एक कुलीन परिवार के व्यक्ति थे और उसी वंश में उत्पन्न हुए थे, जिसमें सम्राट् हुआन-ती (2697 ई० पू०) का जन्म हुआ था। इस परिवार में और भी कई दार्शनिक और विद्वान पुरुषों का जन्म हुआ था। इनकी शादी बाईस वर्ष की आयु में हुई परंतु एक वर्ष बाद ही, तेईस वर्ष की आयु में इन्होंने अपनी पत्नी को त्याग दिया। वे बचपन से ही एक शीलवान व्यक्ति थे। ये माता-पिता के भी बहुत भक्त थे । पिता की वृद्धावस्था के कारण इनको कठिन परिश्रम करना पड़ता था । माता की भी वे सहायता करते थे। विद्यालय से आकर ये अपनी माँ के कार्यों में हाथ बँटाते थे ।
लू राज्य में
कनफ्यूशियस 501 ई० में लू राज्य के चुंग-तू शहर के न्यायाधीश पद पर नियुक्त किए गए। इनके न्यायाधीश पद पर नियुक्त होते ही जनता में एक विश्वास की लहर दौड़ गई। इन्होंने व्याप्त अराजकता को रोका। इसके बाद इन्हें मंत्री-पद पर नियुक्त किया गया। मंत्री पद पर नियुक्ति के पश्चात् इन्होंने राज्य भर की भूमि की नाप करायी और कृषि में सुधार किया। 497 ई० पू० इनको अपराध-निवारण मंत्री का पद मिला। इस पद से भी राज्य में व्याप्त अपराध का इन्होंने अच्छी तरह नियंत्रण किया। लू राज्य से अनाचार को समाप्त किया। इन सब गुणों के कारण वे एक ‘आदर्श व्यक्ति' के नाम से दूसरे राज्यों में भी प्रसिद्ध हुए। वे एक आदर्शवादी व्यक्ति थे। उनके शिक्षा-सिद्धांत (जिनका वर्णन अगली पंक्तियों में है) भी आदर्शवादिता की आधारशिला पर ही अवस्थित हैं। जब उन्होंने लू राज्य के शासक को आदर्श से च्युत होते हुए देखा, तो उसका राज्य छोड़ कर वे अन्यत्र चले गए। तेरह वर्ष तक वे इधर-उधर भ्रमण करते रहे। तत्पश्चात् लू राज्य के तत्कालीन शासक सू ने पुनः उनकी अवधानता स्वीकार कर ली और वे उसके राज्य में वापस आ गए। इस समय उनकी आयु 69 वर्ष की हो चुकी थी। चार-पाँच वर्ष तक वह एक परामर्शदाता के रूप में इस राज्य का काम करते रहे। 73 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।
अपने जीवनकाल में ही कनफ्यूशियस के नाम की ख्याति चीन के अन्य राज्यों में भी फैल चुकी थी। ये एक विद्वान और आदर्शवादी व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। जब लू राज्य के शासक के विलासितापूर्ण जीवन और अपनी उपेक्षा से ऊब कर ये तेरह वर्ष तक इधर-उधर भटकते रहे, उस समय भी राज्य के शासक ने इन्हें अपने राज्य का मंत्री बनाना चाहा था, परंतु इन्होंने इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था।
कनफ्यूशियस धर्म : ( Dharma of Confucius)
कनफ्यूशियस एक विद्वान पुरुष थे। अपनी विद्या का उन्हें अभिमान भी था। वे अक्सर अपने विद्याभिमान में कहा करते थे- 'मेरे जैसा विद्याप्रेमी व्यक्ति दूसरी जगह शायद ही मिलेगा।'
कनफ्यूशियस की मृत्यु के पश्चात् उनके शिष्यों ने अपने गुरु के विचारों को एक जगह संग्रह किया। वे उन्हें संत के रूप में मानने लगे और उनके आदर्शों को एक धर्म का स्वरूप दिया। इस धर्म का नाम उन्होंने 'कनफ्यूशियस धर्म' रखा। इस धर्म के माननेवालों की संख्या में निरंतर वृद्धि ही होती गई। चीन में इस धर्म प्रचार के लिए स्कूल भी खुल गए।
कनफ्यूशियस के शिक्षा-दर्शन सिद्धांत
Confucius principles for education philosophy
1. सादा जीवन उच्च विचार :
