॥ श्रीहरिः ॥
श्रीगर्ग संहिताकी विषय-सूची
ShriGarg Sanhita Stories
श्रीगर्ग संहिता हिंदी कथा सूची :- Shree Garg Sanhita Stories list in hindi
पृष्ठ संख्या
६७
७१
वर्णन ............. २३- राजा प्रतिबाहुके प्रति महर्षि शाण्डिल्यद्वारा गर्गसंहिताके माहात्म्य और श्रवण-विधिका
७४
श्रीगर्गसंहितामाहात्म्य
१- गर्गसंहिताके प्राकट्यका उपक्रम २- नारदजीकी प्रेरणासे गर्गद्वारा संहिताकी रचना; सन्तानके लिये दुखी राजा प्रतिबाहुके पास महर्षि शाण्डिल्यका आगमन..
४- शाण्डिल्यमुनिका राजा प्रतिबाहुको गर्गसंहिता सुनाना; श्रीकृष्णका प्रकट होकर राजा आदिको वरदान देना; राजाको पुत्रकी प्राप्ति और संहिताका माहात्म्य.
२५
(१) गोलोकखण्ड १- शौनक गर्ग-संवाद, राजा बहुलाश्वके पूछने पर नारदजीके द्वारा अवतार-भेदका निरूपण....
३१
१२- ब्रह्मादि देवद्वारा गोलोकधामका दर्शन...... ३- भगवान् श्रीकृष्णके श्रीविग्रहमें श्रीविष्णु आदिका प्रवेश; देवताओंद्वारा भगवान्की स्तुति; भगवान्का अवतार लेनेका निश्चय; श्रीराधाकी चिन्ता और भगवान्का उन्हें सान्त्वना प्रदान करना
४- नन्द आदिके लक्षण; गोपीयूथका परिचय; श्रुति आदिके गोपीभावकी प्राप्तिमें कारणभूत पूर्वप्राप्त वरदानोंका विवरण.
४६
५- भिन्न-भिन्न स्थानों तथा विभिन्न वर्गोंकी स्त्रियोंके गोपी होनेका कारण एवं अवतार- व्यवस्थाका वर्णन.
५२
६- कालनेमिके अंशसे उत्पन्न कंसके महान्
बल-पराक्रम और दिग्विजयका वर्णन ..... ७- कंसकी दिग्विजय-शम्बर, व्योमासुर, बाणासुर, वत्सासुर, कालयवन तथा देवताओंकी पराजय
८- सुचन्द्र और कलावतीके पुण्यका वर्णन, उनका वृषभानु तथा कीर्तिके रूपमें अवतरण........
९- गर्गजीकी आज्ञासे देवकका वसुदेवजीके साथ देवकीका विवाह करना; विदाईके समय आकाशवाणी सुनकर कंसका देवकीको मारनेके लिये उद्यत होना और वसुदेवजीकी शर्त पर उसे जीवित छोड़ना
१०- कंसके अत्याचार; बलभद्रजीका अवतार
तथा व्यासदेवद्वारा उनका स्तवन ११- भगवान्का वसुदेव-देवकीमें आवेश; देवताओंद्वारा उनका स्तवन आविर्भावकाल; अवतार-विग्रहकी झाँकी; वसुदेव-देवकीकृत भगवत्-स्तवन; भगवान्द्वारा उनके पूर्वजन्मके वृत्तान्तवर्णनपूर्वक अपनेको नन्दभवनमें पहुँचानेका आदेश; कंसद्वारा नन्दकन्या योग- मायासे कृष्णके प्राकट्यकी बात जानकर पश्चात्तापपूर्वक वसुदेव-देवकीको बन्धनमुक्त करना, क्षमा माँगना और दैत्योंको बाल- वधका आदेश देना...
१२- श्रीकृष्ण जन्मोत्सवकी धूम; गोप-गोपियोंका उपायन लेकर आना; नन्द और यशोदा- रोहिणीद्वारा सबका यथावत् सत्कार; ब्रह्मादि देवताओंका भी श्रीकृष्णदर्शनके लिये आगमन..... ८
१३- पूतनाका उद्धार... १४- शकटभंजन; उत्कच और तृणावर्तका उद्धार; दोनोंके पूर्वजन्मोंका वर्णन
१५ - यशोदाद्वारा श्रीकृष्णके मुखमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका दर्शन; नन्द और यशोदाके पूर्व- पुण्यका परिचय; गर्गाचार्यका नन्द भवनमें जाकर बलराम और श्रीकृष्णका नामकरण- संस्कार करना तथा वृषभानुके यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्णके नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्यका ज्ञान कराना..
विषय
शेषनामका भूमण्डलको धारण करना १८३ १४ कालिका गरुड़के भयसे बचने के लिये यमुना जल निवासका रहस्य १८
१६ जीके द्वारा श्रीराधाजीको स्तुति राभा और श्रीकृष्णका ब्रह्माजी द्वारा विवाह के द्वारा
१५ श्रीराधाका गवाक्षमार्ग श्रीकृष्णके रूपका दर्शन करके प्रेम विह्वल होना; ललिताका श्रीकृष्ण राधाकी दशाका वर्णन करना और उनकी आज्ञा अनुसार लौटकर श्रीराधाको श्रीकृष्ण प्रीत्यर्थं सत्कर्म करनेकी प्रेरणा देना.
तथा दम्पतीको मधुर लोलाएँ बाललीला चोरीका वर्णन
१८. उपनद और वृषभाओंका परिचय
१२२
तथा श्रीकृष्णको क्षण लीला १९- कृष्णख तथा उनके द्वारा यमलार्जुन वृक्षोंका उद्धार
१२४
१८
२० दुर्गाद्वारा भगवान्को मायाका एवं गोलोकमे श्रीकृष्णका दर्शन तथा बीनन्दनन्दनस्तोत्र...
१६- तुलसीका माहात्म्य, श्रीराधाद्वारा तुलसीसेवन- व्रतका अनुष्ठान तथा दिव्य तुलसीदेवीका प्रत्यक्ष प्रकट हो राधाको वरदान देना.... १९ १७- श्रीकृष्णका गोपदेवी के रूपसे वृषभानु-भवनमें जाकर श्रीराधासे मिलना.
१२८
(२) वृन्दावनखण्ड १. सनन्दका गोपोंको महावनसे वृन्दावनमें चलनेकी सम्मति देना और व्रजमण्डलके
१९
सर्वाधिक माहालका वर्णन करना
१३५
१८- श्रीकृष्ण के द्वारा गोपदेवीरूपसे श्रीराधाके प्रेमकी परीक्षा तथा श्रीराधाको श्रीकृष्णका दर्शन...... १९ १९- रासक्रीड़ाका वर्णन ......
२- गिरिराज गोवर्धनकी उत्पत्ति तथा उसका व्रजमण्डलमें आगमन.
२०
३- श्रीयमुनाजीका गोलोक्से अवतरण और पुनः गोलोकधाममें प्रवेश.
