शाप वरदान हिंदी कथाएं -भस्मासुर - Curse & boon Hindi mythology stories Bhasmasur

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                                                Bhashmasur ka anokha vardan


शाप वरदान हिंदी कथाएं -भस्मासुर -  Curse & boon Hindi mythology stories Bhasmasur

त्रेताकाल में एक बड़ा ही स्वार्थी असुर था.. वह अपना स्वार्थ साधने के लिये रोज़ शिव की उपासना करने लगा. वह असुर रोज चिता- भस्म लाता और शिवजी को चढ़ाकर उनकी पूजा किया करता। इसी से उसका नाम भस्मासुर पड़ गया. औढरदानी आशुतोष सर्वान्तर्यामी होनेपर भी शिव जी उस राक्षस के मन की बुरी नीयत का कुछ भी खयाल न कर और उसके सामने प्रकट हो गये और बोले कि 'मनमाना वर माँग लो वत्स मिल जाएगा।' राक्षसने कहा-' प्रभु! फिर मुझे ऐसा वरदान दीजिये कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूँ, वही भस्म हो जाय ! शिव ने कहा अवसर मिला है तो कोई इससे भी बड़ा और अच्छा वरदान मांग लो. असुर ने कहा नहीं, मुझे तो यही वरदान चाहिये प्रभु।' भगवान् भोलेनाथने 'तथास्तु' कह दिया। भस्मासुर अब मनमाना दुर्लभ वर पाकर खुश होकर देवताओं का सर्वनाश करने निकल पड़ा। लेकिन इससे देवता घबराने लगे.  

तुरंत सभी देवताओं की सभा बुलाई गयी कि क्या करे क्या ना करे. देवर्षि नारद ने कहा मैं अपनी युक्ति लगाकर कुछ देर के लिए भस्मासुर को रोकता हूँ. भष्मासुर देवलोक की ओर बढ़ने लगा. तभी देवर्षि नारद उनके रास्ते आ गए और बोले “अरे भोले असुर तू भी कहाँ शिव की बातों में आ गया. वो भला तुम्हे ऐसा वरदान कैसे दे सकते हैं कि तुम किसी के भी सिर पर हाथ रखो और वो भष्म हो जाए.?  देवर्षि की बातों से अब असुर को भी अपने मिले वरदान में शंका होने लगी. वो उल्टे पाँव शिव के पास गया और पूछने लगा प्रभु आपने मुझे सच में वरदान दिया है ना? या ऐसे ही मेरा मन रखने के लिए बोल दिए. शिव बोले नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है. मैंने तुम्हे वही वर दिया है जो तुमने माँगा. उस वर के अनुसार अब तुम जिसके भी सिर पर हाथ रखोगे वो भष्म हो जाएगा. कुछ देर सोचने के बाद भष्मासुर ने कहा कि फिर तो मैं तो पहले आपके ही सिरपर हाथ रखकर वर की परीक्षा करूँगा।' शिवजी ने उस असुर को बहुत  समझाया-बुझाया, परंतु दुष्ट असुर ने शिव जी की एक न सुनी। वो अपना मतलब साधने की चेष्टा करने लगा। भगवान् शंकर चाहते तो उसे भस्म कर सकते थे अथवा शक्ति का ही हरण कर सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया और अपने दिये हुए वरदान की सत्यता सिद्ध कर दिखाने के लिये भागने का स्वाँग रचा। विष्णु जी से शिव की दशा देखी नहीं गयी..क्यूंकि शिव जहाँ जाते भस्मासुर अपना हाथ लेकर शिव के पास पहुँच जाता. 

विष्णु जी भी उस असुर को ऐसे ही नहीं मार सकते थे क्यूंकि उन्हें शिव की वरदान का भी ख्याल था. इसलिये वे अन्य उपायों से काम न लेकर मोहिनी रूप बनाकर उस राक्षसके सामने प्रकट हो गये। राक्षस तो उन्हें देखते ही मोहित हो गया। मोहिनी रूप भगवान् उसके सामने नाचने लगे जिससे वह असुर भी मोहित हो गया और उन्हीं का अनुसरण करने लगा। नाचते-नाचते मोहिनी ने अपना हाथ सिर पर रखा.  उसी की देखा-देखी मोहित असुर ने भी अपना हाथ सिरपर रख लिया। हाथ रखना था कि तत्काल उसके अंग से आगकी लपटें निकलने लगीं और बात- की-बात में वह जलकर भस्म हो गया।


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