कनफ्यूशियस प्रथमत: एक धार्मिक और दार्शनिक व्यक्ति थे। उनके जीवन का आधार था 'मानव-धर्म।' उनके अनुसार, 'आदर्श व्यक्ति वही है, जो दार्शनिक तथा संन्यासी के समन्वय से साधु हो गया हो। साधु वही हो सकता है, जो मानवतावाद में विश्वास करता है। जिसके लिए, मानव के प्रति करुणा की भावना हो । सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श को स्वीकार कर ही हम इस लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं। शिक्षा का यही आदर्श होना चाहिए।'
2. आदर्श मानव की कल्पना :
शिक्षा का लक्ष्य, आदर्श मानव की कल्पना है। कनफ्यूशियस आदर्श मानव के लिए तीन गुणों की चर्चा करते हैं। बुद्धि, साहस और सद्भावना आदर्श मनुष्य के तीन गुण हैं। इन तीनों के विकास के लिए शिक्षा की आवश्यकता है। शिक्षा द्वारा मानव अपने दोष को देखनेलायक बनता है। उसमें यह क्षमता आती है कि वह विवेकी बने और अपनी खामियों के संबंध में विवेकपूर्ण बुद्धि से विचार करें, साहस द्वारा उन त्रुटियों पर विजय पाने की कोशिश करे। बुद्धि और साहस का वह प्रयोग तभी करेगा, जब उसके अंदर सद्भावना अर्थात् मानव-कल्याण की चाह होगी। शिक्षा की उचित व्यवस्था ही बालक को एक आदर्श मानव के रूप में खड़ा करा सकने में समर्थ है।
3. शिक्षा का स्वरूप :
व्यावहारिक कनफ्यूशियस स्वयं एक शिक्षक थे। बाईस वर्ष की अवस्था में इन्होंने शिक्षण-कार्य प्रारंभ किया था। इन्होंने अपने घर पर विद्यालय की स्थापना की थी। शनैः-शनै: इस विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या तीन हजार तक पहुँच गई थी। कनफ्यूशियस के शिक्षण का स्वरूप व्यावहारिक था। ये विद्यार्थियों को जंगलों और अन्य दर्शनीय स्थानों में ले जाकर शिक्षा को व्यावहारिक रूप प्रदान करते थे। विद्यालय में इतिहास, कविता, साहित्य, समाजशास्त्र की शिक्षा दे कर पुनः उसका संबंध प्रकृति और वास्तविक जीवन से कराते थे। उन्होंने जिस शिक्षा-सिद्धांत की कल्पना की थी, उसका पोषण आज भी हो रहा है 'शिक्षा का संबंध वास्तविक जीवन से हो', इस सिद्धांत का पोषण आज के शिक्षाशास्त्री करते हैं। कनफ्यूशियस ने आज से हजारों वर्ष पूर्व इस आदर्श को चरितार्थ किया था। अरस्तू ने भी अपनी शिक्षा-व्यवस्था में प्रत्यक्ष अनुभव (Direct experience) को बहुत महत्त्व दिया है। 4. राज्य के सभी व्यक्तियों के लिए शिक्षा :
कनफ्यूशियस चाहते थे कि सभी स्त्री-पुरुष चाहे वे धनी हों अथवा गरीब, शिक्षित बनें। शिक्षा द्वारा ही वे अपने कल्याण की बात सोचेंगे। धार्मिक शिक्षा को भी वे वास्तविक रूप में तभी ग्रहण करेंगे, जब शिक्षा द्वारा उनका मस्तिष्क उसको ग्रहण करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। सभी व्यक्ति पढ़ें। ऊँचे विषयों को पढ़ाने की व्यवस्था की जाए। संगीत विषय अनिवार्य रूप में पढ़ाई हो। संगीत विषय पढ़ाने की बात कनफ्यूशियस बतलाते हैं। प्लेटो ने भी अपन शिक्षा- विधान में तेरह से सोलह वर्ष तक के बालकों के लिए संगीत को आवश्यक बताया है। संगीत मानव-भावनाओं के परिष्करण हेतु एक प्रबल साधन I
5. सामाजिक संगठन :
सामाजिक संगठन किसी राष्ट्र की आधारशिला है। जब तक समाज के व्यक्ति संगठित नहीं होंगे, तब तक राष्ट्र का आधार ठीक नहीं होगा। अतः, सामाजिक आधार को ठीक बनाना राज्य का कर्त्तव्य है। यह तभी होगा, जब राज्य के व्यक्ति शिक्षित और सभ्य होंगे।
6. चरित्र - विकास और नैतिकता की शिक्षा :