२०- श्रीराधा और श्रीकृष्णके परस्पर शृङ्गार-धारण, रास, जलविहार एवं वनविहारका वर्णन.....
४- बोबलराम और श्रीकृष्ण के द्वारा बछड़ोंका चराया जाना तथा वत्सासुरका उद्धार..
२१- गोपाङ्गनाओंके साथ श्रीकृष्णका वन-विहार, रास कोड़ा: मानवती गोपियोंको छोड़कर श्रीराधाके साथ एकान्त-विहार तथा मानिनी श्रीराधाको भी छोड़कर उनका अन्तर्धान होना.. २४
१४८
५- वकासुरका उद्धार
१५१
६- अधासुरका उद्धार और उसके पूर्वजन्मका परिचय. ७- ब्रह्माजीके द्वारा गौओं, गोवत्सों एवं गोप-
१५५
२२- गोपाङ्गनाओंद्वारा श्रीकृष्णका स्तवन; भगवान्का उनके बीचमें प्रकट होना; उनके पूछने पर हंसमुनिके उद्धारकी कथा सुनाना तथा गोपियोंको क्षीरसागर - श्वेतद्वीपके नारायण-स्वरूपोंका दर्शन कराना
१५७
८- ब्रह्माजी के द्वारा श्रीकृष्णके सर्वव्यापी विश्वात्मा बालकोंका हरण ......
स्वरूपका दर्शन...... ९- ब्रह्माजीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
१६०
२
१६४ २३- कंस और शङ्खचूडमें युद्ध तथा मैत्रीका
१०. यशोदाजीकी चिन्ता नन्दद्वारा आश्वासन तथा ब्राह्मणोंको विविध प्रकारके दान देना; श्रीबलराम तथा श्रीकृष्णका गोचारण.........
वृत्तान्तः श्रीकृष्णद्वारा शङ्खचूडका वध...... २४- रास-विहार तथा आसुरिमुनिका उपाख्यान
२
२
१७०
२५- शिव और आसुरिका गोपीरूपसे रासमण्डलमें श्रीकृष्णका दर्शन और स्तवन करना तथा उनके वरदानसे वृन्दावनमें नित्य-निवास पाना.....
११- धेनुकासुरका उद्धार .......
१७४
१२- श्रीकृष्णद्वारा कालियदमन तथा दावानल-पान.
१७८
१३- मुनिवर वेदशिरा और अश्वशिराका परस्पर के शापसे क्रमशः कालियनाग और काकभुशुण्ड होना तथा
२६- श्रीकृष्णका विरजाके साथ विहार; श्रीराधाके भयसे विरजाका नदीरूप होना, उसके सात
[७]
विषय
विषय
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अध्याय
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२८२
२४५
पुत्रोंका उसीके शापसे सात समुद्र होना तथा राधाके शापसे श्रीदामाका अंशतः शङ्खचूड होना.. (३) गिरिराजखण्ड
२३२
१- श्रीकृष्णके द्वारा गोवर्धनपूजनका प्रस्ताव और उसकी विधिका वर्णन
२३९ २- गोपोंद्वारा गिरिराज-पूजनका महोत्सव ......... २४२
३- श्रीकृष्णका गोवर्धन पर्वतको उठाकर इन्द्रके द्वारा क्रोधपूर्वक करायी गयी घोर जलवृष्टिसे रक्षा करना
४- इन्द्रद्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति तथा सुरभि और ऐरावतद्वारा उनका अभिषेक
२४९
५- गोपोंका श्रीकृष्णके विषयमें संदेहमूलक विवाद तथा श्रीनन्दराज एवं वृषभानुवरके द्वारा समाधान.
२५१
६- गोपका वृषभानुवरके वैभवकी प्रशंसा करके नन्दनन्दनकी भगवत्ताका परीक्षण करनेके लिये उन्हें प्रेरित करना और वृषभानुवरका कन्याके विवाहके लिये वरको देनेके निमित्त बहुमूल्य एवं बहुसंख्यक मौक्तिक-हार भेजना तथा श्रीकृष्णकी कृपासे नन्दराजका वधूके लिये उनसे भी अधिक मौक्तिकराशि भेजना ........
२५५ ७- गिरिराज गोवर्धनसम्बन्धी तीर्थोका वर्णन... २५८
८- विभिन्न तीर्थोंमें गिरिराजके विभिन्न अङ्गोंकी स्थितिका वर्णन
२६२
९- गिरिराज गोवर्धनकी उत्पत्तिका वर्णन......... १०- गोवर्धन शिलाके स्पर्शसे एक राक्षसका उद्धार तथा दिव्यरूपधारी उस सिद्धके मुखसे गोवर्धनकी महिमाका वर्णन.
२६३
२६८ 7360
११- सिद्धके द्वारा अपने पूर्वजन्मके वृत्तान्तका वर्णन तथा गोलोकसे उतरे हुए विशाल रथपर आरूढ़ हो उसका श्रीकृष्ण-लोकमें गमन .
२७१
(४) माधुर्यखण्ड
१- श्रुतिरूपा गोपियोंका वृत्तान्त, उनका श्रीकृष्ण और दुर्वासामुनिकी बातोंमें संशय तथा श्रीकृष्णद्वारा उसका निराकरण .....
२७७
२- ऋषिरूपा गोपियोंका उपाख्यान- वङ्गदेशके मङ्गल-गोपकी कन्याओंका नन्दराजके व्रजमें
आगमन तथा यमुनाजीके तटपर रासमण्डलमें
प्रवेश ३- मैथिलीरूपा गोपियोंका आख्यान; चीरहरण-
लीला और वरदान प्राप्ति..... ४- कोसलप्रान्तीय स्त्रियोंका व्रजमें गोपी होकर
२८३
श्रीकृष्णके प्रति अनन्यभावसे प्रेम करना... ५- अयोध्यावासिनी गोपियोंके आख्यानके प्रसङ्गमें राजा विमलकी संतानके लिये चिन्ता तथा महामुनि याज्ञवल्क्यद्वारा उन्हें बहुत- सी पुत्री होनेका विश्वास दिलाना.
२८५
२८७
६- अयोध्यापुरवासिनी स्त्रियोंका राजा विमलके यहाँ पुत्रीरूपसे उत्पन्न होना; उनके विवाहके लिये राजाका मथुरामें श्रीकृष्णको देखनेके निमित्त दूत भेजना; वहाँ पता न लगनेपर भीष्मजीसे अवतार रहस्य जानकर उनका श्रीकृष्णके पास दूत प्रेषित करना..
२८९
७- राजा विमलका संदेश पाकर भगवान् श्रीकृष्णका उन्हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियोंको साथ लेकर व्रजमण्डलमें लौटना.....
२९२
८- यज्ञसीतास्वरूपा गोपियोंके पूछनेपर श्रीराधाका श्रीकृष्णकी प्रसन्नताके लिये एकादशी व्रतका अनुष्ठान बताना और उसके विधि, नियम और माहात्म्यका वर्णन करना
२९६
९- पूर्वकालमें एकादशीका व्रत करके मनोवाञ्छित फल पानेवाले पुण्यात्माओंका परिचय तथा यज्ञसीतास्वरूपा गोपिकाओंको एकादशी व्रतके प्रभावसे श्रीकृष्ण- सांनिध्यकी प्राप्ति
३००
१०- पुलिन्द - कन्यारूपिणी गोपियोंके सौभाग्यका वर्णन
३०२
११- लक्ष्मीजीकी सखियोंका वृषभानुओंके घरोंमें कन्यारूपसे उत्पन्न होकर माघमासके व्रतसे श्रीकृष्णको रिझाना और पाना .
३०४
१२- दिव्यादिव्य, त्रिगुणवृत्तिमयी भूतल-गोपियोंका वर्णन तथा श्रीराधासहित गोपियोंकी श्रीकृष्णके साथ होली.
३०७
विषय
पृष्ठ संख्या
अध्याय
पृष्ठ संख्या
अध्याय
१३- देवानास्वरूप गोपियों..
३६८
प्राकट्य १४- कौरव सेनासे पीड़ित रंगोजि गोपका कंसकी सहायता व्रजमण्डलको सीमापर निवास तथा उसकी पुत्रीरूपमें जालंधरी गोपियोंका
विषय
उनका मथुरा-गमनके लिये निश्चय, मथुरा- यात्राकी चर्चा सब ओर फैल जानेपर गोपियोंका विरहकी आशङ्कासे उद्विग्न हो उठना ......
३०९
३११
४- श्रीकृष्णका गोपियोंके घरोंमें जाकर उन्हें सान्त्वना देना तथा मार्गमें रथ रोककर खड़ी हुई गोपाङ्गनाओंको समझाकर उनका मथुरा- पुरीकी ओर प्रस्थित होना.
वनिताओंका १५- वर्हिष्मतीपुरी आदिको गोपीरूपमें प्राकट्य तथा भगवान् के साथ उनका रामविलास मांधाता और सौभरिके संवादमें यमुनापाङ्गी प्रस्तावना
३७२
३१४
५- अक्रूरको भगवान् श्रीकृष्णके परब्रह्मस्वरूपका साक्षात्कार तथा उनकी स्तुति; श्रीकृष्णका ग्वालबालोंके साथ पुरी-दर्शनके लिये जाना, नागरी स्त्रियोंका उनपर मोहित होना तथा भगवान् के हाथसे एक रजकका उद्धार......
१६- श्रीयमुना कवच १७- श्रीयमुनाका स्तोत्र.
३१६
३१८
१८- यमुनाजीके जप और पूजनके लिये पटल और पद्धतिका वर्णन..
३२०
३७६
१९- यमुना- सहस्रनाम
३२१ ६- सुदामा माली और कुब्जापर कृपा; धनुर्भङ्ग तथा मथुराकी स्त्रियोंपर श्रीकृष्णके मधुर- मोहन रूपका प्रभाव
२०- बलदेवजीके हाथसे प्रलम्बासुरका वध तथा उसके पूर्वजन्मका परिचय
३४९
३८१
२१- दावानलसे गौओं और ग्वालोंका छुटकारा
७- मल्लक्रीड़ा महोत्सवकी तैयारी: रङ्गद्वारपर कुवलयापीडका वध तथा श्रीकृष्ण और बलरामका चाणूर और मुष्टिकके साथ मल्ल- युद्धमें प्रवृत्त होना,
तथा विप्रपत्तियों को श्रीकृष्णका दर्शन......
३५२
२२- श्रीकृष्णका नन्दराजको वरुणलोकसे ले आना और गोप-गोपियोंको वैकुण्ठधामका दर्शन
३८६
३५४
८- चाणूरमुष्टिक आदि मल्लोंका तथा कंस और उसके भाइयोंका वध......
२३- अम्बिकावनमें अजगरसे नन्दराजकी रक्षा तथा कराना ...........
३९१
३५६
२४- अरिष्टासुर और व्योमासुरका वध तथा सुदर्शन नामक विद्याधरका उद्धार...........
९- श्रीकृष्णद्वारा वसुदेव-देवकीकी बन्धनसे मुक्ति; श्रीकृष्ण और बलरामका गुरुकुलमें विद्याध्ययन तथा गुरुदक्षिणा के रूपमें गुरुके मरे हुए पुत्रको यमलोकसे लाकर लौटाना; श्री अक्रूरको हस्तिनापुर भेजना तथा कुब्जाका मनोरथ पूर्ण करना
३५७
माधुर्यखण्डका उपसंहार,
(५) मथुराखण्ड १- कंसका नारदजीके कथनानुसार बलराम और श्रीकृष्णको अपना शत्रु समझकर वसुदेव- देवकीको कैद करना, उन दोनों भाइयोंको मारनेकी व्यवस्थामें लगना तथा उन्हें मथुरा ले आनेके लिये अक्रूरजीको नन्दके व्रजमें जानेकी आज्ञा देना,
३६३
२- केशीका वध
३६६
३- अक्रूरका नन्दग्राम-गमन, मार्गमें उनकी बलराम- श्रीकृष्णसे भेंट तथा उन्होंके साथ नन्द भवनमें प्रवेश; श्रीकृष्णसे बातचीत और
३९६
१०- धोबी, दर्जी और सुदामा मालीके पूर्वजन्मका परिचय.
११- कुब्जा और कुवलयापीडके पूर्वजन्मगत वृत्तान्तका वर्णन.
१२- चाणूर आदि मल्ल, कंसके छोटे भाइयों तथा पञ्चजन दैत्यके पूर्वजन्मगत वृत्तान्तका वर्णन ..
४०६
१३- श्रीकृष्णकी आज्ञासे उद्धवका व्रजमें जाना और श्रीदामा आदि सखाओंका उनसे श्रीकृष्ण-
४०१
४०४
अध्याय
विषय
पृष्ठ संख्या
विरहके दुःखका निवेदन... १४- उद्धवका श्रीकृष्ण सखाओं को आश्वासन: नन्द और यशोदासे बातचीत तथा उनको प्रेम- सक्षणा-भक्तिसे चकित होकर उद्धवका उन्हें श्रीकृष्णके चरित्र सुनाना
१५- गोपाङ्गनाओंके साथ उद्भवका कदली-वनमें
जाना और वहाँ उनकी स्तुति करके श्रीकृष्णद्वारा भेजे गये पत्र अर्पित करना...... १६- उद्धवद्वारा श्रीराधा तथा गोपीजनोंकी
आश्वासन
४१८
१७ श्रीकृष्णको स्मरण करके श्रीराधा तथा
४२३
गोपियोंके करुण उदार १८- गोपियोंके उद्गार तथा उनसे विदा लेकर उद्धवका मथुराको लौटना
४२६
४३२
१९- श्रीकृष्णका उद्भवके साथ व्रजमें प्रत्यागमन और यमुना तटपर गौओंका उनके रथको चारों ओरसे घेर लेना; गोपोंके साथ उनकी भेंट, नन्दगाँव से नन्दरायजी एवं यशोदाका गोपों एवं गोपियाँको लेकर गाजे-बाजे के साथ उनकी अगवानी के लिये निकलना तथा सबके साथ श्रीकृष्णका नन्दनगर में प्रवेश..