सामाजिक आधार को ठोस बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि वहाँ के नागरिकों का चरित्र ऊँचा हो। चरित्र के विकास के अभाव में मानव, दानव बन जाता है। चरित्र के अंतर्गत कनफ्यूशियस सदाचार, सद्व्यवहार, सभ्यता, शिष्टता एवं शीलता आदि गुणों की चर्चा करते हैं। 'दूसरों के साथ हम वैसा ही व्यवहार करें, जिस व्यवहार की हम अन्य व्यक्तियों से आशा करते हैं"-इस नैतिक व्यक्तिगत गुण को भी कनफ्यूशियस चरित्र का एक आवश्यक गुण मानते हैं। कनफ्यूशियस ने बालकों के नैतिक विकास पर बहुत बल दिया है। अपनी पुस्तक 'ता-सूए' में उन्होंने इस आशय का भाव व्यक्त किया है- 'प्राचीन पूर्वजों ने पहले अपने मस्तिष्क को ठीक कर, विद्या बल को बढ़ाया। इसके पश्चात् अपनी परिवार प्रणाली को सुधारा, शासन में व्यवस्था स्थापित की तथा ज्ञान की खोज में लगे। ज्ञान के कारण उनके विचार निर्मल तथा नियंत्रित हुए और राज्यों में आनंद छा गया। अतः, नैतिकता जनसाधारण के लिए ही नहीं, अपितु शासक के लिए भी अनिवार्य है। नैतिकता राज्य-व्यवस्था के लिए भी आवश्यक है।'
कनफ्यूशियस के विचारानुसार, राज्य में दार्शनिक मंत्री की आवश्यकता है; क्योंकि उनका चरित्र ऊँचा होगा और वे नैतिक गुणों से संपन्न होंगे। तभी ये मंत्री विदेशी झंझटों से अलग रह कर विद्या बल द्वारा राज्य को सशक्त बनावेंगे। दंड भी कम देंगे तथा ऊँच-नीच के भाव को समाप्त करेंगे। अत:, कनफ्यूशियस चरित्र और नैतिकता को आदर्श मानव का प्रमुख गुण मानते । वस्तुतः चरित्र और नैतिकता ही तो हमारे जीवन के प्रधान स्रोत हैं। जब हमारे अंतर से चरित्र की ज्योति समाप्त हो गई, नैतिकता की आभा बुझ गई, तो समझ लेना चाहिए कि हमारे विनाश के दिन सन्निकट आ गए। किसी भी क्षण हमारा सर्वनाश हो जाएगा। शिक्षाशास्त्री क्विंटीलियन ने नैतिकता और चरित्र-निर्माण पर बहुत बल दिया था। उसने कहा था कि रोमी साम्राज्य का पतन उसी समय होगा, जब रोम के निवासियों का नैतिक पतन हो जाएगा। लॉक चरित्र को मनुष्यत्व की आधारशिला मानता है।
लॉक के अनुसार बालकों को नैतिक शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। नैतिक शिक्षा द्वारा ही उनके अंदर सद्विचार, सद्गुण, दया, करुणा, संवेदना और सहानुभूति आदि गुणों का विकास होगा। मार्टिन लूथर, जॉन कालविन, मांटेस्क्यू आदि जैसे प्रसिद्ध विचारकों ने चरित्र की उज्ज्वल मर्यादा के विकास के लिए शिक्षा की व्यवस्था की बात बतलायी है। भारत के प्रसिद्ध संन्यासी महर्षि स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी श्रद्धानंद तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शिक्षा में चरित्र की महत्ता स्वीकार ही नहीं की, वरन् शिक्षा-संस्थाओं में पूर्णरूपेण इसके प्रचलन पर बल भी दिया।
कनफ्यूशियस की महत्ता :
कनफ्यूशियस निःसंदेह एक महान् पुरुष थे। उन्होंने अपने साहित्य, प्रवचनों और शिक्षा द्वारा चीन की जनता को बहुत प्रभावित किया। उनके शैक्षणिक विचार आज ढाई हजार वर्ष बाद भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं। शिक्षा में चारित्रिक उन्नयन एवं नैतिक विकास पर बल, हरबार्ट के शिक्षा-सिद्धांत की प्रमुख विशेषता मानी जाती हैं। परंतु, इसका बीज हम कनफ्यूशियस के शिक्षा-सिद्धांत में ही देख सकते हैं। प्रकृति से साक्षात्कार, वास्तविक पदार्थों का निरीक्षण, शिक्षा को अमीर-गरीब सभी के लिए बनाने की कल्पना आदि अपने मौलिक शैक्षणिक विचारों के कारण कनफ्यूशियस हमारे लिए एक वंदनीय शिक्षाशास्त्री हैं।
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