२०- श्रीकृष्णका कदली वनमें श्रीराधा और गोपियोंके साथ मिलन: रासोत्सव तथा उसी प्रसङ्गमें रोहिताचलपर महामुनि ऋभुका मोक्ष ..
२१- श्रीकृष्णकी द्रवरूपताके प्रसङ्गमें नारदजीका उपाख्यान......
२२- नारदका अनेक लोकोंमें होते हुए गोलोकमें पहुँचकर भगवान् श्रीकृष्णके समक्ष अपनी कलाका प्रदर्शन करना तथा श्रीकृष्णका द्रवरूप होना..
४३५
४३९
४१३
२.
२३- श्रीकृष्णका व्रजसे लौटकर मथुरा में आगमन
२४- बलदेवजीके द्वारा कोल दैत्यका वध; उनकी गङ्गातटवर्ती तीर्थो में यात्रा; माण्डुकदेवको वरदान और भावी वृत्तान्तको सूचना देना;
४०९
४४९
४५३
अध्याय
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फिर गङ्गा अन्यान्य तीथोंमें स्नान-दान करके
मथुरामें लौट जाना २५- मथुरापुरीका माहात्म्य एवं मथुराखण्डका उपसंहार.
४६५
(६) द्वारकाखण्ड
१- जरासंधका विशाल सेनाके साथ मथुरापर आक्रमणः श्रीकृष्ण और बलरामद्वारा उसकी सेनाका संहार: मगधराजकी पराजय तथा श्रीकृष्ण-बलरामका मथुरामें विजयी होकर लौटना.
४७
२- मथुरापर जरासंध और कालयवनका आक्रमण; भगवान्का युद्ध छोड़कर एक गुफामें जाना और वहाँ गये हुए कालयवनको मुचुकुन्दके दृष्टिपातसे दग्ध कराना मुचुकुन्दको वर देकर बदरिकाश्रमकी और भेजना और स्वयं म्ले सेनाका संहार करके जरासंधके सामने से भागकर श्रीकृष्ण बलरामका प्रवर्षण- गिरि होते हुए द्वारका पहुँचना और जरासंधका उस पर्वतको जलाकर मगधको लौट जाना
३- बलदेवजीका रेवती के साथ विवाह. ॐ श्रीकृष्णको रुक्मिणीका संदेश: ब्राह्मण- सहित श्रीकृष्णका कुण्डिनपुरमै आगमन: कन्या और वरके अपने-अपने घरोंमें मङ्गलाचार: शिशुपालके साथ आयी हुई बारातको विदर्भराजका ठहरनेके लिये स्थान देना
४४५
५- रुक्मिणोकी चिन्ता ब्राह्मणद्वारा श्रीहरिके शुभागमनका समाचार पाकर प्रसन्नता; भीष्मकद्वारा बलराम और श्रीकृष्णका सत्कार; पुरवासियोंकी कामना; रुक्मिणीकी कुल- देवीके पूजनके लिये यात्रा, देवीसे प्रार्थना तथा सौभाग्यवती स्त्रियोंसे आशीर्वादकी प्राप्ति.
६- श्रीकृष्णद्वारा रुक्मिणीका अपहरण तथा यादव- वीरोंके साथ युद्धमें विपक्षी राजाओंकी पराजय
८
४५५
[१०]
विषय
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अध्याय
विषय
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अध्याय
५३२
उत्कृष्टताका प्रतिपादन. १९- लीला सरोवर, हरिमन्दिर, ज्ञानतीर्थ, कृष्ण- कुण्ड, बलभद्र सरोवर, दानतीर्थ, गणपति- तीर्थ और मायातीर्थ आदिका वर्णन २०- इन्द्रतीर्थ, ब्रह्मतीर्थ, सूर्यकुण्ड, नीललोहित-
७- श्रीकृष्णके हाथोंसे रुक्मीकी पराजय तथा द्वारकामें रुक्मिणी और श्रीकृष्णका विवाह ४९४
८- श्रीकृष्णका सोलह हजार एक सौ आठ रानियोंके साथ विवाह और उनकी संततिका वर्णन: प्रद्युम्नका प्राकट्य तथा रति और
५३७
तीर्थ और सप्तसामुद्रक तीर्थका माहात्म्य. २१- तृतीय दुर्गके द्वार देवताओंके दर्शन और पूजनकी महिमा तथा पिण्डारक-तीर्थका माहात्म्य
५४१
४९९
रुक्मीकी पुत्रीके साथ उनका विवाह.......... ९- द्वारकापुरीके पृथ्वीपर आनेका कारण; राजा आनर्तकी तपस्या और उनपर भगवान्
श्रीकृष्णकी कृपा.. १० द्वारकापुरी, गोमती और चक्रतीर्थका माहात्म्य; कुबेरके वैष्णवयज्ञमें दुर्वासामुनिद्वारा घण्टानाद
५०२
५४२
२२- सुदामा ब्राह्मणका उपाख्यान
५०५
(७) विश्वजित्खण्ड १- अविक्षितपुत्र राजर्षि मरुत्तके यज्ञानुष्ठानका वर्णन तथा भगवान् श्रीविष्णुद्वारा उन्हें वरकी प्राप्ति और उग्रसेनके रूपमें उनका प्रादुर्भाव ५५५
और पार्श्वमौलिको शाप ११- गज और ग्राह बने हुए मन्त्रियोंका युद्ध और भगवान् विष्णुके द्वारा उनका उद्धार...........
५०५
५०९
१२- महामुनि त्रितके शापसे कक्षीवान्का शङ्खरूप होकर सरोवरमें रहना और श्रीकृष्णके द्वारा उसका उद्धार होना; शङ्खोद्धार-तीर्थकी महिमा.
२- राजा उग्रसेनके राजसूय यज्ञका उपक्रम; प्रद्युम्नका दिग्विजयके लिये बीड़ा उठाना और उनका विजयाभिषेक
५१२
३- प्रद्युम्नके नेतृत्वमें दिग्विजयके लिये प्रस्थित हुई यादवोंकी गजसेना, अश्वसेना तथा
१३- प्रभास, सरस्वती, बोधपिप्पल और गोमती-
सिन्धु-संगमका माहात्म्य १४- द्वारका क्षेत्रके समुद्र तथा रैवतक पर्वतका
५१४
योद्धाओंका वर्णन ४- सेनासहित यादव वीरोंकी दिग्विजयके लिये
५६१
माहात्म्य. १५ - यज्ञतीर्थ, कपिटङ्कतीर्थ, नृगकूप, गोपीभूमि तथा गोपीचन्दनकी महिमा; द्वारकाकी मिट्टीके स्पर्शसे एक महान् पापीका उद्धार
५१७
यात्रा.. ५- यादव-सेनाकी कच्छ और कलिङ्गदेशपर विजय
५६५
५६८
५२०
१६- सिद्धाश्रमकी महिमाके प्रसङ्गमें श्रीराधा और गोपाङ्गनाओंके साथ श्रीकृष्ण और उनकी सोलह हजार रानियोंका समागम.
६- प्रद्युम्नका मरुधन्वदेशके राजा गयको हराकर मालवनरेश तथा माहिष्मती पुरीके राजासे बिना युद्ध किये ही भेंट प्राप्त करना
५५९
५२४
१७- सिद्धाश्रम में श्रीराधा और श्रीकृष्णका मिलन; श्रीकृष्णकी रानियोंका श्रीराधाको अपने शिविरमें बुलाकर उनका सत्कार करना तथा श्रीहरिके द्वारा उनकी उत्कृष्ट प्रीतिका प्रकाशन
५७१
७- गुजरातनरेश ऋष्यपर विजय प्राप्त करके यादव सेनाका चेदिदेशके स्वामी दमघोषके यहाँ जाना; राजाका यादवोंसे प्रेमपूर्ण बर्ताव करनेका निश्चय, किंतु शिशुपालका माता- पिताके विरुद्ध यादवोंसे युद्धका आग्रह..... ५७४
८- शिशुपालके मित्र द्युमान् तथा शक्तका वध ५७८ ९- भानुके द्वारा रङ्ग पिङ्गका वध, प्रद्युम्न और शिशुपालका भयंकर युद्ध तथा चेदिदेशपर प्रद्युम्नकी विजय.
५८१
५२९
१८- सिद्धाश्रम में व्रजाङ्गनाओं तथा सोलह सहस्र रानियोंके साथ श्यामसुन्दरकी रासक्रीड़ाका वर्णन तथा श्रीराधाके मुखसे वृन्दावनके रासकी
[११]
अध्याय
अध्याय
पृष्ठ संख्या
६३४
६४८
विषय
पृष्ठ संख्या
विषय
१०- यादवसेनाका कोङ्कण, कुटक, त्रिगर्त, केरल, तैलंग, महाराष्ट्र और कर्नाटक आदि देशोंपर विजय प्राप्तकर करूष देशमें जाना तथा वहाँ दन्तवक्रका घोर युद्ध.
ओरके सैनिकोंका तुमुल युद्ध और प्रद्युम्नके
द्वारा दुर्योधनकी पराजय ........ ६२९ २१- कौरव तथा यादव वीरोंका घमासान युद्ध; बलराम और श्रीकृष्णका प्रकट होकर उनमें मेल कराना
५८५
११- दन्तवक्रकी पराजय तथा करूपदेशपर यादवसेनाकी विजय
५९० २२- अर्जुनसहित प्रद्युम्नका कालयवन-पुत्र
१२- उशीनर आदि देशोंपर प्रद्युम्नकी विजय तथा उनकी जिज्ञासापर मुनिवर अगस्त्यद्वारा
चण्डको जीतकर भारतवर्षके बाहर पूर्वोत्तर
दिशाकी ओर प्रस्थान, २३- यादवसेनाका बाणासुरसे भेंट लेकर अलका- पुरीको प्रस्थान तथा यादवों और यक्षोंका युद्ध.. ६४३
६३८
तत्त्वज्ञानका प्रतिपादन
५९३
१३- शाल्व आदि देशों तथा द्विविद वानरपर प्रद्युम्नकी विजय; लङ्कासे विभीषणका आना २४- यादव सेना और यक्ष-सेनाका घोर युद्ध ... और उन्हें भेंट समर्पित करना..
५९८
२५ प्रद्युम्नका एक युक्तिके द्वारा गणेशजीको रणभूमिसे हटाकर गुह्यकसेनापर विजय प्राप्त करना और कुबेरका उनके लिये बहुत-सी भेंट-सामग्री देकर उनकी स्तुति करना; फिर प्राग्ज्योतिषपुरमें भेंट लेकर प्रद्युम्नका विरोधी वानर द्विविदको किष्किन्धामें फेंक देना.....
१४- सह्यपर्वतके निकट दत्तात्रेयका दर्शन और उपदेश तथा महेन्द्रपर्वतपर परशुरामजीके द्वारा यादवसेनाका सत्कार और श्रेष्ठ भक्तके स्वरूपका निरूपण.
६०३
१५- उड्डीश- डामर देशके राजा, वङ्गदेशके अधिपति वीरधन्वा तथा असमके नरेश पुण्ड्रपर यादवसेनाकी विजय
६५३
२६- किम्पुरुषवर्षके रङ्गवल्लीपुरमें किम्पुरुषोंद्वारा हरिचरित्रका गान; वहाँके राजाद्वारा भेंट पाकर यादव सेनाका आगे जाना; मार्गमें अजगर- रूपधारी शापभ्रष्ट गन्धर्वका उद्धार, वसन्त- तिलकापुरीके राजा शृङ्गारतिलकको पराजित करके प्रद्युम्नका हरिवर्षके लिये प्रस्थान..... ६५९
६०७
१६- मिथिलाके राजा धृतिद्वारा ब्रह्मचारीके रूपमें पधारे हुए प्रद्युम्नका पूजन; उन दोनोंका शुभ संवाद, प्रद्युम्नका राजाको प्रत्यक्ष दर्शन दे, उनसे पूजित हो शिविरमें जाना .........
६११
१७- मगधदेशपर यादवकी विजय तथा मगधराज जरासंधकी पराजय...
२७- यादवसेनापर गीधोंका आक्रमण तथा उसके निवारणार्थ प्रद्युम्नद्वारा गरुड़ास्त्रका प्रयोग; दशार्णदेशपर विजय तथा दशार्णमोचनतीर्थमें स्नान.........
६१६
१८- गया, गोमती, सरयू एवं गङ्गाके तटवर्ती प्रदेश, काशी, प्रयाग एवं विन्ध्यदेशमें यादवसेनाकी यात्रा; श्रीकृष्णके अठारह महारथी पुत्रोंका हस्तलाघव तथा विवाह; माथुर, शूरसेन आदि जनपदों एवं नन्द-गोकुलमें प्रद्युम्न आदिका समादर.
६६४
२८ - उत्तरकुरुवर्षपर यादवोंकी विजय; वाराहीपुरीमें राजा गुणाकरद्वारा प्रद्युम्नका समादर..... ६६७
२९- प्रद्युम्नकी हिरण्मयवर्षपर विजय; मधुमक्खियों और वानरोंके आक्रमणसे छुटकारा; राजा देवसखसे भेंटकी प्राप्ति तथा चन्द्रकान्तानदीमें स्नान
६२१
९- यादवसेनाका विस्तार; कौरवोंके पास उद्धवका दूतके रूपमें जाकर प्रद्युम्नका संदेश सुनाना; कौरवोंके कटु उत्तरसे रुष्ट यादवोंकी हस्तिनापुरपर चढ़ाई.
६७
३० - रम्यकवर्षमें कलङ्क राक्षसपर विजय; नैः श्रेयसवन, मानवी नगरी तथा मानवगिरिका दर्शन; श्राद्धदेव मनुद्वारा प्रद्युम्नकी स्तुति.... ६
६२६
■- कौरवोंकी सेनाका युद्धभूमिमें आना; दोनों
[१२]
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७३७
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लिये प्रस्थान.
३१- रम्यकवर्षमें मन्मथशालिनी पुरीके लोगोंद्वारा श्रीकृष्णलीलाका गान प्रजापति व्यति- संवत्सरद्वारा प्रद्युम्नका पूजन; कामवनमें प्रद्युम्नका अपने कामदेव-स्वरूपमें विलय...
४६- यादवों और गन्धवका युद्ध, बलभद्रजीका प्राकट्य, उनके द्वारा गन्धर्वसेनाका संहार, गन्धर्वराजकी पराजय, वसन्तमालती नगरीका हलद्वारा कर्षण गन्धर्वराजका भेंट लेकर शरण में आना और उनपर बलरामजीकी कृपा....... ७४१
६७९
३२- भद्राश्ववर्ष में भद्रश्रवाके द्वारा प्रद्युम्नका पूजन
तथा स्तवन; यादव सेनाकी चन्द्रावती-पुरीपर चढ़ाई, श्रीकृष्णकुमार वृकके द्वारा हिरण्याक्ष-
४७- यादव सेनाके साथ शक्रसखका युद्ध और उसकी पराजय
पुत्र हष्टका वध,
६८५
३३- संग्रामजित्के हाथसे भूत-संतापनका वध..
६९०
४८- शक्रसखका प्रद्युम्नको भेंट अर्पण, प्रद्युम्नका लीलावतीपुरीके स्वयंवरमें सुन्दरीको प्राप्त करना तथा इलावृतवर्षसे लौटकर भारत एवं ३६- दीप्तिमान्द्वारा महानाभका वध........ ७०१ द्वारकापुरीमें आना.
३४- अनिरूद्धके हाथसे वृकदैत्यका वध...... ३५- साम्बद्वारा कालनाभ दैत्यका वध
६९६ ६९९
३७- श्रीकृष्ण- पुत्र भानुके हाथसे हरिश्मश्रु दैत्यका
४९- राजसूय यज्ञमें ऋषियों, ब्राह्मणों, राजाओं तीर्थों, क्षेत्रों, देवगणों तथा सुहृद् सम्बन्धियोंका शुभागमन.........
वध
७०३
५०- राजसूय यज्ञका मङ्गलमय उत्सव, देवताओं, ब्राह्मणों तथा अतिथियोंका दानमानसे सत्कार
७४९
७५४
७०६
३८- प्रद्युम्र और शकुनिके घोर युद्धका वर्णन ३९- शकुनिके मायामय अस्त्रोंका प्रद्युम्नद्वारा निवारण तथा उनके चलाये हुए श्रीकृष्णास्त्रसे युद्ध- स्थलमें भगवान् श्रीकृष्णका प्रादुर्भाव .......७११
७५६
४०- शकुनिके जीवस्वरूप शुकका निधन....... ७१७ ४१- शकुनिका घोर युद्ध, सात बार मारे जानेपर भी उसका भूमिके स्पर्शसे पुनः जी उठना; २- श्रीबलभद्रजीके अवतारको तैयारी अन्तमें भगवान् श्रीकृष्णद्वारा युक्तिपूर्वक उसका वध
(८) बलभद्रखण्ड
१- श्रीबलभद्रजीके अवतारका कारण..
७६१
७६३
१३- ज्योतिष्मतीका उपाख्यान..
७६६
७२२
४- रेवतीका उपाख्यान.
७६९
४२- श्रीकृष्णका यादवोंके साथ चन्द्रावतीपुरीमें जाकर शकुनि-पुत्रको वहाँका राज्य देना तथा शकुनि आदिके पूर्व जन्मोंका परिचय
५- श्रीबलराम और श्रीकृष्णका प्राकट्य. ७७४ ६- प्राविपाकमुनिके द्वारा श्रीराम-कृष्णकी
...... ७२६
व्रजलीलाका वर्णन
७७७
४३- इलावृतवर्षमें राजा शोभनसे भेंटकी प्राप्ति; स्वायम्भुव मनुकी तपोभूमिमें मूर्तिमती सिद्धियोंका निवास; लीलावतीपुरीमें अग्नि- देवसे उपायनकी उपलब्धि; वेदनगरमें मूर्ति- मानू वेद, राग, ताल, स्वर, ग्राम और नृत्यके भेदोंका वर्णन.
७- श्रीराम कृष्णकी मथुरा-लीलाका वर्णन ७७९
८- श्रीराम-कृष्णकी द्वारका-लीलाका वर्णन...
७८५
९- श्रीबलरामजीकी रासलीलाका वर्णन. १०- श्रीबलभद्रजीकी पूजा-पद्धति और पटल..
७८९
७९२
११- श्रीबलराम स्तोत्र.
७९६
७२९
१२- श्रीबलराम-कवच
४४- रागिनियों तथा रागपुत्रोंके नाम और वेद आदिके द्वारा भगवानका स्तवन .....
७९७
१३- बलभद्र सहस्रनाम
७९९
७३३
(९) विज्ञानखण्ड १- द्वारकामें वेदव्यासजीका आगमन और
४५ - रागिनियों तथा राग-पुत्रोंद्वारा भगवान् श्रीकृष्णका स्तवन और उनका द्वारकापुरीके
उग्रसेनद्वारा उनका स्वागत-पूजन
८१५
[१३]
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विषय
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| अध्याय
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०३७
८१८
८२४
८२७)
४
२- व्यासजीके द्वारा गतियोंका निरूपण,
आनयन और अर्चन; ब्राह्मणोंको दक्षिणादान; अश्वके भालदेशमें बँधे हुए स्वर्णपत्रपर गर्गजीके द्वारा उग्रसेनके बल पराक्रमका उल्लेख तथा अनिरुद्धको अश्वकी रक्षाके लिये आदेश.........
३- सकाम एवं निष्काम भक्तियोगका वर्णन
८२१
४- भक्त-सन्तको महिमाका वर्णन...... ५- भक्तिकी महिमाका वर्णन
६- मन्दिर निर्माण तथा विग्रहप्रतिष्ठा एवं पूजाकी विधि
१
८२९१२- अश्वमोचन तथा उसकी रक्षाके लिये सेनापति अनिरुद्धका विजयाभिषेक.
७- नित्यकर्म और पूजा-विधिका वर्णन
८३१
८९२
८- पूजा-विधिका वर्णन ......
८३४
१३- अनिरुद्धका अन्तःपुरसे आज्ञा लेकर अश्वकी रक्षाके लिये प्रस्थान; उनकी सहायताके लिये साम्बका कृतप्रतिज्ञ होना; लक्ष्मणाका उन्हें सम्मुख युद्धके लिये प्रोत्साहन देना; श्रीकृष्णके भाइयों और पुत्रोंका भी श्रीकृष्णकी आज्ञासे प्रस्थान करना तथा यादवोंकी चतुरङ्गिणी सेनाका विस्तृत वर्णन.
९- पूजोपचार तथा पूजन-प्रकारका वर्णन .......
८३६
१०- परमात्माका स्वरूप-निरूपण,
८४२
(१०) अश्वमेधखण्ड १- अश्वमेध कथाका उपक्रम, गर्ग-वज्रनाभ-
संवाद...... २- श्रीकृष्णावतारकी पूर्वार्धगत लीलाओंका संक्षेपसे वर्णन
८४९
८९४
८५३
१४- अनिरुद्धका सेनासहित अश्वकी रक्षाके लिये प्रयाण: माहिष्मतीपुरीके राजकुमारका अश्वको बाँधना तथा अनिरुद्धका राजा इन्द्रनीलसे युद्धके लिये उद्यत होना..
३- जरासंधके आक्रमणसे लेकर पारिजात- हरणतककी श्रीकृष्णलीलाओंका संक्षिप्त वर्णन
८५८
९००
४- पारिजातहरण
८६२
१५- अनिरुद्ध और साम्बका शौर्य, माहिष्मती- नरेशपर इनकी विजय १६- चम्पावतीपुरीके राजाद्वारा अश्वका पकड़ा जाना; यादवोंके साथ हेमाङ्गदके सैनिकोंका ८७० घोर युद्ध; अनिरुद्ध और श्रीकृष्णपुत्रों के शौर्य से पराजित राजाका उनकी शरणमें
५- देवराज और उनकी देवसेनाके साथ श्रीकृष्णका युद्ध तथा विजयलाभ; पारिजातका द्वारकापुरीमें आरोपण.....
९०४
८६५
६- श्रीकृष्णके अनेक चरित्रोंका संक्षेपसे वर्णन ७- देवर्षि नारदका ब्रह्मलोकसे आगमन; राजा
आना९०७
उग्रसेनद्वारा उनका सत्कार; देवर्षिद्वारा अश्वमेध यज्ञकी महत्ताका वर्णन; श्रीकृष्णकी अनुमति एवं नारदजीद्वारा अश्वमेध यज्ञकी विधिका वर्णन..
१७- स्त्री- राज्यपर विजय और वहाँकी कुमारी रानी सुरूपाका अनिरुद्धकी प्रिया होनेके लिये द्वारकाको जाना
९१२
८७३
१८- राक्षस भीषणद्वारा यज्ञीय अश्वका अपहरण तथा विमानद्वारा यादव -वीरोंकी उपलङ्कापर चढ़ाई..
८- यज्ञके योग्य श्यामकर्ण अश्वका अवलोकन. ९- गर्गाचार्यका द्वारकापुरीमें आगमन तथा अनिरुद्धका अश्वमेधीय अश्वकी रक्षाके लिये कृतप्रतिज्ञ होना.
८७८
९१७
१९- यादवों और निशाचरोंका घोर युद्ध; अनिरुद्ध और भीषणकी मूर्च्छा तथा चेतना एवं रणभूमिमें बकका आगमन
८८०
१०- उग्रसेनकी सभामें देवताओंका शुभागमन; अनिरुद्धके शरीरमें चन्द्रमा और ब्रह्माका विलय तथा राजा और रानीकी बातचीत.... ११- ऋत्विजोंका वरण पूजन; श्यामकर्ण अश्वका
९२०
२०- बक और भीषणकी पराजय तथा यादवोंका घोड़ा लेकर आकाशमार्गसे लौटना .........
८८४
९२३
२१- भद्रावतीपुरी तथा राजा यौवनाश्वपर
[१४]
पृष्ठ संख्
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विषय
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३५- बलके चारों मन्त्रिकुमारोंका वधः बल्वल- द्वारा मायामय युद्ध तथा अनिरुद्ध के द्वारा उसकी पराजय...
९२७
अनिरुद्धको विजय
२२- के मोका अवन्तीपुरीमें जाना और वहाँ अवन्तोपदेशकी ओरसे सेनासहित यादवका पूर्ण सत्कार होना
३६- श्रीकृष्णपुत्र सुनन्दनद्वारा दैत्यपुत्र कुनन्दनका
९३०
२३- अनिरुद्ध के पूछनेर सान्दोपनिद्वारा श्रीकृष्ण- वाणि कृष्णकी परत एवं प्रतिपादन करके जगदसे वैराग्य और भगवान भजनका उपदेश.
३७- भगवान् शिवका अपने गणों के साथ बल्वलकी ओरसे युद्धस्थलमें आना और शिवगणों तथा यादवोंका घोर युद्ध: दीप्तिमान्का शिवगणोंको मार भगाना और अनिरुद्धका भैरवको जुम्भणास्त्रसे मोहित करना
९३३ ९३६
२४- अनुशा और यादवोरोंमें घोर युद्ध २५. अनुद्वारा प्रद्युम्नको उपहारसहित अवका अर्पण तथा बल्ल दैत्यके द्वारा उस अक्षका अपहरण,
३८- नन्दिकेश्वरद्वारा सुनन्दनका वध भगवान् शिवके त्रिशूलसे आहत हुए अनिरुद्ध की मूर्च्छा; साम्बद्वारा शिवको भर्त्सना: साम्ब और शिवका युद्ध तथा रणक्षेत्रमें भगवान् श्रीकृष्णका शुभागमन
९४०
२६ नारदजीके मुखसे बल्ल निवासस्थानका पता पाकर यादवोंका अनेक तीर्थोंमें खान- दान करते हुए कपिलाश्रमतक जाना और वहाँ कपिलमुनिको प्रणाम करके सागरके तटपर सेनाका पड़ाव डालना,
३९- भगवान् शंकरद्वारा श्रीकृष्णका स्तवन शिव और श्रीकृष्णकी एकता; श्रीकृष्णद्वारा सुनन्दन, अनिरुद्ध एवं अन्य सब यादवोंको जीवनदान देना तथा बल्वलद्वारा यज्ञ सम्बन्धी अश्वका लौटाया जाना..
९८५
९९०
९४३
२७- यादवद्वारा समुद्रपर बाणमय सेतुका निर्माण ९४६ २८ यादवोंका पाशजन्य उपद्वीपमें जाना दैत्योंकी परस्पर मन्त्रणा मयासुरका बल्वलको घोड़ा लौटा देनेके लिये सलाह देना; परंतु बल्वलका युद्धके निश्चयपर ही अडिग रहना..........
९९४
४०- यज्ञ-सम्बन्धी अश्वका व्रजमण्डलमें वृन्दावनके भीतर प्रवेश श्रीदामाका उसे बाँधकर नन्दजीके पास ले जाना; नन्दजीका समस्त यादवों और श्रीकृष्णसे सानन्द मिलना; यादव- सेनाका वृन्दावनमें और श्रीकृष्णका नन्दपत्तनमें निवास
२९- यादवों और असुरोंका घोर संग्राम तथा ऊर्ध्व-
केश एवं अनिरुद्धका इन्द्रयुद्ध........ ३०- केश और अनिरुद्धका तथा नद और गदका
९५२
घोर युद्ध: अश्वकेश और नदका वध.
९५६
९९७
३१- वृकद्वारा सिंहका और साम्बद्वारा कुशाम्बका वध. ३२- मयका बल्वलको समझाना: बल्वलकी युद्धघोषणाः समस्त दैत्योंका युद्धके लिये निर्गमन: विलम्बके कारण सैन्यपालके पुत्रका वध तथा दुखी सैन्यपालको मन्त्रिपुत्रोंका विवेकपूर्वक धैर्य बंधाना....
९६० ४१- श्रीराधा और श्रीकृष्णका मिलन ४२- रासक्रीड़ाके प्रसङ्गमें श्रीवृन्दावन, यमुना- पुलिन, वंशीवट, निकुञ्जभवन आदिकी तथा श्रीराधाको छबिका चिन्तन. शोभाका वर्णनः गोपसुन्दरियों, श्यामसुन्दर
१००१
१००४
९६३
४३- श्रीकृष्णका श्रीराधा और गोपियोंके साथ विहार तथा मानवती गोपियोंके अभिमानपूर्ण वचन सुनकर श्रीराधाके साथ उनका अन्तर्धान होना.. १०१३
३३- श्रीकृष्णकी कृपासे दैत्यराजकुमार कुनन्दनके जीवनको रक्षा.
९६७
३४- दैत्यों और यादवोंका घोर युद्ध: बल्वल, कुनन्दन तथा अनिरुद्धका अद्भुत पराक्रम..
९७३ | ४४- गोपियोंका श्रीकृष्णको खोजते हुए वंशीवटके
अध्याय
[१५]
विषय
निकट आना और श्रीकृष्णका मानवती
पृष्ठ संख्या
अध्याय
विषय
नरेशोंका सत्कार
राधाको त्यागकर अन्तर्धान होना ४५- गोपाङ्गनाओंद्वारा श्रीकृष्णकी स्तुति करते हुए उनका आह्यन और श्रीकृष्णका उनके बीचमें आविर्भाव
४६- श्रीकृष्णके आगमनसे गोपियोंको उल्लास; श्रीहरिके वेणुगीतकी चर्चासे श्रीराधाकी मूर्च्छाका निवारण; श्रीहरिका श्रीराधा आदि गोपसुन्दरियोंके साथ वन-विहार, स्थल- विहार, जल-विहार, पर्वत-विहार और रास- क्रीड़ा......
४७- श्रीकृष्णसहित यादवोंका व्रजवासियोंको आश्वासन देकर वहाँसे प्रस्थान
४८- अश्वका हस्तिनापुरीमें जाना; उसके भाल- पत्रको पढ़कर दुर्योधन आदिका रोषपूर्वक अश्वको पकड़ लेना तथा यादव सैनिकोंका कौरवोंको घायल करना
४९- यादवों और कौरवोंका घोर युद्ध.
५०- कौरवोंकी पराजय और उनका भगवान् श्रीकृष्णसे मिलकर भेंटसहित अश्वको लौटा देना
५१- यादवोंका द्वैतवनमें राजा युधिष्ठिरसे मिलकर घोड़ेके पीछे-पीछे अन्यान्य देशोंमें जाना तथा अश्वका कौन्तलपुरमें प्रवेश.
५२ - श्यामकर्ण अश्वका कौन्तलपुरमें जाना और भक्तराज चन्द्रहासका बहुत-सी भेंट-सामग्रीके साथ अश्वको अनिरुद्धकी सेवामें अर्पित करना और वहाँसे उन सबका प्रस्थान. १०४६
५३ - उद्धवकी सलाहसे समस्त यादवोंका द्वारकापुरीकी ओर प्रस्थान तथा अनिरुद्धकी प्रेरणासे उद्धवका पहले द्वारकापुरीमें पहुँचकर यात्राका वृत्तान्त सुनाना......
१०२३
१०२९ १०३३
१०३७
२०५२ ........... १०१५ ५५- व्यासजीका मुनि-दम्पती तथा राज- दम्पतियोंको गोमतीका जल लानेके लिये आदेश देना; नारदजीका मोह और भगवान्- १०१९ द्वारा उस मोहका भंजन; श्रीकृष्णकी कृपासे रानियोंका कलशमें जल भरकर लाना.....
२०५६
५६ - राजाद्वारा यज्ञमें विभित्र बन्धुबान्धवको भित्र- भिन्न कार्योंमें लगाना; श्रीकृष्णका ब्राह्मणकि चरण पखारना; घीकी आहुतिसे अग्रिदेवको अजीर्ण होना; यज्ञपशुके तेजका श्रीकृष्ण में प्रवेश; उसके शरीरका कर्पूरके रूपमें परिवर्तन; १०२७ उसकी आहुति और यज्ञकी समाप्तिपर अवभृथस्त्रान
२०६
५७- ब्राह्मणभोजन, दक्षिणा दान, पुरस्कार वितरण, सम्बन्धियोंका सम्मान तथा देवता आदि सबका अपने-अपने निवास स्थानको प्रस्थान २०६
५८- श्रीकृष्णद्वारा कंस आदिका आवाहन और उनका श्रीकृष्णको ही परमपिता बताकर इस लोकके माता-पितासे मिले बिना ही वैकुण्ठ- लोकको प्रस्थान.. १०
५९ - गर्गाचार्यके द्वारा राजा उग्रसेनके प्रति भगवान् श्रीकृष्णके सहस्र नामका वर्णन
१०४२
६०- कौरवोंके संहार, पाण्डवोंके स्वर्गगमन तथा यादवोंके संहार आदिका संक्षिप्त वृत्तान्त; श्रीराधा तथा व्रजवासियोंसहित भगवान् श्रीकृष्णका गोलोकधाममें गमन
६१ - भगवान् के श्यामवर्ण होनेका रहस्य; कलियुगकी पापमयी प्रवृत्ति; उससे बचने के लिये श्रीकृष्णकी समाराधना तथा एकादशी- व्रतका माहात्म्य.
१०४९
५४ - वसुदेव आदिके द्वारा अनिरुद्धकी अगवानी; सेना और अश्वसहित यादवका द्वारकापुरीमें लौटकर सबसे मिलना तथा श्रीकृष्ण और उग्रसेन आदिके द्वारा समागत * श्रीगोविन्दस्तोत्रम् .
६२- गुरु और गङ्गाकी महिमा; श्रीवज्रनाभद्वारा कृतज्ञता-प्रकाशन और गुरुदेवका पूजन तथा श्रीकृष्णके भजन- चिन्तन एवं संहिताका माहात्म्य
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